
मैं भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ
ॐ नमः शिवाय एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली मंत्र है जो हिन्दू धर्म में भगवान शिव को समर्पित है। इसे पंचाक्षरी मंत्र भी कहा जाता है क्योंकि इसमें पाँच अक्षर होते हैं: न, म, शि, वा, य।
इस मंत्र का अर्थ और भावार्थ इस प्रकार है:
🔤 शाब्दिक अर्थ:
ॐ (Om) – यह ब्रह्मांडीय ध्वनि है, जो संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति और शक्ति का प्रतीक है। यह परमात्मा का रूप है।
नमः (Namah) – इसका अर्थ है "नमन", "वंदन", या "समर्पण"।
शिवाय (Shivaya) – इसका अर्थ है "भगवान शिव को", जो शुभ, कल्याणकारी और संहारक हैं।
"ॐ नमः शिवाय" का पूर्ण अर्थ है:
— मैं भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ या
— मैं स्वयं को भगवान शिव के चरणों में समर्पित करता हूँ।
आध्यात्मिक भावार्थ:
यह मंत्र केवल भगवान शिव की स्तुति नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धता, आत्म-ज्ञान और मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग भी है। यह मंत्र पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिससे सृष्टि बनी है।
इस मंत्र के लाभ:
मानसिक शांति और स्थिरता
आत्मशुद्धि
नकारात्मक ऊर्जा का नाश
आध्यात्मिक उन्नति
शिव की कृपा की प्राप्ति
ओम नम: शिवाय से जुड़ी कहानी क्या है?
ॐ नमः शिवाय मंत्र से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जो इसकी दिव्यता और शक्ति को दर्शाती हैं। यह मंत्र भगवान शिव के प्रति भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। नीचे कुछ प्रमुख संदर्भ और इससे जुड़ी कहानी दी गई है:
1. पुराणों में संदर्भ – रावण और शिव तांडव स्तोत्र की कथा
लंका के राक्षस राजा रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। कहा जाता है कि उसने अपनी भुजाओं को काटकर शिव को अर्पण किया। जब दसवां सिर काटने ही वाला था, तब भगवान शिव प्रकट हुए और प्रसन्न होकर उसे "शिव तांडव स्तोत्र" का वरदान दिया।
रावण का "ॐ नमः शिवाय" मंत्र पर भी विशेष ध्यान और जप था। यह मंत्र उसकी भक्ति का सार था, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए।
2. सप्तर्षियों की कथा – ऋषि वशिष्ठ और ॐ नमः शिवाय
एक बार ऋषि वशिष्ठ को भ्रम हुआ कि वे परम ज्ञानी हैं। शिव ने उन्हें विनम्र बनाने के लिए एक लीला रची और एक बच्चे का रूप लेकर उनसे प्रश्न पूछने लगे। जब ऋषि उत्तर नहीं दे पाए, तब उस बालक (स्वयं शिव) ने उन्हें "ॐ नमः शिवाय" मंत्र की महिमा समझाई और बताया कि यह मंत्र आत्म-ज्ञान और मोक्ष का द्वार खोलता है।
3. पंचाक्षरी मंत्र और पंचतत्वों का ज्ञान
भगवान शिव ने स्वयं यह पंचाक्षरी मंत्र – "न, म, शि, वा, य" – पांच ऋषियों को दिया था। यह पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का प्रतिनिधित्व करता है। इन तत्वों से सृष्टि की रचना हुई है, और शिव इन सभी के अधिष्ठाता हैं। इस मंत्र का उच्चारण ब्रह्मांड से जुड़ाव का माध्यम है।
4. शिव पुराण में उल्लेख
शिव पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से "ॐ नमः शिवाय" का जप करता है, वह धीरे-धीरे पापों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। यह मंत्र शिव की अनुकंपा प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग है।
इस मंत्र का उपयोग किस संदर्भ में होता है?
ध्यान और साधना के समय
कष्टों से मुक्ति के लिए
मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति हेतु
मृत्यु के समय मुक्ति की कामना से
मंदिरों में रुद्राभिषेक के दौरान
ॐ नमः शिवाय" मंत्र में कितनी शक्ति है और कैसे यह शिवभक्त को शिव के परम प्रेम का पात्र बना देता है? यह रावण की शिवभक्ति से जुड़ी एक प्रेरक और चमत्कारी कथा से समझा जा सकता है—
रावण और शिव की कथा — “शिव तांडव स्तोत्र” की उत्पत्ति
प्रसंग:
रावण लंका का अत्यंत बलशाली राजा था, लेकिन वह उतना ही महान शिवभक्त भी था। उसकी भक्ति इतनी गहन थी कि वह भगवान शिव को अपने आराध्य और जीवन का केंद्र मानता था।
रावण का तप और 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप
रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तपस्या की। उसने हजारों वर्षों तक केवल "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप किया।उसकी तपस्या इतनी कठिन और एकनिष्ठ थी कि ब्रह्मांड में कंपन होने लगे। देवता भयभीत होकर भगवान शिव के पास पहुँचे।
आत्मबलिदान की लीला:
शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने एक-एक करके अपने दस सिर काटकर शिवलिंग के सामने अर्पित किए।
जब वह दसवां सिर काटने जा रहा था, तभी शिव प्रकट हुए और बोले:"रावण! तुम्हारी भक्ति, तप और समर्पण से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। जो चाहे, वर मांगो!"
रावण ने कहा:"हे नीलकंठ महादेव! मुझे अमरता नहीं चाहिए। मुझे वह ज्ञान दो जिससे मैं सदा तुम्हारी स्तुति करता रहूं!"
शिव तांडव स्तोत्र की प्राप्ति:शिव ने उसे एक दिव्य स्तोत्र की अनुभूति दी – जिसे हम "शिव तांडव स्तोत्र" के नाम से जानते हैं। यह स्तोत्र रावण ने उसी समय लिखा और गाया था, और इसमें "ॐ नमः शिवाय" की गूंज और शिव की महिमा हर पंक्ति में प्रतिध्वनित होती है।
यह स्तोत्र इतना शक्तिशाली है कि आज भी जो इसे श्रद्धा से पढ़ता है, उसके जीवन में शिव की ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है।
कथा का संदेश:
"ॐ नमः शिवाय" केवल एक मंत्र नहीं, आत्मसमर्पण और पूर्ण श्रद्धा का प्रतीक है।
शिव किसी भी जाति, कुल, रूप, कर्म के बंधन में नहीं बंधते — केवल भक्ति देखते हैं। रावण, जो बाद में अहंकार में डूबा, वह भी अपने शुद्ध भक्ति काल में शिव के अनन्य कृपापात्र बना।
भक्ति का सार:
यदि कोई सच्चे मन से "ॐ नमः शिवाय" का जाप करता है, तो शिव उसकी परीक्षा लेते हैं, पर अंत में उसे कल्याण, ज्ञान और मोक्ष देते हैं।