
पहले विश्व युद्ध की शुरूआत
साल के आठवें महीने के 28वें दिन पर कई महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज हैं। 28 अगस्त को प्रथम विश्व युद्ध हुआ था। आज ही के दिन प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ था। प्रथम विश्व युद्ध के लिए किसी एक घटना को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते हैं। इस युद्ध को 1914 तक हुई विभिन्न घटनाओं और कारणों का परिणाम माना जा सकता है। हालांकि फिर भी इस युद्ध का तात्कालिक कारण तो यूरोप के सबसे विशाल ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की बोस्निया में हुई हत्या को ही माना जाता है। 28 जून, 1914 को उनकी हत्या हुई थी, जिसका आरोप सर्बिया पर लगाया गया था। इस घटना के एक महीने बाद ही यानी 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद इस युद्ध में विभिन्न देश शामिल होते गए और आखिरकार इसने विश्व युद्ध का रूप ले लिया। 11 नवंबर 1918 को आधिकारिक रूप से जर्मनी के सरेंडर करने के बाद युद्ध समाप्त हो गया। इसी कारण 11 नवंबर को प्रथम विश्व युद्ध का आखिरी दिन भी कहा जाता है। इसके बाद 28 जून 1919 को जर्मनी ने वर्साय की संधि, जिसे शांति समझौता भी कहते हैं, पर हस्ताक्षर किए, जिसकी वजह से उसे अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा। साथ ही उसपर दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबंदी लगा दी गई और उसकी सेना का आकार भी सीमित कर दिया गया। माना जाता है कि वर्साय की संधि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था। इस वजह से हिटलर और जर्मनी के अन्य लोग इसे अपमान मानते थे और माना जाता है कि यही अपमान दूसरे विश्व युद्ध की वजह भी बना। प्रथम विश्व युद्ध के बारे में आपने इतिहास की कई किताबों में बहुत कुछ पढ़ा होगा। वैसे तो 1914 से 1918 तक लड़ा गया यह महायुद्ध यूरोप, एशिया और अफ्रीका तीन महाद्वीपों के समुद्र, धरती और आकाश में लड़ा गया था, लेकिन मुख्य रूप से इसे यूरोप का महायुद्ध ही कहा जाता है। अब बाकी कुछ जानने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर इस लड़ाई को 'विश्व युद्ध' क्यों कहा जाता है और दुनिया पर इसका प्रभाव पड़ा था। दरअसल, इस लड़ाई में भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) और इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे 'विश्व युद्ध' कहा जाता है।
यहूदियों का नृशंस जनसंहार
28 अगस्त 1941 के दिन यूक्रेन में 23,000 यहूदियों का नरसंहार हुआ. ये यहूदी हंगरी के थे और इन्हें नाज़ी जर्मनी के सैनिकों ने मारा था. इस समय द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था और जर्मनी ने सोवियत संघ के ऊपर हमला बोल दिया था. जर्मनी के सैनिक मास्को में घुस चुके थे.
इसी क्रम में उन्होंने यूक्रेन के कुछ भागों पर अपना कब्जा जमा लिया था. 26 अगस्त के दिन हिटलर ने बेनिटो मुसोलिनी को यूक्रेन के तबाह हुए शहर में यह देखने को बुलाया था कि जर्मनी ने यूक्रेन को जीत लिया है.
इस शहर को जर्मन सेना ने पूरी तरह से तबाह कर दिया था. हालांकि, इसमें एक विरोधाभास भी था. यूक्रेन को लगता था कि जर्मनी उसका मित्र है. जब ऐसा नहीं हुआ तो यूक्रेन के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए.
इन प्रदर्शनों को जर्मनी ने बड़ी निर्ममतापूर्वक कुचल दिया. बहुत सारे यूक्रेनवासियों को यातना गृहों में डाल दिया गया. लेकिन असली बर्बरता तो यहूदियों के लिए बचाकर रखी गई थी.
हंगरी ने अपने यहां से हज़ारों की संख्या में यहूदियों को निकाल दिया था. ये यहूदी यूक्रेन में शरणार्थियों की तरह रह रहे थे. पहले तो जर्मनी ने इन्हें हंगरी वापस जाने को कहा, लेकिन हंगरी ने इन्हें अपनाने से मना कर दिया.
आगे जर्मन सेना के एक क्रूर और निर्मम जनरल फ्रांज़ जेकलेन ने एक योजना बनाई. इस योजना के तहत 1 सितंबर तक प्रत्येक यहूदी को मारा जाना था. लेकिन यह काम 28 अगस्त तक ही पूरा कर दिया गया.
28 अगस्त के दिन उसने 23,000 यहूदियों को खुले मैदान में खड़ा किया और उनके ऊपर मशीन गन से गोली-बारी करवा दी. जो यहूदी गोली-बारी से नहीं मरे, उन्हें जिंदा लाशों के नीचे दफना दिया गया. द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होते-होते यूक्रेन में करीब 6 लाख यहूदियों को इस तरह मार दिया गया.
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीटा
28 अगस्त 1968 के दिन शिकागो में पुलिस ने वियतनाम युद्ध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे अमेरिकी नागरिकों और कार्यकर्ताओं को बुरी तरह पीट दिया. इस घटना से अमेरिका की शीत युद्ध पर आधारित विदेश नीति को बहुत क्षति पहुंची.
असल में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका और सोवियत संघ विश्व की दो बड़ी महाशक्तियों के रूप में उभरे थे. दोनों अपनी-अपनी विचारधारा के तहत दुनिया को चलाना चाहते थे. इसलिए दोनों के बीच शक्ति संघर्ष चल रहा था. इस शक्ति संघर्ष को ही शीत युद्ध की संज्ञा दी गई.
इससे पहले न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार ने विएतनाम युद्ध से संबंधित कुछ दस्तावेज़ सार्वजनिक किए थे. इनसे पता चला था की अमेरिकी सरकार विएतनाम युद्ध के सन्दर्भ में जनता से झूठ बोल रही है.
इसके बाद अमेरिका में युद्ध विरोधी भावनाएं बहुत प्रबल हो गई थीं.
इस बात को लेकर सत्तासीन डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच बहस चल रही थी. इस मुद्दे को लेकर पार्टी दो धडों में विभाजित हो गई थी. एक धड़ा सोवियत संघ के खिलाफ पूरी कड़ाई से पेश आने के पक्ष में था.
जबकि, दूसरा धड़ा विदेश नीति को उदार करने के पक्ष में था. संसद में चली बहस में दूसरा धड़ा जीत रहा था, लेकिन पहले धड़े के नेताओं ने दूसरे धड़े के नेताओं के साथ धक्कामुक्की कर दी थी.इस धक्कामुक्की के विरोध में युद्ध विरोधी प्रदर्शनकारी शिकागो में इकट्ठे हुए थे.इनसे निपटने के लिए मेयर ने पुलिस बुला ली. पुलिस ने इस विरोध प्रदर्शन को बुरी तरह से कुचल दिया. इसका प्रसारण टीवी पर हुआ. आगे लोगों ने सरकार और उसकी विदेश नीति की खूब आलोचना की.इसकी वजह से अमेरिका को विएतनाम युद्ध से पीछे हटना पड़ा.
विमान दुर्घटना में मारे गए 69 दर्शक
28 अगस्त 1988 के दिन जर्मनी में एक विमान प्रदर्शन के दौरान तीन विमान हवा में एक-दूसरे से टकरा गए. इससे इनका मलवा नीचे बैठे दर्शकों के ऊपर आ गिरा. इस कारण 69 दर्शक मर गए. वहीँ सौ से ऊपर दर्शक बुरी तरह से घायल हो गए.
यह प्रदर्शन नाटो की तरफ से आयोजित करवाया गया था. प्रदर्शन के बिलकुल अंतिम क्षणों में इटली की बारी थी. शुरुआत में तो सब अच्छे से हो रहा था. अंत में एक जहाज को दो अन्य जहाज़ों के बीच से गुजरना था.
उसमें बैठे पायलट से चूक हुई, तो जहाज शेष दोनों से टकरा गया.जोरदार धमाके से तीनों जहाज फट गए. तीनों पायलट तत्काल मर गए. इस हादसे के बाद जर्मन सरकार ने इस तरह के प्रदर्शनों को तीन साल के लिए बैन कर दिया. आगे कड़े सुरक्षा इंतजामों के बाद ही इन्हें दुबारा से चालू किया गया.
मुगलों के कब्जे में आया अहमदनगर
28 अगस्त 1600 के दिन मुगलों ने अहमदनगर को जीत लिया. यह जीत अकबर को अपने दूसरे प्रयास में हासिल हुई. इससे पहले अकबर ने 1596 में इसे जीतने का प्रयास किया था, लेकिन तब चाँद बीबी ने इसे बचा लिया था.
असल में चाँद बीबी के इस शानदार बचाव के बाद उनकी हत्या भीड़ द्वारा करवा दी गई थी. आगे उनकी मृत्यु के बाद नेतृत्व कमजोर पद गया तो मुगलों को इसे जीतने में कोई परेशानी नहीं हुई.
अहमद नगर को जीतने के बाद दक्षिण भारत में मुगल साम्राज्य के प्रसार का रास्ता भी खुल गया.आगे अहमदनगर को लेकर विभिन्न राजनीतिक सत्ताओं के बीच शक्ति संघर्ष चला.कालांतर में मराठों ने इसके ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित किया. फ्रांस और पुर्तागालियों ने भी इसके ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित किया. 1803 में हुए ब्रिटिश-मराठा युद्ध में अंतिम रूप से यह अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया.
अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है...
1600 : मुगलों ने अहमदनगर पर कब्जा किया।
1845 : प्रसिद्ध पत्रिका साइंटिफिक अमेरिकन का पहला संस्करण छपा।
1858 : उंगलियों के निशान को पहचान बनाने वाले ब्रिटेन के विलियम जेम्स हर्शेल का जन्म।
1896 : प्रसिद्ध उर्दू शायर फ़िराक़ गोरखपुरी का जन्म।
1904 : कलकत्ता से बैरकपुर तक प्रथम कार रैली का आयोजन।
1914 : पहला विश्व युद्ध शुरू।
1916 : प्रथम विश्वयुद्व में इटली ने जर्मनी के खिलाफ युद्व की घोषणा की।
1922 : जापान साइबेरिया से अपने सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हुआ।
1924 : जॉर्जिया में सोवियत संघ के खिलाफ असफल विद्रोह में हजारों लोगों की मौत।
1956 : इंग्लैड ने क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया को हटाकर एशेज श्रृंखला पर कब्जा जमाया।
1972: साधारण बीमा कारोबार राष्ट्रीयकरण बिल पारित।
1984 : सोवियत संघ ने भूमिगत परमाणु परीक्षण किया।
1986 : भाग्यश्री साठे शतरंज में ग्रैंडमास्टर बनने वाली भारत की पहली महिला बनी।
1990 : इराक ने कुवैत को अपना 19वां प्रांत घोषित किया।
1992 : श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने टेस्ट कॅरिअर की शुरुआत की।
1996 : इंग्लैंड के प्रिंस चार्ल्स और उनकी पत्नी डायना ने औपचारिक तौर पर तलाक लिया।
1999 : मेजर समीर कोतवाल असम में उग्रवादियों के एक गुट के साथ मुठभेड़ में शहीद।
2008 : अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फोर्ब्स ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को दुनिया की 100 शक्तिशाली महिलाओं में शामिल किया।
2018 : भारत के मंजीत सिंह ने जकार्ता एशियाई खेलों की पुरुष 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता।