
एआई बनने लगा सबका चहेता
मेटा और गूगल जैसी अन्य बड़ी टेक कंपनियां भी पीछे नहीं हैं। उदाहरण के लिए गूगल ने अपने सर्च इंजन को एआई के जरिये मजबूती देना शुरू किया है।
ओपनएआई के आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) चैटबॉट चैटजीपीटी की शुरुआत के करीब 18 महीने बाद माइक्रोसॉफ्ट समर्थित इस कंपनी ने अपना ताजा लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) जीपीटी-4 ओमनी या जीपीटी-4ओ जारी कर दिया है। ऐसा करते हुए चैटजीपीटी ने वैश्विक एआई जगत में अपना दबदबा फिर से मजबूत किया है।
बहरहाल, मेटा और गूगल जैसी अन्य बड़ी टेक कंपनियां भी पीछे नहीं हैं। उदाहरण के लिए गूगल ने अपने सर्च इंजन को एआई के जरिये मजबूती देना शुरू किया है। जीपीटी-4ओ और चैटजीपीटी के पुराने संस्करणों के बीच असली अंतर संवाद का है। चैटजीपीटी मुख्यतया टेक्स्ट आधारित एलएलएम इंटरफेस था जहां उपयोगकर्ता टेक्स्ट आधारित सवाल पूछ सकते थे और उन्हें टेक्स्ट के रूप में ही जवाब मिलता था।
इसके अलावा चैटजीपीटी-4 केवल सशुल्क उपलब्ध था जबकि जीपीटी-4ओ नि:शुल्क है, इसका इस्तेमाल करना आसान है और यह रियल टाइम में इंसान की तरह संवाद कर सकता है। यह एक मल्टीमोडल एआई मॉडल है जो आवाज, ध्वनि, दृश्य और टेक्स्ट को तत्काल एकीकृत करता है और चैटबॉट के जरिये मनुष्यों की तरह संवाद संभव बनाता है।
इसके अलावा यह लिखित शब्दों का अनुवाद करने, भावनाओं को पहचानने और उपयोगकर्ता की आवाज की टोन पहचानने, गणितीय समीकरणों को हल करने तथा काफी कुछ और करने में सक्षम है। ये बातें इसे काफी हद तक इंसानी स्वरूप उपलब्ध कराती हैं। ताजा तकनीकी विकास ओपनएआई तथा माइक्रोसॉफ्ट जैसे उसके निवेशकों दोनों के लिए अच्छा संकेत लिए हुए हैं।
फिलहाल ओपनएआई का मूल्यांकन करीब 80 अरब डॉलर है जो बीते 10 महीनों से भी कम समय में तीन गुना हो गया है। हालांकि एआई के कारण मची उथलपुथल दुनिया भर के श्रम बाजारों में देखी जा सकती है लेकिन अभी यह देखना शेष होगा कि जेनरेटिव एआई मॉडल तथा एलएलएम इंटरफेस को अपनाना मध्यम अवधि में श्रम बाजारों पर विशुद्ध सकारात्मक असर डालता है या नहीं।
एआई आधारित स्वचालन न केवल उत्पादकता तथा जीवन स्तर में सुधार करने वाला है बल्कि आशंका है कि यह रोजगारों के विस्थापन, बेरोजगारी बढ़ाने तथा गरीबी में इजाफा करने वाला भी साबित हो सकता है। अलग-अलग देशों में एआई के प्रभाव में भी अंतर देखने को मिल सकता है। भारत जैसे विकासशील देश श्रम आधारित रोजगार पर निर्भर हैं।
उम्मीद है कि वहां एआई के कारण अधिक उथलपुथल की स्थिति नहीं बनेगी। इसके साथ ही ऐसे देश एआई आधारित शुरुआती उत्पादकता लाभ से भी वंचित रह सकते हैं। ऐसा इसलिए कि इन देशों में अधोसंरचना विकास कमतर है और कुशल श्रमिकों की भी कमी है।
माइक्रोसॉफ्ट और लिंक्डइन द्वारा हाल ही में जारी की गई 2024 की वर्क ट्रेंड इंडेक्स एनुअल रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में कार्यस्थलों पर एआई के इस्तेमाल में काफी इजाफा हुआ है। बीते छह महीनों में इसका इस्तेमाल दोगुना हो चुका है। करीब 75 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि तमाम सामान्य काम एआई कर रहा है जिससे समय बचता है, रचनात्मकता बढ़ती है और वे अहम कामों पर ध्यान दे पाते हैं।
इसके साथ ही एआई साक्षरता के संदर्भ में कौशल की कमी, कर्मचारियों की छंटनी, उन्हें नए सिरे से या दोबारा कौशल संपन्न बनाने के लिए संसाधनों की कमी, गलत सूचनाओं का प्रसार, अल्गोरिद्म के पूर्वग्रह और साइबरसिक्योरिटी के जोखिम भी नीतिगत दृष्टि से अहम हैं। एआई का तेज विकास कई स्तरों पर उथलपुथल पैदा कर सकता है। कंपनियां और निजी स्तर पर लोग तेजी से एआई को अपना रहे हैं।
ऐसे में आरंभिक दौर में उत्पादकता में इजाफा लोगों की नौकरियों की कीमत पर हो सकता है। यह स्पष्ट नहीं है कि भारत तथा दुनिया का नीतिगत प्रतिष्ठान ऐसी चुनौतियों से कैसे निपटेगा। यह इकलौती चुनौती नहीं है। सूचना तैयार करने तथा उसके प्रसार के ये नए तरीके जो अब तक ज्ञात नहीं थे, उनके दूरगामी परिणाम होंगे। इस परिदृश्य में जब भारत को सक्रिय रूप से उत्पादकता लाभ लेना चाहिए, नीतिगत प्रतिष्ठान के लिए भी सतर्क रहना जरूरी है।