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अब नारी शक्ति वंदन अधिनियम से सशक्तीकरण Women's Reservation Bill 454 सदस्यों ने बिल के पक्ष में वोट किया, जबकि दो ने इसके विरोध में वोट किया। लोकसभा ने महिला आरक्षण विधेयक पर बुधवार 20 सितंबर मुहर लगा दी है। संसद की नई इमारत में कार्यवाही 19 सितंबर से शुरू हुई. पहले दिन क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिला आरक्षण से जुड़ा विधेयक पेश किया. संसद के निचले सदन ने 128वां संविधान संशोधन विधेयक नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया जिसके तहत लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। इस तरह 27 सालों से लंबित इस बिल की पहली बाधा पार हो गई। गृह मंत्री अमित शाह ने सदन को आश्वस्त किया कि यह प्रावधान 2029 में लागू हो जाएगा। कारण 2024 में लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद नई सरकार जनगणना और परिसीमन का काम शुरू कर देगी और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की प्रक्रिया रफ्तार पकड़ लेगी। हर 10 वर्षों पर होने वाली जनगणना 2024 में अगले लोकसभा चुनाव के बाद शुरू होगी। इसी तरह से परिसीमन आयोग महिलाओं के लिए आरक्षित होने वाली सीटों का निर्धारण करेगा। लोकसभा में इस संविधान संशोधन विधेयक के पक्ष में 454 सांसदों ने मतदान किया। केवल 2 ने इसके विरोध में मतदान किया। लोकसभा में 60 सांसदों ने इस विषय पर बहस में भाग लिया। इस पर नौ घंटे बहस चली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार ने इस विधेयक में महिलाओं के लिए ओबीसी कोटा लाने की मांग की। उन्होंने जाति आधारित जनगणना कराने जाने की भी मांग की। यह विधेयक 128वें संविधान संशोधन द्वारा आहूत एक विशेष सत्र में प्रस्तुत किया गया। विधायक के मुताबिक महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण की गारंटी देने का प्रावधान है। इस पहल की सभी ने स्वागत किया किंतु इस कानून की असली परीक्षा इस बात में निहित है कि यह देश की आधी आबादी को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता तथा रोजगार बेहतर तरीके से उपलब्धा कराने में किस हद तक मददगार साबित होता है। 17वीं लोकसभा में 82 महिलाएँ चुनकर आई हैं. उनका प्रतिनिधित्व करीब 15 फीसदी है. वहीं देश के 19 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से कम है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर की संसदों में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व 26.5 फीसदी है. इस विधेयक में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. महिला आरक्षण के लिए पेश किया गया विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है. क्या हैं इस विधेयक के प्रावधान और संशोधन क्या कहता है?
— विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. — इसका मतलब यह हुआ कि लोकसभा की 543 सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. — पुदुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित नहीं की गई हैं. — लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सीटें आरक्षित हैं. इन आरक्षित सीटों में से एक तिहाई सीटें अब महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी. — इस समय लोकसभा की 131 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं. महिला आरक्षण विधेयक के क़ानून बन जाने के बाद इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इन 43 सीटों को सदन में महिलाओं के लिए आरक्षित कुल सीटों के एक हिस्से के रूप में गिना जाएगा. — इसका अर्थ हुआ कि महिलाओं के लिए आरक्षित 181 सीटों में से 138 ऐसी होंगी जिन पर किसी भी जाति की महिला को उम्मीदवार बनाया जा सकेगा यानी इन सीटों पर उम्मीदवार पुरुष नहीं हो सकते.यह गणना लोकसभा में सीटों की वर्तमान संख्या पर की गई है. परिसीमन के बाद इसमें बदलाव आने की संभावना है. — संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा को इस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पास हो जाने के बाद बाद जनगणना के बाद परिसीमन की कवायद की जाएगी. परिसीमन में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीमाएं तय की जाती हैं. देशव्यापी परिसीमन 2002 में हुआ था. इसे 2008 में लागू किया गया था.परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भंग होने के बाद महिला आरक्षण प्रभावी हो सकता है. — अभी ऐसा लग रहा है कि 2026 के लोक सभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण का लागू होना संभव नहीं है.लागू हो जाने के बाद महिला आरक्षण केवल 15 साल के लिए ही वैध होगा. लेकिन इस अवधि को संसद आगे बढ़ा सकती है. — यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें भी केवल सीमित समय के लिए ही थीं, लेकिन इसे एक बार में 10 साल तक बढ़ाया जाता रहा है. कैसे तय होंगी आरक्षित सीटें? सरकार की ओर से पेश विधेयक में कहा गया है कि परिसीमन की हर प्रक्रिया के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन होगा. इसका विवरण संसद बाद में निर्धारित करेगी.यह संविधान संशोधन सरकार को संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण के लिए अधिकृत करेगा. सीटों के रोटेशन और परिसीमन को निर्धारित करने के लिए अलग एक कानून और अधिसूचना की ज़रूरत होगी. स्थानीय निकायों, जैसे पंचायत और नगर पालिकाओं में भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. इनमें हर चुनाव में सीटों का आरक्षण बदलता रहता है यानी रोटेशन होता है. अनुसूचित जाति के लिए सीटें किसी निर्वाचन क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षित की जाती हैं. छोटे राज्यों में कैसे आरक्षित की जाएंगी सीटें? अभी यह साफ नहीं हुआ है कि लद्दाख, पुडुचेरी और चंडीगढ़ जैसे केंद्र शासित राज्य, जहां लोकसभा की केवल एक-एक सीटें हैं, वहां सीटें कैसे आरक्षित की जाएंगी. उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों जैसे मणिपुर और त्रिपुरा में दो-दो सीटें हैं, जबकि नागालैंड में लोकसभा की एक ही सीट है. हालांकि, पिछले महिला आरक्षण विधेयक में इस मामले को निपटा गया था. साल 2010 में राज्यसभा की ओर से पारित किए गए विधेयक में कहा गया था कि जिन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में केवल एक सीट है, वहां एक लोकसभा चुनाव में वह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होगी और अगले दो चुनाव में वह सीट आरक्षित नहीं होगी. वहीं दो सीटों वाले राज्यों में दो लोकसभा चुनावों में एक सीट आरक्षित होगी, जबकि तीसरे चुनाव में महिलाओं के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं होगी. प्रस्तुति: मैगबुक