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हिंदी की राष्ट्रभाषा तक पहुंच लघुकथा के जरिए संभव 'राजभाषा' के रूप में घोषित हिंदी देश की "राष्ट्रभाषा" की कुर्सी पर आसीन हो, इसके लिए जरूरी है कि देश के नागरिकों में जबरदस्त मनोवैज्ञानिक बदलाव हो, और यह मानसिक परिवर्तन, साहित्य की किसी भी विधा, खासकर लघुकथा विधा से संभव दिख पड़ता है। वैसे यह काम लघुकथा आरंभ से ही करती आ रही है और आज भी संघर्षशील है। राष्ट्रभाषा की ओर बढ़ रहे लघुकथा के कदम रुकने न पाए, हम लघुकथाकारों का यह दायित्व बनता है। ये बातें युवा साहित्यकार कवि सिद्धेश्वर ने 19 सितंबर को कही। मौका था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के फेसबुक पेज पर, ऑनलाइन संवाद आयोजन का। हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन में सिद्धेश्वर ने मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ कथाकार अशोक प्रजापति को अमंत्रित किया था। सिद्धश्वर के संचालन में साहित्यकारों ने लघुकथा विधा को हिंदी के विकास से लेकर सर्वप्रिय बनाने और कामकाज से जोड़ने वाला बताया। इसके लिए साहित्यकारों को आंदोलन के जरिए शब्द क्रांति करने का संकल्प लिया। कथाकार अशोक प्रजापति ने कहा कि राजभाषा हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हम सभी साहित्यकारों को एकजुट होना होगा, और लघुकथा विधा के माध्यम से, शब्द क्रांति लानी होगी। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ऋचा वर्मा ने पढ़ी गई सभी लघुकथा एवं विचार पर टिप्पणी देते हुए कहा कि "हिंदी राष्ट्रभाषा की प्रबल दावेदार है, क्योंकि इसका शब्द भंडार बहुत समृद्ध है और यह भी कि हिंदी की व्यापकता और ग्राह्यता ब दिनों दिन बढ़ती जा रही है।'' मध्य प्रदेश से आमंत्रित विशिष्ट अतिथि डॉ शरद नारायण खरे (मध्य प्रदेश) ने कहा कि-" इस समय लघुकथाओं की व्यापकता, लोकप्रियता, मान्यता व प्रतिष्ठा चरम पर है, तो यह नि:संदेह कहा जा सकता है कि लघुकथा की यह श्रेष्ठता हिंदी को न केवल बहुप्रचलन में ला रही है, बल्कि हिंदी के साहित्य का विकास कर उसे राष्ट्रभाषा के सिंहासन के समीप ले जा रही है। लघुकथा की बढ़ती लोकप्रियता निश्चित रूप से हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कराएगी, इसकी आशा व अपेक्षा है।" बरेली के शराफत अली खान ने कहा कि-" राष्ट्रभाषा की राह पर चल पड़े कदम का हम कदम हूँ मैं l लघुकथा लेखक के रूप में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए अपने आसपास के साहित्य प्रेमियों को हिंदी लघुकथा लिखने पर बल देता रहता हूँ l " दूसरी तरफ कौशल किशोर ने कहा कि -" हिंदी आम बोलचाल की महा भाषा है ! संस्कृत की बेटी हिंदी को राजभाषा बनने के लिए बहुत लंबी लड़ाई लड़नी होगी ! इस लड़ाई में जब तक साहित्यकारों की भूमिका अग्रणी नहीं होगी, तब तक हिंदी सम्पर्क भाषा से आगे नहीं बढ़ पाएगी l " अपूर्व कुमार ने कहा कि -" लघुकथा में कम समय और कम शब्दों में विचारों को संप्रेषित करने की जादुई शक्ति है l अतः लघुकथा के माध्यम से राष्ट्रभाषा की यात्रा की गति और त्वरित हो सकती है l हिंदी लघुकथाकार अपनी लघुकथा सृजन के माध्यम से राष्ट्रभाषा अभियान की गति को और तेज कर सकते हैं l "माधुरी भट्ट ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें हिंदी बोलने में शर्म आती है, यह हमारे मानसिक गुलामी का परिचायक है। लघुकथा के इस राष्ट्रीय वेबीनार में रामनारायण यादव (सुपौल ) ने " हमारी हैसियत "/अपूर्व कुमारवैशाली) ने " हिंदी दिवस "/ डॉ योगेंद्र नाथ शुक्लइंदौर ) ने " बयार "/ रशीद गौरी (राजस्थान )ने "पिता "/ डॉ मेहता नगेन्द्र ने -" चुभन "/ ऋचा वर्मा ने " वेशभूषा "/ राज प्रिया रानी ने " आलिंगन "/ प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने " सत्य की खोज "/ सीमा रानी ने -"मोक्ष की प्राप्ति "/ सिद्धेश्वर ने "मान- सम्मान " एवं नरेंद्र कौर छाबड़ा ने अपनी आवाज में, विजयानन्द विजय की डोर, ओर डॉ सतीशराज पुष्करणा की लघुकथा प्रस्तुत की। इसके अतिरिक्त दुर्गेश मोहन, आराधना प्रसाद, श्रीकांत गुप्त, नीतू सुदीप्ति नित्या, नेहा विजेता, संतोष मालवीय, अंजू भारती आदि की भी भागीदारी रहीl