
कोविड—19 केस, बढ़ती गर्मी और अफगानिस्तान में फंसे भारतीय
डिजिटल दौर में नंबरों का महत्व काफी हद तक बढ़ गया है। कुछ आंकड़े विश्लेषण के लिए होते हैं, जबकि कुछ इतिहास में दर्ज हो जाते हैं। हाल के ऐसे कुछ नंबरों की जानकारी इस प्रकार है, जो न्यूज बन चुके हैं।
कोविड—19 मामले में मौतें
4 लाख से अधिक हो गई है भारत में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 1 जुलाई को कोविड-19 से 853 लोगों की मौत के बाद, यह आंकड़ा बढ़कर चार लाख 312 तक पहुँच गया।
इसे आधार पर यह माना जा रहा है कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर पार हो चुकी है, लेकिन अब भी देश में पाँच लाख से ज़्यादा सक्रिय मामले हैं। जबकि पिछले कुछ सप्ताह में कोरोना का रिकवरी रेट लगातार बेहतर हुआ है। इसी तरह से स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, भारत में अब तक 34 करोड़ से ज़्यादा वैक्सीन डोज़ दी जा चुकी हैं।
भीषण गर्मी
50 डिग्री तक पार पहुंचने के बाद ठंडे देश कनाडा में भी भीषण गर्मी ने लोगों को बेहाल कर दिया है। विगत 25 जून से 30 जून के बीच वहां गर्मी की वजह से 200 लोगों की मौत हो गई।
ई—कॉमर्स की दुनिया
99 अरब डालर तक भारतीय बाजार में ई—कॉमर्स के अगले तीन साल तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने भी कुछ नए कदम उठाने की तैयारी की है। यह सभी जानते हैं कि ई-कॉमर्स ने भारत में ख़रीदारी के मायने बदल दिए हैं। कोविड महामारी के संकट के दौर में जब सब कुछ ठहर गया था, तब ई-कॉमर्स तेज़ी से बढ़ा। इस कामयाबी के बाद भी भारत में ई-कॉमर्स के बड़े प्लेयर अमेज़ॉन और वॉलमार्ट के स्वामित्व वाले फ़्लिपकार्ट के बीच विवाद देखने को मिले हैं। वह भी ऐसे समय में जब भारत में हर साल लाखों लोग ऑनलाइन से जुड़ रहे हैं। इन कंपनियों पर छोटे कारोबारी लगातार कुछ विक्रेताओं को देने और बाक़ियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते रहे हैं। इसके अलावा भारत के लाखों परंपरागत दुकानदार भी सालों से दावा करते आए हैं कि बिना किसी नियंत्रण वाली ई कॉमर्स वेबसाइटें उन्हें कारोबार से बाहर धकेल रही हैं।
इसे देखते हुए 21 जून को नियमों में सख़्ती लाते हुए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने ई-कॉमर्स को लेकर मौजूदा नीतियों में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। इन प्रस्तावों में एक प्रस्ताव उत्पादों की सेल बिक्री पर पाबंदी लगाने का भी है, जबकि ई-कॉमर्स की वेबसाइटों पर त्योहार के समय में ऐसे सेल काफ़ी लोकप्रिय हैं।
प्रस्तावित नए नियमों में कहा गया है, "ई-कॉमर्स संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अनुचित कारोबारी लाभ लेने के लिए अपने मंच के माध्यम से संबंधित पक्षों और संबद्ध उद्यमों से एकत्र की गई किसी भी जानकारी का उपयोग न करें. इसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनसे संबंधित पक्षों या संबंधित उद्यमों में से कोई भी विक्रेता के रूप में सूचीबद्ध नहीं हो।"
नए प्रस्तावों के ज़रिए सरकार रिटेल और ई-कॉमर्स को बाज़ार में एक बराबरी की स्थिति मुहैया कराना चाहती है।
चीन को बदलने वाले नारे
'सौ फूल खिलने दो' यह नारा उन 11 नारों में एक है, जिसने चीन को बदलने में अहम भूमिका निभाई। इस साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना की सौवीं सालगिरह मना रही है। पार्टी के सबसे बड़े नेता और चीन में कम्युनिस्ट शासन के संस्थापक रहे माओत्से तुंग ने राजनीतिक नारेबाज़ी को एक कला में तब्दील कर दिया था।
आज भी ऐसे कई नारे हैं, जिन्हें माओ के राजनीतिक वारिस बार-बार दोहराते रहे हैं। ऐसे ही 11 नारों में पहला नारा है 100 फूल खिलने दो (1956)। यह जुमलेबाज़ी चीन की रोज़मर्रा की बोलचाल का अटूट हिस्सा है। चीन में ये माना जाता है कि अगर कोई बात काफ़िए या तुकबंदी में कही जाए, तो वो बिल्कुल सटीक मालूम होती है। ऐसे वाक्यों को चीन की भाषा के चार अक्षरों के ज़रिए पूरा किया जाता है। पिछले दो हज़ार साल से चीन के नेता ऐसी तुकबंदी वाले जुमले इस्तेमाल करते आए हैं।
उल्लेखनीय है कि माओत्से तुंग अक्सर चीन के ऐसे पुराने जुमलों में हेर-फेर करके अपनी बात जनता को समझाया करते थे। 'सौ फूल खिलने दो; सौ विचारों में मुक़ाबला होने दो.' ये नारा माओ ने ईसा से 221 साल पहले ही ख़त्म हो गए चीन के 'सूबों के संघर्ष' के दौर से लिया था।
माओ ये इशारे देते रहते थे कि कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना की इजाज़त होगी. लेकिन, जब लोगों ने असल में निंदा करनी शुरू की, तो ये बेहद व्यापक और ज़हरीले मुक़ाबले में तब्दील हो गई। अधिकारियों की आलोचना करने वाले विशाल पोस्टर लगाए गए; छात्रों और अध्यापकों ने खुलकर पार्टी की नीतियों को ख़ारिज करना शुरू कर दिया। एक भाषण में माओ ने कहा कि, 'ग़ैर मार्क्सवादी विचारों के प्रति हमारी नीति क्या होनी चाहिए? जहां तक क्रांति और समाजवाद के मक़सद के विरोधियों की बात है, तो इस सवाल का जवाब बेहद आसान है। हम उन्हें बोलने की आज़ादी से महरूम कर देंगे।'
अफगानिस्तान में भारतीय नागरिक
करीब 1700 भारतीय नागरिक वहां अपने रहने और अतित्व को लेकर सांसत में हैं। ऐसा पिछले कुछ हफ़्तों से अफ़ग़ानिस्तान में ज़मीनी हालात तेजी से बदलने कारण हुआ है। तालिबान लड़ाकों ने एक के बाद एक लगातार दो दर्जन से ज़्यादा ज़िलों पर कब्जा कर लिया है। अफ़ग़ान सेना कई ज़िलों को वापस अपने कब्जे में लेने का दावा कर रही है। लेकिन इस सबके बीच ज़मीन पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। पिछले कुछ घंटों में जर्मनी और पोलैंड समेत कई मुल्कों की सेनाएं शांति के साथ अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर जा चुकी हैं।
एक बड़ा सवाल भारत के सामने भी है कि अफ़ग़ानिस्तान में आया तालिबान तो भारत का क्या होगा?
पहले ऐसा माना जा रहा था कि अमेरिकी सेना 11 सितंबर तक अफ़ग़ानिस्तान छोड़ सकती है, लेकिन ताजा रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिकी सेना भी अगले 'कुछ दिनों' में अफ़ग़ानिस्तान छोड़ सकती है।
पिछले कुछ सालों में भारत सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान में पुनर्निर्माण से जुड़ी परियोजनाओं में लगभग तीन अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। संसद से लेकर सड़क और बाँध बनाने तक कई परियोजनाओं में सैकड़ों भारतीय पेशेवर काम कर रहे हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान में लगभग 1700 भारतीय रहते हैं। भारतीय दूतावास ने अपनी 13 सूत्री सलाह में कहा है कि -
· अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद सभी भारतीय ग़ैर-ज़रूरी आवाजाही से बचें
· मुख्य शहरों से बाहर जाने से बचें, अगर जाना ज़रूरी हो तो हवाई यात्रा करें क्योंकि हाइवे सुरक्षित नहीं हैं.
· भारतीय नागरिकों पर विशेष रूप से अगवा कर लिए जाने का ख़तरा मंडरा रहा है