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संवादिया
MRP ₹7023

सर्जनात्मक साहित्य का यह अंक हास्य व्यंग्य की रचनाओं से भरी है. इसके अतिथि संपादक विनोद कुमार विक्की के संपादन में अवश्य पढ़ें—————व्यंग्य आलेख हिन्दी व्यंग्य लेखन का विस्तृत आकाश....विकास माफिया और फूलमालाएं.... प्रभु! तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?/प्रेम जनमेजय..... भला आदमी (हास्य)/सुभाष चंदर.... मुख्य अतिथि आप/मधुकांत ....चिपकने की कला/बी.एल. आच्छा... कुत्तों की नुक्कड़ सभा/उमाशंकर अचल...बुद्धिजीवी का पेटदर्द/हरिशंकर राढ़ी.... अपने-अपने मुगालते/डॉ. ब्रह्मजीत गौतम.... बड़े बाबू/आचार्य देवेन्द्र देव.... सरस्वती गुम है/डॉ. सत्येंद्र अरुण.... व्यंग्य किसे कहते हैं?/संजीव निगम... व्यंग्य कल और आज/प्रो. राजेश कुमार.... बेरोजगारी, जाति विद्वेष, महंगाई आदि के दमघोंटू वातावरण में हास्य-व्यंग्य साहित्य आवश्यक/ डॉ. वीरेन्द्र प्रसाद, आई.ए.एस..... पुस्तक मेला और बुद्धिजीवी/लालित्य ललित.... विनम्रता की पराकाष्ठा बेशरम का पेड़/अशोक व्यास.... पत्र लेखन के परिप्रेक्ष्य में सोशल मीडिया को ‘साधु’-‘साधु’/ओमप्रकाश मंजुल... सड़क के गड्ढे/प्रभाशंकर उपाध्याय.... मेरा नाम मैं, तेरा नाम तू/जय प्रकाश पाण्डेय.... प्रशासन की पारदर्शिता/पूरन सरमा.... साहित्य में पुनर्स्थापना की तैयारी!/प्रभात गोस्वामी.... संपादक जी की साहित्य साधना/अभिजीत दुबे.... चित्रकूट के घाट पर/धर्मपाल महेंद्र जैन.... जहाँ विसंगति है, वहाँ व्यंग्य है (व्यंग्य विमर्श)/ डॉ. पंकज साहा.... नेताजी न्यारे/डॉ. महेंद्र अग्रवाल... तिलिस्मी चोरी/सुनील सक्सेना... चंदा/शीलकांत पाठक.... बाबूलाल का जीव/वीरेन्द्र सरल... .. थाना यात्रा/संजय पुरोहित...... आदमी ...