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मैं अहिल्या हूँ के प्रकाशन पर होलकर राजवंश के युवराज कुमार श्रीमंत यशवंतराव होलकर का संदेश पुण्यश्लोका, होलकर वंश की कीर्तिध्वजा, महेश्वर की महाश्वेता, शिवयोगिनी, लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर के गौरवमयी जीवन से विश्व के हर व्यक्ति को प्रेरणा मिले इसका विलक्षणीय प्रयास श्रीमती रंजना फतेपुरकर ने अपनी पुस्तक मैं अहिल्या हूँ में किया है। राजयोगिनी देवी अहिल्यामाता के भव्य व्यक्तित्व का हर तेजस्वी पहलू उनके विशिष्ट गुणों को स्वर्णिम प्रकाश से आलोकित करता है, फिर चाहे वो धर्म हो, न्याय हो, राजनीति हो या युद्धनीति हो। उन्होंने न सिर्फ मानवों के हितों का ध्यान रखा वरन पशु-पक्षियों के भरण पोषण का भी ध्यान रखा। वृक्ष काटना वे ईश्वरीय अपराध मानती थीं। सम्पूर्ण भारत में उन्होंने मंदिर तो बनवाए ही पर मंदिरों के साथ-साथ मस्जिदों का भी जीर्णोद्धार करवाया। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए कुएं, बावड़ियां, धर्मशालाएं बनवाईं और सड़कों का निर्माण करवाया। वे सच्चे अर्थों में प्रजाहितकारिणी थीं लेकिन दुश्मनों के समक्ष वे दुर्गा का स्वरूप धारण कर तेजस्विनी बन जाती थीं। युगन्धरा माता अहिल्यादेवी ने महेश्वर को पवित्र नगरी का पर्याय तो बनाया ही साथ ही जिन्हें रोज़गार दिए आज भी वे रोज़गार उन लोगों की जीविका का सहारा ...