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जब रानी ने लिया अंग्रेजों से लोहा
दिनेश महाजन इतिहासकार—प्राध्यापक और लेखक भारतीय इतिहास में आजादी के प्रथम आंदोलन का दर्जा 1857 की क्रांति को दिया जाता है, लेकिन बुंदेलखण्ड और छतरपुर जिले में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लडाई 15 साल पहले ही शुरू हो चुकी थी। जहां जैतपुर के शासक परिक्षित मात्र 23 वर्ष की आयु में 36 रियासतों की सेना का नेतृत्व किया था। इस बात के पर्याप्त ऐतिहासिक सबूत अंचल में मौजूद है। लार्ड एलनबरो की विस्तारवाद नीति के अंतर्गत 1842 में बुंदेलखण्ड की 36 रियासतों के फरमान जारी कर दिया कि वे कंपनी की अधीनता स्वीकार कर ले अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रहे। अंग्रेजी सेना कर्नल स्लीमैन के नेतृत्व में राठ के निकट मैदान में पहुंच चुकी थी। अपनी आन-बान न्यौछावर करने वाले बुंदेली शासक इतनी आसानी से अंगेजों की गुलामी स्वीकार करने वाले नहीं थे। उस समय बुंदेलखण्ड में चरखारी,पन्ना,बिजावर हुआ करते थे। जून माह में गंगा दशहरा के दिन चरखारी किले पर बुंदेलखण्ड के राजा इकट्ठा हुए थे। कहने को तो बुढवा मंगल पर्व मनाया जाना था, लेकिन हकीकत यह थी कि कैथा के मैदान में डेरा जमा चुकी अंग्रेजी सेना से मुकाबला करने की रणनीति तय होना थी। बुंदेलखण्ड के 36 रियासतों के राज्यों ने सामूहिक रूप से मुकाबला करने का निर्णय लिया। किन्तु नेतृत्व कौन करेगा इस पर सब मौन हो गए। वहीं 23 वर्षीय बालक जो जैतपूर छोटी सी रियासत का राजा परिक्षित भी मौजूद था। राजा परिक्षित ने नेतृत्व करने का निर्णय लिया। सभी रियासतें अपने आकार व कोष के आधार पर सैनिक और सामग्री देना तय हुआ। तीन दिन बाद राजा परिक्षित के नेतृत्व में बुंदेली सेना ने हमला बोल दिया। अचानक हुए हमले से अंग्रेजी फौज लड़खड़ाने लगी। लेकिन अंग्रेजी सेना के तोपखाने के सामने बुंदेली सेना टिक न सकी और मैदान से पांव उखड गए। राजा परिक्षित ने हार नहीं मानते हुए अंग्रेजों के साथ छापामार युद्ध शरू कर दिया। यह छापामार युद्ध करीब 6 माह तक चला। अंगेजी फौज को जन-धन की काफी हानि हुई। आखिरकार राजा परिक्षित जोरट की गढ़ी में रात में विश्राम कर रहे थे। इसी बीच किसी देशद्रोही ने अंग्रेजी सेना को उनकी मुखविरी कर दी। अंग्रेजी सेना में जोरट की गढ़ी से राजा परिक्षित को कैद कर लिया। यहां के एक बेहद छोटे कमरे में उन्हें बंधक बनाकर बारूद भर दी। अंग्रेजों ने बारूद के साथ राजा परीक्षित को यहां जिंदा जला दिया। जैतपुर बुंदेलखण्ड की छोटी सी रियासत थी। प्रसिद्ध इतिहासकार सुंदरलाल ने लिखा है कि कंपनी ने 27 नवंबर 1842 ई. को जैतपुर पर अधिकार कर लिया। जैतपुर के राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद उनकी रानी ने प्रतिज्ञा की कि वे अपने जीवन के अंतिम समय तक अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने अंग्रेजों के साथ संघर्ष प्रारंभ कर दिया। रानी राजो छतरपुर जिले के जागीरदार बहादुर सिंह की बेटी थी। रानी राजो ने अपने पति का बदला लेने के लिए बचीखुची बुंदेली सेना को एकत्रित किया। वे अपने शहीद पति के राह पर चल पड़ी। रानी राजो ने अंग्रेजों पर छापामार हमला शुरू कर दिया। वह रात होते ही अपने वीर सैनिकों के साथ अंगेजों के कैम्प पर हमला बोल देती थी। उनके टैन्ट में आग लगाकर गायब हो जाती थी। तत्कालीन इतिहासकार और साहित्यकार लिखते है कि रानी राजो के इस छापामार युद्ध के कारण अंग्रेजों की रात की नींद और चैन छिन गया था। रानी राजो के हमले से भयभीत अंग्रेजी सैनिक रात में नहीं सोते थे। यह सिलसिला करीब डेढ़ साल तक चलता रहा। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि हम दुश्मन की बहादुरी से नहीं बल्कि अपने स्वजातीय भाइयों की गद्दारी के कारण परास्त हुए हैं। अगर जयचंद पृथ्वीराज चौहान की मदद कर देता, तो हिन्दुस्तान में कभी मुहम्मद गौरी का शासन स्थापित हो पाता? अगर प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला का सेनापति मीरजाफर अंग्रेजों के साथ मिलकर नवाब को धोखा नहीं देता, तो आज भारत का इतिहास कुछ और होता। वहीं एक महिला अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर रही थी, तो कुछ देशद्रोही शासक तथा सामंत उसके खिलाफ अंग्रेजों की मदद कर रहे थे। चरखारी का राजा अंग्रेजों का मुखविर बन गया था। यह वहीं राजा है जिसके नेतृत्व में चरखारी राज्य में 36 रियासत के राजाओं ने सामूहिक मुकाबला करने का निर्णय लिया था। रानी राजो जब राजगढ (चंद्रनगर जिला छतरपुर) के किला में रात्रि विश्राम कर रही थी। तभी अंग्रेजों को इस बात की सूचना मिली। घने जंगलों के बीच पहाड़ी पर बने दुर्ग को अंग्रेजों ने घेर लिया। अंग्रेजी सेना रानी राजो को जिंदा पकडने के लिए दुर्ग की ओर बढ़ रहे थे। जब रानी राजो ने देखा कि वे सुरक्षित नहीं है तब उन्होंने अपने प्राणों की बलि दे दी। इनकी मृत्यु के संबंध में कई कहानियाँ है। किन्तु कई इतिहासकार इस संबंध में इस कथन को सही माने हैं। जैतपुर की रानी के उत्साह एवं साहस को हम कभी नहीं भुला सकते। उन्होंने अपने त्याग और बलिदान के कारण भारतीय इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया।