
फ्रॉड से बचना आपके हाथ में ही
शंभु सुमन
जबरन वसूली, बैंक खाते में सेंधमारी या फिर जालसाजी में फंसाने की साजिश जैसी साइबर अपराध की घटनाओं में अब नए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) का इस्तेमाल किया जाने लगा है.चिंता यह है कि तेजी से फैलते—पसरते ऐसे अपराध कस्बाई कोने से लेकर महानगरीय माहौल तक में घुस चुके हैं,और बहुपयोगी तकनीक का गलत इस्तेमाल होने लगा है. हालांकि उन पर एआई के जरिए ही नकेल लगाई जा सकती है.
बिहार के छोटे से शहर मुजफ्फरपुर में एक व्यक्ति को कॉल करने वाले ने खुद पुलिस अधिकारी बताया. उसे धमकी देकर कहा कि एक लड़की ने अश्लील तस्वीर और वीडियो भेजकर उसके खिलाफ तंग करने की शिकायत दर्ज की है. इसे लोकल थाने में दे दिया गया है. इस मामले को 10,000 रुपये का जुर्मान भरकर रफादफा किया जा सकता है. वह व्यक्ति डर गया और उसने बचाव के लिए दिए गए लिंक से पैसे ट्रांसफर कर दिए. कुछ मिनट बाद ही उसके आकाउंट से पैसे निकाले जाने के लगातार मैसेज आने लगे. जब तक कुछ सोच पाता, तब तक उस के खाते से डेढ़ लाख रुपये निकल चुके थे.
इस घटना की शुरूआत व्यक्ति के फेसबुक पर एक फ्रैंड रिक्वेस्ट से हुई. उसने लुभावनी प्रोफाइल पिक्चर को देखकर एक्सेप्ट कर लिया. थोड़ी देर बाद मैसेंजर पर वॉट्सऐप नंबर मांगने पर उस ने अपना नंबर दे दिया. फिर वीडियो कॉल आ गया. जब उसने कॉल रिसीव किया तब उसे स्क्रीन पर बिना कपड़े पहने एक लड़की की तस्वीर दिखी. वह असहज होकर डर गया. तुरंत फोन काट दिया. साइबर क्राइम का यह मामला 'सेक्सटॉर्शन' का था.
अन्य घटना:
दिल्ली में जंतरमंतर पर प्रदर्शन कर रही पहलवान बहनें विनेश फोगाट और संगीता फोगाट फेक न्यूज की शिकार तब हो गईं जब उन्हे 28 मई को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया था. किसी ने उनकी उदासी और गंभीर मुद्रा वाली तस्वीरों को एआई संचालित एप के जरिए छेड़छाड़ कर हंसता हुआ बना दिया था. इसके सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद भविष्य में ऐसे फ़ेक न्यूज़ के फैलने को लेकर चिंता बन गई. इसका खुलासा फैक्ट चंकिंग करने वाली वेबसाइट वूमलाइव के जरिए हुआ. यह भी पता चला कि किस तरह से एडिटिंग के फेसऐप नाम के ऐप की मदद से चेहरे के भाव को बदले जा सकते हैं.
साइबर क्राइम की ऐसी घटनाओं की फेहरिश्त काफी लंबी है, जिनमें लालच देकर लुभाने, वसूली के लिए फंसाने और फेक कंटेंट वायरल कर माहौल बदलने की वारदातें मुख्य हैं. अगर चेहरा बदलने वाले ऐप्लिकेशंस की बात करें तो यह मुफ़्त उपलब्ध हैं. बेहरीन सुविधाओं वाले ऐप की सर्विस पांच या आठ डॉलर मासिक, या सालाना 50 डालर पर ली जा सकती है. इनसे डीपफ़ेक वीडियो बनाने या तस्वीरों से छेड़छाड़ पलक झपकते की जा सकती है. व्हाट्सऐप और फेसबुक से यह आम लोगों तक पहुंच में आ चुका है.
डीपफेक एआई जनित सुविधा है, जिसकी मदद से किसी की भी शक्ल या बॉडी का इस्तेमाल कर वीडियो बनाया जा सकता है. किसी की आवाज के पैटर्न को अपने कब्जे में लेकर उससे इंसान जैसी हूबहू आवाज भी बनाई जा सकती है. इसका इस्तेमाल अक्सर फिल्मों में देखने को मिलता रहा है, लेकिन एआई इस काम को बड़ी सफाई से कर देता है. बच्चे को जवान और बूढ़ा दिखने वाले ऐप से ऐसा किया जाता है, जो मुफ्त में उपलब्ध ओपनएआई के चैटजीपीटी—4एपीआई से किया जा सकता है. इनसे स्टील तस्वीर को न केवल मोशन वाली वीडियो में बदली जा सकती है, बल्कि उसके चेहरे की भावभंगिमाएं वास्तविक दिखती है. यह सब एआई एल्गोरिदम का कमाल है, जिसमें इनकोड, डिकोड और प्रोसेस करने की क्षमता है.
ऐसी समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है. एआई की मदद से साइबर स्कैमर पैसा कमाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाने लगे हैं. इनमें सेक्सटॉर्शन मुख्य है. इसे लेकर एक तरफ साइबर सुरक्षा कंपनियां सतर्क हैं, जबकि दूसरी तरफ यूएस फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) ने एआई टूल्स की मदद से बनाए गए नकली अश्लील तस्वीरें या वीडियो शामिल कर जबरन वसूली की योजनाओं में बढ़ोत्तरी को लेकर चेतावनी जारी की है.
एजेंसी के मुताबिक सेक्सटॉर्शन की संख्या काफी बढ़ गई है. इसमें एक रणनीति के तहत फर्जी अश्लील तस्वीरों के जरिए धमकी दिए जाते हैं. इसके लिए साइबर क्रिमिनल सोशल मीडिया से तस्वीर ढूंढते हैं और फिर उन्हें एआई की मदद से संपादित कर अश्लील बना देते हैं. अनुमान के मुताबिक साइबर क्राइम के लगभग 60 फीसद मामले इसी से जुड़े हैं. इसके तीन चरण हैं. फोन पर दोस्ती का प्रस्ताव भेजना, फिर वॉट्सऐप पर अश्लील तस्वीर या वीडियो भेजकर आकर्षित करना और अंत में वीडियो कॉल है. कॉल रिसीव होते ही सामने न्यूड लड़की की तस्वीर उभरती है. कुछ सेकेंड में स्क्रीन रिकॉर्डर से वीडियो बन जाती है,फिर डराने-धमकाने और पैसे के वसूली के साथ—साथ बैंक खातों की सेंधमारी तक का खेल हो जाता है.
इसे देखेते हुए एफबीआई ने आगाह किया है कि सोशल मीडिया, डेटिंग ऐप्स और अन्य ऑनलाइन साइटों पर व्यक्तिगत फ़ोटो, वीडियो और पहचान संबंधी जानकारी पोस्ट करते हुए या सीधे संदेश भेजते समय सावधानी बरतने की जरूरत है. जहां तक संभव हो वीडियो कॉलिंग, वाट्सएप कॉलिंग और वॉयस मैसेजिंग से बचना चाहिए.
इसी संदर्भ में पैरेंट्स को भी सलाह दी गई है कि वे अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधि पर नज़र रखें. खासकर उन्हें तस्वीरें, वीडियो और व्यक्तिगत जानकारी ऑनलाइन पोस्ट करते समय विवेक का उपयोग करना चाहिए. क्योंकि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि एक बार सामग्री को इंटरनेट पर साझा करने के बाद, इसे दूसरे द्वारा इस्तेमाल किए जाने के बाद हटाना असंभव नहीं, लेकिन बेहद मुश्किल हो सकता है.
एआई से ही बचाव
साइबर क्राइम से बचाव अगर मिलने वाले आॅफर, नेटवर्क की समझ और इस्तेमाल में स्वविवेक की सतर्कता से संभव है, वहीं एआई से ही ऐसे फ्रॉड से बचा जा सकता है.
— ज्यादातर असावधानी स्मार्टफोन पर इंटरनेट यूज के दरम्यान होती है, जो इस्तेमाल किए जाने वाले नेटवर्क, जैसे सोशलसाइटें, ईमेल, मैसेजिंग, ई—कॉमर्स या सर्विस की वेबसाइटो को यूजर आईडी में ईमेल या मोबाइल नंबर और पासवर्ड जोड़े रखता है. साइबर क्रिमनल इसपर नजर गड़ाए रहते हैं, जबकि यूजर इनके प्रति लॉगआउट इस्तेमाल नहीं करने की लापरवाही बरतते हैं. एआई आधारित ऐप इनका यूज आसानी कर लेते हैं. ऐसे में सारे आकाउंट को लॉगआउट रखना चाहिए.
— दूसरी सतर्कता ईमेल और वाट्सएप या फेसबुक के मैसेज में आए अनजान लिंक से बचने से संबंधित है, जो स्कैमर के हो सकते हैं. इनपर क्लिक करने पर वे आपकी किसी भी एक निजी जानकारी लेकर सीधे बैंक खाते तक पहुंच बन सकते हैं. ईमेल को प्राइमरी, प्रमोशनस, सोशल, अपडेट्स और फोरम का फिल्टरेशन किया जाना चाहिए. यहीं स्पैम की सुविधा भी होती है, जिसपर आए मैसेज को हटाते रहना चाहिए.
— अनजान वेबसाइट पर विजिट करने से पहले उसके लिंक के HTTPS पर ध्यान देना चाहिए. अगर इसमें इसकी जगह HTTP है, तो ऐसे वेबसाइट पर नहीं जाना चाहिए, और इन्हें भूलकर भी लॉगिन नहीं करना चाहिए. अगर किसी सर्विस वेबसाइट पर लागइन करना भी पड़े तब पर्सनल डिटेल साझा करने से बचना चाहिए.
— स्मार्टफोन पर ऐप्स के इंस्टाल करते वक्त वरती जाने वाली सतर्कता में थर्डपार्टी एप्स हो सकते हैं, जिनमें अक्सर फ्री सामान आफर, गेम्से या लॉटरी से इनाम जीतने का लालच हो सकता है. इनसे फोन या फिर आपका पर्सनल कंप्यूटर भी हैक हो सकता है. ऐप हमेशा प्ले स्टोर से ही इंस्टाल करना चाहिए. इसके द्वारा मांगे गए परमिशन की सूचना पर भी ध्यान देना चाहिए. इनमें मैसेज रिकार्ड करने, मोबाइल नंबर या ईमेल आईडी शेयर करने आदि के परमिशन हो सकते हैं.
—सार्वजनिक वाईफाई के इस्तेमाल से फोन या लौपटॉप हैक होने का आशंका बनी रहती है. इस स्थिति में लागआउट करने की भूल हो जाती है. मैसेजिंग का दूसरे डिवाइस से लिंक बना रहता है.
— महत्वपूर्ण सतर्कता लालच से बचने की ही है, जो आॅनलाइन स्कीम या लौटरी से मिलती है. यह कभी किसी कॉल, वीडियो मैसेज से मिल सकती है, तो आनलाइन खरीदारी, डिजिटल पेमेंट, वेबसाइट विजिट आदि के रूप में हो सकती है. इसके लिए ब्राउजर को अपडेट रखना चाहिए, जिनमें गैरजरूरी चीजों को फिक्स करने की सुविधाएं होती है. फोन या इस्तेमाल किए जाने वाले ऐप की सेटिंग अपनी जरूरतों के मुताबिक बनाया जाना चाहिए.