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कुछ पाने के लिए भी...
धनंजय कुमार भाग जाने वाले लोग हमेशा अपराधी नहीं होते कभी कभी जान बचाने के लिए भी भागते हैं लोग ! लड़कियां जो भाग जाती हैं अपने पिता के घरों से जरूरी नहीं कि वो प्रेम में ही भागती हैं अपनी जान बचाने के लिए भी भागती हैं ! जान का ख़तरा सिर्फ़ जंगल में नहीं रहता कई बार घरों में भी उग आते हैं जंगल और कोई जिंदा इंसान जान बचाने के लिए भागता है ! भाग जाने का मतलब मुंह छुपाना या पीठ दिखाना नहीं है कुछ पाने के लिए भी भागते हैं लोग ! जैसे भागे थे गौतम अंधेरे में घर छोड़कर ! भले हम किसी के भागने का मज़ाक बनाएं उसे कायर कहें लेकिन भागता तो हर इंसान है कोई सच से भागता है कोई झूठ से कोई अच्छे इंसान को देख भागता है कोई बुरे को देखकर लेकिन उसका भागना ही भागने का मूल है जो भागता है अंधकार से प्रकाश की ओर ! प्रकाश जीवन है और मृत्यु अंधकार इसीलिए जीवन की कई कहानियाँ है और मृत्यु की बस एक ! इसीलिए बेटियाँ भाग जाती हैं अक्सर और जो भागने का साहस नहीं जुटा पातीं वो भगा दी जाती हैं जबरन बेदखल कर दी जाती हैं अपनी जड़ से अपने वजूद से अपनी पहचान से ! विशेष: इस कविता के रचनाकार, फिल्मलेखक, राजनीतिक विश्लेषक और नाटककार हैं. 15/07/22