
इतिहास के पन्ने में कई उपलब्धियों की यादें
भारतीय इतिहास में 12 अगस्त का दिन बेहद अहम है. साल 1765 में इलाहाबाद संधि के तहत भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की शुरूआत हुई थी.यह समझौता लॉर्ड क्लाइव, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय और नज़्मुद्दौला के बीच हुआ था.
दरअसल, भारत में ब्रिटिशों के लिए रास्ता 1757 में ही खुल गया था. जब क्लाइव की सरपरस्ती में प्लासी की लड़ाई लड़ी गई थी. लेकिन 1764 में बक्सर की जीत ने ईस्ट इंडिया कंपनी के हौसले बुलंद कर दिए थे. इस जीत की छाप बादशाह शाह आलम, बंगाल के नवाब मीर कासिम और अवध के नवाब शुजाउद्दौला पर भी साफ देखी जा सकती थी.
ईस्ट इंडिया कंपनी की पैठ धीरे-धीरे मजबूत होती जा रही थी. बिना शक यह कहा जा सकता था कि इसके पीछे क्लाइव का अहम योगदान था. क्लाइव की सफलताओं को देखते हुए ही उसे 1765 ई. में दोबारा बंगाल का गवर्नर बना दिया गया.12 अगस्त 1765 को संपन्न हुई पहली संधि में कुछ शर्तें रखी गईं. इसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय से बिहार, बंगाल और ओडिसा की दीवानी हासिल हुई.
वहीं, इसके बदले इलाहाबाद के जिलों को अवध के नवाब से लेकर शाह आलम को दे दिए गए.इतना ही नहीं, कंपनी ने 26 लाख रुपए की वार्षिक पेंशन भी मुगल सम्राट को देने की रजामंदी भर ली.
भारत में ब्रिटिश शासन की जड़ें जमा लेने पर इतिहासकार अपना अपना मत रखते हैं. कोई इसे सोची समझी रणनीति का हिस्सा बताता है, तो कोई इसे भारतीय लोगों की आपस में फूट और कमजोरी का नतीजा.
आईबीएम का पहला पर्सनल कंप्यूटर लांच हुआ
आज ही के दिन 37 साल पहले टैक्नोलॉजी की दुनिया में एक बहुत बड़ी क्रांति आई थी.12 अगस्त सन 1981 को आईबीएम ने पहला पर्सनल कंप्यूटर लांच किया था. जिसका वजन तकरीबन 95 किग्रा था. इसका नाम था आईबीएम 5150.इसे लांच करने का मकसद उन लोगों को पर्सनल कंप्यूटर मुहैया कराना था, जो अपने दफ्तर, विश्वविद्यालय या घरों में इसे रखना चाहते थे. इसके बाद देखते ही देखते दो साल के भीतर ही कई दफ्तरों और घरों में आईबीएम पहुंच चुका था.
हालांकि, आईबीएम के इस कंप्यूटर को लोगों तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण था. इसमें कुछ ऐसी खूबियां होनी चाहिए थीं, जिससे कि लोग इसे निजी तौर पर इस्तेमाल करने के लिए रखते.
यह कंप्यूटर साइज में छोटा बनाया गया. कंपनी के इतिहास में ऐसा पहली बार था कि बाहरी प्रोडक्ट कंप्यूटर के अंदर लगाए गए थे. 16 केबी रैम और पहले से इंस्टॉल कुछ एप्लिकेशन्स के साथ 12 अगस्त को यह बाजार में आ चुका था.आज, हमें कंप्यूटर, लैपटॉप और टैब इत्यादि के रूप में कई सुविधाएं प्राप्त हैं.
हम इनसे एक साथ कई काम कर सखते हैं. आज की टैक्नोलॉजी इंसान को एक अलग ही मुकाम पर लेकर गई है. लेकिन जब हम पीछे मुड़कर देखेंगे तो कई हैरानी भरी कहानियां मिलती हैं.सबसे पहली बात तो यह कि कंप्यूटर की शुरुआत महज गणना करने के लिए की गई थी.
पुराने समय में जब बड़ी गणना करनी होती थी तो लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. ऐसे में कंप्यूटर का इस्तेमाल सिर्फ गणना करने वाली मशीन के रूप में हुआ. इसके बाद धीरे-धीरे यह महसूस हुआ कि इसमें गिनती करने के अलावा और भी सुविधाएं होनी चाहिए. जिसके बाद नई-नई टेक्नोलॉजी आती गईं और हमारा कंप्यूटर और स्मार्ट होता गया.
डायनासोर के जिवाश्म
12 अगस्त 1990 को अमेरिका के दक्षिणी डकोटा में जीवाश्म विज्ञानी सू हेंड्रिक्सन ने एक बड़े, पुराने और लंबे टाइरानासोरस रैक्स के ढांचे की खोज की थी. इस टी रैक्स का नाम बाद में सू के नाम पर रख दिया गया था.
दरअसल, सू अपने साथी के साथ काम पर जाने की तैयारी कर रही थीं. वह जब घर के बाहर इंतज़ार कर रही थीं, तभी उनकी नजर एक हड्डी पर पड़ी. जीवाश्म विज्ञानी होने के नाते उस हड्डी ने उनका ध्यान आकर्षित किया.
थोड़ा और आगे देखने पर उन्हें चट्टान की ओर और हड्डियां दिखाई दीं. अब हेंड्रिक्सन को यह अंदाजा हो गया था कि यह कोई मामूली चीज नहीं है. उन्होंने अपने सदस्यों के साथ इसे खोदने का फैसला किया, जो सही साबित हुआ.
काफी मेहनत करने के बाद उन्हें तकरीबन 90 फीसदी तक वह कंकाल सही हालात में मिला. कंकाल के सही सलामत मिलने पर जीवाश्म विज्ञानियों का कहना था कि इस टी रैक्स के मरने के बाद ही इसे मिट्टी और पानी ने ढक लिया. जिसकी वजह से इसके कंकाल को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.
मई 2000 में सू का ढांचा फील्ड म्यूजियम में नुमाइश के लिए रखा गया. इस टी रैक्स का ढांचा 13 फ़ीट ऊंचा और सिर से लेकर पंजे तक 42 फीट लंबा था. इस विशालकाय जीव के 58 दांत थे. सू के इस ढांचे की खोज ने कई राज से पर्दा उठाया और वैज्ञानिकों को भी डायनासोर के बारे में और जानने को मिला.
वैज्ञानिक साराभाई का जन्म
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म आज के ही दिन 1919 में हुआ था. उन्होंने भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.एक समय अमेरिका और रूस में अंतरिक्ष में सर्वश्रेष्ठ बनने की होड़ लगी हुई थी. 1957 में रूस ने दुनिया का पहला उपग्रह छोड़ा. जिसके बाद साराभाई भी चाहते थे कि भारत भी इसका हिस्सा बने.
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को खत लिखकर प्रस्ताव भेजा, जिसे पंडित नेहरू ने मान लिया. इसके बाद उस वक़्त के बड़े वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ मिलकर विक्रम साराभाई ने पहला प्रायोगिक रॉकेट छोड़ा.यह रॉकेट अमेरिका का बना हुआ था, लेकिन साराभाई चाहते थे कि भारत का बना रॉकेट छोड़ा जाए. साल 1966 में भाभा की विमान दुर्घटना में मौत हो जाने के बाद साराभाई पर जिम्मेदारियां बढ़ गईं.
साराभाई ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अहम योगदान दिया. यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने करियर की शुरुआत उनके मार्गदर्शन में की थी.विक्रम साराभाई एक बेहतरीन वैज्ञानिक होने के साथ-साथ शिक्षाविद, कला के पारखी और समाज परिवर्तक भी थे.
नासा का पहला संचार उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित हुआ
आज इंसान की दिनचर्या में मोबाइल, टेलीफोन और जीपीएस जैसी तमाम चीजों ने जगह बना ली है. इसके बिना लोग खुद को अधूरा समझते हैं.सैटेलाइट की मदद से आज हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति से आसानी से बात कर सकते हैं. लेकिन यह सब आज से 58 साल पहले आज ही के दिन 1960 में संभव हो सका था.अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने गुब्बारे के आकार का उपग्रह छोड़ा था, जोकि दुनिया का पहला संचार उपग्रह था.
इसका नाम ईको 1 था. जिसे ईको 1 ए भी कहा जाता है. यह पृथ्वी की कक्षा से 1600 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया था. इस संचार उपग्रह का मकसद साफ था. डेटा को ऊपर भेजना और फिर वापस पृथ्वी के दूसरे कोने तक पहुंचाना.हालांकि ईको 1 पहला उपग्रह नहीं था, जिसके जरिए कोई संदेश भेजा गया हो. इससे पहले 1958 में एससीओआरई (स्कोर) प्रोजेक्ट के दौरान सैटेलाइट टेस्ट के तहत राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने क्रिसमस का संदेश भेजा था.ईको 1 संचार की दुनिया में एक नई क्रांति लाया था. इसके डाटा को हासिल करने के लिए एक एंटीना लगाया गया था, जिससे वह सैटेलाइट से डेटा कैच करता था.
इस उपग्रह पर मायलार नाम की एल्युमिनियम कोटिंग की गई थी. इस उपग्रह की सहायता से कई साल तक संदेश, संगीत और चित्रों का प्रसारण हुआ, लेकिन 1968 में यह तबाह हो गया.
क्लियोपेट्रा की मौत
अपनी खूबसूरती और नाक के अलावा क्लियोपेट्रा अपनी मौत के राज के लिए भी मशहूर हैं. करीब 2150 साल पहले ईसा पूर्व 33 में आज ही दिन उनकी मौत हुई. मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा उस वक्त महज 38 साल की थीं.
सहस्राब्दियां बीतने के बाद भी क्लियोपेट्रा की मौत से पर्दा नहीं उठा है. रोमन इतिहासकारों का मानना है कि एक्टिउम की जंग में हार के बाद उस वक्त के रिवाज के हिसाब से क्लियोपेट्रा ने एक मिस्री कोबरा सांप से खुद को कटवा लिया और उनकी मौत हो गई.
कहा जाता है कि क्लियोपेट्रा ने अपने बदन पर सांप को लुभाने वाला तेल लगाया, जिसके बाद एस्प (मिस्र के जहरीले सांप) ने उसके वक्ष पर काट लिया. बताया जाता है कि स्ट्राबो नाम का व्यक्ति उस वक्त मौजूद था, जिसने बाद में इसकी गवाही दी. बाद के 10-15 सालों में कुछ और इतिहासकारों ने भी ऐसा ही लिखा.
लेकिन कुछ और लोगों का कहना है कि हार के बाद ऑगस्टस ने क्लियोपेट्रा की हत्या कर दी. इससे पहले क्लियोपेट्रा ने अपने पिता और भाइयों के साथ मिल कर मिस्र पर राज किया था.
2010 में एक जर्मन इतिहासकार क्रिस्टोफ शेफर ने सभी दावों पर सवाल उठाते हुए अलग थ्योरी दी. उनके मुताबिक क्लियोपेट्रा को जहर दिया गया, जिसे पीने से उसकी मौत हुई. इस नतीजे पर पहुंचने के लिए उन्होंने कई प्राचीन पुस्तकों का हवाला दिया है. शेफर का कहना है कि अगर एस्प किसी को काटता है, तो उसकी मौत तड़प तड़प कर होती है, एकदम से नहीं क्योंकि उसके जहर से पहले शरीर के कुछ हिस्से अपाहिज हो जाते हैं और फिर आंखों की रोशनी जाती रहती है. उसके बाद शरीर के दूसरे हिस्सों पर सांप के जहर का असर होता है.
बहरहाल, क्लियोपेट्रा की शख्सियत उसकी खूबसूरती और रूमानियत के लिए जानी जाती है, जिस पर विलियम शेक्सपीयर जैसे साहित्यकार भी फिदा थे और जिनके नाटकों में क्लियोपेट्रा कहीं न कहीं नजर आती थीं.
देश दुनिया के इतिहास में 12 अगस्त की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
1602 : मुगल बादशाह अकबर के दरबार में मंत्री अबुल फज्ल को सलीम मिर्जा की शह पर कत्ल कर दिया गया। सलीम ने बाद में जहांगीर के नाम से मुगल सल्तनत संभाली।
1765 : इलाहाबाद संधि के तहत भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में दखल की शुरुआत।
1831 : नीदरलैंड और बेल्जियम के बीच शांति समझौता।
1833 : अमेरिका के शिकागो शहर की स्थापना।
1908 : हेनरी फोर्ड की कार कंपनी ने पहला कार मॉडल बनाया।
1914 : प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने ऑस्ट्रिया-हंगरी पर हमले का ऐलान किया।
1919 : भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और भारतीय भौतिक वैज्ञानिक विक्रम साराभाई का जन्म।
1953 : यूनान के लोनियन द्वीप में भूकंप से 435 लोगों की मौत।
1960 : नासा ने अपना पहला सफल संचार उपग्रह ईको-ए प्रक्षेपित किया।
1971 : सीरिया ने जॉर्डन से राजनयिक संबंध तोड़े।
1981 : आईबीएम ने अपना पहला पर्सनल कंप्यूटर पेश किया, जिसकी कीमत 16 हजार डॉलर रखी गई।
1992 : उत्तरी अमेरिका के देशों अमेरिका, कनाडा एवं मैक्सिको में मुक्त व्यापार समझौता।
2006 : यूरोपीय प्रक्षेपण यान एरियन-5 ने जापान के संचार उपग्रह और फ़्रांस के एक सैन्य उपकरण को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया।