
जब विजयनगर बन गया म्रदास और अब है चेन्नई
साल के आठवें महीने का 22वां दिन कई अच्छी बुरी घटनाओं का इतिहास समेटे हुए है. इनमें से कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं की बात करें तो महात्मा गांधी ने 22 अगस्त को विदेशी कपड़ों की होली जलाकर स्वदेशी का नारा बुलंद किया था और अंग्रेजों के खिलाफ एक अलग तरह के विरोध की शुरूआत की थी. खेल जगत के लिए भी इस दिन का खास महत्व है. भारत की राही सरनोबत ने 2018 में 22 अगस्त के दिन ही एशियाई खेलों की 25 मीटर पिस्टल निशानेबाजी में स्वर्णिम सफलता हासिल हासिल कर एशियाई खेलों की निशानेबाजी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के मद्रास में रखी नींव
22 अगस्त का दिन भारत देश के लिए बड़ा दुखदायक रहा है. इसी दिन अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव मद्रास में रखी थी. फिर यहां से सफलता हासिल करने के बाद कई सालों तक भारत पर राज किया.दक्षिण भारत के शहर मद्रास से ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने विस्तार की नींव रखी थी. जानते हैं क्या हुआ था आज के दिन?
ईस्ट इंडिया कंपनी के आने से पहले मद्रास महत्त्वपूर्ण राजवंशों पल्लव, चोल, पांड्य और विजयनगर की प्रशासनिक, सैनिक और आर्थिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था. 22 अगस्त 1639 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने विजयनगर के राजा पेडा वेंकट राय से कोरोमंडल तट चंद्रगिरी में कुछ जमीन खरीदी. वेंकट राय ने अंग्रेजी व्यापारियों को यहां एक फैक्ट्री और गोदाम बनाने की अनुमति दी थी. एक साल बाद ब्रिटिश व्यापारियों ने यहां सेंट जॉर्ज किला बनवाया जो औपनिवेशिक गतिविधियों का गढ़ बना.
1749 में मद्रास और सेंट जॉर्ज के किले पर फ्रांसीसी फौजों ने अपना कब्जा जमा लिया जिसे बाद में ब्रितानी कंपनी ने 1749 में एक्स ला शापेल सन्धि के तहत हासिल कर लिया. अगले तीस सालों में ब्रिटिशों को और भी हमलों से जूझना पड़ा जिसमें मैसूर के राजा हैदर अली से भी अपने इलाके को बचाना शामिल था. अठारहवीं सदी के अंत तक ब्रिटिशों ने सेंट जॉर्ज और आसपास के इलाके का विस्तार कर लगभग पूरे आधुनिक तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक को अपने अधीन कर लिया. इसके साथ ही उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी की स्थापना की और मद्रास को यहां की राजधानी घोषित किया. भारत में ब्रिटिशकाल के दौरान मद्रास एक आधुनिक शहर और महत्त्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में विकसित हुआ.
मद्रास का आधुनिक नाम चेन्नई यहां के एक प्रमुख गांव चेन्नापट्टनम पर आधारित है. माना जाता है कि सेंट जॉर्ज किला मद्रासपट्टनम के पास होने के कारण अग्रेजों ने इसे मद्रास नाम दिया था. 1996 में राज्य सरकार ने मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर दिया.
दरअसल, ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 में भारत से व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था. 1608 में उसका पहला व्यापारिक पोत सूरत पहुंचा. यहां से कंपनी ने मसाले का व्यापार शुरू कर दिया. इसके बाद लगातार भारत में अपनी कंपनी का विस्तार करते रहे. मगर, कंपनी को पहली बड़ी सफलता 22 अगस्त 1639 में हुई.
जब 1639 में अंग्रेजों ने विजयनगर शासकों के प्रतिनिधि चंद्रगिरी के राजा से कुछ ज़मीन खरीद लिया था. इसी के साथ इन्हें गोदाम व किले बनाने की अनुमति भी दे दी गई थी. इसके लगभग 1 साल बाद अंग्रेजों ने यहां पर सेंट जोर्ज किला बनवाया. बाद में जो कंपनी के औपनिवेशक गतिविधियों का गढ़ बन चुका था.
हालांकि 1746 में मद्रास और सेंट जोर्ज किले पर फ्रांसीसियों का कब्ज़ा हो गया, मगर 1749 में कंपनी ने एक संधि के तहत इसे दोबारा हासिल कर लिया था. 18 वीं शताब्दी के अंत तक अंग्रेजों ने सेंट जॉर्ज के आसपास इलाके जैसे आधुनिक तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया था.
फिर, उन्होंने यहाँ पर मद्रास प्रेसीडेंसी कायम किया. भारत में ब्रिटिशकाल के दौरान मद्रास एक आधुनिक शहर और महत्त्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में विकसित हो चुका था. बाद में 1996 में राज्य सरकार ने मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर दिया था.
शुरू हुआ रेड क्रॉस, मिला शांति का नोबेल
19वीं सदी के शुरुआती 70 साल, ये वो दौर था जब पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर युद्ध लड़े गए। 1861 में अमेरिकन सिविल वॉर की शुरुआत हो चुकी थी। इस वॉर में लाखों लोग मारे गए। इससे पहले वाटरलू, क्रीमिया और यूरोप के कई देशों में युद्ध हुए। इनमें लाखों लोगों की मौत हुई। युद्ध के दौरान और जीत के बाद भी दुश्मन देश एक-दूसरे के खिलाफ अमानवीय बर्ताव करते थे। इन बर्तावों को रोकने के लिए न तो कोई कानून था न देशों के बीच कोई संधि।
युद्ध के दौरान हो रहे इन अमानवीय अत्याचारों के गवाहों में एक एक्टिविस्ट हेनरी डुनेंट भी थे। 1859 में हेनरी ने इटली के सोलफिरेनो में हुए युद्ध में इस भयावहता को देखा था। इस युद्ध में 40 हजार सैनिक मारे गए थे, इनमें से कई तड़प-तड़पकर मर गए और उन्हें कोई मेडिकल सहायता नहीं मिली। हेनरी ने युद्ध के समय घायलों की मदद करने और अमानवीय व्यवहार रोकने के लिए देशों के बीच एक संधि की जरूरत पर जोर दिया।
22 अगस्त 1864 को 12 देशों के बीच युद्ध क्षेत्र में घायल सैनिकों की स्थिति में सुधार के लिए जिनेवा के एक होटल में एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इसे ही पहला जिनेवा कन्वेंशन कहा जाता है। 22 अगस्त 1864 को ही इंटरनेशनल रेड क्रॉस सोसायटी की आधिकारिक स्थापना हुई।
हेनरी डुनेंट स्विट्जरलैंड के थे इसलिए उनके सम्मान में रेड क्रॉस सोसायटी के झंडे को स्विट्जरलैंड के झंडे के रंग को उलटकर बनाया गया। स्विट्जरलैंड के झंडे में लाल बैकग्राउंड पर सफेद रंग का क्रॉस है। रेड क्रॉस के झंडे को सफेद बैकग्राउंड पर लाल रंग के क्रॉस से बनाया गया।
इस झंडे का इस्तेमाल युद्ध के दौरान मेडिकल सहायता देने वाले करते हैं। युद्ध मैदान में कहीं भी इस झंडे को देखकर दुश्मन देश समझ जाता है कि यहां मेडिकल कैंप है। अपनी स्थापना के बाद से ही रेड क्रॉस अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत युद्ध में घायल सैनिकों, आम लोगों और युद्धबंदियों के अधिकारों के संरक्षण की कोशिश करता है।
शांति के प्रयासों के लिए 1901 में हेनरी डुनेंट को फ्रेडरिक पैसी के साथ पहला नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। 1917 और 1944 में विश्वयुद्ध के दौरान किए गए अपने मानवीय प्रयासों की वजह से रेड क्रॉस को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
33 खनिकों को ढाई महीनों बाद बाहर निकाला गया!
22 अगस्त के दिन ही चिली की खान में फंसे मजदूरों का जिंदा होने का सबूत मिला था. इन खनिकों को लगभग ढाई महीनों बाद जिंदा बाहर निकाला गया था, जो किसी चमत्कार से कम नहीं था.
दरअसल, ये खनिक दक्षिण अमेरिका के चिली देश में तांबे और सोने की एक खान में काम कर रहे थे. 5 अगस्त 2010 को खान में एक धमाका हुआ. इसके बाद कुछ खनिक उसी खान में फंस गए.
लगभग 700 मी0 की गहराई वाली खान में उनका पहला संपर्क 22 अगस्त को हुआ.
जब बचाव दल ने उनको खोजने की कोशिश की तो कुछ पता न चला लेकिन 17 दिनों बाद उनके जिंदा होने का पता चला था. वो भी जब खादान की गहराई तक पहुँचने वाली ड्रिल के एक छोर पर खटखट की आवाज़ सुनाई पड़ी थी.
ऐसे में बचाव दल ने ड्रिल को बाहर निकाला तो उस पर लिखा था कि, "हम 33 लोग यहां ठीक हैं."
इसके बाद होल के ज़रिये फाइबर ऑप्टिक लाइन डाली गई. फिर फोन के द्वारा उनसे बातचीत किया गया और बचाव कार्य शुरू किया गया. इन फंसे खनिकों को बाहर निकलने के लिए जर्मनी जैसे देशों से हेवी ड्रिल मंगाई गई थी. बचाव कार्य को सफल बनाने के लिए लगभग 2 महीनों तक खुदाई चलती रही.
आखिरकार, 69 दिनों के बाद आधुनिक तकनीक की मदद से इनको बाहर निकाला गया. इसके लिए इंजीनियरों ने गहरी खुदाई करवाई फिर खादान में एक कैप्सूल नुमा लिफ्ट उतारी थी. इसी लिफ्ट की सहायता से इन खनिकों को बाहर निकाला गया था.दिलचस्प यह था कि, इतने दिनों बाद बाहर निकलने वाले इन खनिकों को लोग टेलीविजन पर देख रहे थे. इनसे कई तरह के सवाल भी पूछे जा रहे थे. कैसे इतने दिनों तक अंदर बिना खाए पिए रहे आदि.
गाजी मलिक ने खुसरो को हराकर तुगलक वंश की रखी नींव
22 अगस्त 1320 में गाजी मलिक ने खिलजी वंश के आखिरी शासक नसीरुद्दीन खुसरू को शिकस्त दिया और तुगलक वंश की नींव रखी थी. फिर, 8 सितम्बर 1321 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा.
बहरहाल, सुल्तान बनने से पहले गाजी मलिक मुबारक खिलजी के राज में सीमांत प्रांत का गवर्नर था. इसने अलाउद्दीन खिलजी के सम्राज्य विस्तार में अहम भूमिका निभाई थी. इसके कई युद्धों में अपनी बहादुरी और साहस का परिचय भी दिया था.
मगर, अलाउद्दीन खिलजी के बाद खिलजी वंश के सुल्तानों ने शासन काल सुचारू रूप से नहीं चला सके. फिर गाजी मलिक ने खिलजी वंश का खात्मा करते हुए तुगलकवंश का उदय किया था. गाजी मालिक सुल्तान बनने के बाद गयासुद्दीन तुगलक के नाम से मशहूर हुए.
इसने दिल्ली के पास तुगलकाबाद नगर को कायम किया था. गयासुद्दीन पहला ऐसा सुलतान था, जिसने सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण कराया. इन्होने किसानों के हित के लिए कई महत्त्वपूर्ण कार्य और भी किए थे.
दिलचस्प यह है कि गयासुद्दीन ने लगभग 29 बार मंगोलों के आक्रमण को विफल किया था, जिसमें 1305 में हुए 'अमरोहा का युद्ध' भी शामिल है. गयासुद्दीन तुगलक ने 1321-25 तक दिल्ली के सुलतान के रूप में अपना कार्यभार सभांला था. इसकी मौत के बाद इसका बेटा मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना.
जब गाँधी जी ने जलाई विदेशी वस्त्रों की होली
22 अगस्त को ही गाँधी जी ने खुद विदेशी कपड़ों को जलाकर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया था.दरअसल, गाँधी जी स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों को अपनी बात मनवाने के लिए आर्थिक और राजनीतिक जैसी उनकी अन्य संस्थाओं का बहिष्कार करने पर जोर दिया.
इन्होंने ने हर उस वस्तु को त्याग करने को कहा जो अंग्रेजों के द्वारा आयात की गई थी. फिर, उन्होंने 1920-22 के दौरान हिन्दोस्तान में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने का आह्वान किया था. इसी के साथ ही गाँधी जी स्थानीय वस्तुओं के इस्तेमाल पर खूब जोर दिया था.
वहीं 22 अगस्त 1921 में गाँधी जी ने खुद बम्बई में विदेशीं वस्त्रों को जलाकर इसका शुभारम्भ किया. इसके बाद तो पूरे भारत में इस विदेशी वस्त्रो की होलिका का असर हुआ था.गाँधी जी के द्वारा उठाया गया यह ठोस कदम अंग्रेजों के लिए बहुत नुकसानदायक सिद्ध हुआ था. देखते ही देखते देश में स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग पहले की अपेक्षा अधिक हो गया था, जो कई दृष्टि से भारतीयों के हित में था.
देश दुनिया के इतिहास में 22 अगस्त की तारीख पर दर्ज
अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
1320 : गाजी मलिक ने नसीरूद्दीन खुसरौ को पराजित किया।
1639 : ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) की स्थापना की।
1848 : अमेरिका ने न्यू मैक्सिको पर कब्जा किया।
1849 : ऑस्ट्रिया ने इटली के शहर वेनिस पर चालक रहित गुब्बारों से इतिहास का पहला हवाई हमला किया।
1921 : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
1922 : जनरल माइकल कोलिन्स की पश्चिम कॉर्क में हत्या कर दी गई।
1944 : अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र के गठन की योजनाओं को लेकर मुलाकात की।
1969: अमेरिका में समुद्री तूफान में 255 लोगों की मौत।
2007 : अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की मरम्मत के लिए दो सप्ताह के मिशन पर गया अंतरिक्ष यान एण्डेवर फ़्लोरिडा में कैनेडी स्पेस सेंटर पर सुरक्षित उतरा।
2007 : मिस्र के पुरातत्त्वविदों ने पश्चिम रेगिस्तान के सिवा क्षेत्र में लगभग 20 लाख साल पुराने मानव पद-चिह्नों का पता लगाया।
2018 : राही सरनोबत 25 मीटर पिस्टल निशानेबाजी में स्वर्णिम सफलता हासिल कर, एशियाई खेलों की निशानेबाजी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।