
जूही चावला की 5जी के खिलाफ याचिका
ख़ारिज, लगा 20 लाख रुपये का जुर्माना
दिल्ली हाई कोर्ट ने देश में 5जी नेटवर्क लगाने के ख़िलाफ़ दायर की गई फिल्म अभिनेत्री जूही चावला की जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने ये भी कहा है कि याचिकाकर्ताओं ने न्यायिक प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल किया है और इसके लिए उन पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा है कि ऐसा लगता है कि जैसे ये याचिका प्रचार पाने के मकसद से दायर की गई है. याचिकाकर्ता जूही चावला ने सुनवाई की ऑनलाइन लिंक को सोशल मीडिया पर तीन बार शेयर किया जिससे अदालत की कार्यवाही में खलल पड़ा.कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को ये आदेश दिया है कि जिन लोगों ने अदालत की कार्यवाही में बाधा डाली, उनकी पहचान करके उनके खिलाफ़ कार्रवाई की जाए.
जूही की याचिका
देश में 5जी तकनीक के ख़िलाफ़ दिल्ली हाई कोर्ट में जूही चावला के साथ दो अन्य याचिकाकर्ता वीरेश मलिक और टीना वाच्छानी ने एक याचिका में अदालत से कहा था कि वो सरकारी एजेंसियों को आदेश दें कि वो जाँच कर पता लगाएँ कि 5जी स्वास्थ्य के लिए कितना सुरक्षित है. याचिकाकर्ताओं की माँग थी कि इस जाँच पर किसी भी निजी कंपनी, व्यक्ति का प्रभाव ना हो.
क़रीब 5,000 पन्नों वाली इस याचिका में कई सरकारी एजेंसियाँ जैसे डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्युनिकेशंस, साइंस एंड एंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड, इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च, सेंट्रेल पोल्युशन कंट्रोल बोर्ड, कुछ विश्वविद्यालयों और विश्व स्वास्थ्य संगठन को पार्टी बनाया गया था.
याचिका को लेकर जूही चावला, वीरेश मलिक और टीना वाच्छानी के वकील दीपक खोसला ने कहा था, "ऐसी तकनीक से गंभीर ख़तरे हैं. हमारी गुज़ारिश है कि 5जी को उस वक़्त तक रोक दिया जाए, जब तक सरकार पुष्टि ना करे कि इस तकनीक से कोई ख़तरा नहीं है." हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
चिंता की शुरुआत 10 साल पहले
हालांकि, मोबाइल टावर रेडिएशन को लेकर जूही चावला की फ़िक्र 10 साल पुरानी है.साल 2011 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मालाबार हिल में रहने वाली जूही चावला अपने घर से 40 मीटर दूर सहयाद्रि गेस्ट हाउस पर लगे 16 मोबाइल फ़ोन टावर से स्वास्थ्य पर होने वाले असर को लेकर चिंतित थीं और जब आईआईटी मुंबई के एक प्रोफ़ेसर ने जाँच की तो पाया कि उनके घर का एक बड़ा हिस्सा कथित तौर पर 'असुरक्षित' था.
यूट्यूब पर मौजूद एक प्रज़ेंटेशन में जूही चावला बताते हुई दिखती हैं कि कैसे इतने सारे फ़ोन टॉवर से उनकी फ़िक्र बढ़ी थी और उन्होंने अपने घर के आस-पास रेडिएशन के स्तर की जाँच के बारे में सोचा. और जब उन्होंने जाँच रिपोर्ट देखी, तब उनकी फ़िक्र और बढ़ गई.
5जी सेल्युलर नेटवर्क दुनिया के कई हिस्सों जैसे अमेरिका, यूरोप, चीन और दक्षिण कोरिया में पहले से ही काम कर रहा है. भारत में भी 5जी ट्रायल्स पर काम चल रहा है.
5जी से इंटरनेट की स्पीड बहुत तेज़ हो जाती है और इसे क्रांतिकारी माना जाता है, क्योंकि इससे टेलीसर्जरी, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, बिना ड्राइवर के कार जैसी तकनीक को और विकसित करने में मदद मिलेगी.लेकिन दुनिया के कई हिस्सों में फ़िक्र भी है कि 5जी की आधारभूत सुविधाओं से रेडिएशन का एक्सपोज़र बढ़ता है, जिससे कैंसर जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं.
याद रहे कि पिछले साल ब्रिटेन में 5जी टॉवर्स को इन अफ़वाहों के फैलने के बाद आग लगा दी गई थी कि 5जी टॉवर्स कोरोना वायरस के फैलने या तेज़ी से फैलने का कारण हैं.भारत में भी ऐसी अफ़वाहें फैली थीं जिसके बाद सरकार को सफ़ाई देनी पड़ी थी.
याचिका में क्या कहा गया था?
याचिका में 5जी से पेश संभावित ख़तरों का ज़िक्र किया गया था.इसमें बेल्जियम का हवाला दिया गया था, जहाँ 5जी को लेकर विरोध रहा है.याचिका में बेल्जियम की 2019 में पर्यावरण मंत्री सेलीन फ्रेमां के एक बयान का ज़िक्र था, जिसमें उन्होंने कहा था, "मैं ऐसी तकनीक का स्वागत नहीं कर सकती, जिससे नागरिकों की सुरक्षा करने वाले रेडिएशन स्टैंडर्ड्स की इज़्जत नहीं हो सकती, चाहे वो 5जी हो या ना हो. ब्रसेल्स के लोग गिनी पिग नहीं हैं, जिनके स्वास्थ्य को हम मुनाफ़े के लिए बेच दें."
याचिका में दावा किया गया था कि एक तरफ़ जहाँ सेल्युलर कंपनियाँ ख़तरनाक तेज़ी से सेल टॉवर लगा रही हैं ताकि कनेक्टिविटी बेहतर की जा सके, 5,000 से ज़्यादा ऐसे वैज्ञानिक शोध हैं, जो कथित तौर पर बता रहे हैं कि नेटवर्क प्रोवाइडर्स की इस लड़ाई में लोग मौत का शिकार हो रहे हैं.
5जी अलग क्यों है?
दूसरी सेल्युलर तकनीकों की तरह 5जी नेटवर्क रेडियो वेव्स पर सवार सिग्नलों पर निर्भर होता हैं जो एंटीना और फ़ोन के बीच प्रसारित होती हैं.चाहे टीवी सिग्नल हो या रेडियो सिग्नल, हमारे चारों ओर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन हैं.
5जी तकनीक पुराने मोबाइल नेटवर्क से ज़्यादा फ़्रीक्वेंसी वाले वेव्स का इस्तेमाल करती है, जिससे ज़्यादा मोबाइल पर एक साथ इंटरनेट सुविधा उपलब्ध होती है और इंटरनेट की स्पीड भी तेज़ होती है.
5जी नेटवर्क को पुरानी तकनीक के मुक़ाबले ज़्यादा ट्रांसमीटर की ज़रूरत होती है, जो ज़मीन के नज़दीक रहें.
5जी से ख़तरे पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें
साल 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि आज तक मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं दिखा है.
लेकिन ये रिपोर्ट ये भी कहती है कि इंटरनेशनल एजेंसी फ़ॉर रिसर्च ने मोबाइल फ़ोन से पैदा होने वाली एलेक्ट्रोमैग्नेटिग फ़ील्ड्स को इंसानों के लिए संभावित कैंसर पैदा करने वाला माना है.विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक़ ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी इस बारे में पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि मोबाइल फ़ोन से पैदा होने वाली एलेक्ट्रोमैग्नेटिग फ़ील्ड्स से पक्के तौर पर इंसानों में कैंसर होता है या नहीं.
साल 2018 की अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट ने पाया कि रेडियो फ़्रीक्वेंसी रेडिएशन के ज़्यादा एक्सपोज़र से चूहों के दिल में एक तरह का कैंसर जैसा ट्यूमर हो गया.
इस शोध के लिए चूहे के पूरे शरीर को मोबाइल फ़ोन के रेडिएशन के एक्सपोज़र में दो साल तक रखा गया और हर दिन नौ घंटे ये चूहे एक्सपोज़ होते थे.शोध करने वाले एक वैज्ञानिक ने लिखा कि मोबाइल फ़ोन के रेडिएशन को जो इन चूहों ने सहा, वो किसी इंसान के अनुभव से बहुत दूर है इसलिए इस शोध का आपके जीवन पर असर नहीं पड़ना चाहिए.
क्या मोबाइल फ़ोन स्वास्थ्य के लिए ख़तरा है, इस पर अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट कहती है, अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं कि इससे इंसानों में कैंसर का ख़तरा पैदा हो.साल 2020 की विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ वो 5जी सहित सभी रेडियो फ्रीक्वेंसी के एक्सपोज़र से होने वाले स्वास्थ्य पर ख़तरे को लेकर एक रिपोर्ट 2022 में प्रकाशित करेगी.साल 2019 में कई भारतीय वैज्ञानिकों ने भी सरकार को 5जी के ख़िलाफ़ पत्र लिखा था.
क्या हमें 5जी ट्रांसमीटर की फ़िक्र करनी चाहिए?
साल 2019 में बीबीसी रिएलटी चेक की टीम ने पाया था कि 5जी तकनीक को कई नए बेस स्टेशनों की ज़रूरत पड़ती है ताकि मोबाइल सिग्नल को भेजा या रिसीव किया जा सके.लेकिन ज़्यादा ट्रांसमीटर का मतलब है कि वो 4जी तकनीक के मुक़ाबले कम बिजली पर चल सकते हैं, इसका मतलब है कि 5जी एंटीना से निकलने वाला रेडिएशन का स्तर कम होता है.
जहाँ तक रेडिएशन से पैदा होने वाली गर्मी की बात है, इंटरनेशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइज़िंग रेडिएशन प्रोटेक्शन के प्रोफ़ेसर रॉडनी क्रॉफ़्ट ने रिएलटी चेक टीम को बताया कि 5जी के स्तर पर निकलने वाली गर्मी नुक़सान नहीं पहुँचाती.वे कहते हैं, "5जी से समुदाय का कोई व्यक्ति अगर सबसे ज़्यादा रेडियो फ़्रीक्वेंसी से एक्सपोज़ हुआ होगा तो वो इतना कम होगा कि उससे आज तक तापमान बढ़ा हुआ नहीं पाया गया."
साभार, विनीत खरे बीबीसी