
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती, मौत सवालों के दायरे में
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Shyama Prasad Mukherjee) की आज जयंती है। इस मौके पर उन्हें याद करते वक्त हर बार उनकी मौत से जुड़ी सच्चाई का सवाल खड़ा हो जाता है। मौत के साथ ही कुछ और नेताओं की मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई हैं। चाहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में मृत्यु हो या फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु, इन सभी मौतों के पीछे एक सवाल आज भी खड़ा है कि 'सच्चाई क्या है?'
6 जुलाई 1901 को कोलकाता में आशुतोष मुखर्जी और जोगमाया देवी मुखर्जी के घर एक ऐसे बच्चे का जन्म होता है जो आजाद भारत में अखंड भारत की मांग करता है. एक ऐसा व्यक्तित्व जो उस दौर में जब पूरे देश में केवल कांग्रेस (Congress) ही कांग्रेस होती थी, तब उसकी विचारधारा से इतर ‘भारतीय जनसंघ’ (Bharatiya Jana Sangh) की स्थापना करता है. जिससे आज निकल कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) बनी है. यही वजह है कि बीजेपी आज भी अपनी पार्टी की विचारधारा को जनसंघ और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Shyama Prasad Mukherjee) से जोड़कर देखती है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उन लोगों में गिना जाता है जिन्होंने आजाद भारत में सबसे पहले अनुच्छेद 370 (Artical 370) के विरोध में आवाज उठाई थी उनका कहना था कि ‘एक देश में दो निशान दो विधान और दो प्रधान नहीं चल सकते.’ बीजेपी के एजेंडे में 370 के हटाए जाने का होना श्यामा प्रसाद मुखर्जी की ही देन थी.
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता के एक अच्छे परिवार में हुआ था. उनके पिता आशुतोष मुखर्जी उस वक्त बंगाल के शिक्षाविद और बड़े बुद्धिजीवी के रूप में जाने जाते थे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई कोलकाता से ही कि, फिर कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने ग्रैजुएशन किया. उसके बाद 1926 में सीनेट के सदस्य बन गए. साल 1927 में उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास की और 33 साल की उम्र में ही कोलकाता यूनिवर्सिटी के कुलपति बन गए. कोलकाता यूनिवर्सिटी में बतौर कुलपति उन्होंने 4 सालों तक काम किया. इसके बाद वह कांग्रेस के टिकट पर कोलकाता विधानसभा पहुंचे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जवाहरलाल नेहरू की सरकार में इंडस्ट्री और सप्लाई की मंत्रालय का जिम्मा भी संभालते थे, लेकिन वह नेहरू की सरकार में ज्यादा दिनों तक नहीं रहे. कुछ समय बाद ही उन्होंने नेहरू पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इन सबके बीच जो आज भी सवालों के घेरे में है वह है श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत, जो 23 जून 1953 में हुई थी.
पहली बार भारतीय को ब्रिटिश संसद में मिली जगह
किसी भारतीय को ब्रिटिश संसद में अपनी आवाज उठाने का यह पहला मौका था। एक औपनिवेशिक राष्ट्र के लिए यह मौका बहुत दुर्लभ था जब उसे शासक वर्ग के सीधे बात करने का अवसर मिला।
6 जुलाई की तारीख भारत की आजादी की लड़ाई के लिए एक अहम दिन था। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में आज के दिन तब बड़ा मोड़ आया जब ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध बुद्धिजीवी, शिक्षाविद्, समाजकर्मी कारोबारी और राजनीतिज्ञ दादा भाई नौरोजी ब्रिटेन की संसद के लिए चुने गए। किसी भारतीय को ब्रिटिश संसद में अपनी आवाज उठाने का यह पहला मौका था। एक औपनिवेशिक राष्ट्र के लिए यह मौका बहुत दुर्लभ था जब उसे शासक वर्ग के सीधे बात करने का अवसर मिला।
महान दार्शनिक पीटर सिंगर
व्यावहारिक नीतिशास्त्र के महान दार्शनिक पीटर सिंगर का जन्म आज के दिन 1945 में यानी छह जुलाई को हुआ था। व्यावहारिक नीतिशासत्र को नया आयाम देने वाले सिंगर को पशुओं के अधिकार और वैश्विक गरीबी के विश्लेषण के लिए खास तौर पर जाना जाता है। सिंगर को नारीवाद, पर्यावरणवाद और गर्भपात संबंधी अधिकारों की सूक्ष्म विवेचना के लिए भी जाना जाता है।
नाथुला खुला दो दुश्मनों के बीच समझौता हुआ
6 जुलाई 2006 में दो दुश्मनों ने सुलह करने की सोची और एक दूसरे के करीब आए.1962 में भारत चीन युद्ध की वजह बंद हुआ नाथुला पास 6 जुलाई 2006 को फिर खुला. सिक्किम के इस पास से भारत और चीन के बीच व्यापार होता था. कपड़ा, साबुन, तेल, सीमेंट और यहां तक कि स्कूटर को भी सीमा के पार टट्टू पर लादकर तिब्बत भेजी जाता था. गंगटोक से तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक 20 से लेकर 25 दिनों का सफर होता है. यह सारा सामान तिब्बत लाता था और वहां से रेशम, कच्चा ऊन, देसी शराब, कीमती पत्थर, सोने और चांदी के बर्तन लाए जाते थे.
6 जुलाई 2006 को नाथुला पास फिर खुल तो गया लेकिन इसकी पुरानी रौनक कभी नहीं लौटी. न तो दोनों देशों के रिश्ते बहुत बेहतर हुए और न ही पहले जैसा कारोबार हुआ.
भारत और चीन के बीच सीमा के अलग अलग हिस्सों में अब भी विवाद चल रहा है. क्या भारत और चीन करीब आ रहे हैं, या फिर एक दूसरे के प्रति अविश्वास के चलते चुपचाप संभावित युद्ध के लिए तैयारी भी कर रहे हैं.
नाइजीरिया में शुरू हुआ गृह युद्ध!
6 जुलाई के दिन सांप्रदायिक हिंसा के चलते नाइजीरिया में गृह युद्ध शुरू हो गया, जिसमें लाखों लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी. दरअसल 1960 में नाइजीरिया ने ब्रिटेन से आज़ादी हासिल की. इसके 6 साल बाद उत्तरी नाइजीरिया के क्षेत्र में होसा समुदाय ने इसाई इग्बोस का नरसंहार करना शुरू कर दिया. इसके बाद हजारों इग्बोस पूर्व में भागने पर मजबूर हो गए, जहां पर इग्बोस जातीय समुदाय के लोगों की तादाद ज्यादा थी.
इस नरसंहार ने इग्बोस को अलगाववादी बना दिया और फिर इन्होंने बियाफ्रा को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया, इस समस्या को सुलझाने के लिए नाइजीरिया सरकार ने कई कोशिशें की, लेकिन अलगाववादियों का विद्रोह दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था.
ऐसे में 6 जुलाई 1967 को नाइजीरिया सरकार ने बियाफ्रा पर हमला करना शुरू कर दिया. इसमें भारी तादाद में हवाई बमबारी और भी सैन्य शक्ति शामिल थी, सरकार के इस फैसले से बियाफ्रान नागरिकों को काफी जान-माल का नुकसान हुआ. हालांकि यह गृह युद्ध काफी लंबा चला.
आगे हुकूमत ने नौसेना के जरिये समुद्री नाकाबंदी कर दी, जिसके कारण बियाफ्रा में लोग भूखे मरने लगे. इसी के साथ सरकार ने अलगाववादियों के लिए चिकित्सा आपूर्ति से भी इंकार कर दिया.
इस तरह संसाधनों और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन न मिलने के कारण विद्रोही 15 जनवरी 1970 को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर हो गए.जबकि नौसेना की नाकाबंदी के दौरान बियाफ्रा में लगभग 4 से 5 हज़ार लोगों को भूख के कारण अपनी जान गवांनी पड़ी. तीन साल तक चले इस गृह युद्ध के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई.
जब सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहा !
6 जुलाई 1944 को ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो के जरिये एक संदेश देते हुए महात्मा गाँधी को बापू (राष्ट्र पिता) कहकर संबोधित किया था.नेता जी भले ही गांधी के विचारों से इत्तेफाक न रखते हों, लेकिन उनके सिद्धांतों को इन्होंने हमेशा ही सम्मान दिया. शायद यही कारण था कि इन्हें कांग्रेस में जगह नहीं दी गई थी क्योंकि ये गर्म दल के नेता थे.
हालांकि बापू के विचारों ने ही बोस को स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के लिए प्रेरित किया था. जिसके बाद सुभाषचंद्र बोस ने भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन दोनों के विचारों में भले ही मतभेद रहा हो, लेकिन कभी भी मनभेद नहीं रहा.
इसी कड़ी में जब कस्तूरबा गाँधी की मौत हुई तो उस वक़्त सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर के रंगून में थे, जब इनको ये दुःख भरा संदेश सुनाया गया, तो ये गाँधी जी के लिए चिंतित हो उठे. फिर नेताजी ने कस्तूरबा के निधन पर शोक संदेश देते हुए महात्मा गाँधी को पहली बार 'राष्ट्रपिता' कहकर पुकारा था.
भारतीय संविधान लिखे जाने से पहले बोस के द्वारा दिया गया यह सम्मान हमेशा के लिए महात्मा गाँधी के साथ जुड़ गया और भारतीयों के बीच बापू के नाम से मशहूर हो गए.
लुई पास्चर ने रेबीज टीके का किया सफल परीक्षण
6 जुलाई 1985 के दिन ही लुई पास्चर रेबीज टीके को पूर्ण रूप से खोजने और इसको इंसानों पर परीक्षण करने में सफल हुए थे.लुई पास्चर रसायनशास्त्र और जीव विज्ञान के एक महान वैज्ञानिक थे. फ़्रांस में जन्मे इस वैज्ञानिक ने अपनी इस खोज के द्वारा विषैले जंतुओं के काटे जाने पर एक प्रकार का एंटी-डोज़ को खोजा था.
इस रेबीज टीके का अधिकतर प्रयोग कुत्ते के काटने पर लोगों को दिया जाता है, जिससे कुत्ते के विष से इंसान को बचाया जा सके और इंसान को गहरे जख्म न हों.हालांकि, इस टीके का प्रयोग किसी भी विषैले जंतुओं से उत्पन्न होने वाले घाव को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं. लुई की यह खोज इंसानों के लिए फायदेमंद साबित हुई
दिलचस्प बात यह है कि लुई बचपन से दयालु किस्म के आदमी थे. इन्होंने अपने गांव के 7 से 8 लोगों को भेड़िये से काटे जाने पर घाव से तड़पते और बाद में इनको मरते अपनी आखों से देखा था.
बचपन में देखी इस दर्दनाक मौत को कभी भुला नहीं सके. शायद यही वजह थी कि इन्होंने रेबीज टीके के लिए तरह तरह के प्रयोग लगातार करते रहे. एक बार इन्होंने इस काम के लिए विषैले वायरस वाले कुत्तों को चुना था, फिर इन्होंने इन कुत्तों के वायरस को निकाल कर इससे एक टीका बनाया और इस टीके को एक स्वस्थ कुत्ते पर परीक्षण किया, जो सफल रहा.
हालांकि इस टीके का प्रयोग इंसानों पर नहीं किया गया था, लेकिन एक दिन ये अपने लैब में थे कि अचानक एक महिला अपने बच्चे को लेकर इनके लैब में पहुंची और उस बच्चे को एक पागल कुत्ते ने कांट लिया था. ऐसे में इन्होंने अपने टीके का इस्तेमाल इस बच्चे पर किया, जो कि सफल रहा.
मिस्र ने 5000 साल पुराने कब्रिस्तान को खोजा
6 जुलाई 2008 के दिन ही मिस्र के इतिहास में एक और अध्याय जुड़ गया, क्योंकि मिस्र के पुरातत्व विभाग ने दक्षिण मिस्र में एक शाही कब्रिस्तान की खोज की, जो लगभग 5000 वर्ष पुराना था.
वैसे तो मिस्र का इतिहास ही पिरामिड और ममी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इसी के साथ ही पुरातत्व विभाग हमेशा से ही अपनी पुरानी सभ्यता को जानने के लिए लगातार अपनी खोज में लगा रहता है. ठीक इसी तरह इस बार भी पुरातत्व विभाग के हाथों एक और सफल खोज हुई.दरअसल, काहिरा से लगभग 400 किमी दूर दक्षिण इलाके में स्थित एक पुराने शहर अब्योडेस में पुरातत्व विभाग काम कर रहा था. इसी दौरान इन्हें एक ऐसे शाही कब्रिस्तान का पता चला जो लगभग 5000 वर्ष पुराना था.
इसके अलावा 6 जुलाई की अहम घटनाएं इस प्रकार हैं:
1885: महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने रेबीज रोधी टीके का पहली बार इस्तेमाल किया।
1892: दादा भाई नौरोजी को ब्रिटेन की संसद में चुने जाने वाले प्रथम अश्वेत एवं भारतीय बने।
1935: तिब्बत समुदाय के 14वें और वर्तमान गुरू दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का जन्म।
1947: सोवियन संघ में एके-47 राइफलों का निर्माण होना शुरू हुआ।
1964: मलावी (पूर्व में न्यासालैंड) को ब्रिटेन से आजादी मिली।
2006: नाथूला पास को 44 साल बाद खोला गया।
1946: महान नैतिक दार्शनिक पीटर सिंगर का जन्म।
1986: भारतीय राजनीतिज्ञ बाबू जगजीवन राम का निधन।
2002: चर्चित भारतीय उद्योगपति धीरूभाई अंबानी का निधन।