नार्थ ग्रिड फैल, 2012 की 15 घंटे की ब्लैक आउट
इतिहास के कई अनहोनी दर्ज है, उन्हीं में एक भारत के सात राज्यों में करीब 15 घंटे तक बिजली का गुल होना. बात करें तो 2012 का 30 जुलाई को अचानक रात ढाई बजे बिजली चली गई थी। बिजली जाना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन अगर एक साथ पूरे उत्तर भारत के सात राज्यों की बिजली गुल हो जाए तो यह जरूर बड़ी बात है। दरअसल 30 जुलाई 2012 को उत्तरी ग्रिड में खराबी के कारण दिल्ली, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में एक साथ बिजली गुल होने से 36 करोड़ लोग प्रभावित हो गए थे।
बिजली ठप्प होने के कारण कई ट्रेनों को बीच रास्ते में रोकना पड़ा और राजधानी दिल्ली में मेट्रो सेवा थम गई। मेट्रो न चलने से दिल्ली की रफ्तार जैसे रूक सी गई। बिजली पर निर्भरता का असर पहली बार इतने बड़े पैमाने पर महसूस किया गया। नॉर्दर्न ग्रिड फेल होने से भारत में अमेरिका और कनाडा की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा लोगों का जन—जीवन अस्त—व्यस्त हो गया था. लोगों को अंधेरे और भयंकर गर्मी में अपने दिन गुजारने पड़े.
लगभग 15 घंटे बाद ग्रिड की मरम्मत की जा सकी, लेकिन अगले ही दिन एक बार फिर से इस ग्रिड में खराबी आ गई. इसी के साथ पूर्वी ग्रिड भी ठप हो गया. इससे 22 राज्यों की बिजली चली गई.असल में कई राज्यों में अचानक से बिजली की मांग तेज हो गई, जिसके कारण सिस्टम खराब हो गया.क्षमता से ज्यादा बिजली के इस्तेमाल के कारण ये संकट पैदा हुआ था. वहीं ऐसी स्थिति में ईस्टर्न और वेस्टर्न ग्रिड से भी बिजली की आपूर्ति की गई.
भ्रष्टाचार के विरोध में तेज हुआ अन्ना का अनशन
आज ही के दिन यानी 30 जुलाई 2012 को यूपीए-2 के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को आमरण अनशन के दूसरे दिन लोगों का काफी समर्थन मिला. आंदोलन की इस लहर में उन्होंने कहा था कि उनके देशवासी उन्हें मरने नहीं देंगे.
इस आंदोलन की शुरूआत 29 जुलाई को हुई थी. अन्ना हजारे ने जनलोकपाल विधेयक को संसद में पास कराने और 15 कथित भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बनाने के लिए इस आंदोलन को रूप दिया था. अन्ना हजारे की टीम की ओर से सरकार को सौपी गई कथित भ्रष्ट नेताओं की सूची में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी नाम शामिल था.
मजबूत लोकपाल पारित कराने के लिए आमरण अनशन पर बैठे अन्ना के समर्थन में काफी लोग जुटे. जिन्होंने हाथों में तिरंगा ले रखा था और वो 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम' जैसे नारे लगाकर लोगों का उत्साहवर्धन कर रहे थे.अन्ना के इस आंदोलन को सबसे ज्यादा युवाओं का सहयोग मिला, जिसमें कॉलेज, स्कूल के छात्र और युवा राजनेता के साथ कामकाजी महिलाएं आदि शामिल थे.
कई राजनीतिक पार्टियों ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन किसी भी तरह से दिया था. तब की विपक्षी पार्टी भाजपा ने आंदोलन को सीधे तौर पर तो समर्थन नहीं दिया, लेकिन उन्होंने आंदोलन से अपनी सहमति जरूर जता दी थी. वहीं योग गुरु बाबा रामदेव ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया था.
अन्ना हजारे को आंदोलन के समर्थन में बढ़ती भीड़ को देखकर उम्मीद थी कि सरकार को इससे सत्ता छोड़नी पड़ सकती है या मजबूत लोकपाल बिल संसद में पेश होगा.बहरहाल, उनके आंदोलन से न तो सरकार हटी, और ना हीं तथाकथित लोकपाल बिल संसद में पेश हो पाया.
याकूब को दी गई फांसी
सन 1993 में मुंबई को दहला देने वाले आतंकवादी याकूब मेमन को आज ही के दिन यानी 30 जुलाई 2015 को फांसी पर लटका दिया गया. हालांकि इससे पहली रात याकूब को बचाने के लिए पूरी कोशिश की गई थी.माहिम में रहने वाले पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट याकूब का पूरा नाम याकूब अब्दुल रजाक मेमन था. जो 2015 में फांसी पाने वाला अंतिम व्यक्ति था.
12 मार्च, 1993 को मुंबई में एक के बाद एक लगभग 12 जगहों पर हुए बम ब्लास्ट में 257 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हुए थे. मामले में लगभग 15 साल तक विशेष टाडा कोर्ट में मुकदमा चला और न्यायाधीश पीडी कोदे ने जुलाई 2007 में दोषी 12 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसमें से मेमन भी एक आरोपी था. मामले में 100 लोगों को सजा सुनाई गई थी.
मेमन ने हवाला के जरिए बम हमलों के लिए पैसा इकट्ठा किया. उसने हमलावरों को पाकिस्तान में हथियार चलाने और बम बनाने की ट्रेनिंग देने की व्यवस्था भी कराई. अप्रैल 1994 को याकूब मेमन को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था. मामले में इसका भाई टाइगर मेमन भी आरोपी है, जो अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर है.12 सितंबर, 2006 को निचली अदालत ने मेमन परिवार के चार सदस्यों को इस मामले में दोषी करार दिया था, जबकि 3 आरोपी बरी कर दिए गए.
वहीं एक नवंबर, 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने 100 दोषियों व राज्य सरकार द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई शुरू की. जिसके तहत 21 मार्च, 2013 को न्यायालय ने मेमन की मौत की सजा बरकरार रखी और 10 दोषियों की फांसी उम्रकैद में बदल दी गई.इसके बाद मेमन ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आगे दया याचिका दी, जो 2014 में खारिज कर दी गई.इसके बाद मेमन की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में दोबारा से उपचारात्मक याचिका दायर की गई, जो 21 जुलाई, 2015 को रद्द कर दी गई.
आखिरकार 29 जुलाई, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी फांसी की सजा बरकार रखी और राष्ट्रपति व महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भी उसकी दया याचिका खारिज कर दी.इसके अगले ही दिन सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर याकूब मेमन को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया
श्रीलंका पहुंची भारतीय सेना!
यह साल था 1987 का, जब श्रीलंका गृहयुद्ध की स्थिति से गुजर रहा था. इस बीच श्रीलंका के हालातों को दोबारा से स्थिर करने के मकसद से भारतीय सरकार श्रीलंका के अंदरुनी मामलों में हस्तक्षेप कर रही थी.
30 जुलाई के दिन यह हस्तक्षेप इतना बढ़ गया कि, भारत ने श्रीलंका सरकार की मदद के लिए भारतीय फौज को श्रीलंका भेज दिया.
इस दौरान 1500 भारतीय सैनिक जाफना एयरपोर्ट पर पहुंचे, जबकि अन्य सैनिकों को समुद्र के रास्ते भेजा जा रहा था. इतना ही नहीं भारतीय सरकार श्रीलंका को हवाई मदद भी दे रही थी, ताकि वह विद्रोहियों को खत्म कर सकें. श्रीलंका के विद्रोही संगठन को यह बात नागवारा थी कि भारत उनके आंतरिक युद्ध में दखल दे रहा है.उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा श्रीलंका के राष्ट्रपति जे.आर जयवर्धने के साथ एक एग्रीमेंट भी साइन किया गया.
इसके मुताबिक भारत गृहयुद्ध में श्रीलंका सरकार की मदद करेगा. इसी के चलते भारत ने आगे चलकर विद्रोहियों के विरुद्ध कई सैन्य अभियान किए.यही वजह थी कि बाद में उन्होंने राजीव गांधी की हत्या की साजिश को अंजाम दिया.
800 लोगों के साथ समुद्र में समा गया अमेरिकी जहाज
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बहुत से ऐसे मौके आए, जब इतनी बड़ी गिनती में लोगों की जान गई कि उसे याद कर आज भी लोगों के आंखे भर आती हैं.
उसी में से एक किस्सा 30 जुलाई के दिन भी बीता, जब अमेरिका का एक समुद्री जहाज 800 से अधिक लोगों को अपने साथ समुद्र की गहराई में ले डूबा.इस जहाज का नाम था, यू.एस.एस इंडियानापोलिस. इसे 2 जापानी टॉरपीडो मिसाइल ने ध्वस्त किया था. दरअसल, इंडियानापोलिस को एक गुप्त मिशन पर भेजा गया था.
इसके तहत वह हिरोशिमा पर इस्तेमाल किए गए, एटॉमिक बम के कुछ जरूरी पुरजों को अमेरिका सेना तक पहुंचाने निकला था.इस सामान की डिलीवरी करने के बाद 30 जुलाई 1945 को, जब यह जहाज वापिस लौट रहा था तो जापानी सेना ने दो टॉरपीडो मिसाइल से इस जहाज पर हमला कर दिया.महज 12 मिनटों में ही ये जहाज पूरी तरह से डूब गया. जब बचाव दल तक जहाज की कोई खबर नहीं पहुंची, तो वह भी चिंता में पड़ गए.चार दिन बाद जहाज से भेजा गया एक मेसेज सेना को मिला. इसके बाद बचाव दल तुरंत ही घटनास्थल पर पहुंचा.इस दौरान जहाज पर सवार 1196 लोगों में से केवल 316 को ही बचाया जा सका, बाकी सब डूब गए! इस घटना को अमेरिकी इतिहास की एक दुखद घटना के तौर पर याद किया जाता है.
अमेरिका में शुरु हआ चिकित्सीय कानून
30 जुलाई का यह दिन अमेरिका के बुजुर्ग नागरिकों के लिए काफी खास माना जाता है. दरअसल, वर्ष 1965 में आज ही के दिन अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन ने हेल्थ इंश्योरेंस प्रोग्राम को साइन किया था.
यह अमेरिका के बुजुर्ग नागरिकों को दी जाने वाली चिकित्सा सेवाओं का एक प्रावधान था. इसे अमेरिकी संविधान में शामिल किया गया और 30 जुलाई के दिन इस बिल को साइन करने की सेरेमनी रखी गई.
इस नए कानून की शुरुआत के तौर पर पूर्व राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन का मेडिकल कार्ड बनाकर की गई थी.
दरअसल, 1945 में, जब ट्रूमैन राष्ट्रपति थे तो उन्होंने ही नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस का सुझाव दिया था. हालांकि, उस समय विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने इसका विरोध किया था.
यह नया कानून अमेरिका में रहने वाले 65 वर्ष की आयु वाले हर व्यक्ति को अस्पताल और अन्य प्रकार की चिकित्सक सुविधाएं उपलब्ध करवाएगा.
इसे सोशल सिक्योरिटी एक्ट 1935 के तहत संशोधित किया गया था. जब 1966 में यह पूरी तरह से लागू हुआ, तो कुल 19 मिलियन लोगों को इसका हिस्सा बनाया गया.1972 में जाकर इस कानून में कुछ और प्रावधान संशोधित किए गए. इसके तहत इस सुविधा का लाभ 65 वर्ष से कम आयु के वह लोग भी ले सकते हैं, जो किसी भी तरह की अंपगता या फिर किडनी से जुड़ी समस्या से परेशान हैं.
इसके बाद साल 2003 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इस कानून में बदलाव करके इसे और सुविधाजनक बना दिया. इसके तहत इस इंश्योरेंस के अधीन आने वाले लोगों को दवाओं का फायदा भी उपलब्ध होगा.
आपको बता दें कि इस प्रावधान के अंतर्गत दी जाने वाली सभी सुविधाओं का खर्च का कुछ हिस्सा फेडरल गवर्नमेंट और कुछ लोगों द्वारा दिए जाने वाले टैक्स से लिया जाता है.
पहली कार्टून सीरिज जिसने ऑस्कर जीता
मिक्की माउस से मिली सफलता के बाद वॉल्ट डिज्नी कार्टून इंडस्ट्री पर राज कर रहे थे. इस बीच उन्होंने 30 जुलाई में 'फ्लावर एंड ट्री' नाम की एक कार्टून सीरीज लांच की.
इस कार्टून सीरीज में क्लासिकल म्यूजिक लगाया गया. इसमें नाचने-गाने वाले फूल, पेड़, मशरूम, पक्षी और अन्य चीजें मौजूद थीं.यह कार्टून दो पेड़ों के प्यार की कहानी थी, जिसमें एक तीसरा पेड़ आकर उन्हें अलग करने की कोशिश करता है. फिल्म को और आकर्षक बनाने के लिए इसे रंगीन पर्दे पर दिखाया गया.
यहां तक कि यह पहली ऐसी कार्टून मूवी बनी, जिसने एकेडमी अवार्ड यानि ऑस्कर जीता. इसके बाद वॉल्ट डिज्नी ने कई और शार्ट मूवी बनाई, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया.
तो यह थीं 30 जुलाई से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं. इस दिन और भी बहुत सी महत्वपूर्ण चीजें घटीं थी. इतिहास के नजरिए से यह दिन बहुत ही अहम है. इस दिन से जुड़ी कोई और घटना अगर आपको याद है, तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का ब्योरा
1836: अमेरिका के हवाई में अंग्रेजी भाषा का पहला अखबार प्रकाशित हुआ।
1886: देश की पहली महिला विधायक और समाज सुधारक एस. मुथुलक्ष्मी रेड्डी का जन्म।
1909: राइट बंघुओं ने सेना के लिए पहला विमान बनाया।
1930: एनबीसी रेडियो पर डेथ वैली डेज का पहला प्रसारण हुआ।
1942: जर्मन की सेना ने बेलारूस के मिंस्क में 25000 यहूदियों की हत्या की।
1957: एक्सपोर्ट रिस्क इंस्योरेंस कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड की स्थापना।
1966: इंग्लैंड ने फुटबॉल का विश्वकप पहली बार जीता।
1980: वानूआतो देश को स्वतंत्रता मिली।
2002: कनाडा ने अलकायदा सहित सात समूहों को आतंकवादी संगठन घोषित किया।
2007: चीनी वैज्ञानिकों ने झेंगझाऊ में लगभग 50 लाख साल पुरानी चट्टानों की खोज की।