क्या 5जी के आने के बाद हालात सुधरेंगे?
निवेदिता मुखर्जी
किसी सफर पर निकलने के लिए कैब बुक करने के बाद ऐसा कितनी बार होता है कि आपको वाहन चालक से संपर्क करने के लिए अपने फोन पर चीखना पड़ता हो? क्या ऐसा भी होता है कि अपने महंगे स्मार्टफोन पर अपनी बात पूरी करने के लिए आपको अपना कमरा छोड़कर बालकनी में जाना पड़ता हो? ऐसा कितनी बार होता है कि आपके ब्रॉडबैंड के कमजोर पड़ जाने के कारण आपकी जूम कॉल फ्रीज हो जाती है? बाकी सभी चीजों से निराश होने के बाद कितनी दफा आपको पुराने लैंडलाइन फोन की मदद लेनी पड़ती है? संभव है कि इन सभी प्रश्नों के उत्तर में आप कहें कि ऐसा अनगिनत अवसरों पर होता है। तो 5जी के जमाने में टेलीफोन के इस्तेमाल की यह स्थिति है।
कॉल का कट जाना और कमजोर सिग्नल की समस्या कोई ऐसी दिक्कत नहीं है जो गांवों या देश के दूरदराज इलाकों तक सीमित रहने वाली हो। बड़े शहरों, कॉर्पोरेट कार्यालयों और सत्ता के गलियारों में भी ऐसी दिक्कतें आती हैं। क्या 5जी के आने के बाद हालात सुधरेंगे और हम सब फोन पर उस तरह बात कर पाएंगे जैसे कि हमें करनी चाहिए या फिर इससे केवल वीडियो डाउनलोडिंग की गति में ही सुधार होगा? इस सवाल का उत्तर फिलहाल स्पष्ट नहीं है और काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि दूरसंचार कंपनियां 5जी समेत नये हासिल फ्रीक्वेंसी बैंड का किस प्रकार इस्तेमाल करेंगी।
ऐसे समय में जबकि भारत 5जी तकनीक की मदद से डेटा पारेषण की अभूतपूर्व क्षमता हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, उस समय भी अगर कमजोर सिग्नल और कॉल कट जाने की घटनाएं घटित होती हैं तो एक बात पर विचार कीजिए। यह संयोग ही है कि एक ओर तो 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी चल रही थी, वहीं उसी समय केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी दूरसंचार कंपनी
भारत संचार निगम लिमिटेड यानी बीएसएनएल के लिए भारी-भरकम पैकेज की घोषणा कर दी। बीएसएनएल पिछले कई वर्षों से न केवल बाजार हिस्सेदारी गंवा रही है बल्कि वह भारी घाटे में भी चल रही है। यदि 5जी नीलामी और बीएसएनएल के लिए सुधार पैकेज, दोनों को एक साथ देखा जाए तो एक भ्रामक तस्वीर प्रस्तुत होती है। लेकिन अगर करीबी नजर डाली जाए तो दोनों एक साथ सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि इंडिया और भारत। 5जी की मदद से दूरसंचार उद्योग भारत को कई तरह से वैश्विक मानचित्र पर जगह दिला सकता है। यह तकनीक स्वास्थ्य सेवा से लेकर शिक्षा और उपभोक्ता कारोबार तक में मददगार साबित होगी। परंतु अगर बीएसएनएल की बात करें तो वह अभी भी ग्रामीण भारत की अच्छी खासी आबादी के लिए संपर्क का जरिया है। भले ही निजी क्षेत्र दूरदराज इलाकों में पहुंच बना रहा है लेकिन अभी भी बीएसएनएल ही प्रमुख जरिया है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई से लिए गए आंकड़े बताते हैं कि क्यों बीएसएनएल की मौजूदगी आवश्यक है। फिर चाहे सरकार उसकी हालत सुधारने के लिए पैकेज दे अथवा न दे। आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि देश में अगली पीढ़ी यानी 5जी सेवाओं की क्या प्रासंगिकता है।
बीएसएनएल की वायरलाइन या फिक्स्डलाइन सेवा की बात करें तो दिसंबर 2021 तक देश के संपूर्ण ग्रामीण बाजार में इसकी हिस्सेदारी 23.72 फीसदी थी। रिलायंस जियो की ग्रामीण बाजार के इस क्षेत्र में हिस्सेदारी 1.24 फीसदी है जबकि भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और एमटीएनएल आदि ग्रामीण भारत की फिक्स्डलाइन सेवाओं में न के बराबर योगदान देते हैं। अखिल भारतीय स्तर के आंकड़े बताते हैं कि बीएसएनएल 75.9 लाख ग्राहकों के साथ दिसंबर 2021 में वायरलाइन की अग्रणी सेवा प्रदाता थी। 55.8 लाख ग्राहकों के साथ भारती एयरटेल दूसरे स्थान पर आती है।
यदि वायरलेस या मोबाइल सेवाओं की बात की जाए तो हालात बदल जाते हैं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में बीएसएनएल के पास इस क्षेत्र में भी 11.4 करोड़ ग्राहक हैं। यानी दिसंबर 2021 तक देश के ग्रामीण मोबाइल बाजार में बीएसएनएल 7.06 फीसदी का हिस्सेदार था। केवल बीएसएनएल की बात करें तो उसके समस्त ग्राहकों में से 32 प्रतिशत ग्रामीण भारत से हैं। 41.6 करोड़ ग्राहकों के साथ जियो वायरलेस सेवाओं में शीर्ष पर है और उसके पास 35 फीसदी ग्रामीण बाजार है। भारती की वायरलेस सेवा ग्रामीण बाजार में 33 फीसदी हिस्सा रखती है। वहीं वोडाफोन आइडिया के पास 26 प्रतिशत हिस्सा है। ये सभी आंकड़े ट्राई से लिए गए हैं।
वोडाफोन आइडिया को आमतौर पर एक शहरी ब्रांड के रूप में पहचाना जाता है लेकिन उसके ग्राहकों पर नजर डालें तो उसके 50 प्रतिशत से अधिक वायरलेस उपभोक्ता ग्रामीण भारत से आते हैं। भारती के कुल ग्राहकों में 48 फीसदी ग्रामीण तथा जियो में 43 फीसदी ग्रामीण हैं। देश के 22 दूरसंचार सर्किल का एक विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें से आधे सर्किल में ग्रामीण ग्राहकों की तादाद 30 प्रतिशत से अधिक है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, बिहार और आंध्र प्रदेश ऐसे ही सर्किल में आते हैं।
गत सप्ताह ट्राई द्वारा जारी किए गए तिमाही आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च, 2022 तक देश में ग्रामीण दूरसंचार घनत्व 58.07 फीसदी था। दूरसंचार घनत्व से तात्पर्य है एक खास क्षेत्र में रहने वाले 100 लोगों में दूरसंचार कनेक्शन की तादाद। शहरी इलाकों में यह घनत्व 134.94 प्रतिशत है। समग्र दूरसंचार घनत्व 84.88 फीसदी है। वायरलेस क्षेत्र में कुल दूरसंचार घनत्व 83.07 फीसदी है। ग्रामीण इलाकों में यह 57.85 फीसदी और शहरी इलाके में 130.17 फीसदी है। वायरलाइन में कुल दूरसंचार घनत्व केवल 1.81 फीसदी है। ग्रामीण इलाके में यह 0.22 फीसदी तथा शहरों में 4.77 फीसदी है।
दिसंबर 2021 तक के सालाना आंकड़ों पर सर्किल के आधार पर नजर डालें तो ग्रामीण भारत का एक और पक्ष सामने आता है। कुल 15 सर्किल में दूरसंचार घनत्व 50 फीसदी से अधिक है। केरल में यह 211.4 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश में यह 104.48 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 78.56 प्रतिशत, गुजरात में 72.9 प्रतिशत तथा पंजाब में 72.66 प्रतिशत है।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि दूरसंचार क्षेत्र में ताकत ग्रामीण इलाके के हाथ में है लेकिन 5जी एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से ग्रामीण तथा शहरी दोनों जगहों के नागरिकों को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी क्योंकि उन्हें अत्यधिक उच्च गति वाला मोबाइल डेटा हासिल होगा।
साभारः बिजनेस स्टैंडर्ड