शब्द है शक्ति शब्दों में कितनी शक्ति होती है, इसे एक लेखक के सिवाय कोई और समझ सकता है, तो वे हैं सुधी पाठक! शब्द दोनों के समान रूप से प्रभावित करते हैं। इनकी समझ और अनुभूति एक लेखक को पाठक से जोड़ देती है। इसका एहसास जितना गहरा होता है, लेखक उतना ही लेखन क्षमता में सामथ्र्यवान बन जाता है। शब्द-दर-शब्द की कड़ियों से जुड़े वाक्य में उसकी निहित ऊर्जा समाहित रहती है। उसे संतुलित करने पर निकलने वाले ‘अर्थ और निष्कर्ष’ को एक अद्भुत विस्तार मिल जाता है। यही एक लेखक को उसके लेखन कार्य से मिली रचनात्मक दिशा होती है। ... और फिर उसकी डोर पकड़े लेखक आगे सतत बढ़ता चला जाता है। इसे लेखकीयता के विकास की शुरूआत भी कही जा सकती है। किसी थीम को सार्थक सकारत्मकता तभी मिल सकती है, यदि लेखक अपने विचारों को संयमित तरीके से संतुलित करे, फिर शब्द-शिल्प देने की पहल करे। इसी पर लेखक की सफलता और अच्छी रचना की बुनियाद निर्भर है। सोते-जागते, उठते-बैठते मस्तिष्क में उमड़ने-घुमड़ने वाले विचारों को शब्दों में पिरो देना एक झटके में किया जाने वाला कोई सहज कार्य नहीं है। उसे अपने मन के अतिरिक्त औरों की सोच और समझ के साथ जोड़कर ही साकार रूप दिया जा सकता है। इनसे बनी रूपरेखा आत्मविश्वास और वैचारिकता के औचित्व को भी दर्शाती है। वे चाहे जिस विधा- गद्य या पद्य की हो। कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, फीचर, संस्मरण, साक्षात्कार, आत्मकथा, रिपोर्ट या किसी तरह की सोशल साइटों पर लिखी जाने वाली टिप्पणियां ही क्यों न हों, उनमें सीधे दिल और दिमाग तक सुनी जाने वाली एक लयात्मक आवाज होती है। उसी प्रच्छन्न आवाज को सुनने लायक बनाकर ही किसी रचना को उसके अच्छा या श्रेष्ठ-सर्वश्रेष्ठ होने की पहचान दी जा सकती है। यह लेखक की अनुभूति, लेखन शैली, सूझबूझ, परिवेश की समझ, विषय की आत्मीयता और नजर गड़ाए उद्देश्य पर निर्भर करता है। एक प्रभावशाली रचना का सृजन करने के लिए लेखक में कई असाधारण गुण हो सकते हैं। किसी भी नवोदित लेखक के लिए विषयों के चयन, तार्किक विचार-विमर्श, शोध और तथ्यों को करीने से सहेजना बहुत ही मुश्किल होता है। कभी विचारों के स्पष्ट करने वाली पंक्तियां नहीं बन पाती हैं, तो कभी उपयुक्त शब्द नहीं सूझते हैं। तथ्यों को विचारों के अनुरूप तह लगाने के सिलसिले में दिमाग दुविधाओं से भी भर जाता। विविध उलझनों से जूझते लेखक की लेखनी में बातें स्पष्टता के साथ नहीं आ पाती है। प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं सब बातों का बारिकी से विश्लेषण करती है, ताकि लेखन कार्य को एक धार मिल सके और लेखन के दौरान लेखकीय प्रवाह में आने वाली बाधाएं मिट जाए। समाज, परिवेश और समाज के बदलते दौर में लेखन का तौर-तरीका भी बदला है। कलम-दावत की जगह कंप्यूटर के कीबोर्ड ने ले ली है। पेपरलेस कामकाज में कोरे कागज की जगह वर्ड की फाइलें आ गई हैं। संचार और संवाद के कई साधन मुट्ठी में समा गए हैं। इन तकनीकी सहुलियतों को अपनाने के लिए एक लेखक को भी कुछ तकनीकों का जानकार होना जरूरी हो गया है। इनसे संबंधित आवश्यक जानकारियां भी इस पुस्तक में दी गई हैं। कुल मिलाकर लेखन के संबंध में जितने भी गुरूमंत्र इसमें वर्णित हैं उनका फायदा लेख, फीचर, कहानी या समाचार लेखन करने वाले को मिल सकता है। इस पुस्तक में पत्रकारिता खंड के लिए पत्रकार अमलेश राजू और कहानी खंड के लिए साहित्यकार नीतू सुदिप्त ‘नित्या’ कर महत्वपूर्ण सहयोग मिला है। शंभु सुमन विषय खण्ड एकः लेख और फीचर लेखन कला ——लेख लेखनः एक संक्षिप्त परिचय... ...योग्यता के साथ तैयारी... इंटरनेट, ब्राडबैंड, वेब, सर्च इंजन... ...आर्टिकलः प्रकार और स्वरूप ...अखबार और आर्टिकल ...विविधताओं से भरा लेखन कौशल ....लेखन के गुर और गुरु मंत्र ...ई-मेल: आधुनिक तरीका ...गलतियां, सुधार और सुझाव ...कहानियां कैसी-कैसी ....कहानी लेखन में सफलता के गुर ...पत्रकारिताः पृष्ठभूमि, पहचान ...औैर सामाजिक योगदान ...समाचारः महत्वपूर्ण विविधताएं ...पत्रकारिता और प्रशिक्षण ...डिजिटल दौर की पत्रकारिता ...लेखन और कापिराइट कानून...डिजिटल मीडिया के लिए लेखन