महात्मा गांधी ने शुरू किया असहयोग आंदोलन
अंग्रेज के शासन में बढ़ते जुल्मों के विरोध में महात्मा गांधी ने 1920 में एक अगस्त को असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ। शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। फ़रवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी। हिंसा की इस घटना के बाद गांधी जी ने यह आंदोलन तत्काल वापस ले लिया।
दरअसल अंग्रेजों ने देश में प्रेस की आजादी को बिलकुल दबा दिया था। बिना किसी जांच के जेल में लोगों को डालने की खुली छूट दे दी गई थी. महात्मा गांधी ये सब देख रहे थे.लिहाजा उन्होंने इसके यानी रॉलेक्ट एक्ट के खिलाफ अभियान चलाने के आरोप में गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया था.
इसी बीच 13 अप्रैल 1919 को पंजाब में जलियांवाला बाग हत्याकांड की गूंज सुनाई दी. इसी वक्त गांधी जी के मन में असहयोग आंदोलन का विचार आने लगा था.गांधी जी का मानना था कि अंग्रेज सरकार क्रूर है, इसलिए उसका किसी भी कीमत पर सहयोग नहीं किया जा सकता है.
आगे गांधी जी ने देश की जनता से अपील की. उन्होंने कहा कि कोई भी अंग्रेजों के नियम-कानून नहीं मानेगा. कोई अंग्रेजी कपड़े नहीं पहनेगा.सभी चीजें जो अंग्रेजों से जुड़ी हुई हैं, उनका बहिष्कार होगा. स्वेदशी को अपनाने की बात पर गांधी जी ने बहुत जोर दिया.
सबसे खास बात यह रही कि इस आंदोलन में देश के युवाओं ने बहुत सहयोग किया. इसका नतीजा यह रहा कि जगह-जगह अच्छे शिक्षण संस्थान खुल गए.
आज हम जिस काशी विद्यापीठ को देखते हैं, वह असहयोग आंदोलन का ही नतीजा है. बहरहाल असहयोग आंदोलन 12 फरवरी 1922 को समाप्त हो गया.चौरी चौरा कांड होने के बाद गांधी जी की तरफ से ये निर्णय लिया गया कि इस आंदोलन को खत्म किया जाए.
पाकिस्तान ने तेरह साल बाद अपनी राजधानी बदल डाली
राजशाही के दौर में तो राजधानियां बदलती ही रही हैं लेकिन पाकिस्तान को लोकशाही में भी अपनी राजधानी बदलनी पड़ी. 1960 में आज ही के दिन इस्लामाबाद को कराची की जगह देश की नई राजधानी बनाने का एलान किया गया.
विभाजन के बाद जब पाकिस्तान बना तो कराची को राजधानी बनाने के कई कारण थे, बड़ा होने के अलावा शहर से लगा बंदरगाह भी था जो व्यापार के लिए भी अहम था लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं था. देश की राजधानी होने के नाते कला और संस्कृति से लैस होने के अलावा राजधानी के लिए ऐसा शहर चाहिए था जहां कार्यलयों के लिए पर्याप्त इमारतें और नई इमारतों के लिए जगह भी हो.
1959 में राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के नेतृत्व में रावलपिंडी के पास के इलाके को राजधानी के लिए चुना गया, जिसका नाम इस्लामाबाद रखा गया. इस्लामाबाद को राजधानी बनाने का एक कारण यह भी था कि यह पाकिस्तान की सेना के मुख्यालय, रावलपिंडी और विवादित इलाके कश्मीर से करीब है. 1960 में ग्रीस के वास्तुकार कोस्टांटिनोस ए डोक्सिआडिस ने इस्लामाबाद का एक आधुनिक शहर के रूप में नक्शा तैयार किया. जब तक नई राजधानी तैयार नहीं हुई थी रावलपिंडी को अस्थायी राजधानी बना दिया गया. सत्तर के दशक के मध्य में कहीं जाकर इस्लामाबाद में शहर की मुख्य इमारतों और सड़कों का काम पूरा हुआ.
हिटलर ने बनाया 1936 के ओलंपिक को विवादित
ओलंपिक का इतिहास बहुत पुराना है और कई यादगार चीज़ों के साथ कई अनोखे कारनामें भी इससे जुड़े हुए हैं.
इन्हीं में से एक है, 1936 के बर्लिन (जर्मनी) में आयोजित ओलंपिक खेल, जो अपने विवादों की वजह से विश्व प्रसिद्ध है.इस ओलंपिक खेल की शुरुआत 1 अगस्त को हुई थी. इस ओलंपिक में कई ऐसी चीजें हुई थीं जिन्होंने इसे विवादित बना दिया.
इसमें से एक था ये आदेश की अश्वेतों को इस ओलंपिक से बाहर रखा जाना चाहिए! इस बात से विश्व के कई देशों में जर्मनी के प्रति आक्रोश भी पैदा हुआ था.सिर्फ इतना ही नहीं इसके बाद यहूदियों के प्रति हमेशा नफरत रखने वाले हिटलर ने ही 'केवल आर्य' का नारा दिया.
इसके बाद तमाम जर्मन खेल संघों में से और खिलाडियों में से यहूदियों को बाहर निकाल दिया गया. यह एक बहुत बड़ा फैसला था, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान इस ओलंपिक की ओर खींच दिया था. इस आदेश का पालन करते हुए जर्मन बॉक्सिंग एसोसिएशन ने पेशेवर बॉक्सर और हैवीवेट चैम्पियन एरिच सेलिग को निष्कासित कर दिया.इस तरह कई और खेलों से कई बड़े खिलाड़ियों को सिर्फ यहूदी होने की वजह से निष्कासित कर दिया गया. उस दिन के बाद से आज तक 1936 के ओलंपिक को याद किया जाता है.
एमटीवी के पहले 'म्यूजिक वीडियो' का प्रसारण
1 अगस्त 1981 को रात 12 : 01 पर संगीत की दुनिया को विश्व ख्याति मिली और एक नया अनुभव लोगों को टीवी के ज़रिये देखने को मिला.
टेलीविजन चैनल की दुनिया में एक नया आयाम शुरू हुआ, जिसमें 'एमटीवी' चैनल लांच हुआ. इस पर प्रासारित होने वाला पहला वीडियो "वीडियो किल्ड द रेडियो स्टार" द बगल्स बैंड ने प्रासारित किया था.
इस वीडियो ने एक ही दिन में बीबीसी की फेहरिस्त में टॉप 40 में जगह बना ली थी. इसके बाद दिन ब दिन एमटीवी आगे बढ़ता गया. संगीत सुनने वालों के लिए ये एक ही ऐसा चैनल था, जहां वह गाने सुन भी सकते थे और उनकी वीडियो भी देख सकते थे.
एमटीवी ने संगीत जगत में एक क्रांति ला दी थी. युवाओं में तो यह कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध हुआ. धीरे-धीरे एमटीवी ने अपने चैनल को कई देशों में लांच किया. जिस भी देश में ये गया वहां पर ये छा गया. आज कई सालों के बाद भी म्यूजिक चैनल के नाम पर सबसे पहले एमटीवी का नाम ही जुबां पर आता है.
ऐनी फ्रैंक ने लिखे अपनी डायरी में आखिरी शब्द!
जुल्म एक ऐसी याद देता है, कि हम उसे चाहते हुए भी भूल नहीं पाते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि, वो इंसान को बुरी यादें दे जाता है और ऐसी यादों को भूल पाना आसान नहीं होता.
जर्मनी के इतिहास में यहूदियों पर हुए जुल्म की यादें आज भी लोगों के दिलों में ताज़ा है. कितने ही यहूदियों ने हिटलर के शासन में दर्द देखा. उनमें से ही एक थी 15 साल की लड़की ऐनी फ्रैंक.इस छोटी सी बच्ची ने अपनी डायरी में उस समय का वह दर्द लिखा, जिसे पढ़कर आज भी लोगों की आँख भर आती हैं.
आज यानी, 1 अगस्त के दिन ही ऐनी फ्रैंक ने अपनी डायरी में अपने आखिरी शब्द लिखे थे. 1 अगस्त को ये चीजें लिखने के कुछ वक्त बाद ही ऐनी को नाजी सेना के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.
ऐनी को गिरफ्तार करने के बाद उसके माँ-बाप और भाई और बहनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. कहते हैं कि ऐनी चाहती थी कि उसकी डायरी एक किताब का रूप लें. ऐसा इसलिए ताकि, पूरी दुनिया जान सके कि आखिर कैसे हालातों से यहूदियों को गुजरना पड़ा था. गिरफ्तार होने के बाद ऐनी को जर्मन यातना शिविर ले जाया गया.
वहीं पर कुछ महीनों बाद बीमारी के कारण उसकी मौत हो गयी. एक बार जैसे ही दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ, तो ऐनी की डायरी को एक किताब का रूप दिया गया.
'The Dairy Of A Young Girl' नाम से ऐनी की डायरी को प्रकाशित किया गया. यह किताब ऐनी के को एक श्रद्धांजलि थी.
अन्य घटनाएं
1831: नए लंदन ब्रिज को यातायात के लिए खोल दिया गया।
1883: ग्रेट ब्रिटेन में अंतर्देशीय डाक सेवा शुरू।
1914: प्रथम विश्व युद्ध शुरू।
1916: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष एनी बेसेंट ने होम रूल लीग की शुरुआत की।
1920: महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
1920: विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और भारतीय राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक का निधन
1932: जानी मानी हिंदी फ़िल्म अभिनेत्री मीना कुमारी का जन्म।
1953: क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो को गिरफ्तार किया गया।
1953: देश में सभी एयरलाइंसों का हवाई निगम अधिनियम के तहत राष्ट्रीयकरण किया गया।
1957: नेशनल बुक ट्रस्ट की स्थापना।
1960: पाकिस्तान की राजधानी कराची से बदलकर इस्लामाबाद कर दिया गया।
1975: दुर्बा बनर्जी एक वाणिज्यिक यात्री विमान का संचालन करने वाली विश्व की पहली पेशेवर महिला पायलट बनीं।
1995: हब्बल दूरबीन ने शनि के एक और चन्द्रमा की खोज की।
2004: श्रीलंका ने भारत को हराकर क्रिकेट का एशिया कप जीता।
2006: जापान ने दुनिया की पहली भूकम्प पूर्व चेतावनी सेवा शुरू की।
2007: वियतनाम के हनोई शहर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गणित ओलम्पियाड में भारतीय दल के छ: सदस्यों ने तीन रजत पदक जीते।