वैज्ञानिकों ने हिग्स बोसॉन कण का पता लगाया
विज्ञान जगत के लिए चार जुलाई बहुत ही खास दिन तब बन गया जब वर्ष 2012 में इसी दिन वैज्ञानिकों ने हिग्स बोसॉन कण का पता लगाने में सफलता मिली। इसकी घोषणा करते हुए जीनिवा में यूरोपियन ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च यानी सर्न के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्होंने गॉड पार्टिकल, यानी 'हिग्स बोसॉन' कण के बेहद ठोस संकेत हासिल किए हैं। क्या आप जानते हैं कि इसके साथा भारत का नाम भी जुड़ा हुआ है। भारत का नाम रोशन करने वाले बंगाल के सुपुत्रों में हमें रवींद्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद का नाम हमेशा याद रहता है, लेकिन कितने लोग सत्येंद्रनाथ बोस, मेघनाद साहा या जगदीश चंद्र बोस का नाम याद रखते हैं?
भला हो हिग्स बोसोन कण का, जिसने हमें सत्येंद्रनाथ बोस के बारे में पढ़ने को तो मजबूर किया। हिग्स बोसोन को हमारे ब्रह्मांड की ईट माना गया है और इस ईट के नाम में एक हिस्सा बोसोन सत्येंद्रनाथ के नाम से जुड़ा हुआ है। ब्रह्मांड की बुनियादी इकाई के साथ किसी भारतीय का नाम जुड़ना सचमुच हम सभी के लिए गौरव की बात है।
जिनीवा स्थित सर्न प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों की सफलता में भारत की ऐतहासिक भूमिका है और इसकी कडि़यां सीधे प्रो. बोस से जुड़ी हुई हैं। यह उचित ही है कि बोस के योगदान को याद करते हुए सर्न के एक प्रवक्ता ने भारत को हिग्स बोसोन प्रोजेक्ट का ऐतिहासिक पिता बताया है।
प्रो. सत्येंद्रनाथ बोस ने 1924 में अल्बर्ट आइंस्टीन को एक पेपर भेजा था, जिसमें उन्होंने कणों के व्यवहार को समझने के लिए एक गणितीय मॉडल का उल्लेख किया था। आइंस्टीन ने खुद बोस के पेपर का अंग्रेजी से जर्मन में अनुवाद करके उसे एक प्रतिष्ठित जर्मन पत्रिका में प्रकाशित कराया था। इसी पेपर ने आगे चल कर बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट थियरी और बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स का आधार किया। इसी पेपर के आधार पर कणों (सबएटॉमिक पार्टिकल्स) की दो श्रेणियों- बोसोन और फेमिनो के व्यवहार को समझाने का गणितीय मॉडल तैयार हुआ। बीस के दशक में बोस ने अपने यूरोप प्रवास के दौरान आइंस्टीन के साथ काम करके क्वांटम मेकेनिक्स के क्षेत्र में अपने कार्य को आगे बढ़ाया। गणितीय भौतिकी में प्रो. बोस का कार्य मील का पत्थर माना जाता है। बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में पार्टिकल फिजिक्स को एक अलग विषय के रूप में नहीं देखा जाता था। तब तक बहुत कम कणों की खोज हुई थी।
न्यूट्रॉन का भी पता नहीं चला था, लेकिन प्रो. बोस के कार्य ने पार्टिकल फिजिक्स के अध्ययन का तरीका ही बदल दिया। कणों की गूढ़ताओं को समझने में उनके योगदान को देखत हुए प्रसिद्ध ब्रिटिश फिजिस्ट पल डिराक ने एक कण का नाम बोसोन रखा। हिग्स बोसोन कण की खोज के बाद पश्चिमी मीडिया का सारा फोकस ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स पर ही है, लेकिन ब्रह्मांड की गुत्थी सुलझाने की दिशा में आज जो बड़ी खोज हुई है, उसका बुनियादी आधार प्रो. बोस की थियरी ने ही तैयार किया था। विज्ञान के क्षेत्र में प्रो. बोस के विशिष्ट योगदान के बावजूद उन्हें उतना मान-सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे। उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भी हमने कुछ नहीं किया।
1986 में स्थापित किए गए एसएन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंस ने उनकी विरासत को जरूर जिंदा रखा है, लेकिन उनके कार्यो को देखते हुए इतना पर्याप्त नहीं है। प्रो. बोस 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किए गए और 1959 में राष्ट्रीय प्रोफेसर नियुक्त हुए। भारतीय वैज्ञानिकों के प्रति पश्चिमी देशों का रवैया भी हमेशा उपेक्षापूर्ण रहा है। आज पश्चिमी मीडिया और वैज्ञानिक प्रो. हिग्स को नोबेल पुरस्कार देने की मांग कर रहे हैं। प्रो. बोस के कार्य की अहमियत को देखते हुए उन्हें नोबेल से पुरस्कृत करने की पैरवी किसी ने नहीं की। इसी तरह जगदीश चंद्र बोस को भी नोबेल नहीं दिया गया, जिन्होंने मार्कोनी से पहले ही वायरलेस टेक्नोलॉजी में महत्वपूर्ण खोज की थी। नोबेल पुरस्कार से नवाजे जाने वाले एकमात्र भारतीय सीवी रमन है। कणों को परिभाषित करने के लिए गणितीय मॉडल तैयार करने वाले प्रो. बोस दूसरे विषयों के भी अच्छे-खासे ज्ञाता थे। फिजिक्स और गणित के अलावा केमिस्ट्री, बायोलॉजी. मिनरलॉजी, दर्शनशास्त्र, साहित्य और संगीत में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। प्रो. बोस ने वैज्ञानिक पेपरों का अंग्रेजी से बंगला में अनुवाद करके लोगों के बीच विज्ञान के प्रसार को भी बढ़ावा दिया।
पेश किया गया भारतीय स्वतंत्रता बिल!
भारत के लिए आज का दिन कभी न भुलाया जा सकने वाला है. 1947 में आज ही के दिन ब्रिटिश पार्लियामेंट के सामने भारतीय स्वतंत्रता बिल का प्रस्ताव रखा गया था. जिसके तहत देश का भारत और पाकिस्तान में बंटवारा हुआ.
जुलाई की 18 तारीख को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम स्वीकृत हुआ और 15 अगस्त 1947 के दिन भारत दो हिस्सों में बंट गया. इस अधिनियम में भारत और पाकिस्तान के राजनीतिक प्रतिनिधियों को अपने अपने देशों के लिए संविधान तैयार करने की छूट दी गई थी.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती प्रांत, पश्चिमी पंजाब के प्रांत, सिंध, बलूचिस्तान और पूर्वी बंगाल के क्षेत्रों को मिलाकर पाकिस्तान बना और बाकी संयुक्त प्रांत भारत में आए. लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार के द्वीप भी भारतीय अधिकार में आए.
बिल में प्रस्तावित समझौता माउंटबेटेन प्लान भी कहलाता है. माउंटबेटेन भारत के अंतिम वायसरॉय थे और स्वतंत्र भारत के गवर्नर जनरल बने. पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल.
4 जुलाई 1947 के दिन ही ब्रिटिश पार्लियामेंट के सामने भारतीय स्वतंत्रता बिल का पेश किया गया था. इसी बिल के तहत ही भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ, शायद इसीलिए यह दिन किसी भी भारतीय के लिए भुलाया नहीं जा सकता.
दरअसल यह बिल मुख्य रूप से अंग्रेजों से आज़ादी के लिए पेश किया गया था, जिसके अंदर विभिन्न शर्ते भी शामिल थी.इसी के साथ ही इस बिल के अंदर ये भी लिखा गया था, कि 15 अगस्त को इस देश को अंग्रेजों से पूरी तरह आज़ादी मिल जाएगी और उस समय लार्ड माउन्टबेटन भारत के आखिरी वायसराय थे. ब्रिटिश पार्लियामेंट के अंदर गर्मागर्मी का माहौल बना हुआ था.
लार्ड माउन्टबेटन की भी परेशानी कुछ कम नहीं हुई थी, क्योंकि इस बिल में सिर्फ भारत की आज़ादी का ज़िक्र ही नहीं शामिल था, बल्कि भारत के दो टुकड़े भी किया जाना शामिल था. आखिरकार 18 जुलाई को सभी की उलझनें खत्म हो गई.
गाँधी-नेहरु के सपनों का भारत पूरी तरह बिखर चुका था. वह इसलिए क्योंकि 18 जुलाई को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया गया. इसके तहत 15 अगस्त 1947 को हमारा भारत अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हो चुका था.बस इस ख़ुशी में दुःख की बात यह थी कि भारत को दूसरे टुकड़े के रूप में पाकिस्तान एक अलग देश बन गया.
ग्रेट ब्रिटेन से अमेरिका ने की आज़ादी की घोषणा
हर साल 4 जुलाई को ही अमेरिका में आज़ादी का जश्न मनाया जाता है. वह इसलिए क्योंकि 4 जुलाई 1776 को ही 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन के खिलाफ जंग-ए-आज़ादी की घोषणा की थी. इन उपनिवेशों में डेलवेयर, न्यूजर्सी, उत्तरी कैरोलिना आदि अमेरिकी शामिल थे.
हालांकि, जब अमेरिका की खोज हुई तो उस वक़्त यूरोपीय देश ब्रिटेन शक्तिशाली देश था. इसका उपनिवेश कई देशों के साथ अमेरिका पर भी था. साथ ही लगभग 1587 के आसपास से ही अंग्रेजों ने अमेरिका से तम्बाकू और चाय जैसी सामग्री का व्यापार करना शुरू कर दिया था.दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार अपने वित्तीय लाभ के लिए अमेरिका पर दबाव डालने लगा. ऐसी परिस्थिति में धीरे-धीरे अंग्रेजों और अमेरिकियों की बीच तनाव के हालात पैदा होने लगे.
आगे ब्रिटेन की सरकार ने वहां के स्थानीय लोगों के लिए बड़े कड़े नियम बनाए, तो अमेरिकी नागरिकों को विद्रोह के लिए विवश होना पड़ा. इसी कड़ी में विरोध का सिलसिला शुरू हो गया, जोकि 1776 से 1783 के बीच अपने चरम पर रहा.
'कोपा अमेरिका कप' चिली के नाम
4 जुलाई के दिन चिली देश की फुटबाल टीम ने पहली बार अमेरिका में होने वाला मशहूर ‘कोपा अमेरिका कप’ को जीतकर कप को अपने नाम किया था. टूर्नामेंट की शुरुआत में शायद ही किसी को यह अंदाजा रहा होगा कि इस बार चिली फुटबाल टीम इतिहास रचने जा रही है.
हालांकि, चिली के टीम ने 2015 में कोपा अमेरिका कप के दौरान 4 जुलाई को हुए फ़ाइनल मैच में अर्जेंटीना को हराया और पहली बार इस कप का ख़िताब अपने नाम किया. इस मैच में मेसी का गोल भी अर्जेंटीना के जीत में काम न आ सका.
दरअसल फ़ाइनल मैच के दौरान 120 मिनट एक पेनल्टी शूटआउट ने चिली को कोपा हासिल करने में मदद की थी. हुआ कुछ यूँ था कि अर्जेंटीना के मेसी को छोड़कर कोई अन्य खिलाड़ी ने पेनल्टी शूटआउट में गोल दागने में कामयाब नहीं रहे.
वहीं अर्जेंटीना के एक गोल के जवाब में चिली की टीम ने 4 गोल दागने में कामयाब रहे. इस तरह फ़ाइनल में चिली ने 4-1 से कोपा कप को पहली बार जीतकर इतिहास रच दिया.
हिंदी सिनेमा की ‘ब्यूटी क्वीन’ का जन्मदिन
4 जुलाई 1916 को ही एक ऐसी महिला का जन्म हुआ, जिसे बॉलीवुड में एक बेहतरीन अदाकारा के रूप में जाना जाता है. वो कोई और नहीं बल्कि अपने जमाने की मशहूर ग्लैमरस अदाकारा नसीम बानो थी.
इन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से बॉलीवुड में एक अलग ही मुकाम बनाया था, जिनके अभिनय और ख़ूबसूरती के लाखों दीवाने थे.
इन्होंने 1935 में आई फिल्म खून का खून से अपने करियर की शुरुआत की, जिसे मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी ने बनाया था और इसकी सफलता के बाद कई दिनों तक सोहराब के साथ ही फिल्मों में काम किया.
हालांकि, इसी के साथ ही इन्होंने खान बहादुर, डाईवोर्स, मीठा जहर और पुकार जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी से सबका दिल जीतने में कामयाब रहीं
दिलचस्प बात तो यह थी कि नसीम बानो की माँ अपनी बेटी को एक डाक्टर बनाना चाहती थी, लेकिन इसके बावजूद ये एक मशहूर अदाकारा के रूप में आसमान की बुलंदियों को छुआ.
इसी दौरान इन्होंने एक अमीर खानदान से ताल्लुक रखने वाले अहसान मियां से प्रेम विवाह किया था, लेकिन शादी के बाद दोनों के रिश्ते परवान न चढ़ सके और इसीलिए दोनों एक दूसरे से अलग हो गए. हालांकि, नसीम बानो के दो बच्चे भी थे, नसीम के पास ही रहे.
कुछ सालों बाद नसीम अपने बेटे सुल्तान और बेटी सायरा बानों के साथ लंदन में जाकर बस गईं. इनकी बेटी ने भी बॉलीवुड में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा और बॉलीवुड सुपरस्टार दिलीप कुमार के साथ शादी के बंधन में बंध गई थीं.
अन्य घटनाएं
1760: मीर जाफर का पुत्र मिरान पटना में गंडक नदी के किनारे मारा गया।
1776: अमेरिकी कांग्रेस ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता से घोषणा की।
1789: ईस्ट इंडिया कंपनी ने टीपू सुलतान के खिलाफ निजाम और पेशवा के साथ एक संधि की।
1810: फ्रांसिसी सेनाओं ने एम्सटर्डम पर कब्जा किया
1827: न्यूयार्क से दासत्व खत्म करने की घोषणा हुई।
1881: सिलिगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच छोटी पटरी पर 'टॉय ट्रेन' चलाई गई।
1897: आंधप्रदेश के महान स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म।
1898: भारत के प्रधानमंत्री पद पर दो बार अस्थाई रूप से रहे राजनीतिज्ञ गुलजारी लाल नंदा का सियालकोट में जन्म।
1902: भारतीय मनीषी विवेकानंद का निधन हुआ
1946: फिलीपीन को अमेरिका से स्वतंत्रता मिली।
1963: तिरंगे का डिजाइन बनाने वाले स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया का निधन।
1986: सुनील गावस्कर ने 115वां क्रिकेट टेस्ट मैच खेलकर नया रिकार्ड बनाया।
1997: नासा का पाथफाइंडर स्पेस प्रोब मंगल की सतह पर उतरा।
1999: भारत के लिएंडर पेस और महेश भूपति ने विंबलडन टेनिस चैंपियनशिप की युगल स्पर्धा में खिताब जीता।
2012: सर्न के वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होंने नए कण हिग्स बोसॉन की खोज कर ली है