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सइबर सिक्योरिटी में महिलाओं की भागीदारी कम क्यों?
वीना सुखीजा अगर आपको यह भ्रम हो कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पिछले या गुजरे जमाने की बात थी, या कि वास्तव में वह उस दौर की अवैज्ञानिक जीवन पद्धति का नतीजा था,आज के वैज्ञानिक जीवनशैली में यह सब संभव नहीं है,तो कहना पड़ेगा कि बाजार की चकाचैंध ने चीजों को देखने के लिए आपसे जरूरी रोशनी छीन ली है। क्योंकि हकीकत यही है कि विज्ञान के इस स्वर्णिमकाल में भी भी महिलाओं के साथ वैसा ही भेदभाव हो रहा है, जैसे इतिहास के गैरवैज्ञानिक दौर में होता था। अगर यह सही नहीं है तो साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र में आखिर महिलाओं की भागीदारी इतनी कम क्यों है ? क्या यह क्षेत्र कुदरती रूपसे पुरुषों के लिए अनुकूल और महिलाओं के लिए जोखिमभरा है? बिल्कुल नहीं। लेकिन अगर हो भी तो यह कौन तय करेगा कि जोखिम सिर्फ पुरुष ही उठा सकते हैं ? कम से कम साइबरनेटिक्स के अकेडमिक सन्दर्भ में तो ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता। बावजूद इसके साइबर सिक्योरिटी एक ऐसे जाॅब के रूप में विकसित हो रहा है,जहां पुरुषों का दिनोंदिन एकतरफा वर्चस्व कायम होता जा रहा है। महिलायें चिंताजनक ढंग से इस क्षेत्र से बहुत कम हैं। हाल के दिनों में शायद ही किसी दूसरे क्षेत्र में महिलाओं के खिलाफ इस कदर भेदभाव देखने को मिला हो,जितना साइबर सिक्यूरिटी के क्षेत्र में जॉब के मामले में है। पिछले पांच साल में इस क्षेत्र में महिलाओं को महज 11 फीसदी जॉब ऑफर हुआ है यानी गुजरे 5 सालों में इस क्षेत्र में जितने लोगों को रोजगार मिला है उसमें महिलायें सिर्फ 11 फीसदी हैं। साइबर सिक्यूरिटी के जॉब में 89 फीसदी पुरुषों की भागीदारी है। महिलाएं कुल वर्कफोर्स में 1/10 प्रतिशत हैं। पिछले चार सालों में देशभर के इंजीनियरिंग काॅलेजों से साइबर सिक्योरिटी क्षेत्र के लिए जो कैंपस सलेक्शन हुआ है,उसमंे भी महिलाओं के सेलेक्शन की दर यही रही है करीब 10 फीसदी। वैसे सच यह भी है कि आधुनिक तकनीक के इस दौर में महिलाओं की समूचे साइबर वल्र्ड में हिस्सेदारी पहले ही बहुत कम है। यह ठीक वैसे ही है जैसे 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के शुरुआत में मेडिकल तथा सामान्य इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महीलाओं की स्थिति थी। आज डाटा साइंस सबसे ज्यादा तेजी से उन्नति करता क्षेत्र है। इसे सबसे ज्यादा आधुनिक और स्मार्ट रोजगार का क्षेत्र भी समझा जाता है लेकिन इस डाटा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी डाटा साइंटिस्ट के रूप में महज 5.1 फीसदी है और उसमें भी उन्हें पुरुषों के बराबर सैलरी नहीं मिलती। डाटा इंजीनियर, डाटा एनालिस्ट, साइबर सिक्योरिटी एनालिस्ट, एआई इंजीनियर, रिसर्च इंजीनियर और नेटवर्क सिक्योरिटी इंजीनियर के रूप में भी महिलाओं की उपस्थिति न के बराबर है। जिन महिलाओं को इन क्षेत्रों में किसी तरह से जाने का मौका भी मिला है, उनकी और पुरुषों की सैलरी में भी जमीन आसमान का फर्क है। पिछले डेढ़ सालों से जायदा समय तक पूरी दुनिया में कोरोना महामारी का जो खतरनाक साया रहा है, उस दौरान साइबर अपराधों में 25 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। जाहिर है साइबर अपराधों से निपटने के लिए इस दौरान बड़े पैमाने पर साइबर एक्सपर्ट इंजीनियरों की भर्ती हुई है। लेकिन इस जाॅब के लायक महिलाओं को शायद उपयुक्त नहीं पाया जा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत कम महिलाओं को मौका मिला है। साइबर सिक्योरिटी के बाजार में अगले तीन सालों मंे यानी साल 2025 तक 15 लाख से ज्यादा रिक्तियां पैदा होने की उम्मीद है। अब सवाल है क्या इन 15 लाख रिक्तियों में महिलाओं को उचित भागीदारी मिलेगी? अभी तक का जो रवैय्या है उसके देखते तो नहीं लगता कि महिलाओं को इस क्षेत्र में उचित भागीदारी मिलेगी। क्योंकि टीम लीज सर्विसेस के मुताबिक अभी तक महिलाओं को जितनी हिस्सेदारी मिल रही है, उसे देखते हुए 11-12 फीसदी से ज्यादा इस क्षेत्र में महिलाओं को भागीदारी मिलती नहीं दिख रही। सवाल है आखिर इसकी वजह क्या है? क्या महिलाओं में इस क्षेत्र के लिए जरूरी प्रतिभा नहीं है? क्या इंजीनियरिंग काॅलेजों में इतनी संख्या में महिलाएं नहीं हैं जो इस क्षेत्र के भारी भरकम जेंडर गैप को कम कर सकें ? वास्तव में जब महिलाओं की पुरुषांे के बराबर की भागीदारी की बात की जाती है तो शायद नये क्षेत्रों को छोड़ दिया जाता है, जो सिर्फ पुराने और पारंपरिक क्षेत्र हैं, उन्हीं में बराबरी की जरूरत महसूस की जाती है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि आज भी विभिन्न क्षेत्रों के नीति निर्धारकों को लगता है कि महिलाएं आधुनिक विषयों और क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर प्रतिभा नहीं रखती हैं? महिलाएं आज भी विभिन्न इंजीनियरिंग संस्थानों में महज 23 से 25 फीसदी उम्मीदवारी ही पाती हैं। जबकि साइबर कारिकुलम में ऐसा कुछ नहीं है, जो महिलाओं के लिए मुश्किल हो, इसके बावजूद भी साइबर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महिलाएं बहुत कम हैं। डिलाॅयट इंडिया पार्टनर की दीपा शेषाद्री के मुताबिक यूं तो साइबर क्राइम सबसे ज्यादा महिलाओं के विरूद्ध ही हो रहे हैं,लेकिन जब कोई कंपनी किसी ऐसे इंजीनियर को महिलाओं के विरूद्ध होने वाली साइबर गालीगलौज या साइबर अपराध पर रोक लगाने के लिए भर्ती करना चाहती है तो इसके लिए महिला इंजीनियर ढूंढ़े से नहीं मिलते और पुरुषों को ही भर्ती करना पड़ता है। शायद इसका कारण यह है कि महिलाएं नये क्षेत्र में कॅरियर बनाने का रिस्क पुरुषों के मुकाबले बहुत कम लेती हैं? यह बात सही नहीं है, सच यह है कि कारपोरेट जगत आज भी समझता है कि महिलाएं पुरुषों के जितनी तेज तर्रार नहीं होतीं और न ही वह जासूसी करने के लिए उपयुक्त होती हैं।