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इस्लामिक स्टेट तालिबान के लिए भी एक बड़ी चुनौती काबुल में 26 अगस्त को एयरपोर्ट पर हुए आत्मघाती बम हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत कम से कम 60 लोग मारे गए हैं. यह हमला आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने काबुल एयरपोर्ट पर तब हमला किया, जब वहां से दसियों हजार लोग अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश में जमा थे. काबुल के स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक 60 आम नागरिकों की जान गई है. अफगान पत्रकारों द्वारा साझा किए गए वीडियो में नहर किनारे दर्जनों शवों को देखा जा सकता है. एक चश्मदीद के मुताबिक कम से कम दो धमाके हुए. इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसके आत्मघाती हमलावरों ने ‘अमेरिकी सेना के साथ रहे अनुवादकों और साझीदारों' को निशाना बनाया. पहले से आशंका थी इस्लामिक स्टेट द्वारा काबुल में हमले की आशंका एक दिन पहले से जताई जा रही थी. इस कारण कई देशों ने चेतावनी भी जारी की थी और अपने नागरिकों से कहा था कि वे एयरपोर्ट के आसपास न जाएं. बुधवार यानी 25 अगस्त को अफगानिस्तान में अमेरिकी दूतावास ने चेतावनी जारी कर कहा था कि एयरपोर्ट के करीब न जाएं और अगर वहां हैं तो फौरन उस इलाके को छोड़ दें. न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक उच्च पदस्थ अधिकारी के हवाले से लिखा था कि अमेरिका के पास बहुत सटीक और विश्वसनीय जानकारी है कि आईएसआईएस-के काबुल एयरपोर्ट पर हमला कर सकता है.
हमले के बाद सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल फ्रैंक मैकिंजी ने कहा कि अमेरिकी सैनिक ऐसे और हमलों के लिए भी तैयार हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि रॉकेट या वाहन-बम आदि के जरिए एयरपोर्ट को निशाना बनाया जा सकता है. जनरल मैंकिजी ने कहा, "तैयारी के लिए जो संभव है, हम कर रहे हैं.”
अमेरिका का बड़ा नुकसान हमले में अब तक 13 अमेरिकी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि हुई है. 2011 के बाद एक ही घटना में मारे गए अमेरिकी सैनिकों की यह सबसे अधिक संख्या है. इससे पहले अगस्त 2011 में तालिबान ने एक हेलिकॉप्टर को गिरा दिया था जिसमें 30 सैनिक मारे गए थे.
हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि हमलावरों को बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय को आईएसआईएस-के आतंकी संगठन पर हमले की योजना बनाने का आदेश दे दिया गया है.
तालिबान ने की निंदा काबुल के धमाकों की अफगानिस्तान पर हाल ही में नियंत्रण करने वाले तालिबान ने भी निंदा की है. एक तालिबान प्रवक्ता ने इस हमले को "शैतानी लोगों" का किया-धरा बताया और कहा कि पश्चिमी सेनाओं के जाने के बाद ऐसी ताकतों को कुचल दिया जाएगा.
इस्लामिक स्टेट तालिबान के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जो अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का वादा करके सत्ता पर काबिज हुए हैं. पश्चिमी देशों को आशंका है कि ओसामा बिन लादेन के संगठन अल कायदा को पनाह देने वाला तालिबान एक बार फिर अफगानिस्तान को उग्रवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बना सकता है. तालिबान का कहना है कि ऐसा नहीं होने दिया जाएगा. इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने वाले लड़ाके 2014 से ही पूर्वी अफगानिस्तान में नजर आने लगे थे और अपनी क्रूरता के लिए चर्चित हो चुके हैं. उन्होंने कई नागरिक और सरकारी ठिकानों पर आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी ली है. लोगों को निकालने में मुश्किल एयरपोर्ट पर हुए धमाके ने लोगों को निकालने के काम को प्रभावित किया है. जनरल फ्रैंक मैकिंजी ने कहा है कि वह लोगों को निकालने पर ध्यान देंगे. उनके मुताबिक अफगानिस्तान में अब भी एक हजार से ज्यादा अमेरिकी नागरिक मौजूद हैं. कई देशों ने अब लोगों की निकासी का काम बंद कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री पीटर डटन ने कहा कि अब लोगों को निकालने का काम बंद किया जा रहा है क्योंकि उनके सैनिकों के लिए वहां होना खतरनाक है और वह किसी ऑस्ट्रेलियाई नागरिक की जान खतरे में नहीं डालना चाहते. अमेरिका के सहयोगी देशों द्वारा लोगों को निकालने का काम बंद करने का अर्थ है कि दसियों हजार ऐसे लोग अफगानिस्तान में ही छूट जाएंगे जो तालिबान के डर से देश छोड़ना चाहते थे. पिछले 12 दिन में अफगानिस्तान से लगभग एक लाख लोगों को निकाला गया है.