
पुलित्जर पुरस्कार भारतीय मूल की
अमेरिकी पत्रकार मेघा राजगोपालन को
कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा 105 वें पुलित्जर पुरस्कारों का एलान 12 जून 2021 को किया गया। उसमें द अटलांटिक वेबसाइट के पत्रकार एड योंग को कोरोना महामारी के बारे में नई जानकारियां और सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग (एक्सप्लेनट्री रिपोर्टिंग) का पुरस्कार दिया गया है। कुल 22 श्रेणियों में दिए जाने वाले पुरस्कार को पाने वालों में भारतीय मूल की अमेरिकी पत्रकार मेघा राजगोपालन भी शामिल हैं। उन्हें ये पुरस्कार चीन में उईगुर मुसलमानों को डिटेंशन कैंपों में दी जा रहीं यातनाओं के बारे में पता कर। चीन का झूठ पकड़ने में मदद की थी।
मेघा राजगोपालन ने दुनिया के सामने चीन के झूठ की पोल खोल कर दी। मेघा ने अपनी रिपोर्ट्स में चीन के डिटेंशन कैंपों में लोगों को दी जा रही यातना की सच्चाई को उजागर किया। उन्होंने सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण कर बताया कि चीन ने कैसे लाखों की संख्या में उइगुर मुसलमानों को कैद करके रखा हुआ है।
मेघा राजगोपालन लंदन में रहती है, इससे पहले वो चीन, थाईलैंड और अफगानिस्तान जैसे 23 से अधिक देशों में पत्रकार के रूप में रिपोर्टिंग कर चुकी है। वर्तमान में बजफीड में वो एक टेक रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हैं। वह पहले एक राजनीतिक संवाददाता के रूप में रॉयटर्स से जुड़ी थीं।
पुलित्जर ने उन्हें “चीन में उइगुर मुसलमानों के लिए एक नजरबंदी शिविर खोजने और जाने वाली पहली पत्रकार” के रूप में मान्यता दी, जिसके लिए उन्हें 2018 में मानवाधिकार प्रेस पुरस्कार मिल चुका है। उन्होंने फेसबुक और श्रीलंका में हिंसा के बीच संबंधों को उजागर करने के लिए 2019 में मिरर अवार्ड भी जीता था।
अपनी जीत पर मेघा ने कहा, “मैं अपनी रिपोर्टिंग टीम की आभारी हूं। जब मैंने पहली बार अपने एडिटर्स को प्रस्ताव दिया कि हम एक आर्किटेक्ट और एक प्रोग्रामर के साथ चीन के बारे में एक जांच पर काम करते हैं, तो मैंने सोचा कि वे मुझे कहेंगे कि मैं पागल हूं लेकिन इसके बजाय उन्होंने इसके लिए जाने के लिए कहा।”
इंटरनेट मीडिया बजफीड न्यूज के अनुसार वर्ष 2017 में मेघा ने पहली बार एक हिरासत केंद्र का तब दौरा किया था, जब चीन ने इस तरह की जगह होने से इन्कार किया था। वहां की सरकार ने मेघा को चुप कराने की कोशिश की थी। उनका वीजा रद कर दिया था और देश से निकाल दिया था। हालांकि लंदन से काम करने वाली मेघा ने चुप रहने से इन्कार कर दिया और चीन का सच दुनिया के सामने लाने के लिए काम किया। पुरस्कार जीतने के बाद मेघा ने कहा, 'मुझे पुरस्कार जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी। मैं अपने सहयोगियों के प्रति आभारी हूं।'मेघा ने इंटरनेशनल रिपोर्टिग श्रेणी में यह पुरस्कार जीता है। उन्होंने दो सहयोगियों के साथ मिलकर सैटेलाइट तस्वीरों के जरिये यह उजागर किया कि चीन ने किस तरह लाखों उइगरों को हिरासत केंद्रों में रखा है। मेघा ने इस पुरस्कार को बजफीड न्यूज के दो सहकर्मियों के साथ साझा किया है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला यह अहम पुरस्कार है। साल 2021 के पुरस्कारों को अप्रैल में घोषित किया जाना था, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसकी घोषणा समय पर नहीं हो पाई। । व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग के लिए यह पुरस्कार अटलांटिक बेवसाइट के एड योंग और रॉयटर की टीम एंड्रयू चुंग, लॉरेंस हर्ले, एंड्रिया जानुटा, जैमी डोडेल और जैकी बॉट्स को दिया गया।
द अटलांटिक वेबसाइट के पत्रकार एड योंग को कोरोना महामारी के बारे में नई जानकारियां और सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग (एक्सप्लेनट्री रिपोर्टिंग) का पुरस्कार दिया गया है। इसके अलावा यह पुरस्कार रॉयटर की टीम एंड्रयू चुंग, लॉरेंस हर्ले, एंड्रिया जानुटा, जैमी डोडेल और जैकी बॉट्स को एक विस्तृत रिपोर्ट के लिए दिया गया। जिसमें इन सभी पत्रकारों ने अमेरिकी संघीय अदालत के मामलों का एक विस्तृत विश्लेषण किया। जिसमें आरोपी पर अत्यधिक बल प्रयोग के बावजूद पुलिस वाले जवाब देने से बच जाते हैं। अदालत के अनुसार अगर पुलिस विवश होकर अत्यधिक बल का प्रयोग करती है तो ऐसे मामलों पर उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी। अदालत के इस कानून से पुलिस को जवाबदेह ठहराना कठिन हो गया है। लेकिन रायटर्स की टीम ने अपने रिपोर्ट के माध्यम से यह बताया कि पुलिस वाले किस तरह आरोपी के साथ ज्यादतियां करने के बावजूद सजा पाने से बच जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टिंग में भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन, एलिसन किलिंग और बजफीड न्यूज, न्यूयॉर्क के क्रिस्टो बुशचेक को पुरस्कार दिया गया। पिछले साल अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड का मामला पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बना रहा। श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड की निर्मम हत्या का वीडियो बनाने वाली 18 साल की डारनेला फ्रेजियर को विशेष सम्मान दिया गया।
मेघा के अलावा भारतीय मूल के नील बेदी को भी इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। भारतीय मूल के नील बेदी ने अमेरिका के फ्लोरिडा में अधिकारियों की उस पहल पर खोजी रिपोर्टिग की थी, जिसमें उन लोगों की पहचान के लिए कंप्यूटर आधारित माडल का इस्तेमाल किया गया था, जिन पर भावी समय में कोई अपराध करने का संदेह था। बेदी टंपा बे टाइम्स के खोजी पत्रकार हैं। बेदी के साथ कैथलीन मैकग्रोरी ने स्थानीय श्रेणी में यह पुरस्कार जीता है।
कोरोना महामारी और अमेरिकी पुलिस में नस्ली असमानता पर अपनी रिपोर्टिग के लिए रायटर, न्यूयार्क टाइम्स, द अटलांटिक और द मिनियापोलिस स्टार ट्रिब्यून को भी पुलित्जर पुरस्कार प्रदान किया गया। इन पुरस्कार का एलान शुक्रवार को किया गया। अमेरिका में गत वर्ष मई में अश्वेत व्यक्ति जार्ज फ्लायड की पुलिस के हाथों हत्या की कवरेज के लिए द मिनियापोलिस स्टार ट्रिब्यून को यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
पुलित्जर पुरस्कार का इतिहास
पत्रकारिता के क्षेत्र में यह अमेरिका का सर्वोच्च पुरस्कार है। जिसकी शुरूआत 1917 में जोसेफ पुलित्जर के नाम पर हुई है। इसे न्यूयॉर्क शहर के कोलंबिया विश्वविघालय द्वारा संचालित किया जाता है। पुलित्जर पुरस्कार को 22 श्रेणियों में दिया जाता है। तथा प्रत्येक विजेता को 15000 अमेरिकी डॉलर की नगद धनराशि प्रदान किया जाता है। सार्वजनिक सेवा श्रेणी में विजेता को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया जाता है।