उफ़! ये गर्मी!!... हुई बर्दाश्त से बाहर
इस साल कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान गर्मी से भारत समेत अमेरिका और कनाडा के लोग उबल गए लगे। तापमान रिकार्ड तोड़ता हुआ 50 डिग्री तक जा पहुंचा है। इसे देखते हुए बदलते मौसम को लेकर एक बार फिर दुनिया भर के मौसम विज्ञानी और पर्यावरणविदों के कान खड़े हो गए और वे इसके कारण तलाशने में जुट गए।
भारत में करीब 50 से ज्यादा शहरों में तापमान 45 डिग्री से ऊपर चला गया है। इस बीच खबर है कि दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में मॉनसून के आने में एक हफ्ते तक की देरी हो सकती है। यानी आने वाले कई दिनों तक गर्मी से किसी भी तरह की राहत मिलने के कोई उम्मीद नहीं है। देश के जिन हिस्सों में इस समय मानसून की बारिश होनी चाहिए थी। वहां पर लू चल रही है।
राजधानी दिल्ली और आधे हिंदुस्तान में आसमान से आग बरस रही है। धरती उबल रही है, गर्म हवाओं से लोगों के हलक सूख रहे हैं, मानसून के महीने में भी लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। दिल्ली (Delhi), राजस्थान (Rajasthan), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), पंजाब (Punjab), हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है।
पिछले कुछ दिनों में कनाडा और अमेरिका के कुछ हिस्सों में पड़ रही भयानक गर्मी से सैकड़ों लोगों की जान जाने की आशंका तक जताई गई। कनाडा में गर्मी ने 10 हजार साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया , जबकि ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में तो पारा 49.44 डिग्री सेल्सियस तक रिकॉर्ड किया गया है। उत्तर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में तापमान बढ़ने से पश्चिमी कनाडा और अमेरिका के ऑरेगन व वॉशिंगटन राज्यों में गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूट गए। ऑरेगन के अधिकारियों के अनुसार इस गर्मी के कारण 30 जून को कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई। राज्य की सबसे बड़ी काउंटी मल्टनोमा में ही 45 लोग गर्मी की भेंट चढ़ गए।
इसी तरह से ब्रिटिश कोलंबिया के कोरोनर विभाग की प्रमुख के अनुसार उनके दफ्तर को कम से कम 486 लोगों की आकस्मिक जान जाने की सूचना मिली। ये मौतें बीते 25 से 30 जून के बीच ही हुई। विभाग का मानना है कि इस दौरान अचानक मौतों में आई बढ़ोत्तरी का करण कठोर और बेतहाशा बढ़ी गर्मी हो सकती है।
अमेरिका के सिएटल की तरह कनाडा के वैंकूवर और ब्रिटिश कोलंबिया में भी बहुत से घरों में एयर कंडिशन नहीं होते। वैंकूवर के पुलिस की मानें तो वहां के लोगों ने ऐसी गर्मी पहली बार देखी। इस कारण दर्जनों लोग मर गए। अमेरिका के वॉशिंगटन में अधिकारियों ने गर्मी के एक हप्ते के दौरान 20 से ज्यादा मौतों की पुष्टि की।
भीषण गर्मी क जिम्मेदार कौन?
मौसमविज्ञानियों का कहना है कि उत्तर पश्चिम में उच्च दबाव का क्षेत्र बनने से गर्मी की यह लहर पैदा हुई है, लेकिन इसे खतरनाक हद तक ले जाने के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भविष्य में ऐसे कठोर मौसमी हालात और ज्यादा देखने को मिलेंगे।
कनाडा के पर्यावरण विभाग ने चेतावनी दी है कि अब दक्षिणी अल्बर्टा और सास्काचेवान में गर्मी बढ़ सकती है। अमेरिका में वॉशिंगटन के अलावा आइडहो और मोन्टाना में भी बहुत ज्यादा गर्मी की चेतावनी बनी हुई है। एनवायर्नमेंट कनाडा का कहना है कि अल्बर्टा में इस हफ्ते लंबी, खतरनाक और ऐतिहासिक गर्मी पड़ेगी। कनाडा में इस साल गर्मी के टूटते सारे रिकॉर्ड के दौरान वहाँ हीट वेव यानी ऐसी लू चली। कई लोगों की मौत इसी लू की वजह हुई एनवायरन्मेंट कनाडा के वरिष्ठ जलवायु विज्ञानी डेविड फ़िलिप का कहना है, " इससे पहले कनाडा को ठंडे मौसम के लिए जाना जाता था। कनाडा दुनिया का दूसरा ठंडा देश है और यहाँ बर्फबारी भी जम कर होती है।" ऐसे में कनाडा में 50 डिग्री तक परे का पहुँचना सबको हैरत में डाल दिया है।
जलवायु परिवर्तन के खतरे
ब्रेकथ्रू इंस्टीट्यूट में मौसम विशेषज्ञ जेके हाउसफादर के मुताबिक जलवायु परिवर्तन नही हुआ होता, तब भी प्रशांत उत्तरपश्चिम में गर्मी तो पड़ती, लेकिन वह इतनी भयानक न होती। उन्होंने बताया के मौसम के लिए जलवायु स्टेरॉयड की तरह होता है। अगर कोई बेसबॉल या ओलंपिक खिलाड़ी स्टेरॉयड लेता है, तो कभी उनका प्रदर्शन अच्छा होगा, कभी खराब होगा। लेकिन उनके औसत प्रदर्शन में सुधार हो जाए। यही चीज जलवायु मौसम के साथ कर रही है। इसलिए ऐसे कठोर मौसमी दौर ज्यादा देखने को मिलेंगे।
वैज्ञानिक गर्मी की इस लहर की सटीक वजहों का अध्ययन करने की योजना पर काम कर रहे हैं। वॉशिंगटन यूनिवर्सटी में मौसम विज्ञानी कैरिन बम्बाको कहती हैं कि इसकी कुछ जिम्मेदारी तो जलवायु परिवर्तन की बनती ही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले समय में इस तरह की गर्मी कब पड़ेगी, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है। हाउसफादर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई भी मुश्किल है। वह कहते हैं, "दुर्भाग्य से, अगर हमारे पास कोई जादू की छड़ी होती जो हमारे कार्बन उत्सर्जन को जीरो कर देती, तो भी दुनिया दोबारा ठंडी नहीं होगी. अब हमें यह गर्मी झेलनी ही होगी. और इसलिए, हमें ऐसे कठोर मौसमों की आदत डालनी होगी।”
ऐसी रिकॉर्डतोड़ गर्मी के पीछे जानकार 'हीट डोम' को वजह बता रहे हैं, जो सदी में एक बार आता है। 'हीट डोम' गर्म हवाओं का एक पहाड़ होता है, जो बहुत तेज़ हवा की लहरों के उतार चढ़ाव से बनता है। गर्म हवा वातावरण के ऊपर की ओर फैलती है और उच्च दवाब, बादलों को डोम से दूर धकेलता है।
गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता
जिस तरह से कोई इंसान तबतक स्वस्थ बना रहता है जबतक कि उसके भीतर इम्यून सिस्टम सही होता है। यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता से इंसान बीमार होने की वजहों से बचा रहता है। ठीक उसी तरह से एक सामान्य इंसान के भी गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता होती है। यही मानव शरीर को गर्मी से बचाए रखती है। यह हमारे शरीर के बाहरी तापमान को झेलने की क्षमता को दर्शाता है।
इस संबंध में डाक्टर का कहना है कि गर्मी हो या सर्दी हमारे शरीर के अंदर का तंत्र हमेशा शरीर का तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस बनाए रखने के लिए काम करता है। दिमाग़ का पीछे का हिस्सा जिसे 'हाइपोथैलेमस' कहते हैं, वो शरीर के अंदर तापमान को रेग्यूलेट करने के लिए ज़िम्मेदार होता है। पसीना निकलना, सांस लेना (मुंह खोल कर), दिक़्क़त होने पर खुली हवादार जगह पर जाना, ये सब एक तरह से शरीर के अंदर बने वो सिस्टम है जिससे शरीर अपना तापमान नियंत्रित रखता है। अक़्सर तापमान बढ़ने पर हमारी धमनियाँ ( ब्लड वेसल्स) भी चौड़ी हो जाती हैं ताकि खून ठीक से शरीर के हर हिस्से तक पहुँच सके।
मानव शरीर 37.5 डिग्री सेल्सियस में काम करने के लिए बना है. लेकिन उससे दो-चार डिग्री ऊपर और दो-चार डिग्री नीचे तक के तापमान को एडजस्ट करने में शरीर को दिक़्क़त नहीं आती। लेकिन किसी भी तापमान पर शरीर ठीक से काम करे, ये केवल बाहर के तापमान पर निर्भर नहीं करता। इसके साथ कई और बातें हैं जिन पर ये निर्भर करता है।