गुड्डा!
बेटी को जब मिली गई बेशकीमति खुशी! बाप बन गया धनवान!!
डॉ. मिलिंद इंदूरकर
रोज की तरह साइकिल रिक्शा मारुती मंदिर के सामने आया, रिक्शेवाले ने भगवान मारुती को प्रणाम किया!... और हमेशा की तरह, भगवान से एक ही बात के लिए प्रार्थना किया... विनति कर कहा— भगवान मेरी छोटी गुड्डी...मेरी बेटी को खुश रखें, हे भगवान! मुझे पर्याप्त पैसा कमाने दो...जिससे मैं उसकी सभी मांगें पूरी कर सकूं।
ऐसा कहकर रिक्शेवाले ने अपने रिक्शे के हैंडल को प्रणाम किया और रिक्शे के पैडल पे पैर रखता हुआ धीमी गति से रिक्शा चलाने लगा! खर्रखचक-खर्रकचक... पैडल की आवाज आने लगी, सड़क पर गड्ढे, पत्थर और खांचे से उसका पुराना रिक्शा और ज्यादा शोर करता हुआ चलते—चलते हिचकोला खाने लगा।
तभी रिक्शाचालक की नजर एक छोटी लड़की पर गई। सड़क के किनारे खड़ी है... रिक्शे का इंतजार कर रही है, अपनी उम्र से थके हुए पिता को साथ लेकर अपना प्यारा "गुड्डा" लिए हुए थी. उसके पिता ने लाड़—प्यार से उसके लिये खिलौना "गुड्डा" लाया था. वही रास्ते पर खड़ी थी। अपने पिता के खरीदे गुड्डे को अपनी गोद में लिए खड़ी थी|
उन दोनों के सामने रिक्शा रुकता है, तो लड़की कहती है— ''रिक्शेवाले!रिक्शावाले चाचा! अस्पताल जाने के लिये कितना रुपया किराया होगा?''
रिक्शा वाला कहता है— ''50 रुपये!''
लड़की मुठ्ठी में बंद पसीने से तर पैसे को गिनती है...और चेहरे पर सवालिया भाव लाती है... शायद उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे!... रिक्शावाला उसके चेहरे के भाव पर आई मायूसी को समझ जाता है। कहता है— ''बेटा तुम्हारे पास कितने पैसे हैं? उसी में हम ले चलेंगे!"
रिक्शा वाले को लगा कि वह अस्पताल जाकर उसी जगह वापस आना चाहती है, इसलिए वह रिक्शावाला लड़की से पूछता है— "बेटा!अच्छा रहने दो!" बस मुझे 10 रुपये दे दो, मैं तुम्हें अस्पताल छोड़ दूंगा! बेठो मेरे रिक्शे में!''
रिक्शावाला उन दोनों बाप—बेटी को अस्पताल जाने के लिये रिक्शे में बिठा लेता है! लड़की और उसके पिता रिक्शे में बैठ जाते हैं। थोड़ी देर में ही वह उन्हें अस्पताल छोड़ देता है। रिक्शावाला वहीं अस्पताल के सामने बैठ जाता है। वह सोचता है कि इस बेटी को मेरी तरह सोचने वाला दूसरा रिक्शावाला नहीं मिला तो? ये क्या करेगी? उसके पास तो लौटने के पूरे पैसे भी नहीं हैं। यही सोचकर वह अस्पताल के बाहर सीढ़ियों पर बैठ जाता है!
बेटी को हॉस्पिटल का काम था, डॉक्टर को पिता की तबीयत के बारे में दिखाना था। दवाई की दुकान से दवाई की गोलियां लेकर अस्पताल का काम खत्म करने के बाद लड़की अस्पताल के बाहर घर जाने के लिए अपने बाबा के साथ आई। उसे देखकर उसका इंतजार कर रहा रिक्शावाला लड़की के पास आकर कहता है—" बैठो बेटा रिक्शा में, मैं तुम्हें तुम्हारी जगह पर छोड़ देता हूँ!" लड़की खुशी-खुशी अपने पिता को लेकर उसी रिक्शे में बैठ जाती है! थोड़ी देर में ही अपने घर पहुंच जाती है। लड़की किराए के आनेजाने के 10 रुपये के हिसाब से 20 रुपये देती है! रिक्शावाला वही 20 रुपये का नोट उसके पसीने से भीगे माथे पर लगाकर प्रणाम करता है। वहीं पास में खड़े होकर दूर से ही मारुति मंदीर को 20 रुपये अपने माथे से लगाकर प्रणाम करता है...फिर उसे अपनी जेब में रख लेता है! अपने घर जाने के लिए पैडल मारने वाला ही होता है तभी लड़की रिक्शा चालक के पास दौडी चली आती है, और कहती है—"रिक्शावाले चाचा! रिक्शावाले चाचा! रुक जाओ!"
रिक्शावाला रूक जाता है। लड़की बड़े प्यार से पूछती है—''चाचा! तुमने कहा था किराया 50 रुपये, वो भी जाने के! ...और वापसी का किराया 50 रुपये! इस तरह 50 और 50 रुपये 100 रुपये होते हैं! तो फिर इतने कम 20 रुपये में कैसे हमें ले गये,और वापस ले भी आए?''
उसका सवाल सुनकर रिक्शेवाला कहता है, ''बेटा! तुम्हारी जैसे ही मेरे घर में गुड़िया रानी "गुड्डी" है, बेटा तुम्हारे पास ज्यादा पैसा नहीं था! तुम्हारे पास बस 30 रुपये ही थे।''
इस पर लड़की बोली—'' लेकिन चाचा आपका तो बहुत नुकसान हो गया!''
"बेटा कोई बात नहीं फिर कभी कमा लुंगा!" रिक्शावाला सहजता से बोला.
" चाचाजी! मेरे पास यह मेरा प्यारा "गुड्डा" है, मैंने इसे कभी अपने से अलग नहीं किया, यह हमेशा मेरे साथ है, मेरे पिताजी इसे बड़े प्यार से मेरे लिये लाए थे! इसे देख मैं भी बहूत खुश हुयी थी! तुम इसे रख लो, तुम चाहो, तो इसे मेरी यादगारी के रूप में रख लो!'' लड़की प्यार से बोली.
रिक्शावाला उस गुड्डे को देखता है, उसे अपने हाथ में ले लेता है! फिर यादों में खो जाता है— उसके गुड्डी ने क्या कहा— " पिताजी! जब आप बाहर जाते हैं या रिक्शा मे सवारी लेकर जाते हैं, तो मैं घर पर अकेली होती हूं, मुझे डर लगता है, आप जल्दी घर आ जाते हैं, तो बहुत अच्छा लगता है, मेरा पूरा डर भाग जाता है।''
रिक्शावाला खुद से बातें करने लगता है,'' एक बार गुड्डी ने खिलौने वाली कार लेने के लिये कहा था, तब भी उसके पास पूरे पैसे नहीं थे, और वह निराश हो गया था! एक बार तो गुड्डी ने मेले में लगे आकाश मे झुलने वाले पालने मे बैठने की बात की थी। जिद्द भी की थी, लेकिन उस समय भी उसके लिए पैसे पैसे नहीं होने के कारण वह उसकी मांग पूरी नहीं कर सका था... ऐसे ही सोचते—सोचते जब रिक्शा चालक खुद से कहता है "अरे हाँ! एक बार गुड्डी ने गुड्डे खिलौने की मांग की थी, गुड्डा चाहती थी, और उस समय भी उसके खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए बेचारी गुड्डी को पीटाई भी हो गई थी।... उसे ये "गुड्डा" पसंद आएगा! यही सोचकर वह गुड्डा लेकर घर आ जाता है, लेकिन मन ही मन वह सोचता है, कि वह गुड्डा तो छोटे लड़की का है क्यों ? और किसलिये मैने लाया ये गुड्डा ? उसका बेचारी का दिल टूट गया होगा ।
वो रिक्शावाला विचार करता है— यह गुड्डा उस लड़की को लौटा देना चाहिए, घर पर अपने बच्ची (गुड्डी) को दिखाए बिना जेब में रख कर सो जाता है! जब सुबह रिक्शा चालक काम पर जाने की हड़बड़ी में उठकर दीवार की कील से टंगी हुई पैंट की जेब में खिलौने को ढूंढता है, तो उसे वहाँ कहीं दिखाई नहीं देती! रिक्शावाला बेचैन हो जाता है। वह गुड्डा जिसका है उसे लौटाना चाहता था।
बहुत ढूँढ़ता है, पर कहीं नज़र नहीं आता! तो निराश हो कर सो रही अपनी प्यारी "गुड्डी" के गाल को छूने जाता है, तभी गुड्डी अपने पिता के गले से कस कर लिपट जाती है। कहती है — "पिताजी! आप कितने अच्छे हैं! आप तो याद से मेरे लिए प्यारा सा गुड्डा ले आए! अब, मैं कभी नहीं डरूंगी!''
रिक्शावाला कहता है— '' लेकिन बेटा, गुड्डी वो गुड्डा अपना न... " बीच में ही गुड्डी बोलने लगती है—'' हाँ पापा! हमारा अपना!! हां—हां अपना!''
फिर गुड्डी खुशी से " मेरा प्यारा गुड्डू"! प्यारा मेरा गुड्डू!!'' कहकर गुड्डी अपने छाती से कस कर लगा लेती है! बाबा से कहती है, "बाबा, आप मुझे अभी आकाश पालने मे बैठने के लिये नही ले जाते है, तो भी चलेगा! हां!"
तुम मेरे लिए मेरा पसंदीदा खिलौना जो ले आए हो! पापा आप बड़े अच्छे हो, मेरे अच्छे पापा!" ऐसा कहकर तभी गुड्डी उस खिल्लौने गुड्डे के मुँह का चुंबन लेने लगी!
वह रिक्शावाला पापा खड़े-खड़े उस गुड्डी को एकटक देख रहा था!
रिक्शावाले ने उस के गुड्डी का चेहरा कभी इतना खुश नहीं देखा था। जब उसकी माँ भगवान के पास चली गई थी! उस दिन से गुड्डी चुप—सी हो गयी थी! वह रिक्शे वाला इसी खुशी को देखने के लिए ही जीतोड़ मेहनत कर रहा था! वो रिक्शेवाला जो की उस गुड्डी का पिता था उसने अपनी गुड्डी की ओर खुशी के आँसुओं से देखा, उसकी आँखों मे आसूं आ गये।... और उसने मन ही मन कहा, “कल उस रास्ते पर ठहरे हुये उस बेटी से मुझे 20 रुपये ही नहीं मिले थे, बल्कि उसने मुझे 100 रुपये दिये थे। अपने स्वयं के जीवन की कीमती पूंजी, उसका प्यारा गुड्डा रुपये के रुप मे! '100 रुपयों से ज्यादा' 100 फीसदी रुपये का भुगतान किया है मुझे। कल रास्ते में अपने पापा के पास खड़ी गुड्डा हाथ लिये वो बेटी बहुत ही रईस थी! उस गुड्डे की कीमत उस रिक्शेवाले को बहूत बड़ी रकम लगी।
रचनाकार : संगीत महामहोपाध्याय - स्वरचैतन्य - डॉ. मिलिंद इंदूरकर ( मनवा ), नागपुर
फोन नंबर 9552607646