
आजादी की कीमत: सेल्यूलर जेल
- सुरेश चौहान
आओ आज सुने हम सब
एक कहानी
भारत के वीरों की
कैसे मिली आजादी हमको
एक इबारत लिखी मिलेगी
काला पानी की सेल्यूलर जेल में।
सन् 1857 से ही जब वीरों ने
आजादी की चिंगारी भड़काई
क्रांतिकारी पैदा हो गये
चारों ओर देश में
अंग्रेजी सरकार डर गई
भारत के वीरों का ऐसा जोश देखकर
हाथ से जायगा अब भारत
चिन्ता उन्हें सताने लगी।
कहां छुपाये इन क्रान्तिकारियों को ---
जो हो इनके अपनों से
दूर बहुत दूर जगह।
तभी खुराफाती फिंरगियों ने
नाम सुझाया कालापानी
पोर्टब्लेयर के एक पहाड़ को
काट-काट कर जेल बनवाई
600 कैदियों के 10 वर्षों के
कठोर श्रम से ------
सन् 1906 में तैयार हुई।
तीन मंजिला, सात विंग्स की
इस इमारत में
कमरे थे 698 काल कोठरी जैसे।
फिर देश के कोने-कोने से
वीर सावरकर जैसे शक्तिशाली, दृढ़निश्चयी,
क्रांतिकारियों को लाकर
यहांबंद किया।
रोज यातनाएं, मार-पिटाई
श्रम कठोर कराया जाता।
टाट के कपड़े, दूषित खाना देकर
मनोबल उनका गिराया जाता।
देश प्रेम से सराबोर वीरों को
नारियल का तेल निकालने के लिए
कोल्हू में जोता जाता दिन भर
पूरा तेल निकाले जाने पर भी
बड़ी भंयकर सजा मिलती।
लोहे के फ्रेमों पर बांध कर
मार-मार कर अधमरा किया जाता।
हफ्तों-हफ्तों भूखा रखकर
उनकों कमजोर किया जाता।
इतना सब सहने पर भी ये वीर सपूत
हंसते-हंसते वन्देमातरम् का
जयघोष करते, फांसी पर चढ़ जाते थे।
मरने पर भी उनके
वो क्रूर फिरंगी घबराते थे,
जाने ये क्रांतिकारी
कब फिर से जी-उठे,
यही सोचकर उनकी लाशों को
पत्थरों से बांध-बांध कर
सागर में फैंक दिया जाता।
घर के लोग आस में जीते
शायद उनका लाल कभी
वापिस घर आ जायेगा।
देश को आजादी दिलवाने के लिए
हृदय विदारक यातनाएं,
हंसते-हंसते सहते
क्रांतिकारी वीरों की
मूक गवाह
यह सेल्यूलर जेल
आज भी खामोश खड़ी
आज देश की हालत
-3-
स्वार्थों से है घिरी हुई,
लूट-खसोट, छीना झपटी,
रिश्वत खोरी, भ्रष्टाचारों से घिरा देश
कहीं -
फिर से गुलामी की जंजीरों में
न जकड़ा जाए।
वीरों के बलिदान व्यर्थ न हो
आओं मिलकर प्रण करें
निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर
इस आजादी की कद्र करें
और -
देश के हित में कार्य करें,
सब--
देश के हित में कार्य करें।।