
भारत बनी चौथी महाशक्ति, बनाया नया कीर्तिमान
इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने 14 जुलाई को दोपहर ढाई बजे श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 को लॉन्च कर इतिहास रच दिया. कुछ समय में पहली परीक्षा में सफलता मिल गई. अतंरतिक्ष में प्रवेश कर लिया...और अब पूरी दुनिया की नजर इस मिशन पर टिकी है कि भारत भविष्य में चंद्रयान-3 की बादौलत और कितने कीर्तिमान बनाएगा? किस तरह से चौथी महाशक्ति बन पाएगा? इसका रोबोटिक उपकरण 24 अगस्त तक चांद के उस हिस्से (शेकलटन क्रेटर) पर उतरने के बाद मिशन का मकसद किस तरह से पूरा हाने की दिशा में अग्रसर हो जाएगा?
चंद्रयान-3 मिशन की थीम Science Of The Moon यानी चंद्रमा का विज्ञान है. चंद्रयान—3 के लैंडर को सफलतापूर्वक चांद की सतह पर उतारने के लिए कई तरह के सुरक्षा उपकरणों को लगाए गए हैं और यह उम्मीद है इसके सारे चरण पूरे हो जाएं. चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से दोपहर 2.35 बजे LVM3 रॉकेट के जरिए चंद्रयान-3 के लॉन्च किए जाने के वक्त इसकी शुरुआती रफ्तार 1,627 किमी प्रति घंटा थी, जबकि कुछ सेकेंड के बाद ही यह 36 हजार 968 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़े गया. यानि कि लॉन्च के 108 सेकंड बाद 45 किमी की ऊंचाई पर इसका लिक्विड इंजन स्टार्ट हुआ और रॉकेट की रफ्तार 6,437 किमी प्रति घंटा हो गई. आसमान में 62 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने पर दोनों बूस्टर रॉकेट से अलग हो गए और रॉकेट की रफ्तार सात हजार किमी प्रति घंटा पहुंच गई. इस तरह एएलवीएम3-एम4 रॉकेट ने चंद्रयान 3 को सटीक कक्षा में पहुंचा दिया और इसकी स्पेस में एंट्री हो गई. चंद्रयान-3 की ने अपनी लॉन्चिंग के चार चरण सफलता पूर्वक पूरे कर लिए हैं.इसरो के मुताबिक चंद्रयान-3 पृथ्वी की निर्धारित कक्षा में पहुंच गया है जहां से वो चांद की कक्षा की ओर प्रस्थान करेगा. पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर जाएगा.
चंद्रयान 3 के लॉन्च को देखने के लिए कई स्कूलों के क़रीब 200 स्टूडेंट्स स्पेस सेंटर पर पहुंचे थे. इस दौरान हज़ारों लोग स्पेस सेंटर पर मौजूद दिखे.
इस मिशन में चंद्रयान का एक रोवर निकलेगा जो चांद की सतह पर उतरेगा और लूनर साउथ पोल में इसकी पोजिशनिंग होगी.
इस मिशन से संबंधित कुछ सवाल लोगों जेहन मे बने हुए हैं कि पिछली अनहोनी के बाद इसके कामयाब होने की कितनी संभावना है? चंद्रयान-3 में क्या-क्या बदलाव किए गए हैं? किन-किन चीज़ों का ध्यान रखा गया है? इस मिशन का लक्ष्य क्या है? ऐसे कई बुनियादी सवाल, जिनके जवाब जानने के लिए बीबीसी ने डॉ आकाश सिन्हा से बातचीत की. वह अंतरिक्ष, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोट्स, ड्रोन्स में विशेषज्ञता है और वह शिव नादर यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.
डा. सिन्हा से पहला सवाल किया गया— इस बात की कितनी संभावना है कि चंद्रयान 3, चंद्रयान- 2 के रास्ते नहीं जाएगा? इस बार क्या-क्या बदलाव किए गए हैं?
जवाब: बीते 50 सालों में कई मिशन प्लान और एग्जिक्यूट किए गए हैं, लेकिन चंद्रयान-2 ने पहली बार चांद पर पानी की खोज की. भले ही उसका लैंडर बाहर नहीं आ पाया पर इस बार हम आश्वस्त हैं कि वो ज़रूर होगा.
इस विश्वास के पीछे जो कारण हैं, वो ये कि पिछली बार लैंडर के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था, उसमें अब बहुत बदलाव हुए हैं.
दूसरा सवाल: चंद्रयान तीन का लैंडर चांद की उस सतह पर लैंड करेगा, जिसके बारे में अब तक कोई जानकारी मौजूद नहीं है. ऐसे में इस हिस्से में लैंड करना कितना मुश्किल है? यहाँ क्या-क्या और कितनी परेशानियां आ सकती हैं? अगर ये सफ़लतापूर्वक लैंड कर जाता है तो भारत के लिए कितनी बड़ी उपलब्धि होगी ?
जवाब: हमारे वैज्ञानिकों ने चांद के एक चुनौतीपूर्ण हिस्से को चुना है. इस हिस्से को लूनर साउथ पोल कहते हैं. इसकी ख़ास बात ये है कि इस पर धरती से सीधे नज़र रखना मुश्किल है.
यहां पर पानी और दूसरे खनिज पदार्थों के होने की काफ़ी संभावना है.
तीसरा सवाल: चंद्रयान-3 का उद्देश्य क्या है?
जवाब: इस मिशन में चंद्रयान का एक रोवर निकलेगा (एक छोटा सा रोबोट) जो कि चांद की सतह पर उतरेगा और लुनर साउथ पोल में इसकी पोजिशनिंग होगी. यहीं पर रोवर इस बात की खोज करेगा कि चांद के इस हिस्से में उसे क्या-क्या ख़निज,पानी आदि मिल सकता है.
इस खोज से ख़ास बात ये होगी कि अगर कभी भविष्य में हम चांद में कॉलोनियां बसाना चाहें, तो इसमें बहुत मदद मिलेगी.

सवाल: ऐसे मिशन के सबसे बड़े जोखिम क्या हो सकते हैं?
जवाब: पहला जोखिम ये है कि चांद पर जब आप कोई यान भेजते हैं, तो पूरी तरह से इसका नियंत्रण कंप्यूटर्स के पास होता है. एक इंसान होने के तौर पर, आप चार लाख किलोमीटर दूर बैठे उसे कंट्रोल नहीं कर सकते. वो पूरी तरह से आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस की मदद से काम करता है.
दूसरी चीज़ ये है कि चांद पर कोई जीपीएस नहीं है. जैसे हम धरती पर कोई गाड़ी चलाते हैं तो जीपीएस के माध्यम से कई जानकारियां हमें मिल जाती हैं. ड्राइवरलेस कारें जीपीएस तकनीक से ही काम करती हैं लेकिन चांद पर ये काम नहीं करती. वहां आपको पता नहीं चलेगा कि आप कहां पर हैं, किस हिस्से में हैं, कितनी दूर हैं? इन सभी चीज़ों का अनुमान उसे ऑनबोर्ड सेंसर से लगाना है, तो इससे दो-तीन नई मुश्किलें पैदा हो जाती हैं. अच्छी बात ये है कि इस बार इन सभी चीज़ों का ध्यान रखा गया है.
सवाल: चंद्रयान 2 की लागत एक हॉलीवुड फिल्म के बजट से भी कम थी और चंद्रयान 3 मिशन की लागत उससे भी लगभग 30% कम है. भारतीय वैज्ञानिक ऐसा करने में कैसे कामयाब रहे?
जवाब: भारत में एक चीज़ हमें हमेशा से सिखाई गई है कि अपने संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल करें, संभव हो तो उनका पुन: उपयोग भी करें.
जैसे जब चंद्रयान 2 भेजा गया था तो उसके तीन हिस्से थे – ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर. ऑर्बिटर कामयाब रहा और वो अभी भी चांद की ऑर्बिट में घूम रहा है. तो इस बार जब हम चंद्रयान 3 भेज रहे हैं, तो ऑर्बिटर का प्रयोग नहीं कर रहे क्योंकि ऑर्बिटर वहां पहले से मौजूद है. ऐसे में हमारे ऑर्बिटर की पूरी लागत इस बार बच गई.
इसरो की सबसे अच्छी बात ये है कि ये ज़्यादातर काम इन-हाउस करते हैं. यानी काफ़ी तकनीक वो ख़ुद से डेवलप कर लेते हैं, जिससे कम लागत में हम बड़े मिशन को अमल में ला रहे हैं.
साभार बीबीसी