
पार्टी में फूट से चिराग का राजनीतिक कद बढ़ा
लोकजनशक्ति पार्टी(लोजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जमुई से सांसद चिराग पासवान इन दिनों सुर्खियों में है। उनके निवास पर कार्यकर्ताओं और समर्थकों समेत मीडिया का करीब दो सप्ताह से तांता लगा हुआ है। समाचार पत्रों से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब मीडिया और सोशल साइट की यूट्यूब मीडिया पर चिराग पासवान की खबरों के आने का सिलसिला लिखे जाने तक जारी था। हर किसी की निगाह लगी हुई है कि दिवंगत राजनेता रामविलास पासवान की बनाई लोजपा पर अधिकार किसका होगा? चिराग का बना रहेगा या फिर उनके चाचा पशुपति कुमार पारस उसपर कब्जा करने में सफल हो जाएंगे? इसी के साथ मीडिया चिराग के अगले राजनीतिक कदम के बारे में जानने को लेकर भी उत्सुक है। कुछ तो काफी उतावले हैं। उनके द्वारा बार—बार पूछा जा रहा है कि चिराग पासवान अब क्या करने वाले हैं? दूसरी तरफ बिहार में विधायक दल के नेता तजस्वी यादव द्वारा गठबंधन के आफर दिए जा रहे हैं। इस नजरिए से बिहार की राजनीति में नीतीश-बीजेपी के ख़िलाफ़ साथ चिराग के आने से बड़े बदलाव की संभावना भी जताई जा रही है।
इस स्थिति में मीडिया लोजपा के साथ घटित घटनाओं में खबरों की लोकप्रियता के तत्व तलाशने और उसका आकलन करने में जुटी है, जबकि चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस अपने—अपने स्तर से पार्टी की कार्यकरिणी के संख्या बल को मजबूत करने में लगे हुए हैं। मीडिया यह जानने को बेताब है कि चिराग पासवान की भाजपा के साथ कितनी छनती है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के दूसरे किन दिग्गज नेताओं की निगाह में चिराग पासवान पहली पसंद हैं? किनसे क्या और कैसी बात हुई? उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा के इशारे पर क्यों लड़ा? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्होंने निशाना क्यों बनाया? इस तरह के सवालों का जवाब देते हुए चिराग हमेशा नीतियों की बात करते हैं। चाहे पार्टी की बात हो या फिर बिहार चुनाव में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ मोर्चा खोलकर अकेले चुनाव लड़ने की पहल हो, चिराग नीतिगत बयान दे रहे हैं। इस क्रम में पिता और चाचा रामचंद्र पासवान के नहीं होने की पीड़ा और चाचा पशुपति कुमार द्वारा उठाए गए पार्टी विरोधी कदम पर अफसोस जाहिर करते हैं। मीडिया यह भी जानना चाहती है कि चिराग पासवान बीते दिनों में भाजपा को लेकर कितने असहज हैं? उसके प्रति बेरुखी का रूख क्या है? चिराग ने भले ही भाजपा पर भी नाखुशी जाहिर कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने अभी बीजेपी और एनडीए से नाता तोड़ने की बात नहीं कही है, जिसे एलान के तौर पर लिया जाए।
नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोलते हैं। अपनी पार्टी में फूट डालने का जिम्मेदार सीधे—सीध उन्हें ही ठहराते हैं। उनका कहाना है कि वे नीतीश कुमार की उन नीतियों के खिलाफ हैं, जिससे बिहार के अनुसूचित जाति के बीच फूट डाली गई। चिराग कहते हैं इसका विरोध पापा रामविलास पासवान भी करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त चिराग ने नीतीश कुमार पर उनकी पार्टी को तोड़ने का भी आरोप लगाया है। वे कहते हैं ऐसा वे पहले भी 2005 में भी कर चुके हैं।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इन दिनों जिस तरह लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद चिराग पासवान को साथ आने का न्योता दे रहे हैं, उसे लेकर भी राजनीतिक गलियारे में चर्चा चिराग को लेकर ही हो रही है। कारण है पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा का प्रदर्शन और 6 प्रतिशत वोट बैंक। चिराग पासवान इस चुनाव में अकेले मैदान में थे। यहां तक कि वे इकलौते पार्टी के स्टार प्रचारक भी थे। जबकि उसके चंद दिनों पहले ही रामविलास पासवान की मृत्यु हुई थी।
रही तेजस्वी की पेशकश की बात, तो उस संदर्भ में चिराग ने मंजूर नहीं किया है। हां, उन्होंने तेजस्वी यादव को 'छोटा भाई' जरूरत बातया है। यह भी जाहिर कर चुके हैं कि उनके बीच बातीचीत होती है। दूसरी तरफ समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक तेजस्वी यादव ने कहा है कि चिराग पासवान अपने पिता राम विलास पासवान की विरासत को तभी आगे बढ़ा सकते हैं जब वो 'आरएसएस की विचारधारा के ख़िलाफ़ संघर्ष का हिस्सा बनें।'
तेजस्वी ने राम विलास पासवान को 'दलित मसीहा' बताते हुए कहा है कि उनकी पार्टी 'पासवान की जयंती के दिन राज्य के लिए उनके योगदान का स्मरण करेगी।' उल्लेखनीय है कि चिराग पासवान ने 20 जून को कार्याकारिणी की बैठक में पहले ही एलना कर चुके हैं कि वे राम विलास पासवान के जन्मदिन (5 जुलाई) पर हाजीपुर से 'आशीर्वाद यात्रा' की शुरुआत करेंगे।
तेजस्वी यादव लगातार चिराग पासवान से एनडीए छोड़ने की अपील कर रहे हैं और अब इसके लिए वो चिराग पासवान को राम विलास पासवान के आदर्शों की याद दिला रहे हैं। तेजस्वी ने कहा, "राम विलास पासवान जी सोशलिस्ट थे। वो पूरे जीवन सामाजिक न्याय के विचार में भरोसा करते रहे। अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान उन्होंने जाति वर्चस्व, ग़रीबी और असमानता के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।"
चिराग पासवान ख़ुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'हनुमान' बताते रहे हैं। अपनी पार्टी में पड़ी दरार के बाद चिराग ने कहा था कि उन्हें भरोसा है कि इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी चुप नहीं रहेंगे, लेकिन अब तक प्रधानमंत्री मोदी या बीजेपी के किसी बड़े नेता ने ऐसा कुछ नहीं कहा है, जिससे चिराग को लगे कि बीजेपी का समर्थन उनके साथ हैं।
इसे लेकर तेजस्वी यादव का कहना है कि बीजेपी दूसरी पार्टियों को बड़े वादे करके साथ जोड़ती है, लेकिन जब लगता है कि वो काम के नहीं रहे हैं, तो दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक देती है। तेजस्वी ने लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस गुट पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब चिराग को पार्टी का नेता चुना गया था तब उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया।
लोक जनशक्ति पार्टी का गठन 28 नवंबर 2000 को राम विलास पासवान ने किया था। पासवान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री थे। उन्होंने पार्टी की कमान अपने बेटे चिराग पासवान को सौंपी थी। उनके निधन के बाद भी लोक जनशक्ति पार्टी एनडीए का हिस्सा बनी रही, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी एनडीए के साथ चुनाव में नहीं उतरी। चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने भाजपा का तो समर्थन किया, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला।
बीते दिनों लोक जनशक्ति पार्टी के पांच सांसदों ने पशुपति कुमार पारस की अगुवाई में चिराग के नेतृत्व के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। इन सांसदों ने चिराग के चाचा पशुपति पारस को नेता चुन लिया है। लोकसभा में भी उन्हें पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता भी मिल गई। चिराग और पशुपति के बीच पार्टी पर अधिकार को लेकर भी संघर्ष चल रहा है। चिराग पार्टी पर अपना अधिकार बता रहे हैं तो पशुपति पारस का दावा है कि अब पार्टी के अध्यक्ष वो हैं। ये मामला चुनाव आयोग के सामने है।
बीबीसी को चिराग ने कहा, "मेरी पार्टी के मुट्ठी भर लोग मेरे पिता जी के विचारों के साथ समझौता करके उन लोगों के साथ जाकर खड़े हो गए हैं जो मेरे पिता की राजनीतिक हत्या कराना चाहते थे. मैं नीतीश कुमार की बात कर रहा हूं। पहली बार हमारी पार्टी में टूट नहीं कराई है. 2005 में हमारे 29 विधायक जीतकर आए थे, उन्हें तोड़ा। नवंबर, 2005 में चुनाव हुआ, उसमें तोड़ा। गाहे—बगाहे एमएलसी को तोड़ा। इस बार एक विधायक जीत कर आए, उन्हें भी तोड़ लिया।"
सिर्फ़ चिराग पासवान ही नहीं नीतीश कुमार की सरकार में उप मुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी यादव भी साल 2015 में बने आरजेडी और जेडीयू का 'महागठबंधन' टूटने के बाद से उन पर लगातार निशाना साधते रहे हैं।
लोक जनशक्ति पार्टी में आई दरार को लेकर तेजस्वी ने भी नीतीश कुमार की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे।
बहरहाल, चिराग ने अभी भविष्य की योजना का पूरा इशारा तो नहीं किया है, लेकिन संभावनाओं के दरवाजे खुले ज़रूर रखे हैं। कुल मिलाकर देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा लोजपा में ही नहीं, बल्कि दूसरों की नजर में भी चिराग का कद बढ़ा है।
प्रस्तुति: शंभु सुमन