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युवा कवयित्री अनामिका के दो शब्दजीवन की आंदोलित संवेदनामाँ सरस्वती को नमन करते हुए मैं अपनी बात कहने जा रही हूँ। मेरी यह पुस्तक मन के मीत कविताओं का संग्रह है। मेरे मन में आते भावों को मैंने इसमें समावेश किया है। लेखन एक गहन विषय है। मन मस्तिष्क में जब तक मिलान न हो शब्द नहीं झरते। जहाँ तक कविता का संदर्भ है तो कविता स्वयं में लेखनी की पराकाष्ठा है। कविता युग धारा की वह सरिता है जिसमें हर कोई डुबकी लगा सकता है। इसके नीर से प्रत्येक के मन का कोई न कोई कोना भींग उठता है। इस पुस्तक में मैंने चेष्टा की है कि आप सभी का मन प्रांगण भींग उठे।कई बार ऐसा हुआ कि कलम पकड़ते ही मेरे मन भाव में डूबने लगते थे। विद्या ग्रहण करते हुए ही मैंने अपने मनोभावों को आकार देना शुरू कर दिया था। किंतु उस समय यह अनुमान नहीं था कि भविष्य में कभी अपनी कृति प्रस्तुत कर सकूंगी। समय ने एक लंबा बलिदान लिया और आज मैं अपने आत्मा से निकले कुछ वाक्यों को संजोकर आपको दे रही हूँ। मैं उन सभी की आभारी हूँ जिनके कारण आप तक मेरी लेखनी पहुँची।अपने जीवन पथ पर मिले उन ...