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जनहित में किए कई काम आज देश भर में दवाइयां 25 से 80 फीसदी सस्ती मिल रही हैं। उसके पूरे देश में केंद्र सरकार द्वारा जनऔषैधि की दुकानें खुली हुई हैं, जो प्रधानमंत्री जनऔषधी केंद्र के नाम से जानी जाती है। उनमें सभी तरह की जेनेरिक दवाइयां मिलती हैं, जो पेटेंट दवाई की तरह ही असरदार हैं। उनपर दवा बनाने वाली कंपनी के नाम के साथ दवाई के फार्मूले का नाम अंग्रेजी और हिंदी में भी लिखा होता है। ये दवाइयां गरीबों के लिए लाभकारी साबित हो रही हैं। इसकी शुरुआत के बारे में बहुतों को शायद ही मालूम हो कि ऐसा किस योजना के तहत लागू किया गया। इसके पीछे किस व्यक्ति की सोच रही और इसे लागू करने में 15 साल से भी अधिक समय लग गए। जनौषधि दवाइयों की देन पद्मभूषण स्वर्गीय रामविलास पासवान की देन है। इसकी योजना उन्होंने तब बनाई थी जब वह यूपीए की सरकार में केमिकल एण्ड फार्टिलाइजर कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें 2004 में स्टील के साथ साथ इस विभाग का मंत्री भी बनाया गया था। तब डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनाए गए थे। रामविलास पासवान का केंद्र में बड़ा मंत्रालय संभालने का अच्छा अनुभव था। इससे पहले भी पासवान जनहित में कई बड़े काम कर चुके थे। इसे देखते हुए ही डा सिंह ने उनपर भरोसा कर नए सिरे से काम करने की पूरी आजादी दी हुई थी। मंत्रालय में विभागों से संबंधित नई जानकारियां और बदलाव के सुझाव आते रहती थे। इसी सिलसिले में उनकी नजर दवाइयों पर गई। उन्होंने पाया कि किसी एक बीमारी में काम आने वाली दवाई की कीमतों में बड़ा अंतर है। इस बारे में जब उन्होंने डॉक्टर और दवा कंपनियों से बात की तब उन्हें जेनरिक दवाइयों के बारे में मालूम हुआ। इसी के साथ यह भी पता चला कि यादि दवाई के फार्मूले के नाम से ही उसे बनाई जाए तब उसकी कीमत में काफ़ी कमी आ सकती है। इस विषय पर उन्होंने पहले अपने ऑफिसर से बात की। फिर डॉक्टर से सलाह लेकर दावा कंपनियों की बैठक बुलाई। डॉक्टर ने तो जेनरिक दवाइयों के इस्तेमाल पर सहमति जता दी,लेकिन दवा कंपनियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। यह कहें कि कंपनियों ने सिरे से जेनरिक दवाइयां बनाने से मना कर दिया। साथ ही इसका विरोध भी जताया। बावजूद इसके पासवान अपने इरादे पर अटल बने रहे और उन्होंने जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल की सहमति बना ली। उनकी इस पहल को तत्कालीन पीएम और यूपीए प्रेजिडेंट सोनिया गांधी ने काफी सराहना की। उसके बाद नई समस्या जेनरिक दवाइयों की दुकानें खोलने की आई। दवा विक्रेताओं ने अपनी दुकानों पर इन दवाओं को बेचने से मना कर दिया। ऐसा होने पर पासवान ने इसका पहला आउटलेट कृषि भवन में खुलवाया। यूपीए सरकार दोबारा बनी, पासवान इस सरकार में शमिल नहीं थे , और मामला खटाई में चला गया। मोदी सरकार में पासवान जब मंत्री बने तब कैबिनेट मीटिंग में गरीबों के हित में जन औषधि की दवाओं के बारे में जानकारी दी। उसके बाद ही इसकी दुकानें देश भर में खुल गई। रामविलास पासवान के द्वारा आम नागरिकों के लिए किए कई कार्यों में एक उदाहरण है। 5 जुलाई को उनके जन्मदिन के मौके उनकी विभिन्न देन को याद किया जाता है। उनकी अन्य देन में सबसे बड़ा योगदान अतिपिछड़ों को नौकरियों में दिया गया 26 फीसदी का आरक्षण है। रेल कुलियों की वर्दी से लेकर हाजीपुर में रेलवे जोन बनाने और छोटी लाइनों को बड़ी लाइनों में बदलने का श्रेय रामबिलास को ही जाता है। इसी तरह से कोरोना दौर में मुफ्त राशन देने का प्रावधान भी पासवान ने ही शुरू करवाया था। उन्होंने उपभोक्ता कानून में बदलाव लाकर भी कई काम किए, तो उन्हें मोबाइल कॉल रेट को निम्न दर पर लाने के लिए भी याद किया जाना चाहिए।