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मुंशी प्रेमचंद द्वारा संस्थापित और इस अंक के अतिथि संपदक कैलाश वानखेड़े की नचेतना का प्रगतिशील कथा—मासिक में इस बार पढ़ें....आदिवासी अस्मिता और विश्व बाजार की राजनीति...दलितें के सुरों का कोई अंत नहीं...सिनेमा के भीतर...सिनेमा में दलित प्रतिनिधित्व के प्रश्न...पांच कहानियां...कोहरा, गुबार, एक नई उम्मीद, वानर ...लघुकथाएं एवं अन्य रचनाएं...