
द शेमलेस की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
अनसूया सेनगुप्ता को कान्स फिल्म फेस्टिवल में द शेमलेस में अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने सफलता मिली. इस तरह उसने वाली पहली भारतीय बनकर एक इतिहास रच दिया.
कान्स फिल्म फेस्टिवल का 77वां संस्करण भारत के लिए काफी मनोरंजक और चौंकाने वाला रहा. श्याम बेनेगल की मंथन को रिलीज के लगभग 48 साल बाद महोत्सव में विशेष स्क्रीनिंग मिलने और कई मशहूर हस्तियों और प्रभावशाली लोगों के रेड कार्पेट पर धूम मचाने के अलावा, भारतीय फिल्मों और अभिनेताओं को महोत्सव में कई श्रेणियों के तहत नामांकित किया गया था. अब एक भारतीय एक्टर ने कान्स 2024 में बड़ी जीत हासिल कर जो इतिहास रचा है, उससे भारतीय सिनेमा का पूरी दुनिया में डंका बज गया.

कोलकाता की रहने वाली अनसूया सेनगुप्ता ने द शेमलेस में अपने अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अन सर्टेन रिगार्ड पुरस्कार जीता. बल्गेरियाई फिल्म निर्माता कॉन्स्टेंटिन बोजानोव द्वारा निर्देशित और लिखित फिल्म, अनसूया द्वारा अभिनीत रेणुका के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद दिल्ली के वेश्यालय से भाग जाती है. फिल्म में रेणुका की प्रेमिका ओमारा शेट्टी भी हैं.
इस पुरस्कार को पाने के बाद मीडिया के सामने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. उन्होंने बताया कि मुझे खबर तब मिली जब कॉन्स्टेंटिन ने मुझे कान्स के आधिकारिक चयनों की घोषणा करने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस का लिंक भेजा. जब हमारी फिल्म के नाम की घोषणा की गई, तो मैं खुशी से कुर्सी से उछल पड़.
बुल्गारियाई निर्देशक कोन्सटेंटिन बोजानोव की फ़िल्म ‘द शेमलेस’ फ़िल्म दिल्ली के वेश्यालय में काम कर रही रेणुका की कहानी है, जो एक रात एक पुलिसवाले का क़त्ल कर फ़रार हो जाती है.
रेणुका उत्तर भारत में वेश्याओं के एक समुदाय में शरण लेती हैं, जहां उनकी मुलाक़ात देविका से होती है. देविका एक कम उम्र की युवती हैं जो वेश्या का जीवन जीने को मजबूर हैं.
रेणुका और देविका साथ मिलकर क़ानून और समाज से बचने के लिए एक ख़तरनाक रास्ते पर निकल पड़ती हैं. उनका मक़सद है आज़ाद होना.
भारतीय किरदारों पर बनीं फ़िल्म 'द शेमलेस' में दो मुख्य किरदार भारतीय महिलाएं हैं. इस फिल्म सदियों पुरानी देवदासी प्रथा की झलक भी दिखाती है.
सेक्स वर्करों की ज़िंदगी पर कई फ़िल्में बनी हैं और बॉलीवुड फ़िल्मों में सेक्स वर्करों के किरदार छोटी या बड़ी भूमिका में नज़र आते रहे हैं.
बुल्गारियाई निर्देशक की इस फ़िल्म में अनसूया सेनगुप्ता के ज़बरदस्त अभिनय ने उन्हें दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक दिला दिया है.
जादवपुर यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक अनसूया सेनगुप्ता कोलकाता की हैं. शुरुआत में उनका इरादा अभिनय की दुनिया में करियर बनाने का नहीं था. वो पत्रकारिता करना चाहती थीं.
लेकिन 2013 में वो मुंबई पहुंची और यहां उन्होंने फ़िल्मों के लिए प्रोडक्शन डिज़ाइनर का काम करना शुरू कर दिया.

‘मॉय कोलकाता’ को दिए एक साक्षात्कार में अनसूया ने बताया था, “जो प्रोजेक्ट मेरे दिल के क़रीब हैं उनमें संजीव शर्मा की सात उचक्के (2016) और श्रीजीत मुखर्जी की 'फॉरगेट मी नॉट' शामिल हैं.”
अनसूया ने साक्षात्कार में बताया था कि उनकी ज़िंदगी में बहुत कुछ क़िस्मत से हुआ है. जैसे उनकी ज़िंदगी के प्यार यशदीप से मिलना और फिर उनसे शादी करना.
अनसूया को रेणुका का किरदार मिलना भी एक संयोग ही था. ये सब एक फ्रेंड रिक्वेस्ट से शुरू हुआ.
उन्होंने साक्षात्कार में बताया कि उन्हें फ़ेसबुक मित्र बोज़ानोव से हिंदी फ़िल्म में ऑडिशन के लिए निमंत्रण मिला.
एक इंस्टाग्राम पोस्ट में अनसूया ने लिखा है, “जून 2020 में कॉन्स्टेंटिन ने मुझे मैसेज किया और कहा कि वो अपनी आगामी फ़िल्म 'द शेमलेस' के मुख्य किरदार के लिए मेरा ऑडिशन लेने में रुचि ले रहे हैं.”
अनसूया ने लिखा, “मेरा पहला जवाब था- क्यों”
अनुसुया ने अपना ऑडिशन टेप भेजा और कोन्सटेंटिन बोज़ानोव ने तुरंत हां बोल दिया.
इस फ़िल्म को नेपाल और मुंबई में शूट किया गया है.वैरायटी की रिपोर्ट के मुताबिक़ पुरस्कार मिलने के बाद अनसूया ने इसे भारत के क्विर समुदाय को समर्पित किया है.
उन्होंने कहा, “बराबरी के लिए, लड़ने के लिए आपको क्विर होना ज़रूरी नहीं है, ग़ुलामी दयनीय होती है, ये समझने के लिए आपको ग़ुलाम होना ज़रूरी नहीं है. हमें सिर्फ और सिर्फ़ एक बहुत मर्यादित इंसान होना होता है.”
अनसूया के अलावा, दो भारतीय फिल्में सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो और बन्नीहुड ने इस साल के कान्स में ला सिनेफ सेलेक्शन में क्रमशः पहला और तीसरा स्थान हासिल किया.
जबकि सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो एक कन्नड़ लघु फिल्म है, जिसका निर्देशन भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के छात्र चिदानंद नाइक ने किया है, बन्नीहुड का निर्देशन मानसी माहेश्वरी ने किया है. वह उत्तर प्रदेश के मेरठ की रहने वाली है और यूके में पढ़ाई कर रही है.
चिदानंद नाइक, जिन्होंने एक लोकप्रिय लोककथा से फिल्म की प्रेरणा ली, ने द हिंदू से कहा, "मेरा सपना भारत के मिथकों और लोककथाओं को सिनेमाई अनुभवों में बदलना है, और इतनी सारी कहानियों के साथ जो बताई जाने की प्रतीक्षा कर रही हैं, यह शूट फिल्म ऐसा लगता है कि शुरुआत करने के लिए यह बिल्कुल सही जगह है।''
इस फिल्म की शूटिंग चार दिनों में की गई। इस बीच, माहेश्वरी ने खुलासा किया कि बनीहुड का विचार उन्हें बचपन की एक घटना से आया था, जहां उनकी मां ने अपेंडिक्स सर्जरी के बारे में झूठ बोला था जिससे उन्हें गुजरना था।