
दिमाग में पानी ऐसा घुस गया है कि प्रत्येक स्थिति को पानी से जोड़ कर देखने की उसकी वृत्ति होती जा रही है। नींद में कभी मॅुह तक भरे, कभी पेंदी तक खाली जल पात्र दिखते हैं। उसका ही नहीं सभी का लक्ष्य पानी पर आकर अटक गया है। जलापूर्ति के लिये पानी का ट्रैक्टर टैंकर लेकर जैसे ही निर्देशित वार्ड में पहॅुचता है तीक्ष्ण ताप और प्रहर का विक्षोभ न कर, सामथ्र्य भर बाल्टी, पीपे, कलसे समेटे हुये महिलायें टैंकर को घेर लेती हैं। पाइप में सबसे पहले अपना जल पात्र दताने के लिये ऐसी उग्र हो जाती हैं मानो देवी चढ़ आई है।
सुषमा मुनीन्द्र
इस शहर को मौसम के साथ सामन्जस्य बनाने की तमीज नहीं है या लोलुप लोगों की प्रकृति विरुद्ध कारतूतों को कारण मौसम ने वक्त पर आना-जाना छोड़ दिया है। बेवक्त आया क्रूर और तीक्ष्ण मौसम ऐसा आडम्बर बिखेरता है कि ठंड की ठिठुरन, वर्षा की विभीषिका, गर्मी की गरमाहट से पता नहीं कितने लोग प्रतिवर्ष मरते हैं।
जल संकट ने इन दिनों शहर को बरगला रखा है। धरती का पानी खत्म होते-होते अंतिम रूप से यदि खत्म हो गया .......? जानकार कहते हैं यदि तीसरा युद्ध होगा, पानी को लेकर होगा।
विचलित है लेखपाल। उसके दिमाक में पानी ऐसा घुस गया है कि प्रत्येक स्थिति को पानी से जोड़ कर देखने की उसकी वृत्ति होती जा रही है। नींद में कभी मॅुह तक भरे, कभी पेंदी तक खाली जल पात्र दिखते हैं। उसका ही नहीं सभी का लक्ष्य पानी पर आकर अटक गया है। जलापूर्ति के लिये पानी का ट्रैक्टर टैंकर लेकर जैसे ही निर्देशित वार्ड में पहॅुचता है तीक्ष्ण ताप और प्रहर का विक्षोभ न कर, सामथ्र्य भर बाल्टी, पीपे, कलसे समेटे हुये महिलायें टैंकर को घेर लेती हैं। पाइप में सबसे पहले अपना जल पात्र दताने के लिये ऐसी उग्र हो जाती हैं मानो देवी चढ़ आई है। अभाव और आवश्यकता प्रबल हो तो लोग अपने व्यक्तित्व की ओर से लापरवाह हो जाते हैं। लेखपाल को ये उग्र महिलायें असभ्य कम दीन अधिक लगती हैं। जानता है पानी के अभाव ने शहर का पानी उतार दिया है। इच्छा होती है नगर निगम के दफ्तर जाकर महापौर को दो टूक कहे - जिस दिन मालूम हुआ स्मार्ट सिटी बनाये जाने वाले नगरों की सूचि में इस शहर का नाम नहीं है, आपका और बहुतों का मुख कुम्हला गया था। आपने जलावर्धन और अमृत प्रोजेक्ट जैसी पानीदार जो योजनायें बनायी हैं पहले उन्हें तो फाइल से बाहर निकालिये। लोगों को स्मार्ट सिटी जैसा झॉंसा नहीं, पानी चाहिये। मार्च ठीक से बीता नहीं है लेकिन लोग पानी के लिये दर-दर भटक रहे हैं .........। इच्छा होती है लेकिन महापौर से सवाल करने की उसकी सामर्थ्य नहीं है। वह मालिक के आदेश पर निर्देशित वार्ड में ट्रैक्टर टैंक्टर ले जाने वाला मामूली चालक है। सभी को पर्याप्त पानी न दे पाने के कारण व्यथित रहता है। जितने जल पात्र भरते हैं उससे अधिक खाली रह जाते हैं। खाली जल पात्रों वाली महिलाओं के चेहरे पर उतर आई दीनता लेखपाल को अपने घर की याद दिला देती है। पानी के अभाव में घर का माहौल इस तरह सामरिक हो गया है कि परिजन सीधे मुँह बात करना भूलते जा रहे हैं।
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पानी की समस्या से लेखपाल का पुराना नाता है। खारे पानी के कारण उसके गाँव बूँदी की तस्वीर आज भी नहीं बदली। मीठा पानी पहुँचाने के लिये नल जल योजना के तहत दो हजार सात में पच्चीस लाख की लागत से बनवाया गया ओवर हेड टैंक आज भी उन्नत खड़ा है। इसमें पानी कभी नहीं आया। जो युवक नौकरी-चाकरी के लिये बूँदी से बाहर चले गये उनका विवाह हो गया। जो बूँदी में हैं उन्हें खारे पानी के कारण दुलहिनें नहीं मिल पा रही हैं। शहर में वाहन चालक नियुक्त होने के कारण लेखपाल के बाबू का विवाह हो गया जबकि बूँदी में वास कर रहे दो बूढ़े चाचा अविवाहित हैं। अम्मा सिलसिलेवार किस्सा बताती हैं -
‘‘......... ठगे गये हम तो। हमारे बप्पा को बूँदी के खारा पानी की जानकारी रही पै सोचे लड़िका (दो बरस पूर्व नहीं रहे बाबू) सहर में रहता है, लड़िकी (अम्मा) को सुख रहेगा। हम नहीं जानत रहे डिराइवर साहब सहर में रहेंगे अउर हमको बूँदी पठा देंगे के घर-दुआर सम्भारो।........ अरे बप्पा, इतना खारा पानी के न कपड़ा साफ होता रहा न जींगर (केश)। कहने को बॅूदी में दस कुँआ रहे पै पानी खारा। बीहड़ के रास्ते से तीन किलोमीटर दूर दूसरे गाँव से मूड़ में गगरी लाद कर हम पानी लाते रहे। अब आठ हैंड पम्प हैं पै पानी सिरिफ पुराणिक बाबा के घर के पास वाले हैंड पम्प में आता है। पुराणिक बाबा हैंड पम्प में अइसन कब्जा किये हैं कि एक गगरी पानी के लिये चिरौरी करनी पड़ती है ........ अरे बप्पा ........।’’
वृतांत सुन लेखपाल कृतार्थ हो जाता। ठीक हुआ बाबू जो तुम शहर में बस गये, दाई-बाबा के इह लोक छोड़ते ही अम्मा तुम बॅंूदी से उचट कर बाबू के पास आ गई वरना मैं और मेरे दोनों अग्रज घोड़ी न चढ़ते।
लेकिन जल संकट के इस विषम दौर में बूँदी और शहर एक समान है। पानी कहीं नहीं है। कुछ दिन पहले वार्ड में पूरा टैंकर पानी वितरित होता था। अब बढ़ते अभाव पर नगर निगम का आदेश है एक टैंकर पानी दो वार्ड में वितरित किया जाये। लेखपाल नहीं समझ पाता दोनों वार्डों में समान रूप से आधा-आधा पानी वितरित करने जैसी उचित नाप-तौल कैसे करे।
सुबह साढ़े दस बजे टैंकर, वार्ड बाईस और पैंतीस में ले जाना है। रात ग्यारह का समय है लेकिन गर्मी के कारण नींद कोसों दूर है। नींद पूरी न हो तो काम में तल्लीनता और तत्परता नहीं बनती। लेखपाल के तीन वर्षीय बीमार बच्चे बेटू को ठंडा वातावरण चाहिये जबकि पंखा लुआर (गर्म हवा) फेंक रहा है। उसे कंधे से चिपका कर टहलती हुई नीलकंठी सुलाने की नाकाम कोशिश कर पस्त है -
‘‘गर्मी के कारण बेटू इतना रो रहा है। कूलर के लिये पानी का इंतजाम क्यों नहीं करते ?’’
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लेखपाल ने तिर्यक होकर पत्नी को देखा ‘‘नहाने, पीने के लिये पानी नहीं है। तुम्हें कूलर के लिये पानी चाहिये।’’
‘‘अपने लिये नहीं बेटू के लिये कह रही हूँ। सोयेगा नहीं तो और बीमार हो जायेगा।’’
लेखपाल ने माना बेटू यदि इसी तरह रोता रहा, किसी को झपकी नहीं आयेगी -
‘‘अंग्रेज के पास हो सकता है बाल्टी दो बाल्टी पानी हो।’’
लेखपाल के मोहल्ले का एकाकी अधेड़-अंग्रेज। भूरी चमड़ी, भूरे बाल के कारण लोग उसे अंग्रेज कहने लगे जो उसका नाम हो गया। लकड़ी की फर्दी से बनी छोटी कोठरी और बड़े आकार के आठ कनस्तर अंग्रेज की कुल जमा सम्पदा है। काँवर में लाद कर पता नहीं किस चाँपाकल से दिन भर पानी लाता है। पन्द्रह रुपये में एक कनस्तर पानी दूसरी, तीसरी मंजिल में रहने वालों को पहूँचाता है। लेखपाल की आहट पर पसीने से तर अम्मा कुछ बुदबुदाने लगीं। अम्मा को बुदबुदाने-बड़बड़ाने का खूब अभ्यास है। उनकी बुदबुदाहट रहस्य की तरह, बड़बड़ाहट यातना की तरह होती है। लेखपाल ने पूँछा -
‘‘का अम्मा, जाग रही हो ?’’
‘‘गर्मी बहुत है।’’
‘‘गर्मी के कारण बेटू सो नहीं रहा है। कूलर में डालने के लिये अंग्रेज से पानी लेने जा रहा हूँ।’’
अम्मा का मानना है पानी को व्यवसाय बना कर अंग्रेज लूट रहा है।
‘‘सिया सुकुमारियों (नीलकंठी और दोनों बड़ी बहुओं) से कितना कहते हैं टैंकर तीसरे दिन आता है, पानी बहुत न अड़ाओ (फेंको) पै ये लोग सौक फरमाती हैं।’’
लेख पाल समझता है, कितना ही सोचो पानी तीन दिन चलाना है पर भरे जल पात्र इतने मोहक लगते हैं कि पहले दिन अनुपात से अधिक पानी व्यय हो जाता है।
‘‘अम्मा, एक लोटा पानी बेकार करने में भाभियाँ बच्चों को पीट देती हैं। तुम कहती हो शौक फरमाती हैं।’’
लेख पाल तेजी से सीढ़ियाँ उतर गया। संयोगवश अंग्रेज के पास पानी उपलब्ध था। एक-एक कर दो डिब्बे पानी पहॅंुचा कर लेख पाल से बोला -
‘‘भाई, तीस रुपिया।’’
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अम्मा ने अप्रसन्नता दिखाई ‘‘अंगरेज, लोग पौंसरे (निःशुल्क प्याऊ) लगा कर पुन्न कमाते हैं। तुम पानी को बिजनिस (कमाई) बना लिये हो।’’
अंग्रेज निर्विकार स्वभाव का है ‘‘माता, पूरा सहर घूम लो। पौंसरे न मिलेंगे। एक-दो हैं जहाँ छॅूंछे घड़े रखे हैं। इतनी दूर हैण्ड पम्प से पानी लाता हूँ दूसरी, तीसरी मंजिल तक पहॅुचाता हूँ, तब लोग पैसा देते हैं।’’
अम्मा के लेखे तीस रुपये में क्रय किया गया पानी अपव्यय था -
‘‘लेख पाल, दुनिया भर को पानी बाँटते हो। टैंकर पहले घर लाओ फिर वार्ड में ले जाया करो।’’
‘‘अम्मा, टैंकर देखते ही मोहल्ले की औरतें दौड़ आयेंगी। उन्हें पानी न दूँ तो मेरी सिकायत हो जायेगी। मालिक काम से निकाल देगा। समझा करो।’’
‘‘हम समझते हैं। इस घर की औरतें नहीं समझतीं। दुआर पर टैंकर आता है, इन लोगन से इतना नहीं होता कि जी भर कर पानी भर लें। सीढ़ियाँ चढ़ने में इन्हें हाँफी (हाँफती हैं) आती है।‘‘
बड़ी बहू मौके-मौके पर स्पष्टीकरण देने का बीड़ा उठाने लगी है -
‘‘अम्मा, इतनी भीड़ रहती है। जितना हो सकता है हम तीनों पानी भरते हैं।’’
‘‘तुम लोगन में फुर्ती नहीं है। बाकी औरते कैसे भरती हैं ?’’
‘‘गदर मचा कर। हम लोग फूहड़ नहीं हो पाते।’’
‘‘गायत्री और गंगोत्री (बड़ी बहू की पुत्रियाँ) नहाने में इतना पानी अड़़ाती हैं लेकिन चार-छः बाल्टी भरने में फैसन कम होता है।
‘‘लड़कियों को आँख मारने के लिये चार-छः शोहदे डटे रहते हैं। इसलिये ये दोनों नहीं जातीं। और अम्मा, आज तो कोई भी नहीं नहा सका। गायत्री और गंगोत्री भी।’’
रोज यही बहस .......... यही दृश्य ....... । न बहस स्थगित होगी, न दृश्य बदलेगा। लेख पाल कमरे में जाकर कूलर में पानी भरने लगा।
कूलर की ध्वनि सुन भाभियों के बच्चे चादर, तकिया से लैस होकर आ गये -
‘‘आहा कूलर ....... चाचा मुझे गर्मी लग रही है .......... चाचा मुझे भी ......... फर्श पर सो जायेंगे .......।’’
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रात कुर्बान हुई।
सुबह नहाने को पानी नहीं।
लेकिन काम पर जाना है।
उबासी लेते हुये लेख पाल ने चाय के साथ दो पराठे खाये और चल दिया। उसे अपने काम में तुष्टि मिलती है। लगता है लोगों तक पानी पहुँचा कर नेक काम कर रहा है। अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस्ती ....... कहॉं- कहॉं तो पानी पहुँचाता है। वार्ड पाँच के पार्षद ने अपने घर में कुँयें जैसा बड़ा टैंक बनवाया है। कुछ बार रात में गुप्त रूप से पार्षद के घर और सिविल लाइन्स के बॅंगलों में टैंकर ले गया है। शहर में पानी को लेकर हाहाकार है लेकिन साहबों को बगिया सिंचवाने के लिये पानी चाहिये। लेख पाल को दूर किसी जल स्त्रोत से साइकिल, रिक्शों, ठेलियों में चिलचिलाते घाम में पानी ढोते लोग दीन लगते हैं। सार्वजनिक नल में तड़के उठ बाल्टी, कलसों, कनस्तरों की कतार लगाते लोग दीन लगते हैं। जिसका जल पात्र सबसे आगे रखा है वह पहले पानी भरेगा। दो-तीन दिन में अनिश्चित समय पर बीस-तीस मिनिट के लिये नल में पानी आता है। सुजान लोगों ने प्रधान पाइप लाइन से सीधे कनेक्शन करा लिया है। ये लोग दूसरों के हिस्से का पानी अपने घरों में पम्प की अनुकम्पा से खींच लेते हैं। सर्व साधारण के नल बूँद टपका कर पराजित हो जाते हैं। टूटी-फूटी पाइप लाइन को अधिक तोड़ कर पाइप लाइन से निकलती पानी की फुहार में नहाते - किलोल करते झुग्गी, झोपड़ी के नंग-धड़ंग बच्चे, कपड़ा फींचती साधनहीन स्त्रियाँ, प्यास बुझाते कुत्ते, सूअर, गाय दीन लगते हैं। लोगों द्वारा निजी स्तर पर बनाये जाते अवैध इंतजाम पर न नगर निगम का ध्यान जाता है न पार्षदों का। जल संकट है कि हर साल गहराता जा रहा है। उसे अपने काम से तुष्टि मिलती है। पर्याप्त नहीं फिर भी सामथ्र्य भर पानी लोगों तक पहुँचाता है।
आज वार्ड बाइस और पैंतीस में जाने का निर्देश है। पहले बाईस में पहुँचा। टैंकर की ध्वनि सुनते ही दर्जनों जल पात्रों से लैस महिलाओं ने टैंकर को घेर लिया। दो-चार पुरुष बहिष्कृत से एक ओर खड़े थे। महिलाओं के समूह में प्रविष्ट होकर ये लोग पानी प्राप्त करने का मानस नहीं बना पाते। कालांतर से पानी का प्रबंधन महिलाओं के जिम्मे रहा है। दूर पनघट से सिर पर गगरी रख कर पानी लाती थीं। अब टैंकर के पानी के लिये जंग लड़ती हैं। हमेशा की तरह सरगना टाइप की महिलाओं ने आक्रामक तरीके से टैंकर के मोटे पाइप पर कब्जा जमा लिया। पाइप के पास अडिग रहते हुये एक ओर खड़ी सहायक महिला से खाली पात्र लेकर भरे पात्र उसकी ओर खिसकाने लगीं। इन महिलाओं को पूरी छूट मिले तो मिट्टी के सकोरे और दीप में भी पानी भर लें। सहजता और धीरज से अपनी बारी की प्रतीक्षा करतीं सभ्य-सरल महिलायें पाइप तक पहॅंुचने का प्रयास कर रही थीं लेकिन
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विफल हो जाती थीं। लेख पाल जानता है इन स्त्रियों के जल पात्र खाली रह जायेंगे। उसे ये स्त्रियॉं सताई हुई लग रही थीं। इच्छा हुई संवेदनशील मनुष्य की तरह इन सताई हुई स्त्रियों को सानत्वना देते हुये सरगनाओं को कतार में लगने का आदेश दे या आग्रह करे पर साहस न कर पाया। एक बार बड़ा उपद्रव हो गया था। उसने चेतावनी दी थी -
‘‘लाइन बना कर सांति से पानी भरो। सबको भरने दो। सबको पानी चाहिये।
एक सरगना चीखी -
‘‘टैंकर तीसरे दिन आता है। लाइन में लग कर पानी नहीं मिल पाता। तुम पाइप बंद करने लगते हो कि पानी खत्म। तुम्हारे टैंकर में कितना कम पानी आता है।’’
‘‘दो वार्ड में सप्लाई देनी पड़ती है।’’
‘‘पानी बचा कर बेचते हो क्या ?’’
‘‘इल्जाम लगाती हो। देखी हो बेचते ? लाइन बनाओ वरना मैं टैंकर वापस ले जाऊॅंगा।’’
‘‘देखती हूँ कैसे ले जाते हो।’’
‘‘पारसद से सिकायत करता हूँ । इस वार्ड में कबहूँ नहीं आऊॅंगा।’’
लेख पाल, जेब से मोबाइल निकालने लगा।
‘‘पारसद से तुम क्या सिकायत करोगे ? मैं करूँगी। बड़ा मुँह फाड़ कर वोट माँगने आती थी। पानी का इंतजाम नहीं कर पाती। पारसद किसी लायक नहीं है।’’
‘‘सिकायत करो। पारसद खाली नहीं बैठी है जो तुम लोगन का फसाद सुनने आयेंगी।’’
‘‘न आयेंगी तो इस बार वोट न पायेगी। .........अरे आयेगी कैसे नहीं ?’’ महिला ने मोबाइल से पार्षद को काँल लगाया ‘‘.........मैडम ......... आओ, देखो पानी के कारण आपके वार्ड में कैसा प्रपंच मचा है ........ ड्रइवर टैंकर लौटा ले जाने की धमकी दे रहा है ..........।’’
पहली बार पार्षद बनी युवा पार्षद जानती थी नगर निगम प्रशासन और जन प्रतिनिधियों में पानी के टैंकर को लेकर कैसा अव्यवहार होता है। दोनों पक्ष जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। कुछ अधिकारी प्रयत्नपूर्वक छुट्टी लेकर बच्चों को ग्रीष्मकालीन यात्रायें करा रहे हैं। जो दफ्तर में हैं फोन काँल रिसीव नहीं करते हैं। .............पार्षद में कर्तव्यनिष्ठा थी अथवा अनुभवहीनता में प्रपंच की गम्भीरता न
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समझी। सुंदर सलवार-कुर्ता धारण कर, तेज गति से प्लेजर चलाते हुये अपनी प्रभावी स्थिति का बोध कराने स्थल पर पहुँच गई। सभ्य महिलाओं ने पार्षद को घेर लिया -
‘‘मैडम ..........सुनिये ...........
शोर में पार्षद स्पष्ट कैसे सुनती ? दोनों हाथ ऊपर उठा कर बुलंद आवाज में बोलीं ‘‘लाइन बनायें ...........सबको पानी मिलेगा .......... लाइन ............शांत रहें ...........।’’
सरगना टाइप महिला ने हुरपेटा ‘‘कैसे शांत रहें ? मैडम आपके घर की हौदी भरी होगी इसलिये आप साफ, सुथरी, सांत रह लेती हैं। हम लोग ठीक से नहा तक नहीं पाते। देख लो, मेरे चेहरे की रौनक चली गई।’’
अभद्रता पर हैरान होकर पार्षद बोली -
‘‘क्या नाम है आपका ? तमीज से बात करें।’’
‘‘पानी ने तमीज खत्म कर दी है। पानी का संकट दूर न हुआ तो आपके वार्ड की कई महिलायें मानसिक रोगी हो जायेंगी। आपको वोट देने के लायक नहीं रहूँगी।’’
‘‘लाइन बनायें ......... सुनिये ............ वरना मैं चली जाऊॅंगी। लेख पाल पाइप बंद करो ......... ये लोग लाइन नहीं बनाती हैं तो टैंकर ले जाओ।’’
आज क्या हर कोई लौट जाने की धमकी देगा ? उत्प्रेरण कहाँ से आई मालूम नहीं लेकिन लेख पाल ने देखा सरगना टाइप महिलायें पार्षद को घेर कर मार रही हैं। चोटिल चेहरे और फटे वस्त्र वाली पार्षद को लेख पाल ने ऐन-केन-प्रकारेण हिंस्त्र महिलाओं की जद से निकाल कर उसके कंधों पर अपना अगौंछा डाल दिया। रोती पार्षद प्लेजर स्टार्ट कर चली गई। लेख पाल का चेहरा जड़ था। जल संकट को लेकर महिलाओं में आक्रामकता और असंतोष बढ़ता गया तो किसी दिन वह भी पिट जायेगा। किसी एक पर आरोप तय नहीं हो सकेगा क्योंकि भीड़ का नाम, चेहरा, पहचान नहीं होती। आइन्दा वह चुपचाप पाइप खोल देगा। किसे पानी मिला, किसे नहीं इस प्रपंच में नहीं पड़ेगा।
भविष्य कोई नहीं बाँच पाता।
शहर के इतिहास में वह हुआ जो नहीं हुआ था। वार्ड बाइस में आधा पानी वितरित कर लेख पाल बाई पास से वार्ड पैंतीस की जानिब रवाना हुआ। उष्णता फेंकता दोपहर का सूर्य चमड़ी झुलसाये दे रहा था। क्राँस हो रहे दो-चार बड़े वाहनों के अतिरिक्त पथ प्रायः जनशून्य था। बाइक पर सवार तीन लड़कों ने लेख पाल को रोक लिया -
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‘‘टैंकर वाले कहाँ जा रहे हो ?’’
‘‘वार्ड पैंतीस।’’
‘‘हमारे वार्ड में चलो।’’
‘‘पैंतीस में जाने का आदेश है।’’
‘‘मेरा आदेश मानो। चलो हमारे पीछे-पीछे।’’
‘‘कइसी बात करते हैं ?’’
‘‘ऐसी।’’
दो लड़कों ने लेख पाल को खींच कर ट्रैक्टर से उतारा और दोनों बाहों को जकड़ लिया। तीसरा लड़का विद्युत की त्वरा से चालक सीट पर आरूढ़ होकर टैंकर ले उड़ा। लेख पाल पहली बार जान रहा था हादसा क्षणों में घट जाता है। दिन दहाड़े इतने साधारण तरीके से पानी लूट लिये जाने जैसी असम्भव वारदात पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। तत्काल प्रभाव से जड़ हुई बुद्धि जब कुछ सक्रिय हुई, मालिक को काँल करने के लिये जेब से मोबाइल निकालने का प्रयास करने लगा। एक लड़के ने उसकी जेब से मोबाइल निकाल कर अपनी जेब में डाल लिया -
‘‘होशियारी दिखाई तो खून खराबा हो जायेगा। मैं पानी चाहता हॅूं, खून खराबा नहीं। घर में एक बूँद पानी नहीं है।’’
उन्मादी लग रहे लड़कों से बहस या विरोध करने का मतलब न था। लेख पाल निष्क्रीय हो गया। आधे घंटे बाद लड़के बाइक पर सवार हुये -
‘‘मोबाइल लो .......... होशियारी नहीं।’’
ऊष्णता बरसाता आसमान।
भभके छोड़ती धरती।
बरसों पुराने वृक्ष बाई पास की भेंट चढ़ गये वरना छाया में बैठ कर अपनी मनःस्थिति को सम्भाल लेता। उसकी मनःस्थिति विचित्र थी। लड़के उसे असामाजिक लेकिन विवश और सभ्य लग रहे थे। पानी के अभाव में विवश हुये युवक सभ्य थे इसलिये मोबाइल नहीं हड़पा। लेख पाल का फोन काँल सुन मालिक चीखने लगा। तौहीन करने, तोहमत लगाने की आकाओं की वृत्ति होती है -
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‘‘.............टैंकर न मिला तो चेहरा न दिखाना ......... लेखपाल वहीं रुको ........ आता हूँ ..........।’’
यहाँ आकर मालिक युवकों के फुट प्रिंट लेगा ? विषाद में डूबा लेख पाल ऊष्ण धाम में तप रहा था। तेज गति से जीप चलाता मालिक यथाशीघ्र आ गया -
‘‘..........कैसे ले गये ? ........... तुमने टैंकर क्यों ले जाने दिया ? ........ नशा तो नहीं किये हो ? ........... लड़के कैसे थे ?’’
लेख पाल की विचित्र मनःस्थिति। हर स्थिति को पानी से जोड़ कर देखने का आदी होता जा रहा है-
‘‘तीनों बहुत दुबले थे। बहुत थके लग रहे थे, जैसे कब से नहाये न हों।’’
‘‘लेख पाल पानी तुम्हारे दिमाक में घुस गया है। नहीं पूँछ रहा हूँ लड़के कब से नहीं नहाये हैं। उनका हुलिया पूँछ रहा हूँ ।’’
‘‘हुलिया बता रहा हूँ ।’’
‘‘बेवकूफ हो।’’
भयानक मुँह बनाये हुये मालिक ने कई लोगों को मोबाइल से काँल कर टैªक्टर टैंकर का नम्बर नोट कराया। दिखे तो सूचित करें। वार्ड पैंतीस के पार्षद को अवगत कराया। पार्षद ने सुझाव दिया -
‘‘निगम आयुक्त को जानकारी दो। थाने में रिपोर्ट लिखाओ।’’
मालिक और लेख पाल नगर निगम कार्यालय पश्चात निकटवर्ती थाने गये। सब इन्सपेक्टर की मुद्र ऐसी हो गई जैसे प्रहसन सुन रहा है -
‘‘मार-पीट, लूट-पाट, चोरी-डकैती, हत्या-आत्महत्या, गुमशुदा-बलात्कार की इतनी रिपोर्ट लिखनी पड़ती है, अब पानी लुटने की रिपोर्ट लिखूँ ?’’
हादसे से जड़ हुई बुद्धि के कारण लेख पाल ने माना मतिभ्रष्ट सब इन्सपेक्टर बात को स्पष्टतः नहीं समझ रहा है -
‘‘साहेब, सिरिफ पानी नहीं, लड़के ट्रैक्टर टैंकर ले गये। ‘‘लेख पाल की अनभिज्ञता को सब इन्सपैक्टर ने वक्रोक्ति माना -
‘‘जानता हूँ । लड़के पानी खीसे (जेब) में भर कर नहीं ले गये हैं। पानी को बिना कन्टेनर के नहीं लूटा जा सकता। लड़कों से तुम्हारी मिलीभगत तो नहीं है ? कुछ रुपियों के लालच में तुमने लड़कों केा टैंकर ले जाने दिया।’’
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तौहीन करने और तोहमत लगाने की आकाओं की वृत्ति होती है -
‘‘साहेब, पानी बाँटने को मैं पुन्न का काम मानता हूँ । कुछ पैसों के लिये ईमान नहीं छोड़ सकता। पानी को लेकर जो सिर फुटौव्वल हो रही है, देख कर डर लगता है। अभी एक दिन पारसद मैडम को औरतों ने पीटा। आज लड़कों ने मुझे पीटा। किसी दिन कोई हत्या कर देगा। रात-बिरात टैंकर लेकर दूर-दूर तक जाता हूँ ।’’
‘‘लड़के टैंकर ले गये, यह तुम्हारी बेवकूफी है। हो सकता है इसी तरीके से और लोग टैंकर लूटने लगें। इसके जिम्मेदार तुम होगे।’’
लेख पाल का चेहरा जर्द हो गया।
‘‘साहेब, कइसी बात करते हैं ?’’
‘‘सीधी बात करते हैं।’’
‘‘सर रिपोर्ट ...........।’’ मालिक को लेख पाल की मनःस्थिति की नहीं टैंकर की फिक्र थी।
‘‘अभी चैबीस घंटे नहीं हुये हैं लेकिन रिपोर्ट .........।’’ सब इन्सपेक्टर ने जिस बेरुखी से कच्ची रिपोर्ट बनाई, जाहिर था पतासाजी के लिये प्रयास नहीं करेगा।
मालिक और लेख पाल देर रात तक वार्डों, बस्तियों, एकांत, खेत-बगार में टैंकर ढॅूढ़ते रहे। नहीं मिला। तीसरे दिन किसी ने निगम में खबर की - डिलौरा के पास जंगल में एक ट्रैक्टर टैंकर लावारिस खड़ा है। निगम ने मालिक को सूचित किया। मालिक, लेख पाल के साथ निर्धारित स्थल पर पहुँचा। ट्रैक्टर में तोड़फोड़ नहीं की गई थी। ईंधन नहीं चुराया गया था। अलबत्ता पानी एक बूँद नहीं था।
लेखिका की अब तक लगभग 365 कहानियॉं, 50 समीक्षा आलेख, 50 व्यंयग्य , 50 आलेख, कुछ संस्मषरण, यात्रा वृतांत लिखे हैं जो प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये हैं। कहानियों का मराठी, मलयालम, कन्नड़, तेलुगू, उड़िया, उर्दू,पंजाबी, अॅंग्रेजी, गुजराती, असमिया आदि भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय गजानन माधव मुक्ति बोध और प्रादेशिक सुभद्रा कुमारी चैहान पुरस्कार के अलावा दर्जनो पुरस्कार मिल चुके हैं। कहानियों का मंचन हो चुका है।