अपने समर्थकों की ही नाक में दम कर देते हैं दहशतगर्द
सुनील सौरभ
आतंक, आतंकी, दहशतगर्द, अपराधी का कोई न तो कोई जाति होती है, और न ही उनका कोई धर्म होता। नीति तो होती ही नहीं है। वे सिर्फ एक दिशा—निर्देश पर चलते हुए अपनी स्वार्थ की नीति अपनाते हैं— विरोधियों को किसी तरह सफाया करना. इसके लिए चाहे कितनी भी हिंसा क्यों न करनी पड़े। लोगो को दहशत में रखना, अपनी बातें बंदूक की नोंक पर मनवाना, मारकाट कर सत्ता कायम करना।
आज पूरी दुनिया आतंक के साये में है। कमोबेश हर बड़े-छोटे देश आज आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। दो दशक बाद जब सुपर पावर अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिक वापस लौटाने का निर्णय लिया ही कि आतंकवादी संगठन तालिबान ने ताली पीटने शुरू कर दिया और एक झटके में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। आज जब अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर आईएसआईइस ने फिदायीन हमले कर दो सौ से अधिक लोगो की जान ले ली,जिसमे एक दर्जन से ज्यादा अमेरिकन सेना के जवान की मौत हो गयी,तब अमेरिका का ध्यान पुनः आतंक से लड़ने और आतंकवादी संगठनों को नेसनाबूद करने की घोषणा की है। वह भी आतंकी संगठन तालिबान की सहायता से। यह कोई कही सुनी बात नहीं है बल्कि अमेरिका के सुरक्षा प्रमुख ने आधिकारिक बयान दिया है। इसी से आज के अमेरिका के सत्ताधारियों की मंशा को समझा जा सकता है। यानी अफगानिस्तान को तालिबान के हाथों में सौंपना एक सोची -समझी साजिश तो नहीं है ? यह सवाल अब लोगों के बीच उठने लगा है।
पिछले चार दशक के इतिहास बताता है कि वैश्विक स्तर पर या किसी देश में या फिर क्षेत्रीय स्तर के किसी भी आतंकी, नक्सली, अपराधी संगठन को जिसने भी साथ दिया, समर्थन किया, बाद में वह उसी के लिए बड़ी समस्या बना। कभी आईएसआईएस के खिलाफ तालिबान को खड़ा करने वाला अमेरिका के लिए आज दोनों संगठन गले की फांस बना है। आग से दोस्ती करने पर हाथ तो जलेगा ही।
तालिबान के अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होते ही दुनिया भर के आतंकी संगठनों का मनोबल काफी बढ़ गया है। काबुल एयरपोर्ट पर आईएसआईएस के फिदायीन हमले में दो सौ से अधिक की हुई मौत ने इस बात को साबित कर दिया। टारगेट पर अमेरिकी सेना के जवान थे,लेकिन खामियाजा तो अफगानिस्तान से बाहर निकलने की चाहत में काबुल एयरपोर्ट के बाहर खड़े आम लोगों को भी भुगतना पड़ा। हालांकि अमेरिका ने 48 घंटे बाद ही इस हमले के मास्टरमाइंड समेत आईएसआईएस के अनेक आतंकवादियों को स्पेशल ड्रोन हमले में मार गिराया है। लेकिन अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ते ही अफगानिस्तान के पड़ोसी मुल्कों को आने वाले समय में आतंकी संगठनों से परेशानी का सामना तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि अफगानिस्तान पर तालिबान की सत्ता हो जाने के बाद तमाम आतंकी संगठन यहां अपना मुख्यालय बना ले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।सच तो यही है कि आतंकी का कोई जाति-धर्म नहीं होता। इसलिए आतंकवादी संगठनों की बातों पर यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह बदल गया है।