
जब नेताजी ने फारवर्ड ब्लॉक का गठन
कर लोकतंत्र क्रांति का बिगुल फूंक दिया
इतिहास में आज की तारीख में जो घटनाएं दर्ज हैं उनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना जैसी महत्वपूर्ण घटना भी है। साल 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 22 जून के ही दिन ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन के बाद नेताजी ने 1939 में कांग्रेस को जनता की स्वतंत्र होने की इच्छा, लोकतंत्र और क्रांति का प्रतीक बनाने के लिए कांग्रेस के भीतर ही फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की थी। सन् 1939 के प्रारंभ में यह स्पष्ट हो गया था कि हिटलर के यूरोप विजय के स्वप्न के कारण विश्व महायुद्ध की सम्भावना निकट आती जा रही है। भारत में महात्मा गांधी तथा कांग्रेस कार्यसमिति के अनेक सदस्यों के विरोध के बावजूद सुभाषचंद्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो गए। इसपर कार्यसमिति के सभी सदस्यों ने, जिनमें जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल भी थे, कांग्रेस कार्यसमिति से इस्तीफा दे दिया।

त्रिपुरा अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषाण में सुभाषचंद्र ने बड़ी दूरदर्शिता के साथ घोषित किया कि यूरोप में शीघ्र ही साम्राज्यवादी युद्ध आरम्भ हो जाएगा और इस अवसर पर अंग्रेजों को छह मास का अल्टिमेटम दे देना चाहिए। उनके इस प्रस्ताव का वर्किंग कमेटी के पूर्वकालील सदस्यों ने विरोध किया। सुभाष बाबू ने अनुभव किया कि प्रतिकूल परिस्थियों के कारण उनका कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर रहना बेमतलब है। अतएव उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस को जनता की स्वतंत्र होने की इच्छा, लोकतंत्र और क्रांति का प्रतीक बनाने के लिए उन्होंने मई, 1939 में कांग्रेस के भीतर फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की घोषणा की। सुभाष बाबू ने बतलाया कि फारवर्ड ब्लाक की स्थापना, एक ऐतिहासिक आवश्यकता - सभी साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियों के संगठन और अनिवार्य संघर्ष-की पूर्त्ति के लिए हुई है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संकट में ग्रस्त हो जाने के पूर्व कांग्रेस का आंतरिक संकट समाप्त हो जाना चाहिए। वामपंथियों का संगठन करना, कांग्रेस में बहुमत प्राप्त करना और राष्ट्रीय आंदोलन को पुनर्जीवित करना - फारवर्ड ब्लाक के संमुख ये तीन प्रश्न थे। फारवर्ड ब्लाक के प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन (मुंबई) में पूर्ण स्वतंत्रता और तत्पश्चात् समाजवादी राज्य की स्थापना का उद्देश्य स्वीकार किया गया। ब्रिटिश भारत और देशी राज्यों में साम्राज्यविरोधी संघर्ष छेड़ने के लिए देशव्यापी स्तर पर तैयारियाँ करने का प्रस्ताव भी स्वीकृत हुआ, जिससे कि विश्व की परिस्थितियों और संकट का लाभ उठाकर अंग्रेजों से सत्ता छीन ली जाए।

आज 'मुगैंबो' के प्रशंसक भी खुश होंगे
डॉन कभी रांग नहीं होता...इस संवाद से बहुत ज्यादा दम उस आवाज में था जिस पर टिका चेहरा नजर आते ही हॉल में सन्नाटा छा जाता. दर्शकों को डराने के लिए तो मोगेंबो का खुश होना भी काफी था.
अमरीश पुरी. 22 जून 1932 को अमरीश पुरी का जन्म पंजाब के नवांशहर में हुआ. उनके बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी भी फिल्म उद्योग में थे. अमरीश पुरी भी इसी काम में आना चाहते थे लेकिन वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए. एम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन में काम करने के साथ उन्होंने पृथ्वी थिएटर में काम करना शुरू किया. सत्यदेव दुबे के नाटकों ने उन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई और 1979 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
बस इसके बाद विज्ञापनों और फिल्मों ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए. 40 की उम्र में उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया. हिन्दी की मिस्टर इंडिया जैसी फिल्मों से वो विलेन के तौर पर फेमस हो गए. अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में उन्होंने गांधी फिल्म में खान की भूमिका निभाई थी. इसके अलावा स्टीवन स्पीलबर्ग की इंडियाना जोन्स और टेम्पल ऑफ डूम ने भी उन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई. भारी आवाज और फेल्ट हैट वाले अमरीश पुरी की खलनायकी लंबे समय तक हिंदी फिल्मों में लोगों का गुस्सा और नफरत बटोरती रही हैं. 12 जनवरी 2005 को ब्रेन हेमरेज के कारण उनकी मौत हो गई.
फूटबॉल के मैदान में हार के राष्ट्रीय अपमान का बदला
आज ही के दिन 1986 में फुटबॉल के मैदान पर 'भगवान' उतर आए. उन्होंने माराडोना की मदद की और इंग्लैंड को झल्ला कर रख दिया.
अर्जेंटीना के करीब फाल्कलैंड्स द्वीपों पर अब भी ब्रिटेन का नियंत्रण है. अर्जेंटीना इन पर अपना अधिकार जताता है और ब्रिटेन को कब्जावर कहता है. अप्रैल 1982 में ये विवाद गर्मा उठा. अर्जेंटीना की सेना फाल्कलैंड्स की तरफ बढ़ी. इसके जवाब में ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने 110 जहाज और 28,000 सैनिक भेज दिए. दो महीने तक चली लड़ाई में 907 लोग मारे गए. इनमें ज्यादातर अर्जेंटीना के सैनिक थे. 14 जून को अर्जेंटीना को आत्मसमर्पण करना पड़ा.
अर्जेंटीना को हार की टीस चुभती रही. चार साल बाद 22 जून 1986 को फुटबॉल वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना का सामना इंग्लैंड से हुआ. सेमीफाइनल के उस मैच में दोनों टीमों के लिए हार का मतलब राष्ट्रीय अपमान था. पहला गोल अर्जेंटीना का स्टार डियेगो माराडोना ने किया. इस गोल पर बहुत विवाद हुआ. असल में मैराडोना हेडर मारने के लिए उछले लेकिन उन्होंने गेंद को हाथ से गोल में डाल दिया. यह सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि रेफरी को भनक तक नहीं लगी. इसे गोल करार दिया गया. इंग्लैंड के खिलाड़ी चीखते रह गए, लेकिन रेफरी का नतीजा नहीं बदला. पांच मिनट बाद मैराडोना ने एक और गोल दागा. इसे फुटबॉल इतिहास के सबसे अच्छे गोलों में गिना जाता है. इंग्लैंड एक ही गोल उतार सका और 1-2 से हारकर बाहर हो गया.
मैच के बाद जब डियेगो माराडोना से हाथ से किये गोल के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुआ कहा, "ये थोड़ा सा मैराडोना के सिर की मदद से और थोड़ा से भगवान के हाथ की मदद से" हुआ. इसके बाद पश्चिम जर्मनी को हराकर अर्जेंटीना ने वर्ल्ड कप जीता. अर्जेंटीना के विश्व विजेता बनने से इंग्लैंड और झल्लाया. दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध 1989 तक टूटे रहे.
2005 में मैराडोना ने पहली बार माना कि उन्होंने हाथ की मदद से गोल किया. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने फाल्कलैंड्स के मसले पर इंग्लैंड पर तंज कसते हुए कहा, "जो कोई चोर के यहां डकैती करता है उसे 100 साल की माफी मिल जाती है."अर्जेंटीना आज भी इंग्लैंड से हारना पसंद नहीं करता. फुटबॉल के मैदान पर कुछ ऐसी ही कट्टर प्रतिस्पर्धा जर्मनी और इंग्लैंड के बीच भी है.
विश्व वर्षावन दिवस के बारे में भी जानें
विश्व वर्षावन दिवस पहली बार 2017 में रेनफॉरेस्ट पार्टनरशिप द्वारा बनाया गया था। वे वर्षावन वातावरण में रहने वाले स्वदेशी लोगों के साथ काम करते हैं और स्थानीय समुदायों के साथ स्वस्थ वर्षावनों को बहाल करने और पुनर्जीवित करने में मदद करने के लिए परियोजनाओं को लॉन्च करते हैं। यह दिन वर्षावन के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के बारे में है और यह हमारे लिए क्या करता है। इस दिन एक साथ आकर, हम सभी वर्षावन की रक्षा के लिए सकारात्मक और आशावादी कार्रवाई कर सकते हैं और इसके जीवन काल को संरक्षित कर सकते हैं क्योंकि इसने हजारों वर्षों से हमारे अपने जीवन को बनाए रखा है।
अन्य घटनाएं
1555: मुगल सम्राट हुमायूं ने अपने पुत्र अकबर को अपना वारिस घोषित किया।
1897: चापेकर भाइयों, दामोदर और बालकृष्ण ने पुणे में एक ब्रिटिश अधिकारी को गोली मार दी।
1906: स्वीडन ने राष्ट्रीय ध्वज अपनाया।
1911: किंग जॉर्ज पंचम इंग्लैंड के राजा बने।
1939: नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की।
1941: द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने सोवियत रूस पर आक्रमण किया।
1944: अमेरिका ने सेवानिवृत सैनिकों की मदद के लिए कानून बनाया।
1981: अमेरिकी संगीतज्ञ जॉन लेनन के हत्यारे ने अपना अपराध कबूल किया।
1986: अर्जेंटीना के फुटबाल खिलाड़ी दिएगो माराडोना ने यादगार 'हैंड ऑफ गॉड' गोल किया। इंग्लैंड के खिलाफ विश्व कप क्वार्टरफाइनल मुकाबले में गेंद माराडोना के हाथ से लगकर गोल में चली गई, जबकि रेफरी ने समझा कि गेंद उनके सिर से लगी है। लिहाजा उसने गोल दे दिया। इस मैच में जीत दर्ज करके अर्जेंटीना अंतत: टूर्नामेंट जीतने में कामयाब रहा।
2009: 21वीं सदी का सबसे लंबा सूर्यग्रहण भारत में दिखाई दिया।