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शब्द है शक्ति शब्दों में कितनी शक्ति होती है, इसे एक लेखक के सिवाय कोई और समझ सकता है, तो वे हैं सुधी पाठक! शब्द दोनों के समान रूप से प्रभावित करते हैं। इनकी समझ और अनुभूति एक लेखक को पाठक से जोड़ देती है। इसका एहसास जितना गहरा होता है, लेखक उतना ही लेखन क्षमता में सामथ्र्यवान बन जाता है। शब्द-दर-शब्द की कड़ियों से जुड़े वाक्य में उसकी निहित ऊर्जा समाहित रहती है। उसे संतुलित करने पर निकलने वाले ‘अर्थ और निष्कर्ष’ को एक अद्भुत विस्तार मिल जाता है। यही एक लेखक को उसके लेखन कार्य से मिली रचनात्मक दिशा होती है। ... और फिर उसकी डोर पकड़े लेखक आगे सतत बढ़ता चला जाता है। इसे लेखकीयता के विकास की शुरूआत भी कही जा सकती है। किसी थीम को सार्थक सकारत्मकता तभी मिल सकती है, यदि लेखक अपने विचारों को संयमित तरीके से संतुलित करे, फिर शब्द-शिल्प देने की पहल करे। इसी पर लेखक की सफलता और अच्छी रचना की बुनियाद निर्भर है। सोते-जागते, उठते-बैठते मस्तिष्क में उमड़ने-घुमड़ने वाले विचारों को शब्दों में पिरो देना एक झटके में किया जाने वाला कोई सहज कार्य नहीं है। उसे अपने मन के अतिरिक्त औरों की सोच और समझ के साथ जोड़कर ...