सबक लिजिए और स्वयं को बदलें
ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की दुहाई देते चालू हुआ ये साल, गांधी को गालियाँ देते हुए आखिर खत्म हो ही गया। आज और आने वाले अगले दस दिनों तक सोशल मीडिया के हर चौराहे पर साल 2021 पर चिंतन का "फैमिली पैक" बड़े आसान और सस्ते तरीके से आपके उपभोग के लिए अब मौजूद रहेगा।लेकिन सच कहूं तो मेरे लिए चार शब्दों या चार घटनाओं में ही यह साल बीत गया :
1)तीसरी लहर का खतरा❗️
2) चुनावों के परिणाम❗️
3)चुनावों की तैयारियां❗️
4)तीसरी लहर❗️
वैसे हमारे कई "मेटा चिंतक" आज और अगले कुछ दिनों तक इस साल को आंदोलनों का साल कहेंगे❗️
क्योंकि इसी साल में आदरणीय मोदीजी एक ही साल में किसान, बैंक कर्मचारी, डाक्टर और बेरोजगार युवा, इन सभी वर्गों का आन्दोलन करवाने का महान लक्ष्य प्राप्त करने वाले "शायद" पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। देखिए अब क्योंकि मैं इन महान मेटा चिंतकों से लाइक्स और शेयर वाले हिसाब में कमजोर हूं इसलिए मैं इस लेख के आरंभ से ही स्वयं को गलत मान कर ही चल रहा हूं और क्षमाप्रार्थी होकर, लेकिन बड़े आत्मविश्वास से अपने नज़र से इस साल को रख रहा हूं।ध्यान रहे मैं यहां किसी भी आंदोलन को छोटा या बड़ा या उसकी सफलता/विफलता पर कोई टिप्पणी भी नहीं दे रहा हूं❗️
तो "मित्रों" मेरे अनुसार अगर इस साल को याद करना है तो बस तीन बिंदुओं पर केंद्रित हो जाइए:
पहला भारतीय मुसलमान, दूसरा भारतीय शासन और तीसरा/अंतिम भारतीय सोशल मीडिया❗️
शुरू करते हुए आइए समझते हैं की भारतीय मुसलमानों का साल 2021 कैसा था❓ लक्षद्वीप में मुस्लिम विरोधी हिंसा, त्रिपुरा मुस्लिम विरोधी हिंसा, कश्मीर में सेना द्वारा मारे गए 34 नागरिक, असम में मोइनुल हक के पार्थिव शरीर पर जश्न, यूपी में अल्ताफ की हिरासत में हत्या, गुरुग्राम में हिंदुत्व भीड़ द्वारा प्रतिबंधित नमाज और अंत में हरिद्वार में हिंदुत्व सभा में नरसंहार का आह्वान।बाकी इक्का दुक्की, छिट पुट, इधर उधर लिंचिंग का भय और जबरदस्ती जय श्री राम बुलवाना वग़ैरह वग़ैरह ये सब भी लगा ही रहा। यानी संक्षेप में साल 2021 में "मुल्ले टाइट रहे" और एक बेशर्म लोकतंत्र के रूप में हम इन सभी मामलों पर चुप रहे और स्वादानुसार धर्मनिरपेक्ष बने रहे❗️ सारी राजनैतिक पार्टियों में भी हिंदू बनने की होड़ लग गई और साथ ही न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया ने भी मुसलमानों की इस दशा से अपनी सम्मानजनक दूरी बनाए रखी❗️ तो सोचिए अब साल 2022 भारतीय मुसलमानों के लिए कैसा होगा और नजरें झुका कर बोलिए हैप्पी न्यू ईयर❗️
चलिए अपने दूसरे बिंदु गवर्नेंस यानी शासन पर चलते हैं।प्रधान मंत्री के फोटो लगी, उनके कार्यालय के नियंत्रण में चलाए गए एक फंड के संदर्भ में बीच न्यायपालिका में खड़े होकर सरकारी अधिकारियों ने हमें बताया की PMCares Fund से सरकार का कोई लेना देना नहीं।वो बात अलग है की इसमें देश के सरकारी और गैर सरकारी दोनों हिस्सों ने दिल और दिमाग़ खोल कर योग दान दिया था।वैसे हमें नहीं भूलना चाहिए की इस साल हमने इस शासन को हमारी जासूसी करते हुए भी पकड़ा।पत्रकार, सीबीआई के अधिकारी, न्यायधीश, आई बी के अधिकारी, रॉ के अधिकारी इत्यादि कई लोगों की जासूसी की गई।जब सवाल पूछा तो बीच न्यायालय में खड़े होकर इस शासन ने कहा "राष्ट्रीय सुरक्षा" और सब ठंडा हो गया❗️
गृह राज्य मंत्री के लड़के ने भीड़ पर गाड़ी चढ़ाई थी लेकिन इस शासन ने उनसे कोई जवाब नहीं मांगा और ना ही उन्होंने कोई इस्तीफा दिया।बिना चर्चा इस शासन ने कानून बनाए, आर्थिक सुधार के नाम पर सरकारी संपत्तियों की नीलामी और बैंकों का विलय और निजीकरण किया❗️ बिना किसी आधार, गाजर मूली की तरह UAPA बांटा और देशद्रोह का इल्जाम लगाया।चुनावों की घोषणा के बाद भी इस शासन के हर हिस्से ने सरकारी रैलियों को सफल बनाने में अपना पूरा जोर लगाया और अपने मन मर्जी से चुनाव आयोग को चलाया। मत भूलिएगा की यहां तक की जब इस देश में गांधी को गाली पड़ी, ये शासन तब भी चुप रही❗️
तो सोचिए की आपके वोट ने यह कौन सा शासन इस लोकतंत्र को दिया है, साल 2022 का शासन कैसा होगा और फिर नजरें झुका कर बोलिए हैप्पी न्यू ईयर❗️
और अंत में जब मैं अपने तीसरे और आखरी पड़ाव इस देश की सोशल मीडिया पर आता हूं तो मुझे बहुत हंसी आती है। बड़ा हास्यास्पद लगता है, की ऊपर के दो बिंदुओं को आए दिन देखने, समझने और परखने के बावजूद इस देश की सोशल मीडिया की स्थिति "एलिस इन वंडरलैंड" जैसी है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे(भारतीय सोशल मीडिया) को अभी भी ऐसा लगता है की उत्तर प्रदेश के चुनावी परिणामों को वो अपने दम पर बदल लेंगे, बैंकों का निजीकरण वो रोक लेंगे, सरकारी संपत्तियों की नीलामी वो रोक लेंगे और अलग अलग आंदोलनों को वो मजबूती प्रदान करने में सफल होंगें।यह नितांत हास्यास्पद है।तो हे "मेटाजीवी" ओजस्वी ट्विटर/फ़ेसबुक/वट्सऐप क्रांतिकारी भाइयों हैश टैग जाग जाइए, और सोचिए की स्वघोषित सुविधायुक्त क्रांति के भ्रम में हमने इस सोशल मीडिया को कितना विषाक्त, अर्थ हीन और बौना बना दिया है❗️
तो मेरे प्यारे देशवासियों साल 2022 का बस तीन ही मंत्र है, सबक लिजिए और स्वयं को बदलें लिजिए : पहला मंत्र राष्ट्रवाद, दूसरा मंत्र धर्म की बात और तीसरा मंत्र सत्ता उपयोगी और शासन को प्रिय विचारों का प्रचार प्रसार❗️ बदलिए और मुस्कुरा के बोलिए हैप्पी न्यू ईयर।आप सभी को नए साल की ढेरों शुभकामनाएं.....
(इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के निजी हैं)
विजय कुमार शर्मा