
अपराध पर अंकुश प्रीवेन्शन और डिटेक्शन से
सामान्य तौर पर लुटेरे दिल्ली के प्रमुख बाजारों में खड़े होकर शिकार की तलाश करते हैं. उन्हें चिह्नित कर उनका पीछा करते हैं और मौका मिलते ही उन्हें लूट लेते हैं. लेकिन इस तरह से होने वाली वारदात से कारोबारी बच सकते हैं. उत्तरी जिला डीसीपी सागर सिंह कलसी ने जब से सवाधानी बरतने वाले उपाय बताए हैं तब से इसमें काफी कमी आई है.
इस बारे में सावधानियों के मूलमंत्र श्री कलसी ने साल 2022 में हुई करोड़ों रुपये की तीन वारदातों के बाद कारोबारियों को दी. लूट से बचाव के उपाय में उन्होंने बताया कि अपने दफ्तर या दुकान में रखी जानकारी कर्मचारी या किसी अन्य शख्स को साझा नहीं करें.दुकान या दफ्तर के अंदर या बाहर सीसीटीवी कैमरे अवश्य लगवा लें. नौकर या कर्मचारी का पुलिस से सत्यापन अवश्य करवा लें. बड़ी रकम लेकर आने—जाने के दौरान अपने साथ हथियार से लैस सिक्योरिटी गार्ड को रख लें. सिक्योरिटी गार्ड, उसके हथियार और सेहत की पुष्टी अवश्य करवाएं.
इस तरके कई हिदायतों के बाद लूट की वारदातों में कमी आई. नार्थ दिल्ली के डीसीपी सागर कलसी की मानें तो पुलिस को नीतियों पर चलते हुए नीयत साफ रखनी चाहिए... और नजरिया व्यापक होनी चाहिए...अहिंसक आचरण से बचते हुए लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए... और तकनीक की ताकत से आई डिजिटल क्रांति के बदलाव के दौर में साइबर क्राइम के प्रति सजग रहने के साथ—साथ यूथ को भटकने से सचेत करना चाहिए! वह सब कैसे हो? बता रहे हैं खुद सागर कलसी, जिनसे हमारे रिपोर्टर उमेश त्रिवेदी ने लंबी बातचीत की है!
राजधानी दिल्ली के राजघाट पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थान गांधी दर्शन में 8 मई 2023 को उत्तरी दिल्ली के डिप्यूटी कमिश्नर आॅफ पुलिस सागर कलसी को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था. आयोजन उत्तरी दिल्ली पुलिस के लिए अहिंसक आचरण पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का था. इस कार्यक्रम में दिल्ली के उत्तरी जिले के करीब 120 पुलिसकर्मियों ने हिस्सा लिया था. इस मौके पर श्री कलसी ने पुलिस की कार्यक्षमता, कार्यशैली और समाज के प्रति उस की जिम्मेदारी पर चर्चा करते हुए महात्मा गांधी के आदर्श को अपनाने पर जोर दिया.
कलसी ने अपने संबोधन में महात्मा गांधी के सिद्धांतों और शिक्षा के अनुरूप सामाजिक परिवर्तन के शक्तिशाली उपकरण के रूप में अहिंसा और शांतिपूर्ण संवाद की वकालत की. कलसी ने यह भी कहा कि आज हमारे पास महात्मा गांधी से बड़ा कोई खजाना नहीं है और उनके सिद्धांत समाज में बदलाव लाने में कारगर हो सकते हैं.
इस मौके पर ही क्राइम रिपोर्टर उमेश त्रिवेदी ने श्री कलसी से पुलिस की जिम्मेदारियों के साथ—साथ चुनौतियों, प्रशासनिक समस्याओं, आपराधिक मामलों के निपटारे में उन की भूमिका, क्राइम के रोकथाम, आम नागिरिकों की सुरक्षा आदि के संबंध में लंबी बातचीत की।

अपना संक्षिप्त परिचय देते हुए श्री कलसी ने बताया कि वह पंजाब राज्य के कपुरथला जिले के नडाला गाँव से आते हैं. पिता सुरेन्द्र सिंह कलसी ट्रांसपोर्ट के करोबार में थे, लकिन उन्हें पुलिस की नौकरी पसंद थी. दादा भारतीय सेना में थे. मां श्रीमती इकबाल कौर पंजाब सरकार के नडाला स्कूल से रिटायर्ड लेकचरर हैं. दो बहनें अमेरिका में डॉक्टर हैं और पत्नी भी एमबीबीएस है. पत्नी की नियुक्ति वह और केन्द्र सरकार में है.
इंजीनियरिंग से आइपीएस तक
वैसे तो उन्होंने 8वीं तक की पढ़ाई अपने गांव नडाला में की है, लेकिन जालंधर से हाईस्कूल की पढ़ाई कर वहीं एनआईटी से उन्होंने केमिकल इंजीनियरिंग ग्रेजुएशन किया है. बाद में एमटेक आईआईटी, दिल्ली से किया. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बावजूद उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा को चुना. इस संबंध में उन्होंने बताया कि यूपीएससी की परीक्षा साल 2010 में पास की.
उन्होंने बताया कि माता-पिता का सपना एक अच्छी सरकारी नौकरी की थी, वह तो मिल गई, लेकिन यूपीएससी परीक्षा में अच्छे रैंक आने के कारण आईपीएस. में चयन हुआ. पहला एजीएमयूटी काडर एजीएमयूटी कैडर के तहत जम्मू-कश्मीर-लद्दाख में नियुक्ति मिली. समाज सेवा का संकल्प लिए हुए पुलिस की नौकरी सहर्ष स्वीकार ली.
जब श्री कलसी से राजधानी में बढ़ते अपराध और उसपर अंकुश लगाने को लेकर सवाल पूछे गए तब उन्होंने बताया कि समाज में जैसे-जैसे विकास होता है, नयी टेकनोलॉजी आती है. जैसे-जैसे गांव से शहर की ओर पलायन होता है वैसे—वैसे अलग—अलग चुनौतियां सामने आने लगती हैं. काम, क्रोध, अहंकार लोभ, मोह इंसान के नेचर में है. किसी में अधिक होता है और वह चाहता है कि साम, दाम, दंड भेद से और अधिक मिल जाए. लोग जल्दी अमीर होना चाहते हैं.
अपराध की श्रेणियां
तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं. प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है. बढ़ते अपराधों का यह भी कारण है. वैसे अपराध अलग-अलग श्रेणियों की हैं. एक्सीडेंट के केस होते हैं.गलती से भी अपराध हो जाते हैं. जैसे सिर फटना इत्यादि. कई योजनाबद्ध केस भी होते हैं. बढ़ती जनसंख्या भी एक कारण है.
इस के लिए कलसी सोशल मीडिया समेत मीडिया को भी जिम्मेदार ठहराते हैं. उन्होंने दार्शनिक अंदाज में बताया— जनसंख्या के कारण भीड़ एक वजह है. सिगमंड फ्रायड यूरोप के एक वैज्ञानिक के मुताबिक व्यवहार सेक्स एवं एग्रेसन से हावी होता है. असंतुलन भी कई बार महिलाओं के प्रति अपराध को बढ़ाता है. समाज में गर्माहट बढ़ गयी है. भीड़ के कारण अपराध होता है.
जब सवाल बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाए जाने में देरी या कमी पर उठता है तब पुलिस कठघरे में आ जाती है? इसपर कलसी ने सधे हुए अंदाज में कहा—
प्रीवेन्शन और डिटेक्शन से अपराधों पर अंकुश
मेरी राय में प्रीवेन्शन और डिटेक्शन से बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है. प्रीवेन्शन यानी रोकना है. इस के लिए जागरूकता की जरूरत है. उदाहरण के लिए मार्केट और रेजीडेन्ट वेलफेयर ऐसाशियेशन के साथ मीटींग कर इस में पहल की जा सकती है. सलाह—मश्वीरा कर पुलिस का सहयोग लिया जा सकता है. सीसीटीवी कैमरे की टेकनोलॉजी का प्रयोग करते हुए लोगों कमें शान्ति और न्याय की भावना को बढ़ाकर अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है.
इसी तरह से डिटेक्शन यानी पता लगाने की प्रक्रिया है. खतरनाक से खतरनाक अपराधी को मानवीयता के साथ वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग कर सलाखों के पीछे भेजना, या फिर कम्युनल किस्म के अपराधी को तुरंत पकड़कर जेल में डालने की सक्रियता से अपराध रोकने में मदद मिल सकती है. जब पुलिस द्वारा दिखाई जाने वाली इस तत्परता के दरम्यान पुलिस पर डाले जाने वाले राजनीतिक दवाब के बारे में सवाल किया गया तब उन्होंने संविधान की बात करते हुए अपने बारे में कहा कि उन्हें कभी कोई राजनीतिक दबाव नहीं मिला. उन्होंने मार्क वेबर का उदाहरण दिया, जिन्होंने ब्युरोक्रेसी के संकल्प में नन कमिटेड एवम् एनोनीमीटी की बात की है. उन का कहना था कि संविधान के प्रमुख सेवा भाव के साथ नौकरी की जा सकती है. हमारा धर्म, संविधान के प्रति सबसे पहले है. हमें निडर होकर काम करना चाहिए.
नए अपराधी
श्री कलसी ने अपराधी और पुलिस के बीच खींचतान एवं नए अपराधी से निपटने को लेकर भी कई बातें बताईं. उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस में बीट सिस्टम है. बीट स्टाफ यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि लोग अपराध में शामिल नहीं हों. यह एक प्राथमिकता के रूप में लिया जाता है कि इलाके के लोग अपराध की दुनिया से दूर रहें. इस के लिए लगातार चौकसी की जाती है.
दिल्ली पुलिस के पास आंख और कान योजना है. इलाके में अमन कमेटियां और रेजीडेन्टस वेलफेयर एसोशियेशन के द्वारा अपराध को रोकने का प्रयास करती है. बीट द्वारा स्थापित गुन्डे और उन के गुर्गे का डाटा बेस तैयार किए जाते हैं. उन पर दबिश दी जाती है.
समाज में पुलिस की छवि को लेकर भी उसे कठघरे में रखा जाता रहा है. उस के द्वारा गलत अपराधी को धर दबोचने से लेकर उस से जबरन बयान उगलवाने और फंसाने के लिए गलत धाराएं लगाने तक की शिकायतें आती रहती हैं.उस पर उंगली उठती रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि समाज में अपनी छवि सुधारने के लिए पुलिस को क्या करना चाहिए?
इस के जवाब में श्री कलसी ने बताया कि आज धारणा प्रबंधन का दौर है. अच्छे हो, सही हो, काबिल हो, ईमानदार हो, बहुत जरूरी है. यह दिखना भी चाहिये. पुलिस दिन रात बहुत काम करती है. नि:सन्देह मीडिया में, आम जनता में यह महसूस भी होता है कि होली, दिवाली व महत्वपूर्ण त्यौहार पुलिस की नौकरी में बीताती है, लेकिन कुछ गलत मामलों के कारण पुलिस अधिकारी का ही नहीं, बल्कि डिपार्टमेन्ट का भी नाम खराब हो जाता है.

पुलिस विभाग की जिम्मेदारी
किसी भी अच्छे काम का अनुमान या कहिए प्रोजेक्शन, अच्छी पब्लिक डीलींग और कर्मचारी के अच्छे व्यवहार पर निर्भर करता है. इसे दर्शाते हुए नौकरी करनी चाहिये. सब से अच्छा 'सर्विस डेलीवरी सिस्टम' किसी भी डिपार्टमेन्ट की छवि सुधार सकती है. सही तरीका भी यही है. पुलिस में भी हमारा लक्ष्य यही रहता है कि जनता से जो मेल हो, उस में संवेदनशीलता हो, सरलता हो, सहजता हो... अनुकूल हो.
पुलिस का लोगों के प्रति व्यवाहार कैसा होना चाहिए, इस बारे में श्री कलसी का कहना है इस में कोई संदेह नहीं है कि पुलिस डिपार्टमेन्ट गरीबों और वैसे बेसहारा लोगों का है, जिनका कोई नहीं है, उनके काम आता है. यह बात जरूर बताने वाली है. याद कीजिए कोरोना काल को, उस दौरान पुलिस वालों ने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए शांति, कानून व्यवस्था एवं अमन चैन कायम रखने के लिये अपनी जान दांव पर लगा दी. अपनी कुर्बानी दी. लोगों की मदद की. इस से जनता में पुलिस की छवि में सुधार हुआ.
साइबर क्राइम बढ़ा
डिजिटल क्रांति के बाद साइबर क्राइम में भी इजाफा हुआ है. यह एक बड़ी समस्या बनकर सामने आई है. इस पर अंकुश लगाने में पुलिस के हाथपांव फूल जाते हैं. इस के अपराधी पहुंच से काफी दूर होते हैं. पुलिस महकमे को इस से निपटने में किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? इसपर अंकुश कैसे लगे? लोगों को कैसे जागरूक किए जाए? पुलिस तकनीकी जानकारियों से कितनी लैस है? इत्यादी कई सवालों का जवाब देते हुए श्री कलसी ने आधुनिक समाज में डिजिटल युग के प्रभाव का एक खाका ही खींच डाला.
उन्होंने बतया कि आज का युग डिजिटल युग है. 30 साल पहले अमेरिका, कनाडा से एक चिट्ठी आती थी और उसका जवाब महीनों बाद पहुंचता था. आज भारत के किसी भी कोने से दुनिया के किसी भी कोने में जन्में पोते, पोती को परिवार वाले लाइव आशीर्वाद देते हैं. गाँव, शहर और देश—विदेश का फासला डिजिटल क्रान्ति ने खत्म कर दिया है. जहां किसी चीज़ के फायदे होते हैं, तो नि:संदेह कुछ नुकसान भी होते हैं. शरारती तत्वों ने फायदा उठाने की कोशिश की है और अपराध दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर दिल्ली में घर में बैठे आदमी से फोन में बात कर, मैसेज भेजकर उनके संपर्क में आए बगैर, उनके साथ ठगी कर लेते हैं.
इस पर अंकुश लागाने के लिए पहल करने और पुलिस द्वारा प्राथमिकता के साथ काम करने के संबंध में उन्होंने बताया कि स्कूलों में, कॉलजों में, झुग्गी झोपड़ी की बस्तियों में, टीवी, रिसाले (मैगजीन), अखबार के माध्यम से, रेलवे स्टेशनों, बस अडडों आदि पर नुक्कड़ नाटक के द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जाता है. लोगों को नये नये तरिकों के अपराध के बारे में अवगत करवाया जाता है. अगाह किया जाता है. होशियार किया जाता.
इन्वेस्टीगेशन जरूरी
लेटेस्ट टेकनोलोजी का प्रयोग करके अपराधियों को पकड़ा जा रहा है. बहुत अच्छी इन्वेस्टीगेशन करके अपराधियों को जेल के सलाखों के पीछे भेजा जा रहा है. इस में कोआर्डिनेशन यानी सामंजस्य बिठाने और सूचना के आदान—प्रदान (इनर्फोमेशन शेयरिंग) का बहुत योगदान है. दुनिया भर में पुलिस फोर्स आपस में मिलती रहती है. इस से अपराधियों के बारे में तथा नये-नये अपराध की सूचना के बारे में सूचना का आदान प्रदान होता रहता है. कहते हैं न ‘इलाज से बेहतर रोकथाम है!' इसी र्फामुले का इस्तेमाल प्रीवेन्टिव पालिसिंग में होता है.
पुलिस बैंको, मोबाइल कंपिनियों, कंप्यूटिंग और आईटी फिल्ड की साफ्टवेयर कम्पनियों से पुलिस फोर्स लगातार सम्पर्क में रहती है. ताकि इनके सिस्टम को और भी सुरक्षित बनाया जा सके. ओटीपी, डबल पासवर्ड, फेस रीकागनीशन इस तरह के सिक्योरिटी फीचरस आ रहे हैं, जिससे अपराधियों को चुनौती दी जाती है.
दिल्ली में यूथ नशा के जाल में जकड़ते जा रहे हैं, आए दिन ड्रग की बरामदगी होती है, लेकिन उस से जुड़े माफियाओं पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो पाता है. इस बारे में श्री कलसी से जब दिल्ली पुलिस की योजना के बारे में पूछा गया तब उन्हें इसे लेकर एक चिंता जताई. उन्होंने कहा कि नशाखोरी चिंता का विषय है. डिमान्ड और सप्लाई, दोनों लेवल को चेक करना जरूरी है. इसका कानून बहुत सख्त है. जो ड्रग की तस्करी करते हैं, उनको पकड़ कर सलाखों के पीछे भेजना जरूरी है.
युवा पीढ़ी को काउन्सलिंग
इसे तैयार किए जाने और इस की खेती के जगह तक जाने की आवश्यकता है. आज की युवा पीढ़ी को काउन्सलिंग के जरिये रीहेबीलीटेश (पुर्नवास) के जरिये रोजगार मुहैया करवाना जरूरी है. ऐसे युवाओं को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त करना, समाज कल्याण, देश निर्माण आदि के कार्यों में लगाना चाहिए. इस तरह से ड्रग्स की डिमान्ड चेक की जा सकती है. इससे काफी फर्क पड़ेगा.
श्री कलसी में इस बारे पुलिस द्वार की जाने वाली पहल के बारे में भी बताया कि दिल्ली पुलिस के लिए एनजीओ के साथ मिलकर काम करती है और उस के द्वारा कई स्तर की योजनाएं चलती है. पुलिस के द्वारा स्पेशल ड्राइव चलता रहता है. उन्होंने इस का एक उदाहरण मजनूं के टीले का दिया.
वहां के स्थानीय लोग, एनजीओ और पुलिस मिलकर खेलकूद के प्रोग्राम का आयोजन करते हैं. काउन्सलिंग करने साथ—साथ सामाजिक जागरूकता के प्रोग्राम चलाए जाते हैं. इस से नशा कम होने और अपराध में कमी आने का असर दिखता है.
नशे शिकार युवाओं के साथ—साथ युवाओं का गैंगस्टर्स के रूतवे से प्रभावित होना भी बड़ी समस्या है. युवा इसे अपना आदर्श मानकर अपराध के क्षेत्र में बढ़ रहे हैं. उन्हें कैसे रोका जाए? वे किस तरह से गैंगस्टर के जाल में फंस जाते हैं और फिर चाहकर भी नहीं निकल पाते हैं. इनसे जुड़ी कई समस्याएं हैं, जो परिवार और समाज को बुरी तरह से प्रभावित करती है. इस बारे में भी श्री कलसी से पूछा गया और उन से जानकारी ली गई कि पुलिस क्या कर रही है? एक जिम्मेदार पद दिल्ली के उपयुक्त पर रहते हुए वे इस बारे में क्या नजरिया रखते हैं? इसे उन्होंने मनोवैज्ञानिक स्तर पर समझाया.
मनोवैज्ञानिक तरीका
उन्होंने कहा कि वैसे युवाओं को समझने और उन्हें परखने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीका आजमाया जाना चाहिए. किशोर अवस्था में 12-13 साल से 18 साल की उम्र में बच्चे अपना रोल माडल या कहिए एक प्रेरणास्रोत ढूंढने की रूचि रखते हैं. इसे देखते हुए उन्हें अगर अच्छी प्रेरणा, अच्छा गुरू, अच्छे संस्कार यदि मिले तो इंसानी ऊंचाईयां छू सकता है.
इस के विपरित मोहल्ले में जो नया रंगरूट बाइक पर बैठा कुछ साल बड़ा हुल्लड़बाजी करता है. मूछटंडा बना सिगरेट का छल्ला हवा में उड़ाता है, मोटर साइकिल पर बैठकर किसी को गाली देकर एक नकली रूतबा दिखाता है, वह अगर रोल माडल बन जाए तो बच्चा बिगड़ जाता है.
ऐसे किशोर उम्र के बच्चे ही अक्सर निजी चेले, गुर्गे, पट्ठे, चम्चे बनना पसन्द करते हैं और मां—बाप, शिक्षक, पुलिस व बड़ों का उन पर ध्यान नहीं होने पर वे नकली हवाबाजी और बनावटी शोहरत के चक्कर में पड़कर अपना भविष्य खराब कर लेते हैं. हाल ही में इन्सटाग्राम, फेसबुक वगैरह पर गैंग जैसे ग्रुप बनाकर, असली, नकली पिस्तौल, मोटर साइकल, फ्लैश करने का कल्चर शुरू हो गया है.
जिसे कच्ची उम्र के युवक कापी करने की कोशिश करते हैं और पढ़ाई लिखाई, खेलकुद से दूर होकर गलत संगत में पड़ जाते हैं. इस के साथ जल्दी अमीर बनने, जिन्दगी में लुत्फ लेने का लालच देकर युवाओं को गैंगस्टरर्स अपनी तरफ खींचने की कोशिश करते हैं. इस में उन्हें बहुत हद तक सफलता मिल जाती है.
इसमें मां बाप, बड़े बुर्जुग, सम्मानित व्यक्तियों, पुलिस, शिक्षक इन सबका यह पहला दायित्व/कर्तव्य है कि वैसे युवाओं को गलत हीरोगिरी करने से रोकें.हालांकि ओछी और घिनौनी हरकत करने वालों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस काम करती रहती है. इसके साथ ही फिल्म के जरिये भी समाज में अच्छे जीवन का प्रदर्शन की फिल्म बनाना और बुरे व्यक्ति का बुरा होना, टीवी में आये तो समाज में गलत प्रेरणा पर रोक लगेगी.
समाज की धारा से भटके
पुलिस के लिए वैसे लोग भी कई बार समस्या पैदा कर देते हैं, जो समाज की धारा से भटके होते हैं. उन के प्रति पुलिस कितनी जिम्मेदार है और वे किस तरह से अपने दायित्व का निर्वाह करती है? इस सवाल ने श्री कलसी को कुछ सेकेंड के सोचने पर मजबूर कर दिया था. थोड़ा ठहरते हुए उन्होंने बताया कि समाज में शान्ति, कानून व्यवस्था को कायम रखने में पुलिस का अहम रोल है.
जबकि समाज को मुख्यधार में बनाए रखने के लिए दूसरे विभागों की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है. जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग, सामाजकल्याण के लिए सुधार, सिविक विभाग, कारपोरेशन आदि भी अहम रोल निभा सकते हैं. ताकि समाज में लोगों को अच्छी सड़कें मिले, साफ सफाई, परिवहन व्यवस्था और नागरिक सुविधाएं मिले ताकि लोग खुश रहें, ना कि असमाजिक बनें. जिस हद तक पुलिस कर सकती है, करती ही है.
मसलन, कोई परीक्षा में फेल होकर भटक गया, प्यार में असफल होने पर क्राइम कर लिया, कारोबार में दीवालिया होने पर आवारा हो गया, वगैरह वगैरह...! उनका सही मार्गदर्शन, सही दिशानिर्देश आदि का काम पुलिस करती है.
इस बारे में श्री कलसी ने जेल में कैदियों के लिए समाज सुधार कार्यक्रम के बारे में बताया. उन्हें योगा करने एवं खाना पकाने, रोजगार से सम्बन्धित कार्य, कपड़े सिलना, साबुन, मोमबत्ती बनाना, खादी उद्योग का कारोबार आदि सिखाया जाता है. ताकि वे जेल से छूटने के बाद समाज में ईज्जत से आत्मनिर्भर होकर रह सकें.
पुलिस और लोगों के साथ सामांजस्य बिठाने के क्रम में श्री कलसी ने कुछ अपने अनुभव भी बताए. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें 25 साल पहले हुये एक मर्डर के केस को सुलझाने में सफलता मिली. इसी के साथ उन्होंने अपनी कई पोस्टिंग के बारे में भी बताया, जिनमें एसीपी कोतवाली, चांदनी चौक से लेकर एडीशनल डीसीपी सेन्ट्रल डिस्ट्रीकट, वेस्ट डिस्ट्रक्ट, एस.पी. ईटानगर और एस.पी. तवांग, व कश्मीर में भी पोस्टिंग के दरम्यान अपनी पहचान छोड़ी. इस दौरान कुछ केस जो यादगार कहे जा सकते हैं, उनमें अपहरण के साथ फिरौती के मामले में कई रात की छापेमारी थी. जिस में उन्हें बड़ी मुश्किल से बच्चे को बचाने में सफलता मिली थी.
साक्षात्कार: उमेश त्रिवेदी