
अभिनेता, राजनेता और समाजसेवक
सुनील दत्त का जन्म दिन
वह छह जून का ही दिन था, जब मुगलों के साम्राज्यवादी सपनों को हकीकत में बदलने से रोकने के लिए भारत के महान सपूत छत्रपति शिवाजी का रायगढ़ के किले में राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति की उपाधि से नवाजा गया। इसी दिन देश के रेलवे के इतिहास की एक दुखद घटना हुई थी। बागमती नदी में गिर जाने से करीब 800 लोगों की मौत हो गई थी।
बातें—यादें सुनील दत्त की
हिंदी सिनेमा के अभिनेता, फिल्मकार, राजनेता और समाजसेवक सुनील दत्त हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बहुत सारी यादों को कभी नहीं भूला जा सकता है।
फिल्मों में आने से पहले सुनील दत्त मुंबई रेडियो में बतौर प्रस्तुतकर्ता काम करते थे. इस बीच उनकी मुलाकात अक्सर फिल्मी हस्तियों से साक्षात्कार के लिए हो जाया करती थी. ऐसी ही एक मुलाकात के बाद उन्हें रमेश सहगल ने अपनी फिल्म रेलवे प्लेटफॉर्म के लिए हीरो के किरदार का प्रस्ताव दिया और सुनील दत्त बॉलीवुड पहुंच गए. उन्होंने बीआर चोपड़ा के साथ लगातार सात फिल्में कीं. लेकिन उनकी पहली बड़ी पहचान महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया(1957) में बिरजू के किरदार से बनीं. इस फिल्म में उनकी मां का किरदार नरगिस ने निभाया था, जिन्हें बाद में सुनील दत्त ने अपनी जीवन संगिनी बनाया. गुमराह, वक्त, हमराज, साधना और सुजाता उनकी कुछ और लोकप्रिय फिल्में रही हैं. फिल्म पड़ोसन में भी उनके काम को काफी सराहा गया. हालांकि जिद्दी और अक्खड़ बिरजू के पात्र के बाद निर्देशकों को लगने लगा कि प्रेमी की भूमिका में वह अच्छे नहीं लगेंगे.
सत्तर के दशक में उन्होंने फिल्म निर्माण की ओर रुख किया. 1981 में कैंसर से उनकी पत्नी नरगिस दत्त की मृत्यु के बाद वह काफी टूट गए. बाद में काफी समय तक वह राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. 1984 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुम्बई उत्तर पश्चिम लोक सभा सीट से चुनाव जीता और सांसद बने. वे यहां से लगातार पांच बार चुने गए. बेटे संजय दत्त के साथ 2003 में उन्होंने फिल्म 'मुन्ना भाई एमबीबीबीएस' में भी काम किया. 2005 में दिल का दौरा पड़ने से उनका देहांत हो गया.
जख्म दे गया स्वर्ण मंदिर में आपरेशन ब्लू स्टार
इतिहास में छह जून का दिन सिखों को एक गहरा जख्म देकर गया। इस दिन स्वर्ण मंदिर में सेना का आपरेशन ब्लूस्टार खत्म हुआ। मुख्य पूजनीय स्थल हरमंदिर साहिब की तरफ बढ़ती सेना का जरनैल सिंह भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थक चरमपंथियों ने जमकर विरोध किया और इस दौरान दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी हुई। भारी खूनखराबे के बीच अकाल तख़्त को भारी नुकसान पहुंचा और सदियों में पहली बार ऐसा हुआ कि हरमंदिर साहिब में गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ नहीं हो पाया। पाठ न हो पाने का यह सिलसिला छह, सात और आठ जून तक चला। छह जून के नाम पर एक और ऐतिहासिक घटना भी दर्ज है।
पूरी ट्रेन नदी में समा गई
यात्रियों से खचाखच भरी वह ट्रेन आज के ही दिन सहरसा स्टेशन जा रही थी. लेकिन बागमती नदी से गुजरते हुए वह पानी में समा गई. हजार लोग मारे गए. इसकी बरसी तो मनती है पर हादसे रोकने के खास उपाय नहीं निकले.
साल 1981 में वह ट्रेन आज ही के दिन बिहार के मानसी स्टेशन से सहरसा जा रही थी. आंकड़ों के मुताबिक इस पर 800 लोग सवार थे, जबकि गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक यात्रियों की संख्या इससे कई गुना ज्यादा थी. ट्रेन को रास्ते में बागमती नदी पर बने पुल से गुजरना था. लेकिन इसी दौरान वह फिसल कर नदी में गिर पड़ी और इसके नौ में से सात डिब्बे डूब गए. उस वक्त मॉनसून का मौसम था और नदी का जलस्तर काफी ऊंचा था. पटरियां भी गीली थीं और उनमें फिसलन का खतरा था.
हादसे की सही वजह का पता नहीं लग पाया लेकिन कई जगहों पर रिपोर्टें छपीं कि एक गाय को बचाने के लिए ड्राइवर ने जबरदस्त ब्रेक लगाया और उसका नियंत्रण खो गया. प्रतिष्ठित हिस्ट्री चैनल की वेबसाइट ने इस हादसे को अपने रिकॉर्ड में रखा है. उसका कहना है, "जब ट्रेन बागमती नदी पर बने पुल के पास पहुंची, एक गाय पटरियों को पार कर रही थी. गाय को हर हाल में बचाने के लिए ड्राइवर ने पूरी ताकत से ब्रेक लगा दिया. ट्रेन के डिब्बे गीली पटरियों पर फिसल गए और कम से कम सात डिब्बे सीधे नदी में जा गिरे. जलस्तर काफी ऊंचा और डिब्बे सीधे मटमैले पानी में डूब गए."
उस वक्त सूचनाओं का प्रवाह अपेक्षाकृत धीमा होता था और विदेशी मीडिया को ज्यादा विश्वसनीय माना जाता था. अगले दिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर लगाई, जिसमें भारत की दो प्रमुख समाचार एजेंसियों के हवाले से रिपोर्ट छापी गई. इसमें कहा गया, "शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया कि ट्रेन में 500 लोग सवार थे लेकिन दो भारतीय अधिकारियों का कहना है कि मरने वालों की संख्या 1000 से बहुत ज्यादा 3000 तक पहुंच सकती है." हादसे के बाद गोताखोरों ने कई दिनों तक पानी में तलाशी की लेकिन बताया जाता है कि कई लोगों के शव पानी के साथ बह गए.
भारत में आम तौर पर ट्रेनें अपनी क्षमता से ज्यादा यात्रियों को ढोती हैं. दुनिया का सबसे बड़ा रेल तंत्र 160 साल से ज्यादा पुराना है. लेकिन उसके डिब्बे और तकनीक भी बहुत पुराने हैं. पश्चिमी देशों में अगर ट्रेन 400 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकती है, तो उसकी सुरक्षा के लिए भी उतनी ही ज्यादा व्यवस्था होती है. ट्रेनों के दरवाजे बंद करना जरूरी हैं और जब तक दरवाजे बंद नहीं होते, ट्रेन चल ही नहीं सकती. ट्रेनों में क्षमता के अनुसार मुसाफिरों को बिठाया जाता है और छतों पर बैठना तो असंभव है.
अन्य घटनाएं
1674: छत्रपति शिवाजी महाराज का रायगढ़ के किले में राज्याभिषेक।
1916: अमेरिका के ईस्ट क्लीवलैंड में महिलाओं को वोट का अधिकार दिया गया।
1919: फिनलैंड ने बोलशेविक के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
1966: अश्वेतों के मानवाधिकारों के पैरोकार जेम्स मेरिडिथ कार्यकर्ता पर गोली चली। घटना के समय अफ्रीकी-अमेरिकी मूल के मेरिडिथ अश्वेतों के दमन के खिलाफ पदयात्रा पर निकले थे।
1967: इजरायली सेना ने गाजा पर कब्जा किया।
1981: बिहार की बागमती नदी में एक ट्रेन गिर जाने से क़रीब 800 लोगों की मौत। इसे देश के सबसे बड़े ट्रेन हादसों में शुमार किया जाता है। मानसी से सहरसा जा रही इस यात्री गाड़ी के नौ में से सात डिब्बे नदी में जा गिरे।
1995: पाकिस्तान में बाल अपराधियों को कोड़े मारने अथवा उनकी फ़ांसी की सज़ा पर रोक।
1997: बैंकॉक में भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं थाईलैंड ने 'बिस्टेक' नामक आर्थिक सहयोग समूह का गठन किया।
2001: नेपाल के शाही परिवार पर गोलियाँ दीपेन्द्र ने ही चलाई थीं, प्रत्यक्षदर्शी रिश्तेदार राजीव शाही का प्रेस में बयान।
2002: इस्रायली सेना ने रामल्ला में फ़िलिस्तीनी नेता यासिर अराफात के मुख्यालय पर हमला किया।
2004: भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन का निधन।
2005: ईरान गैस पाइप लाइन योजना पर भारत और पाकिस्तान में सहमति।
2007: दक्षिण अफ़्रीका की नस्लभेद विरोधी नेता विनी मैडिकिजेला मंडेला के कनाडा प्रवेश पर रोक।