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इस उपन्यास की नायिका सरस्वती सद्विचारों से प्रेरित है। उसके संस्कारों में भारत की संपूर्ण संस्कृति की ही झलक मिलती है। जिस प्रकार भित्ति चित्रों के शास्त्रीय युग में चेहरे पर अजंता प्रतिरूपण की वृत्ताकार सुनम्यता और मध्यकालीन प्रवृत्तियों की भुजाओं के कोणीय मोड़ जैसी दोनों विशेषताओं को यहाँ भली-भांति चिह्नित किया गया है, उसी प्रकार इस उपन्यास की नायिका को भी इसमें चित्रित किया गया है। इस उपन्यास में उन पिताओं की दुविधा को भी दर्शाया गया है जो अपनी बेटियों की शादी धन के अभाव में अयोग्य वरों के साथ कर देते हैं।