
बढ़ते अपराधों पर अंकुश प्रीवेन्शन और डिटेक्शन से
सागर सिंह कलसी, भारतीय पुलिस सेवा, उपायुक्त पुलिस, उत्तरी जिला, दिल्ली में कार्यरत हैं। ये पंजाब राज्य के कपुरथला जिले के नडाला गाँव के रहने वाले हैं। इनके पिता श्री सुरेन्द्र सिंह कलसी ट्रांसपोर्ट के कारोबारी हैं। इनकी माता श्रीमती इकबाल कौरर पंजाब सरकार के नडाला स्कूल से रिटायर्ड लेकचरर हैं। दो बहनें अमेरिका में डॉक्टर हैं। इनकी पत्नी एमबीबीएस डॉक्टर है और केन्द्र सरकार में पंजाब सरकार से प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं। इनके एक पुत्र 8 वर्ष 6 माह का तथा एक पुत्री 7 वर्ष की है। इनके दादा जी भारतीय सेना में कार्यरत थे। यह सब संयुक्त परिवार में रहते हैं।
शिक्षाः श्री सागर सिंह कलसी की शिक्षा 8वीं कक्षा तक इनके गांव नडाला में हुई तथा स्कूल की शिक्षा जलंधर में हुई। इन्होंने केमिकल इंजीनियरींग की शिक्षा एन.आइ.टी. जालन्धर से प्राप्त की और पोस्ट ग्र्रेडुयेशन एम.टेक. केमिकल इंजीनियरिंग में आई.आई.टी. दिल्ली से किया।
प्रश्नः पुलिस सर्विस ही क्यों चुनी, जबकि इसमें चैलेंज ज्यादा है?
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के लिये तैयारी की तथा यू.पी.एस.सी. की परीक्षा पास करके सन 2010 में आई.पी.एस. में इनका चयन हो गया। और इनको AGMUT काडर मिला। पुलिस सेवा में चैलेज ज्यादा है। माता-पिता का सपना था कि एक अच्छी सरकारी नौकरी इनको मिले। यू.पी.एस.सी. परीक्षा में अच्छे रैंक आने के कारण पुलिस सेवा की नौकरी मिली। में समाज सेवा का संकल्प लिए पुलिस की नौकरी सहर्ष स्वीकार ली।
प्रश्न : बढ़ते अपराधों की वजह क्या है? इन पर अंकुश कैसे लगे?
समाज में जैसे-जैसे विकास होता है, नयी टेकनोलॉजी आती है। जैसे-जैसे गांव से शहर की ओर पलायन होता है वैसे—वैसे अलग—अलग चुनौतियां सामने आने लगती हैं। काम, क्रोध, अहंकार लोभ, मोह इंसान के नेचर में है। किसी में ज्यादा होता है और वह चाहता है कि साम, दाम, दंड भेद के चलते ज्यादा मिल जाए।
बढ़ते अपराधों की अलग-अलग श्रेणियां हैं। एक्सीडेंट केस होते हैं। गलती से भी अपराध होते हैं। सिर फटना इत्यादि। कुछ योजनाद्ध केस भी होते है। बढ़ती जनसंख्या भी एक वजह है।
सोशल मीडिया, मीडिया के चलते कई नुकसान होते हैं। लोग जल्दी अमरी होना चाहते हैं। लोग जल्दी आगे बढ़ना चाहते हैं। प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है। जनसंख्या के कारण भीड़ एक वजह है। सिगमंड फ्रायड यूरोप के एक वैज्ञानिक के मुताबिक व्यवहार सेक्स एवं एग्रेसन से हावी होता है। असंतुलन भी कई बार महिलाओं के प्रति अपराध को बढ़ाता है। समाज में गर्माहट बढ़ गयी है। भीड़ के कारण अपराध होता है।

प्रश्न : बढ़ते अपराधों पर अंकुश कैसे लगे?
मेरी राय में प्रीवेन्शन और डिटेक्शन से बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है। प्रीवेन्शन (रोकना) जैसे जागरूकता, मार्केट और रेजीडेन्ट वेलफेयर ऐसाशियेशन के साथ मीटींग करना। काउन्सलींग करना, पुलिस प्रेशेन्स को बढ़ाना। सी.सी. कैमरा टेकनोलॉजी का प्रयोग करते हुए लोगों कमें शान्ति और न्याय की भावना को बढ़ाना, अपराधों को रोकने में आता है।
डिटेक्शन : पता लगाने की क्रियाः
अपराधी को हयुमन, वैज्ञानिक टैकनोलोजी का प्रयोग करके सलाखों के पीछे भेजना कम्युनल अपराधी को जल्दी से पकड़कर जेल में डालना ताकि आगे और अपराध करने से रोकना, इससे अपराध कम होगा।

प्रश्नः पुलिस पर बढ़ते राजनीतिक दवाब के बारे में आप क्या कहना चाहते हैं?
निजी तौर पर मेरे ऊपर कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। मार्क वेबर ने ब्युरोक्रेसी में बताया कि नोन कमिटेड एनोनीमीटी (Non-Committed Anonymity) की बात की है, नोन कमिटेड ब्युरोक्रेसी की बात की है। मुख्य सेवा जनता की संविधान के प्रस्तावना के आधार क्यों ना हो। हमारा धर्म, संविधान के प्रति सबसे पहले है। हमें निडर होकर काम करना है।
प्रश्नः फ्रेश अपराधी पुलिस के लिये बड़ा सिर दर्द होते है, इनसे कैसे निपटा जाए?
उत्तर : हमारा बीट पुलिसिंग में फोकस रहता है। नये लोग क्राइम में ना आ जाए। कोई नया क्राइम में आता है और अपराध होता है तो पुराने अपराधी को देखते हुए कुदरती चैलेंज रहेगा।
दिल्ली पुलिस द्वारा आंख और कान योजना, इलाके में अमन कमेटियां, रेजीडेन्टस वेलफेयर एसोशियेशन के द्वारा अपराध को रोकने की तरफ रूझान रहता है। स्थापित गुन्डे हैं तथा उनके गुर्गे रहते हैं, उनका डाटा बेस तैयार करते हैं।
प्रश्न : समाज में अपनी छवि सुधारने के लिए पुलिस को और क्या करना चाहिए।
आज का दौर धारणा प्रबंधन (Perception Management) का दौर है। अच्छे हो, सही हो, काबिल हो, ईमानदार हो, जरूरी है। यह दिखना भी चाहिये। पुलिस दिन रात बहुत काम करती है। निसन्देह मीडिया में, आम जनता में यह महसूस भी होता है कि होली, दिवाली व महत्वपूर्ण त्यौहारों में पुलिस नौकरी में बीताती है, लेकिन कुछ गलत वाक्या स्टाफ के कारण पुलिस का ही नहीं बल्कि किसी भी डिपार्टमेन्ट का नाम खराब हो जाता है।
किसी भी अच्छे काम का प्रोजेक्सन, लोगों से अच्छी पब्लिक डीलींग, हर कर्मचारी का अच्छा व्यवहार दिखाकर नौकरी करनी चाहिये। बेस्ट सर्विस डेलीवरी सिस्टम पुलिस डिपार्टमेनट सर्विस डेलीवरी सिस्टम पुलिस डिपार्टमेन्ट की ही नहीं, किसी भी डिपार्टमेन्ट की छवि सुधार सकती है। सही तरीका भी यही है।
निःसन्देह, पुलिस डिपार्टमेन्ट गरीबों, बेसहारा लोगों जिनका कोई नहीं है, उनके काम आती है। यह जरूरी बताने वाली बात है कि पुलिस वालों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए शांति, कानून व्यवस्था, एवं अमन चैन कायम रखने के लिये अपनी कुर्बानी दी है। जनता में इससे पुलिस की अच्छी छवि हुई है।

प्रश्नः डिजिटल क्रांति के बाद साइबर क्राइम में भी इजाफा हुआ है, इस पर अंकुश कैसे लगे, पुलिस लोगों को किस तरह जागरूक कर रही है।
उत्तर : आज का युग डिजिटल युग है। 30 साल पहले अमेरिका, कनाडा से एक चिट्ठी आती थी और उसका जवाब महिनों बाद पहुंचता था। आज भारत के किसी भी कोने से दुनिया के किसी भी कोने में जन्में पोता, पोती को लाइव आशीर्वाद परिवार वाले देते हैं।
पपद्ध गाँव, शहर, देश विदेश का फासला डिजिटल क्रान्ति ने खत्म कर दिया है। इसी के कारण भी शरारती तत्वों ने फायदा उठाने की कोशिश की है और अपराध दुनिया के किसी भ्ी कोने में बैठकर दिल्ली में घर में बैठे आदमी से फोन में बात करके, उनको बिना टच किये, फ्राड किया जा रहा है।
इस पर अंकुश के लिये पुलिस बहुत प्राथमिकता के साथ काम कर रही है। स्कूलों, कॉलजों में, झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में, टीवी, रसाले ;मैगजीनद्ध, अखबार के माध्यम से रेलवे स्टेशनों, बस अडडों पर नुकड़ नाटक के द्वारा भी जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को नये नये तरिकों के अपराध के बारे में अवगत, अगाह, होशियार किया जा रहा है। लेटेस्ट टेकनोलोजी का प्रयोग करके अपराधियों को पकड़ा जा रहा है। बहुत अच्छी इन्वेस्टीगेशन करके अपराधियों को जेल के सलाखों के पीछे भेजा जा रहा है। इसमें समन्वय (कोआर्डिनेशनद्) और सूचना के आदान प्रदान (इनर्फोमेशन शेयरींगद्) का बहुत योगदान है। दुनिया भर में पुलिस फोर्स आपस में मिलती रहती है। इससे अपराधियों के बारे में तथा नये-नये अपराध की सूचना के बारे में सूचना का आदान प्रदान होता रहता है। ‘‘प्रीवेनशन इज बेटर देन की ओर र्फामुले का इस्तेमाल प्रीवेन्टीव पालीसींग में होता है।
बैंको से, मोबाइल कम्पनीयों से, साफ्टवेयर कम्पनीयों से पुलिस फोर्स का लगातार सम्पर्क रहता है। ताकि इनके सीस्टम को कैसे सुरक्षित बनाया जाए। ओटीपी, डबल पासवर्ड, फेस रीकागनीशन इस तरह के सीकयोरीटी फीचरस आ रहे हैं जिससे कि अपराधियों को चैलेंज मिलता है।
प्रश्न : दिल्ली में यूथ नशा के जाल में जकड़ते जा रहे हैं, ड्रग माफियाओं पर अंकुश लगाने की दिल्ली पुलिस की क्या योजना है?
उत्तर : डिमान्ड और सपलाई दोनों लेवल को चेक करना जरूरी है। कानून बहुत सख्त है। जो ड्रग की तस्करी करते हैं, उनको पकड़ कर सलाखों के पीछे भेजना जरूरी है। ट्रेल बनाकर जहां पर कल्टीवेशन होता है, इन्वेस्टीगेशन करने की जरूरत है। डिमान्ड और सपलाई के लिये आज की युवा पीढ़ी को काउन्सलींग के जरिये रीहेबीलीटेश (पुर्नवाश) के जरिये रोजगार मुहैया कराना। कन्स्ट्रकरीव कामों में व्यस्थ करना, समाज कल्याण देश निर्माण के कार्यों में इनको लगाना। इस तरह से डिमान्ड चेक किया जा सकता है। इससे काफी फर्क पड़ेगा।
एन.जी.ओ के साथ दिल्ली पुलिस के कई प्रोग्राम चलते रहते हैं। पुलिस के द्वारा स्पेशल ड्राइव चलता रहता है। हाल ही में मजनु के टीले में समाज के लोगों, एन.जी.ओ, और पुलिस ने मिलकर खेलकुद के प्रोग्राम, काउन्सलींग, पब्लिक अवेयरनेस प्रोग्राम कराये हैं। निसन्देह इनसे नशा कम होने से अपराध कम होने का असर दिखता है।
प्रश्नः कुछ युवा गैंगस्टर्स के रूतवे से प्रभावित होकर उन्हें अपना आदर्श मानकर, अपराध के क्षेत्र में बढ़ रहे हैं उन्हें कैसे रोका जाए।
उत्तर : किशोर अवस्था में 12-13 साल से 18 साल की उम्र में बच्चों को रोल माडल बनने की एक रूचि होती है। अच्छी प्रेरणा, अच्छा गुरू, अच्छे संस्कार यदि मिले तो बच्चा ऊंचाईयां छु सकता है। इसके विपरित मोहल्ले में जो ;ठपामद्ध बाइक पर बैठा 5 साल बड़ा मुसतन्डा जो सिगरेट का छल्ला हवा में उड़ाता है, मोटर साइकिल पर बैठकर किसी को गाली देकर एक नकली रूतबा दिखाता है वो अगर रोल माडल बन जाए तो बच्चा खराब हो जाता है। इसी तरह बच्चे निजी चेले, गुर्गे, पटठे, चम्चे बनना पसन्द करते हैं और मां बाप, शिक्षक पुलिस, बड़ों का उन पर ध्यान ना हो तो बच्चे इस तरह की नकली हवा बाजी में आकर अपना भविष्य खराब कर लेते हैं। हाल ही में इन्सटाग्राम, फेस बुक वगैरह पर गैंग जैसे ग्रुप बनाकर, असली, नकली पिस्तौल, मोटर साइकल, लड़कीबाजी फ्लैश करने का कलचर शुरू हो गया है।
जिसको कच्ची उम्र के युवक कापी करने की कोशिश करते हैं और पढ़ाई लिखाई, खेल कुद से दूर होकर गलत संगत में पड़ जाते हैं। इसके साथ जल्दी अमीर होने का, जिन्दगी में लुत्फ लेने का लालच देकर युवाओं को ये गैन्गसर्ट अपनी तरफ दिखाने की कोशिश करते हैं और बहुत हद तक सफल होते हैं। इसमें बां बाप, बड़े बुर्जुग, सम्मानित व्यक्तियों, मौजेज, पुलिस, शिक्षक इन सबका यह पहला दायित्व/कर्तव्य है, कि ये युवाओं को वर्शीप, हीरो गिरी करने से रोकने में भी पुलिस का रोल अहम है। इस तरीके की ओच्छी घिनौनी हरकतों को करने वालों को पुलिस अंकुश लगाने का काम करती रहती है।
मुवी, फिल्म के जरिये भी समाज में अच्छे जीवन का प्रदर्शन के बारे में फिल्म बनाना और बुरे व्यक्ति का बुरा होना, टीवी में आये तो समाज में गलत प्रेरणा पर रोक लगेगी।
प्रश्नः समाज की धारा से भटके लोगों को राह पर लाने के लिये पुलिस का क्या दायित्व है?
उत्तर : समाज में शान्ति, कानून व्यवस्था को कायम रखने में पुलिस का अहम रोल है। बाकी अन्य डिपार्टमेंट एजुकेशन, हेल्थ, सामाजिक सुधार, सिविक डिपार्टमेन्ट, कारपोरेशन भी अहम रोल निभा सकते हैं ताकि समाज में लोगों को अच्छी सड़के मिले, साफ साफाई ;सिविक एमीनीटीसद्ध मिले ताकि लोग खुश रहे ना कि असमाजिक बने। जितना हद तक पुलिस कर सकती है, करती ही है। यदि कोई परीक्षा में फेल होकर भटक गया, प्यार में असफल होने पर क्राइम कर लिया, कारोबार में दीवालीया होने पर आवारा हो गया, वगैरह वगैरह। उनको सही मार्ग दर्शन करना, सही दिशा दिखाना, समझाना वगैरह का काम पुलिस करती है। जेल में भी जो कैदी है, समाज सुधार का कार्यक्रम, योगा एवं खाना पकाना, रोजगार से सम्बन्धित कार्य, कपड़े सिलना, साबुन, मोमबती बनाना, खादी उद्योग का कारोबार सिखाया जाता है। ताकि वे जेल से घुटने के बाद समाज में ईज्जत से, आत्म निर्भर होकर रह सके। यह सत्य है कि इंसान को सुधरने का, पश्चताप करने का मौका मिलना चाहिए। अगर कोई भटका हुआ व्यक्ति वापिस घर आ जाता है, तो उसे भुला हुआ। भटका हुआ नहीं कहा जा सकता।
प्रश्नः समाज के लिये आप क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर : ;पद्ध 25 साल पहले हुये एक मर्डर के केस को साल्व किया था। मेरे कार्यकाल के दौरान एसीपी कोतवाली ;चांदीन चौकद्ध से लेकर एडीशनल डीसीपी सेन्ट्रल डिस्ट्रीकट, वेसट डिस्ट्रक्ट, एस.पी. ईटानगर, और एस.पी. तवांग, व कश्मीर में भी पोसटींग रही है। कुछ केस जो यादगार कहे जा सकते हैं किडनैपिंग फिरौती के जिसमें सारी रात रेड करके अन्त में बच्चे को बचाना। इससे बच्चों को परिवार वालों को, तथा मुझे बेहद खुशी मिली।
;पपद्ध उतरी जिला में 20 साल के मीसींग केस को दुबारा रीभीजीट ;कार्यवाही की गयीद्ध गुमशुदा थे। इससे कई परिवार वाले दिन से धन्यवाद करते है ंतो इस खुशी को ब्यान नहीं किया जा सकता है।
;पपपद्ध इसी तरह से तकरीबन हर त्यौहार नया साल भी हो तो परिवार के संग नहीं मनाया जाता डयुटी के कारण। पुलिस परिवार के साथ पीकेट में नया साल, दिवाली, त्यौहार मनाते हैं तो आदत पड़ गयी है, लेकिन वो अच्छा लगता है। यह अलग बात है कि पत्नी व बच्चों के साथ चन्द दिनों बाद मिलकर उनकी नाराजगी दूर की जाती है।
प्रस्तुति उमेश त्रिवेद