भारतीयों ने पहली बार लिया मुंबई में सिनेमा का आनंद
साल 1896 के सातवें माह की सात तारीख भारतीय सिनेमा के लिए ऐतिहासिक दिन था। यह कहना गलत नहीं होगा कि इसी दिन भारतीय सिनेमा की तब नींव पड़ी जब फ्रांस के सिनेमैटोग्राफर ल्युमिरी भाइयों ने बम्बई के वाटसन होटल में छह फिल्मों का प्रदर्शन किया।
इन फिल्मों को देखने के लिए दो रुपये का टिकट रखा गया था, उस जमाने में अमीर व्यक्ति ही यह रकम खर्च कर सकता था। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे सदी का चमत्कार बताया था। इस इवेंट को दर्शकों का बहुत प्रोत्साहन मिला। इससे प्रभावित होकर जल्द ही कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (अब चेन्नई) में भी फिल्मों का प्रदर्शन होने लगा। अब आगे दादासाहेब फाल्के ने भारत की पहली फुल लेंथ फिल्म बनार्ई। इस फिल्म का नाम राजा हरिश्चंद्र था। उसे 1913 में रिलीज किया, जो एक मूक फिल्म थी। इसे ही पहली भारतीय फिल्म का दर्जा मिला। इसमें औरतों के किरदार भी पुरुषों ने निभाए थे। यह फिल्म व्यावसायिक रूप से काफी सफल हुई और आगे बनने वाली फिल्मों के लिए इसने प्रेरणास्त्रोत का काम किया।
आगे चलकर 14 मार्च 1931 के दिन आर्देशी ईरानी ने ‘आलम आरा’ नाम की पहली बोलने वाली फिल्म बनाई। इसके बाद दक्षिण भारतीय भाषाओँ में भी फ़िल्में बनना शुरू हुईं। इसी समय ‘जुमाई सास्ती’ नाम की पहली बंगाली फिल्म भी लांच हुई।
यह मान्यता है कि 1947 में विभाजन के बाद भारतीय सिनेमा का स्वर्ण युग शुरू हुआ। इस समय ‘दो बीघा जमीन’ और नागरिक जैसी संवेदनशील फ़िल्में बनीं। बाद में सत्यजीत रे ने भारतीय सिनेमा पर अमिट छाप छोड़ी।
उनकी बनाई ‘पाथर पांचाली’ फिल्म पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई। इसी के साथ-साथ भारत में कमर्शियल सिनेमा का जन्म भी हुआ। इसके अंतर्गत मदर इंडिया, प्यासा, मुगले आजम और श्री 420 जैसी सुपरहिट फ़िल्में बनीं।
भारत में सिनेमा आने की बेहद दिलचस्प कहानी पर एक नजर डालें तब पाएंगे कि पहली प्रदर्शित फिल्म को के पहले शो के लिए 200 लोगों का हुजूम मुंबई के वॉटसन होटल जा पहुंचा था। इस बारे में बताते हैं 7 जुलाई 1896 को भारतीयों ने गलती से सिनेमा (cinema) देख लिया था। दरअसल, फ्रांस में जन्मे ल्यूमियर ब्रदर्स (Lumiere brothers) ने चलती फिल्में बनाई थीं, जिन्हें वे पूरी दुनिया में दिखाना चाहते थे। इसकी शुरुआत उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से करने की ठानी थी और इसी के लिए अपने एजेंट मॉरिस सेस्टियर को ऑस्ट्रेलिया रवाना किया था। भारत के मुंबई शहर (तब, बंबई) पहुंचने पर एजेंट मॉरिस को पता चला कि ऑस्ट्रेलिया जाने वाला हवाई जहाज में कुछ खराबी आ जाने की वजह से वह अब उड़ान नहीं भर पाएगा। ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों न ये फिल्में भारत में ही प्रदर्शित कर दी जाएं। इसके लिए उन्होंने ल्यूमियर ब्रदर्स से बात की और उन्हें भी यह बात जंच गई।
एजेंट मॉरिस मुंबई के वॉटसन होटल में ठहरे थे और उन्होंने यहीं स्क्रीनिंग करवाने का फैसला किया था। इस स्क्रीनिंग के पहले दिन तकरीबन 200 लोगों ने वहां सिनेमा का आनंद लिया था। वहां 7 से 13 जुलाई तक फिल्मों को चलाया गया था और दर्शक सिनेमा नाम के उस चमत्कार को देख अभिभूत हो गए थे। उसके बाद इन फिल्मों को मुंबई के नॉवेलटी थिएटर में भी दिखाया गया था।
दुनिया का अजूबा
7 जुलाई 1896 को दिखाए गए सिनेमा को दुनिया का अजूबा कह कर प्रचारित किया गया था। 6 जुलाई 1896 को मॉरिस एक प्रचलित अखबार के ऑफिस गए थे और 20वीं सदी के इस चमत्कार का विज्ञापन दिया था। उस विज्ञापन में सिनेमा को दुनिया का अजूबा कहा गया था। विज्ञापन देखकर ही मुंबई के कोने-कोने से लोगों का हुजूम वॉटसन होटल तक पहुंच गया था। ल्यूमियर ब्रदर्स फ्रांस में जन्मे थे और इनकी साइंस में विशेष दिलचस्पी थी। इन्होंने फोटोग्राफी के नए औजार का आविष्कार किया था, जिसके बाद में सिनेमैटोग्राफ का पदार्पण हुआ था। 18 अप्रैल 1895 में दोनों भाइयों ने दुनिया भर में इसे पेटेंट करवाने के लिए अर्जी दे दी थी।
चीन ने उत्तरी वियतनाम की मदद का एलान
7 जुलाई 1955 के दिन चीन ने उत्तरी वियतनाम की मदद करने का ऐलान किया. इस समय उत्तरी वियतनाम दक्षिणी वियतनाम से युद्ध लड़ रहा था. अमेरिका और फ़्रांस दक्षिणी वियतनाम की मदद कर रहे थे. यह युद्ध शीत युद्ध का हिस्सा था.
शीत युद्ध पूंजीवादी अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ के बीच लड़ा जा रहा था. दोनों देश विश्व के ज्यादा से ज्यादा देशों में अपनी-अपनी विचारधारा वाली सरकारों की स्थापना करना चाहते थे. चीन इस समय तक साम्यवादी हो चुका था और सोवियत संघ की तरफ था.
इससे पहले उत्तरी वियतनाम के एक प्रमुख क्रांतिकारी नेता हो ची मिन्ह ने बीजिंग का दौरा किया था. उनके इस दौरे के बाद ही तत्कालीन चीनी सरकार ने उत्तरी वियतनाम को 800 मिलियन युआन की वित्तीय सहायता देने का ऐलान किया.आगे सोवियत संघ ने भी उत्तरी वियतनाम को 400 मिलियन रूबल की वित्तीय मदद दी. इसके बाद उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच युद्ध बहुत लंबा खिंचा. आगे उत्तरी वियतनाम ने दक्षिणी वियतनाम को हरा दिया और अपने यहाँ कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था लागू की.युद्ध जीतने के बाद हो ची मिन्ह यहाँ के प्रधानमंत्री बने!
शर्लोक होल्म्स के लेखक की मृत्यु
7 जुलाई 1930 के दिन ‘शर्लोक होल्म्स’ के लेखक सर ऑर्थर कोनन डोयले की मृत्यु हो गई. मृत्यु के समय वे 71 वर्ष के थे.कोनन का जन्म स्कॉटलैंड में 1859 में हुआ था. उन्होंने एडिनबर्ग विस्वविद्यालय से आयुर्विज्ञान में डिग्री हासिल की. इस विश्वविद्यालय में उन्होंने डॉक्टर जोसफ बेल के साथ शिक्षा ग्रहण की थी. कहा जाता है कि उनसे ही प्रभावित होकर डोयले ने शर्लोक होल्म्स का चरित्र गढ़ा.
खैर, डिग्री हासिल करने के बाद ऑर्थर डोयले लंदन में बस गए. यहाँ उन्होंने डॉक्टर के रूप में काम करना शुरू किया. इसके साथ ही उन्होंने लिखना भी शुरू कर दिया.
आगे 1887 में शर्लोक होल्म्स श्रृंखला की उनकी पहली कहानी ‘ ए स्टडी इन स्कारलेट’ प्रकाशित हुई. 1891 के बाद इस श्रृंखला की अनेक कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में छपना शुरू हुईं.
सर ऑर्थर कोनन की कहानियां इतनी मशहूर हुईं कि इससे प्रोत्साहित होकर उन्होंने अपना डॉक्टरी का पेशा छोड़ दिया और पूरी तरह से लिखने पर ध्यान केन्द्रित किया.आगे उनकी ये कहानियां चल निकलीं. प्रथम विश्व युद्ध में इनके बेटे की मृत्यु हो गई तो ये बुरी तरह से टूट गए. इसके बाद उन्होंने लिखना लगभग बंद ही कर दिया.
रिलीज हुई पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन की दूसरी फिल्म
7 जुलाई 2006 के दिन पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन सीरीज की दूसरी फिल्म रिलीज हुई. इस फिल्म में जोनी डेप ने मुख्य किरदार निभाया. वे इस फिल्म में समुद्री लुटेरे का किरदार निभा रहे थे.
इस सीरीज की पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर छा गई थी, इसलिए उम्मीद की जा रही थी यह फिल्म भी अच्छा प्रदर्शन करेगी. उम्मीद के मुताबिक इस फिल्म ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया.
आगे इस फिल्म को चार एकेडेमी अवार्ड के लिए नामित किया गया. इसे विजुअल इफेक्ट्स के लिए ऑस्कर भी मिला.पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन को अगर किसी चीज के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है तो वो है जोनी डेप की अदाकारी के लिए. जोनी डेप का जन्म 9 जून 1963 के दिन हुआ था. उन्होंने 21 जम्प स्ट्रीट नाम की एक टीवी सीरीज से अपना कैरियर शुरू किया था.
आगे उन्होंने एक से बढकर एक फिल्मों में काम किया. इन फिल्मों में ऐसा कोई किरदार नहीं था, जो उन्होंने ना निभाया हो. इन किरदारों के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले. उन्हें कई बार ऑस्कर पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया.
धोनी का जन्मदिन
झारखंड की राजधानी रांची के एक परिवार में आज ही के दिन यानी सात जुलाई को जन्मे महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी योग्यता और जुझारूपन से विश्व क्रिकेट में एक अनूठा मुकाम हासिल किया है। उनकी सफलताओं को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। माही के नाम से लोकप्रिय धोनी आईसीसी की तीनों विश्व प्रतियोगिताएं जीतने वाले इकलौते कप्तान हैं।
सात जुलाई के दिन हुई अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है...
1456: जोन ऑफ आर्क को उनकी मृत्यु के 25 साल बाद दोषमुक्त करार दिया गया।
1656: सिखों के आठवें गुरु हर किशन का जन्म।
1758: आधुनिक त्रावणकोर के निर्माता राजा मार्तंड वर्मा का निधन
1896: भारत में सिनेमा का प्रवेश। मुंबई के वाटसन होटल में ल्यूमिर बंधुओं ने फिल्मों का पहली बार प्रदर्शन किया।
1912: अमेरिकी खिलाड़ी जिम थोर्पे ने स्टॉकहोम ओलम्पिक में चार स्वर्ण जीतकर तहलका मचाया।
1928: स्लाइस्ड ब्रेड की पहली बार बिक्री हुई। इसे मशीन से काट कर तैयार किया गया।
1930: ब्रिटिश लेखक आर्थर कॉनन डॉयल का निधन
1948: बहुउद्देश्यीय परियोजना के लिए दामोदर घाटी निगम की स्थापना।
1978: सोलोमन द्वीप ने यूनाइटेड किंगडम से अपनी आजादी का ऐलान किया।
1985: महज 17 साल की उम्र में बोरिस बेकर ने विम्बलडन जीता
1981: क्रिकेट के सफलतम खिलाड़ियों में शुमार महेंद्र सिंह धोनी का जन्म।
1999: परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।