मुगलकालीन दौर में स्त्रियों की शिक्षा व्यवस्था
श्रवण कुमार यादव
सोने की चिड़िया के नाम से विख्यात भारत सदैव विदेशयों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसके ‘‘सुजलां सुफलां शस्य श्यामलां’’ भूमि से आकर्षित होकर प्राचीन काल से इस पर कई धनलोलुप विदेशी आक्रमणकारियों ने अनेक हमले किए. उदाहरण के लिए ग्यारवीं शताब्दी में अरब गजनवी द्वारा 17 आक्रमण किये गये थे। इसके पश्चात 1192 में गजनी के सुल्तान मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया था और भारत में अपने प्रतिनिधि कुतबुद्दीन ऐबक को शासन की बागडोर सौंपी।
हालांकि मुस्लिम धर्म में शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया गया है. जैसा कि मुहम्मद साहब के उपदेश से ज्ञात होता है— दान में सोना देने की अपेक्षा अपने बच्चों को शिक्षा देना श्रेष्ठ है। इस उपदेश के विपरीत भारत में मुस्लिम शासकों ने शिक्षा के प्रति कोई विशेष रूचि नहीं ली। इस सन्दर्भ में टी.एन.सिक्वेरा ने लिखा है— ‘‘भारत पर मुसलमानों की विजय इस्लामी शिक्षा के उस अन्धकार पूर्ण युग के समकालीन थी, जबकि विद्यालयों ने अपने व्यापक सांस्कृतिक आदर्शों को खो दिया।’’
मुगलकालीन युग में शिक्षा की अव्यवस्था के सन्दर्भ में एफ.ई.के.ई. द्वारा कहा गया है—
पर्दा प्रथा के कारण छोटी आयु की बालिकाओ को मकतब में जाकर शिक्षा का अर्जन करती थीं। इन्हे कुछ समय के बाद ही यह शिक्षा के अर्जन करने वाला कार्य स्थगित करना पड़ता था। उनको उच्च शिक्षा की सुविधायें उपलब्ध नही थी, क्योकि राज्य की ओर से उनके लिये अलग से शिक्षण संस्थाओं की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। बालिकायें या तो ज्ञान से वंचित रह जाती थीं या उनका ज्ञान अत्यल्प तक सीमित रह जाता था।
सल्तनत काल में प्रसिद्ध शासकों ने शिक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। मुहम्मद गोरी एक लुटेरा के रूप में प्रवेश किया और अपार धन सम्पत्ति लूटकर लौट गया। स्वेदेश जाने से पूर्व उसने शासन व्यवस्था कुतुबद्दीन ऐबक को सौंप दिया। कुतुबद्दीन ऐबक ने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सृजनात्मक कार्य किये। उसने शिक्षा के लिए अनेक मस्जिदें बनवायी। जो कुव्वत उल इस्लाम इस्लाम (दिल्ली), अढ़ाई दिन का झोपड़ा (अजमेर) में स्थित है।
इल्तुतमिश ऐबक का उत्तराधिकारी था, जो अनेक राजनैतिक कारणों से शिक्षा के क्षेत्र में अधिक ध्यान न दे सका। इल्तुतमिश ने दिल्ली में ‘‘मदरसा-ए-मुअज्जी’’ की स्थापना की थी। रजिया बेगम दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर आसीन होकर, शिक्षा से संबन्धित अनेकत्व सृजनात्मक कार्य किये। अपने पिता द्वारा स्थापित मदरसा-ए-मुअज्जी नामक संस्थान का अच्छी तरह संचालन किया। नासिरूद्दीन महमूद यद्यपि अयोग्य शासक था, किन्तु शिक्षा के क्षेत्र में उसने गुलाम वंश के शासको में सर्वाधिक योगदान दिया था। नासिरूद्दीन का प्रधानमंत्री बलबल स्वयं विद्या प्रेमी था। अपने प्रधानमंत्री के काल में ‘मदरसा-ए-नासिरिया’ का निर्माण करवाया।
इल्तुतमिष ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया और उसे दिल्ली सल्तनत के सम्मान के अनुकूल सुन्दर और वैभवपूर्ण बनाया। उसने दिल्ली में मदरसे, मकतब, मस्जिदें और इमारतें बनवायीं।
खिलजी वंश के सुल्तानों ने जलालुद्दीन खिलजी विद्यानुरागी होने के कारण शिक्षण संस्थाओं को प्रोत्साहन प्रदान किया। दिल्ली में अमीर खुसरों की अध्यक्षता में शाही पुस्तकालय की स्थापना की।
अलाउद्दीन खिलजी ने ‘हौज-ए-खास’ से संलग्न एक मदरसा की स्थापना करवायी थी। मो. बिन तुगलक सबसे बुद्धिमान शासक था, उसने शिक्षा से संबन्धित महत्वपूर्ण कार्य किये थे।
सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने 1346 ई0 में एक मदरसा की स्थापना की। फिरोज तुगलक शासन काल में शिक्षा का चर्मोत्कर्ष हुआ, क्योंकि वह स्वंय भी शिक्षा का प्रेमी था। फिरोज शाह के शासन काल में ‘हौज-ए-खास’ के निकट निर्मित ‘मदरसा-ए-फिरोजगाशी’ सुविख्यात था। शिक्षक एवं विद्यार्थियों को निःशुल्क भोजन एवं आवास की सुविधा प्रदान की गयी थी, विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां देने की भी व्यवस्था थी।
बाबर ने मुगलवंश की नींव डाली थी, जो बहुत ही विद्वान बादशाह था। बाबर को कई भाषाओं का ज्ञान था। बाबर ने अनेक मकतब एवं मदरसे की स्थापना की थी। बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम एक सुशिक्षित महिला थी। गुलबदन बेगम की महान रचना ‘हुमायूँनामा’ इतिहास की अमूल्यनिधि मानी जाती है। बाबर का विद्वान पुत्र हुमायूँ को अध्ययन में इतनी रूचि थी कि वह सदैव चुनी हुई पुस्तकों को साथ लेकर चलता था। हुमायूँ ने दिल्ली में एक मदरसे की स्थापना करवायी। हुमायूँ के शासन काल में स्त्रियों की शिक्षा पर जोर दिया गया था, उच्च घराने की स्त्रियां प्रायः शिक्षित हुआ करती थी। हुमायूँ की पत्नी हमीदा बानू बेगम खुद एक सुशिक्षित महिला थी।
अकबर स्वंय अशिक्षित था पर उसके काल में शिक्षा के क्षेत्र से सबसे अधिक उन्नति हुई। अकबर के उदार धार्मिक विचारों का प्रभाव तत्कालीन शिक्षा पर भी पड़ा। अकबर ने आगरा, फतेहपुर सीकरी, गुजरात एवं अन्य स्थानों पर अनेक मकतब व मदरसे बनवायें जिसका व्यय भार राज्य वहन करता था।
विलियम स्लीमन ने लिखा है कि यदि शाहजहाँ के बाद दारा सम्राट बना होता तो शिक्षा की अत्यधिक उन्नीति हुई होती। शाहजहाँ की पत्नी मुमताज महल सुशिक्षित महिला थी। इनकी पुत्रियों में रोशनआरा, आलमआरा, जहानआरा ने भी शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति की।
औरंगजेब ने छात्रों तथा शिक्षको के लिए छात्रवृत्तियाँ निष्चित की थी प्रसिद्ध 'मदरसा-ए-रहीमियां' की स्थापना इसी के समय में हुआ। मुस्लिम सुल्तान, बादशाह एक नवीन संस्कृति के पोषक थे। जिससे इस काल में भारतीय संस्कृति विशेष रूप से प्रभावित हुई। देश में एक नवीन संस्कृति का सूत्रपात हुआ, जिसे इस्लामी संस्कृति के नाम से जाना जाता है मुस्लिम शासकों ने भारत में इस्लाम धर्म का का प्रसार करने एवं वैदिक संस्कृति को समाप्त करने के उद्देश्य से शिक्षा व्यवस्था कायम की। मुस्लिम काल में शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएं मकतब एवं मदरसों के नाम से जानी जाती थी। फरिश्ता के अनुसार ‘‘मदरसे में बालिकाओं को नृत्य, संगीत, सिलाई, बुनाई, बढ़ईगिरी, सुनारगीरी, लुहारगिरी, जुते बनाना, युद्व कला रणक्षेत्र कला आदि की शिक्षा दी जाती थी। उनकी शिक्षा का भार उनके अभिभावकों को वहन करना पड़ता था। अतः केवल धन सम्पन्न व्यक्ति ही अपनी बालिकाओं को इस विद्यालन में अध्ययन के लिये भेजते थे।’’
राजघरानों और कुलीन परिवारों की बालिकाओं और स्त्रियों को उनके निवास स्थानों पर ही व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दी जाती थी। उनको धर्म और साहित्य के अतिरिक्त नृत्य संगीत एवं ललित कलओं की भी षिक्ष दी जाती थी। इस प्रकार, शिक्षा प्राप्त करने वाली अनेक मुस्लिम राजकुमारियों के नाम आज भी गर्व से स्मरण किये जाते हैं, जैसे रजिया सुल्ताना, दक्षिण की बीरंगना चाँद बीवी को तुर्की, अरबी, फारसी ओर मराठी भाषाओं पर समान अधिकार था। हुमायूँ की भतीजी सलीमा सुल्ताना, जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ, औरंगजेब की पुत्री जेबुन्तिनिशां सभी विदुषी महिलायें थी। वस्तु स्थिति यह थी कि राजघरानों और कुलीन परिवारों की स्त्रियों में शिक्षा का प्रचलन था सामान्य स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ था।
मुगल कालीन शिक्षा के पाठ्यक्रम को दो भागो में बाँटा जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा का पाठयक्रम, उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम। प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में बालिकाओं को अक्षर का ज्ञान कराया जाता था। वर्णमाला पढ़ने के साथ गणित का भी ज्ञान कराया जाता था। मदरसों में उच्च शिक्षा दी जाती थी। जिनके पाठ्यक्रम दो भागों में विभाजित थे। एक धार्मिक शिक्षा— लौकिक शिक्षा। धार्मिक शिक्षा के विषय कुरान, हदीस तथा फिक (धर्मशास्त्र) का गहन अध्ययन करती थी। लौकिक विषयों के अन्तर्गत अरबी, व्याकरण, गद्यसाहित्य, तर्कशास्त्र, दर्शन ज्योतिष शास्त्र गणित इतिहास भूगोल चिकित्सा आदि की शिक्षा की जाती थी।
मकतवों में शिक्षण विधि मौखिक और प्रत्यक्ष थी कक्ष के सब बालक उच्च स्वर में एक साथ बोलकर पढ़ते रहते थें। बालक द्वारा लिखने सरकण्डे की कलम से लिखने का अभ्यास करता था। मदरसों में शिक्षण विधि मौखिक थी और छात्रों को शिक्षा देने के लिए अध्यापक भाषण विधि का प्रयोग करता था। ‘गन्नार मिरडल’ के शब्दों में - ‘‘उच्च षिक्षा की संस्थाओं में पढ़ने लिखने को मौखिक षिक्षण विधियों से श्रेष्ठतर स्थान प्रदान किया जाता था।1’’
हिन्दुओं के संस्कृत तथा देषी भाषाओं के स्कूल भी विद्यार्थियों के लाभ के लिए नागरिक और ग्रामीण क्षेत्रों में चालू रहे। प्रत्येक मस्जिद में एक मकतब लगी होती थी जहाँ पडा़ेस के लड़के तथा लड़किया प्रारम्भिक शिक्षा पाती थी।
मध्यकाल में नारी के प्रति दृष्टिकोणों में बहुत ही परिवर्तन आ गया था। नारी के प्रति इस समाज का दृष्टिकोण पूजनीय भावना से हटकर भोग्या की भावना से ग्रस्त हो गया। भारतीय दृष्टिकोण पर जैसे फारसी चश्मा लग गया और सब कुछ उसी के भीतर से देखा समझा जाने लगा। इसका सीधा परिणाम यही हुआ कि नारी की देवी छवि, मातृछवि की महानता का लोप हो गया। उसका वासना रूप, भोग्या रूप प्रबल होता चला गया। नारी का स्वतंत्र व्यक्तित्व ही न रहा, वह मात्र पुरूष इच्छा का खिलौना बन गयी।
मध्यकालीन भारतीय मुस्लिम समाज में स्त्रियों के अधिकारों एवं स्तरों में भी गिरावट आई तथा उन्हे पुरुषों पर आश्रित स्वीकार किया जाने लगा। मुस्लिम समाज में विभिन्न वर्गां की स्त्रियों की दशा में भिन्नता थी। कुलीन वर्ग की स्त्रियों की दशा अन्य वर्गां की स्त्रियों से अच्छी थी। मध्यम वर्गींय भी स्त्रियों की दषा उच्चवर्गींय स्त्रियों की अपेक्षा कुछ कमतर थी। उच्च वर्ग की तुलना में मध्यम वर्ग कम सम्पन्न था परन्तु इस वर्ग की मुस्लिम एवं हिन्दू स्त्रियों की दषा लगभग समान थी। निम्न वर्ग की निर्धन एवं निःसहाय स्त्रियों की दषा दयनीय थी।
समाज में कई प्रकार की कुरीतियाँ भी जो शिक्षा को बहुत ही प्रभावित करती थी। इसमें में कुरूतिया, पर्दाप्रथा, सतीप्रथा, जौहरप्रथा, बहुविवाह, दहेजप्रथा, दासी प्रथा, देवदासी प्रथा, वेष्यावृत्ति आदि थी।
लेखक श्रीगांधी इंटर कालेज खिरारी, मथुरा में सहायक अध्यापक हैं