चांद की कुछ दिलचस्प बातें
हम हमेशा पृथ्वी के साथ—साथ सूर्य और चंद्रमा को लेकर जिज्ञासा से भरे रहते हैं. शायद ही कोई दिन ऐसा नहीं बीतता होगा जब सूर्य और चंद्रमा हमारी जुबान पर नहीं आते हों. सूर्योदय और सूर्यास्त से अगर हमें 24 घंटे के दिन और रात की जानकारी मिलती है, तो चंद्रमा महीने भर की तरीखों में बंटे समय को बताता है. कई कामकाज उस पर ही निर्भर हैं. दोनों की मौजूदगी में इंसान अपनी दिनचर्या निर्धारित करता है और कार्य को दिशा देता है. चंद्रयान—3 अभियान ने चंद्रमा के प्रति और भी जिज्ञासा भर दी है. पिछले कुछ दिनों में इंटरनेट पर चंद्रमा से जुड़े कई सवाल पूछे जा रहे हैं. यहां हम आपको चंद्रमा से जुड़ी दस बातें बता रहे हैं जो शायद आप नहीं जानते होंगे.
गोल नहीं है चंद्रमा: पूर्णिमा के दिन चंद्रमा बिलकुल गोल नज़र आता है. असल में एक उपग्रह के रूप में चंद्रमा किसी गेंद की तरह गोल नहीं, बल्कि अंडाकार है. जब आप चांद की ओर देख रहे होते हैं तो आपको इसका कुछ हिस्सा ही नज़र आता है. इसके साथ ही चांद का भार भी उसके ज्यामितीय केंद्र में नहीं है. ये अपने ज्यामितीय केंद्र से 1.2 मील दूर है.
आधा भी नहीं दिखता चंद्रमा: अगर आप कभी भी चांद देखते हैं तो आप उसका अधिकतम 59 फीसद हिस्सा देख पाते हैं. चांद का 41 फीसद हिस्सा धरती से नज़र नहीं आता. अगर आप अंतरिक्ष में जाएं और 41 फीसद क्षेत्र में खड़े हो जाएं तो आपको धरती दिखाई नहीं देगी.
चांद पर कैसे बने गहरे गड्ढे: चीन में एक प्राचीन धारणा है कि ड्रैगन के सूर्य को निगलने की वजह से सूर्य ग्रहण होता है.इसकी प्रतिक्रिया में चीनी लोग जितना संभव हो, उतना शोर मचाते थे.उनका ये भी मानना था कि चांद पर एक मेंढक रहता है जो चांद के गड्ढों में बैठता है.लेकिन चांद पर मौजूद इंपैक्ट क्रेटर यानी गहरे गड्ढे अब से चार अरब साल पहले आकाशीय पिंडो की टक्कर से बने हैं.
ब्लू मून: माना जाता है कि चंद्रमा से जुड़ा 'ब्लू मून' शब्द साल 1883 में इंडोनेशियाई द्वीप क्राकातोआ में हुए ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से इस्तेमाल में आया.इसे पृथ्वी के इतिहास के सबसे भीषण ज्वालामुखी विस्फोटों में गिना जाता है.कुछ ख़बरों के मुताबिक़, इस धमाके की आवाज़ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में स्थित शहर पर्थ, मॉरीशस तक सुनी गई थी.इस विस्फोट के बाद वायुमंडल में इतनी राख फैल गई कि राख भरी रातों में चांद नीला नज़र आया. इसके बाद ही इस टर्म की शुरुआत मानी जाती है.
चांद पर सीक्रेट प्रोजेक्ट: एक दौर ऐसा था जब अमेरिका चांद पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार कर रहा था.इसका मकसद सोवियत संघ को अमेरिकी सैन्य शक्ति से अवगत कराना था ताकि उसे दबाव में लाया जा सके.इस गुप्त परियोजना का नाम 'ए स्टडी ऑफ़ लूनर रिसर्च फ़्लाइट्स' और प्रोजेक्ट 'ए119' था.
पृथ्वी की रफ़्तार धीमी कर रहा है चंद्रमा: जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे क़रीब होता है तो इसे पेरिग्री कहते हैं.इस दौरान ज्वार-भाटा का स्तर सामान्य से काफ़ी बढ़ जाता है.इस दौरान चंद्रमा पृथ्वी की घूर्णन शक्ति भी कम करता है जिसकी वजह से पृथ्वी हर एक शताब्दी में 1.5 मिलिसेकेंड धीमी होती जा रही है.
चंद्रमा की रोशनी: पूर्णिमा के चांद की तुलना में सूरज 14 गुना अधिक चमकीला होता है. पूरनमासी के एक चांद से आप अगर सूरज के बराबर की रोशनी चाहेंगे तो आपको 398,110 चंद्रमाओं की ज़रूरत पड़ेगी.जब चंद्र ग्रहण लगता है और चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है तो उसकी सतह का तापमान 500 डिग्री फॉरेनहाइट तक गिर जाता है.और इस प्रक्रिया में 90 मिनट से भी कम का समय लगता है.
लियानोर्डा डा विंसी का शोध: कभी-कभी चांद एक छल्ले की तरह लगने लगता है. इसे हम अर्धचंद्र या फिर बालचंद्र भी कहते हैं.ऐसी सूरत में हम पाते हैं कि चांद पर सूरज जैसा कुछ चमक रहा होता है.चांद का बाक़ी हिस्सा बहुत कम दिखाई देता है. इतना कि हम इसे न के बराबर कह सकते हैं और कुछ दिखाई देना भी काफी हद तक मौसम पर निर्भर करता है.ज्ञात इतिहास में लियानार्डो डा विंसी पहले ऐसे शख़्स थे जिन्होंने ये पता लगाया था कि चंद्रमा सिकुड़ या फैल नहीं रहा है बल्कि उसका कुछ हिस्सा केवल हमारी निगाहों से ओझल हो जाता है.
चांद के क्रेटर का नाम: इंटरनेशनल एस्ट्रॉनॉमिकल यूनियन न केवल चंद्रमा के गड्ढों बल्कि किसी भी अन्य खगोलीय चीज़ का नामकरण करता है. चंद्रमा के क्रेटर्स (विस्फोट से बने गड्ढे) के नाम जानेमाने वैज्ञानिकों, कलाकारों या अन्वेषकों (एक्सप्लोरर्स) के नाम पर रखे जाते हैं. अपोलो क्रेटर और मेयर मॉस्कोविंस (मॉस्को का समुद्र) के पास के क्रेटर्स के नाम अमेरिकी और रूसी अंतरिक्षयात्रियों के नाम पर रखे गए हैं. मेयर मॉस्कोविंस चांद का वो इलाका है जिसे चांद का सागरीय क्षेत्र कहा जाता है. चांद के बारे में हमें बहुत कुछ ऐसा है जिसके बारे में इंसान नहीं जानते हैं.एरिज़ोना के लॉवेल ऑब्जर्वेट्री ऑफ़ फ्लैगस्टाफ़ ने साल 1988 में चांद के बारे में एक सर्वे किया था.इसमें भाग लेने वाले 13 फीसदी लोगों ने कहा था कि उन्हें लगता है चांद चीज़ से बना हुआ है.
चांद का रहस्यमयी दक्षिणी ध्रुव: चांद का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र जहां चंद्रयान-3 पहुंचने की कोशिश कर रहा है, उसे बेहद रहस्यमयी माना जाता है.नासा के मुताबिक़, इस क्षेत्र में ऐसे कई गहरे गड्ढे और पर्वत हैं जिसकी छांव वाली ज़मीन पर अरबों सालों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है.