द्वापर के देवों की महिमा
डॉ राजश्री तिरवीर
बेलगांव, कर्नाटक
लेखिका हिंदी में एमए, पीएच.डी स्लेट, डी.लिट्. एमए में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने पर कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक से सम्मानित.
राष्ट्रीय—अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में आलेख एवं दैनिक समाचार पत्रों में हिंदी, मराठी कविताएं प्रकाशित. मराठा मंडल कला और वाणिज्य महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत.
एक
जोड़ खड़े कर कृष्ण कहें सुन माखन मैं न चुरावत मैया,
झूठ शिकायत है यह एक न रोज अनेक बनावत मैया |
ग्वाल सभी बृज के मुझसे निज काम समस्त करावत मैया,
नाहिं करूँ तब मारत हैं अरु देकर धौस चिढ़ावत मैया ||
दो
बालक कृष्ण लगें अति सुन्दर गाय चरावन को जब जायें,
जंगल जंगल घूम रहे तन धूल भरे न जरा सकुचायें |
मोहित हों अरि मित्र सभी जब बाँसुरिया धुनि मस्त बजायें,
वस्त्र हरें तब गोपिन के जल में जब होकर नग्न नहायें।।
सार छन्द
दुर्योधन बोला दासी को
नंगा नाच नचाओ,
वस्त्र हीन करके मेरी इस
जंघा पर बिठलाओ |
केश खींचकर दूशासन ने
उस अबला को पीटा,
पूरे सभा प्रांगण में रह,
रहकर उसे घसीटा ||
लगा खींचने साड़ी उसकी
नग्न वदन करने को,
मौन सभी थी सभा लग रहा
बैठी ये मरने को |
कृपाचार्य, श्री द्रोण, पितामह
ने न किया निस्तारण,
समझ नहीं आता है ये सब
मौन रहे किस कारण ||
राजपुत्र क्या, राजा को भी
डॉट सभी सकते थे,
यदि चलता बस नहीं सभा को
त्याग कभी सकते थे |
बैठे रहे विदुर भी व्याकुल
अपनी नीति सुनाई,
द्वापर के देवों की महिमा
नहीं समझ में आयी ||