आपसी सौहार्द और समरसता का सन्देश
बी.कृष्णा
विश्व का सबसे सुंदर त्योहार होली एक ऐसा त्योहार है जिसे हर आयु, हर वर्ण, हर जाति के लोग उमंग और उल्लास के साथ मनाते हैं| इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 24 मार्च 2024, दिन रविवार को होलिका दहन व पूजन होगा। इसके दूसरे दिन 25 मार्च 2024, भारतीय समयानुसार दिन के 12 बजकर 30 मिनट और 02 सेकेंड तक फाल्गुन पूर्णिमा रहेगा। 26 मार्च 2024 को सूर्योदय के समय चैत्र कृष्ण प्रतिपदा रहेगा तो इस दिन सुबह से ही प्रेम का रंग और रसधार बरसे।
होली में अपने सारे गिले शिकवे को भूलकर एक दूसरे से हर्ष और उल्लास के साथ मिलना आपसी सौहार्द और समरसता का सन्देश देता है| परन्तु कुछ अन्य बातें भी होती हैं जिसने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा|पहला तो यह कि इस दिन भांग का जमकर सेवन किया जाता है| दूसरा यह कि इस रोज रिश्तों की वर्जनाएं भी टूटती है| श्वसुर और बहु के बीच, जेठ और भावज के बीच भी जमकर रंगों की बरसात होती है|
नशीले पदार्थ का सेवन और रिश्तों की वर्जनाओं का टूटना - आखिर हमारा समाज हमें किस और लेकर जाना चाहता है? इन दो बातों की खोज से हमें क्या मिला इसे आप सबके साथ साझा कर रही हूँ| साथ ही साथ कुछ अन्य जीवन सूत्र जो होली हमें पकड़ता है, उसकी भी यहाँ चर्चा की गयी है|
स्वास्थ्य दर्शन
होली में भांग का सेवन –
अथर्ववेद में भांग के पौधे की चर्चा है|
पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूमः।
दर्भो भङ्गो यवः सह ते नो मुञ्चन्त्व् अंहसः॥
अथर्ववेद में भांग को -प्रसन्नता देनेवाली और मुक्ति प्रदान करनेवाली बूटी बताया गया है| यह कहा गया है कि इसकी पत्तियों में देवताओं का वास होता है| यह सात्विक होता है| मेरी जिज्ञासा और बढ़ी की जिसको पीकर लोग नशे में धुत्त हो जाएं वह सात्विक कैसे होगा? खोज से यह पता चला की भांग की पत्तियों में सूक्ष्म पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं| मैगनीज़, पोटैशियम, जिंक के अलावा प्रमुख पोषक तत्व भी कार्बोहायड्रेट और प्रोटीन के रूप में होते हैं|
हमें मैंगनीज, पोटैशियम और ज़िंक की जरूरत क्यों है आइये इसे जानें-
मैंगनीज- यह शरीर का एक आवश्यक खनिज तत्व है जो हड्डी का निर्माण, कैल्शियम के अवशोषण, ब्लड शुगर के नियंत्रण के साथ साथ मस्तिष्क और तंत्रिकाओं के सामान्य एवं सुचारु रूप से क्रियाशील रहने के लिए आवश्यक है| यह मल्टीपल एंजाइमों और एंजाइम एक्टिवेटरों का एक हिस्सा भी है।
पोटैशियम - हमारे शरीर की कोशिकाओं के भीतर तरल पदार्थ के सामान्य स्तर को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है| मस्तिष्क, तंत्रिकाओं, हृदय और मांसपेशियों सहित शरीर के कई हिस्सों को ठीक से काम करने के लिए इसकी आवश्यकता होती है।
ज़िंक- घाव भरना, प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य का समर्थन करना,प्रजनन प्रणाली का विकास करना,इंसुलिन का उत्पादन और भंडारण के साथ साथ थायराइड और मेटाबॉलिज्म को ठीक से काम करने में मदद करना और प्रोटीन और डीएनए बनाने में मदद करता है|
सुश्रुत संहिता के अनुसार, भांग रक्त को शुद्ध करने वाला है|
समुचित मात्रा में इसके सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है|
सुश्रुत संहिता में ही इसे जुकाम , बुखार, डायरिया के इलाज के लिए भी उपयोगी औषधि बताया गया है|
इतना उपयोगी है भांग| इससे हमें समुचित स्वास्थ्य लाभ मिले इसके लिए इसके सही मात्रा में सेवन की जानकारी होनी चाहिए|
होली में भांग के साथ साथ कुछ अन्य भोज्य पदार्थों का सेवन भी भरपूर होता है| दही बड़ा, इमली की चटनी, मालपुआ, खीर, पूरी, सब्जी आदि|
आयुर्वेद के अनुसार यदि हमारे भोजन में षडरस की उपस्थिति है तो हमें किसी भी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं होगी| होली में भोजन के रूप में इन छहो रसों को शामिल कर लिया गया है|
आरोग्य और स्वास्थ्य का मंत्र देने वाला त्योहार है होली|
भौहों के बीच माथे के केंद्र में स्थित आज्ञा चक्र पर चंदन का टीका या रंग का टीका लगाने का महत्व
आज्ञा चक्र भ्रू मध्य मतलब दोनों भौहों के बीच में केंद्रित होता है।इसे "मास्टर ग्रंथि" कहा जाता है जो हमारी पिट्यूटरी ग्रंथि को तो नियंत्रित करता ही है साथ ही साथ अन्य सभी अंतःस्रावी ग्रंथियों को नियंत्रित करता है| ऋतु परिवर्तन का समय है होली| इस समय शरीर में ताप की शनैः शनैः वृद्धि होती है|शरीर के ताप को नियंत्रित करने के लिए आज्ञा चक्र के पास चंदन का टीका, रंग का टीका लगाया जाता है|
जीवन दर्शन : होली विश्व को बहुत मूल्यवान दर्शन देता है|
1 - ब्रज की लट्ठमार होली में रिश्तों की कई वर्जनाएं टूटती हैं| एक तरफ पीढ़ियों के बीच की दूरी समाप्त होती है तो दूसरी तरफ रिश्तों के बीच की दूरी भी समाप्त होती है| हर आयु वर्ग के लोग के साथ साथ हर रिश्ते के लोग इस दिन एक दूसरे को रंग से सराबोर करते हैं|
सारी वर्जनाएं तो टूटती है पर अश्लीलता को नहीं आने देता, यह इसकी खूबसूरती है|
ऋग्वेद के इस मंत्र - 'संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्' की महत्ता को होली का यह त्योहार स्थापित करता है | महत्वपूर्ण जीवन सूत्र पकड़ाता है कि कोई ऊपर नहीं, कोई नीचे नहीं, मर्यादित रूप से सब साथ चलें, साथ विमर्श करें, एक दूसरे के मन को जानते हुए चलें|
2 - खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
पार्वती के साथ घर में होली परंतु अपने गणों के साथ महाश्मशान में होलो खेलते हैं|
श्मशान में कोई होली खेलता है क्या? जीवन समाप्ति का कोई उत्सव मनाता है क्या?
हम मृत्यु से भयभीत होते हैं| शिव यहाँ सूत्र पकड़ाते हैं कि जीवन नहीं समाप्त हुआ है| इसकी यात्रा तो अनवरत जारी है, सिर्फ शरीर का नाश हुआ है|भगवद्गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं- देहान्तर हुआ है| आत्मा की यात्रा तो जारी ही है| जिस क्षण जीवन का यह सूत्र हमें पकड़ में आ गया वह क्षण उत्सव का क्षण है| जीवन को हर्ष और उल्लास के रंग से सराबोर करने का क्षण है|
होली में क्या करें क्या न करें
कृत्रिम रंगों को न कहें| हालाँकि ये पॉकेट फ्रेंडली होते हैं परन्तु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं| त्वचा को तो नुकसान पहुंचते ही हैं चिकित्सक के अनुसार कृत्रिम रंग किडनी को भी नुकसान पहुँचाते हैं|
प्राकृतिक रंगों को अपनाएं|
रंग खेलने से पहले अपने शरीर पर सरसों तेल या नारियल तेल लगा लीजिये| इससे त्वचा की नमी तो बानी ही रहेगी यह त्वचा पर रंगों को जमा होने से रोकेगा|
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात
हमें आरोग्य और स्वास्थ्य की जानकारी, जीवन दर्शन की जानकारी किसी विश्वविद्यालय में जाकर नहीं लेनी पड़ रही है बल्कि बड़ी ही सहजता से उत्सव के माध्यम से हमें बता दिया गया है|
होली के पीछे के दर्शन को समझते हुए खूब रंग खेलिए|
हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में-
यह मिट्टी की चतुराई है, रूप अलग औ रंग अलग,भाव, विचार, तरंग अलग हैं,ढाल अलग है ढंग अलग,आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!
प्रेम चिरंतन मूल जगत का,वैर-घृणा भूलें क्षण की,भूल-चूक लेनी-देनी में सदा सफलता जीवन की,जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!
बिहारी कह गए हैं
'तंत्री नाद कवित्त रस सरस राग रति रंग, अनबूडे बूडे, तिरे ज्यों बूडे सब अंग।'
होली आता नहीं है लाया जाता है| जिस क्षण स्वास्थ्य दर्शन, जीवन दर्शन समझ में आ गया वही क्षण होली के है|
हर तनाव से मुक्त होकर रंग और रस में डूब जाईये|
@ बी कृष्णा (ज्योतिषी, योग और अध्यात्मिक चिंतक )