
चीख़ें बेआवाज़
नतीजा नाइक ने अपनी नज़रें लड़की की आँखों से फेरने की सायास कोशिश की. लेकिन कुछ तो था लड़की की उन मृत खुली आँखों में कि नाइक एकदम से अपनी नज़रें हटा नहीं सका .उसे लगा , जैसे उन मृत आँखों में लड़की अचानक सजीव हो उठी हो, जो किसी याचना.. गिड़गिड़ाहट या फिर बेबस पुकार से लथ-पथ थीं !!..मानो वे आँखें कह रही हों कि क्या मुझे न्याय दिलाने कोई नहीं आयेगा ?..क्या कोई नहीं जानना चाहेगा कि मैं क्यों मर रही हूँ ?..इस समाज में मेरे क्रूर हत्यारों से प्रतिशोध लेने या फिर उन्हें कठोरतम दंड देने का दायित्व किसी का नहीं बनता क्या ? ..कोई उन्हें पकड़ कर मेरे साथ हुए जुल्म का प्रतिशोध नहीं ले सकता? कठोरतम दंड नहीं दे सकता ?
मुहल्ला लहूलुहान था. लगभग सभी के चेहरों पर स्याही पुती थी. गली के एक छोर से लेकर मुहल्ले के नाके तक दहशत कुलांचे मार रही थी . किसी में यह साहस नहीं था कि आगे आकर वारदात के बारे में सच-सच बता सके .
.. पुलिस आ चुकी थी .तफ्तीश जारी थी .
..लड़की का खून से लथ-पथ ऐंठा हुआ शरीर सड़क के बीचों-बीच पड़ा था. उसकी फटी पड़ी आँखें अथाह दर्द से भरी देर तक हुए संघर्ष का बिना शब्दों के ज़िंदा बयान थीं !...ज़रुरत थी ,तो उसे बस ठीक से पढने की .
ऑफिसर-इन-चार्ज प्रशांत नाइक ने स्पॉट पर खड़े-खड़े एक सरसरी निगाह आस-पास दौड़ाई थी . मगर दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा था . हवा में ख़ूनी गंध का एहसास चेतना के रंध्रों से शिराओं में उतर रहा था .वारदात के समय या बाद में जो भी तमाशबीन रहे होंगे, पुलिस के आते ही मौसमी बादलों की तरह इधर-उधर छंट गये थे . अब अगर वहां कुछ था,तो वह थी लड़की की लाश !... उसके पास पछाड़ खाती, असमय बूढी हो चुकी लड़की की माँ और उसकी न थमने वाली रूलाई!..बाकी मौजूद थी एक अजीब डरावनी सी मनहूसियत, जो नाइक के दिमाग पर लगातार दस्तक दे रही थी. उसका सर भारी सा होने लगा था .
नाइक ने समझ लिया था कि आसानी से यहाँ कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है .लिहाज़ा आस-पास अपनी पैनी दृष्टि डालते हुए वह मृत-देह के पास बैठ कर जगह का मुआयना करने लगा...कोलतार की सड़क होने के बावजूद वहां जूतों में लगी मिटटी के बिखरे निशान हत्यारों और लड़की के बीच हुई खींच-तान ,धर-पकड़ और खूनी संघर्ष की बहुत हद तक पुष्टि कर रहे थे.
..नाइक ने लड़की की अकड़ी देह को गौर से देखा था .सफ़ेद सलवार पर पीला कुरता खून के बड़े-बड़े धब्बों से गंदला लाल होकर उसकी अकड़ी हुई देह से बुरी तरह चिपक गया था !..बदन पर चाकू के कई वार थे !..ज़ख्मों से रिसा रक्त अभी बहुत सूखा नहीं था ...लड़की को मरे छः-सात घंटे का समय बीत चुका था .लड़की सोलह-सत्रह साल से ज़्यादा की नहीं थी .पर थी तीखे नैन-नक्श वाली !..अनुमान लगाया जा सकता था कि उसका चेहरा मासूम और खासा आकर्षक रहा होगा ,जो अब पूरी तरह निस्तेज होकर आहिस्ता-आहिस्ता काला हुआ जा रहा था .
मुआयना करते नाइक की नज़रें लड़की की फटी-फटी आँखों से जा टकराईं!..और जैसे कुछ पल के लिए सिहर गया हो वह!..अपने पंद्रह साल के पुलिसिया- करियर में उसने बतौर जांच-अधिकारी दर्ज़नों मामलों की तहक़ीकात की थी .जाने कितनी बार उसे कटी-फटी ,सड़ी-गली लाशों का सामना करना पड़ा था ..ऐसी बदबू मारती विकृत लाशें ,जिन्हें देखना या उनके निकट जाना भी बर्दाश्त से बाहर हो !...लेकिन पुलिस की ड्यूटी इतनी आसान है क्या ?..कैसे-कैसे दृश्य झेलने की आदत डालनी पड़ती है!..नाइक भी इन सबका अभ्यस्त हो चला था ...अब वह कटी-फटी या सड़ी-गली लाशों को देख कर भी विचलित नहीं होता था .फिर भी फ़िलवक्त सामने पड़ी लड़की की लाश देख कर सिहरन ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था !
..वैसे जांच –अधिकारी होने के नाते किसी तरह की भावुकता से बचना भी उसके पेशेवर होने का एक अहम् हिस्सा था .इसलिए उसकी भरसक कोशिश यही रहती कि जांच के दौरान उस पर भावुकता की कोई भी परत न चढ़ने पाए !.. यूं तो इतनी कम उम्र की एक कमसिन सी ग़रीब लड़की की इतनी बेरहम हत्या और उसकी बीच-सड़क पड़ी अकड़ी लाश किसी भी सामान्य आदमी को बेहद जज़्बाती बना सकती थी .मगर पुलिस के लिए ऐसे मामलों में जज़्बाती होने का कोई मायने नहीं था ,बल्कि ज़रूरी था कि लड़की के क़त्ल को फ़िलहाल एक जघन्य वारदात के तौर पर देखते हुए मुजरिमों को जल्द से जल्द पकड़ने ,उनकी चार्ज –शीट तैयार करने की कार्रवाई तेज़ी से की जाये.
नतीजा नाइक ने अपनी नज़रें लड़की की आँखों से फेरने की सायास कोशिश की. लेकिन कुछ तो था लड़की की उन मृत खुली आँखों में कि नाइक एकदम से अपनी नज़रें हटा नहीं सका .उसे लगा , जैसे उन मृत आँखों में लड़की अचानक सजीव हो उठी हो, जो किसी याचना.. गिड़गिड़ाहट या फिर बेबस पुकार से लथ-पथ थीं !!..मानो वे आँखें कह रही हों कि क्या मुझे न्याय दिलाने कोई नहीं आयेगा ?..क्या कोई नहीं जानना चाहेगा कि मैं क्यों मर रही हूँ ?..इस समाज में मेरे क्रूर हत्यारों से प्रतिशोध लेने या फिर उन्हें कठोरतम दंड देने का दायित्व किसी का नहीं बनता क्या ? ..कोई उन्हें पकड़ कर मेरे साथ हुए जुल्म का प्रतिशोध नहीं ले सकता? कठोरतम दंड नहीं दे सकता ?
नाइक ने उन आँखों में इन सवालों को पढ़ते ही जैसे घबरा कर अपनी आँखें चुरा ली थीं . उसका मन न चाहते हुए भी सहसा जज़्बाती हो गया था .कुछ विचलित सा भी . वह धीरे से उठ खड़ा हुआ था . उठते-उठते उसने अपने मातहत शिंदे को “बॉडी “ पोस्टमार्टम के लिए भेजने का आदेश दे दिया था .फिर उसने लड़की की माँ से पूछ-ताछ शुरू कर दी थी .
..लड़की का नाम खुशबू था .वह पास के ही एक स्कूल में पढ़ती थी .घर की माली हालत ठीक नहीं थी . उसके पिता की मौत तीन साल पहले एक सड़क-दुर्घटना में हो चुकी थी .तबसे अपनी विधवा माँ और छोटे भाई का सहारा खुशबू ही थी .पढाई और घर का ख़र्च चलाने के लिए खुशबू एक सिलाई सेंटर में काम किया करता थी ...खुशबू की बेहाल विधवा माँ बिलखते हुए तमाम जानकारियाँ देती जा रही थी ..और नाइक खामोशी से सुनता , नोट पैड पर लिखता जा रहा था ..पुलिस लड़की की देह उठाने लगी थी .
नाइक एक साधारण आदमी की तरह सोचने लगा था ..कितनी तरक्की कर गया है ज़माना !..कहाँ तो मंगल ग्रह पर बसने की योजना बनायी जा रही है ..वहां प्लॉट्स बुकिंग की ख़बरें मीडिया में उड़ती रहती हैं !..लेकिन जिस ज़मीन पर लोग रोज़ रह रहे , वहाँ क्या-क्या अनर्थ हो रहा ,किसे इसकी फिक्र है ?..ऐसे लोग मंगल पर जाकर क्या खाक़ मंगल कर देंगे !...आज तक सभ्य नहीं बन सका आदमी! ..बल्कि जंगली जानवरों से भी ज्यादा वहशी हो चुका है !..इंसानियत तो अब शायद ही कहीं ढूंढें मिलती है !
..उसने फिर पलट कर पोस्ट मार्टम के लिए ले जाई जा रही खुशबू की लाश की तरफ़ देखा था. पर उसे देख पाना भी आसान न था .दरअसल उसका क़त्ल ही इतनी क्रूरता से किया गया था कि उसके वीभत्स हो चुके शरीर को देख कर किसी भी आम आदमी को सिहरन,घबराहट या फिर उबकाई आ सकती थी !..पर नाइक जैसे अफसरों को तो ये सब झेलने की आदत हो चुकी थी. फिर भी गाड़ी में रखे जाने तक नाइक उस लड़की की आँखों को भूल नहीं पाया ,जो अब बंद कर दी गयी थीं . उसे लगा ,लड़की अपनी फटी और अथाह पीड़ा से भरी आँखों से उसे लगातार देखे जा रही है ..उन आँखों में सिर्फ और सिर्फ इन्साफ की गुहार थी . किसी भी ईमानदार ,कर्तव्यनिष्ठ पुलिस ऑफिसर को भीतर तक छेद देने वाली गुहार !..नाइक सचमुच दया और क्षोभ से भर गया था .
खुशबू की माँ को ढाढ़स बंधा कर पुलिस स्टेशन लौटने के बाद भी लड़की की आँखों के दर्द ने उसका पीछा नहीं छोड़ा . अपने कक्ष में अपनी कुर्सी पर बैठते ही उसने चाय की तलब महसूस की थी . सामने टेबल पर पड़ी कॉल बेल दबाते ही कॉन्सटेबल पाटिल हाज़िर हुआ और नाइक की आँखों से चाय का इशारा पाते ही उलटे पाँव लौट गया .
..सोचने लगा नाइक...जबसे उसका इस पुलिस स्टेशन में तबादला हुआ है ..इस इलाक़े में आम रास्तों पर चलती –फिरती लड़कियों से दिन-दहाड़े छेड़खानी करने की बेशुमार घटनाएं उसके संज्ञान में आई हैं .पर किसी मज़बूत विरोध के सामने न आ पाने से अक्सर उसे मन मसोस कर रह जाना पड़ा है .गश्ती पुलिस दल भी आम तौर पर ऐसे अपराध रोकने के मुस्तैद निर्देश का अनुपालन न कर अपनी नालायकी दिखाता रहता है .कोई अकेला पुलिस ऑफिसर चाह कर भी बहुत कुछ नहीं कर सकता . यह सब देखते हुए कई बार गहरे चिंतन में उलझ जाता है नाइक..आखिर वजह क्या है ,इन बच्चियों ,लड़कियों या महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते ऐसे अपराधों की ? ..अपराधियों का मनोवैज्ञानिक फितूर,उन्माद या फिर कोई सामाजिक विष-बेल भी है ,जिसकी हवा इन्हें शैतान बनाती रहती है ?..क्या इस तरह के अपराधी किसी परिवार में पैदा नहीं होते ?..आज के पारिवारिक रिश्ते क्या इतने सूख गए हैं कि अपने समाज में पलती-बढ़ती किसी मासूम लड़की को केवल हवस के एक शिकार के रूप में देखे जाने की घोर अमानवीय प्रवृत्ति को पनपने से रोक ही न पायें ?..अगर नहीं तो कहाँ गयी वह भद्रता , सौम्यता जिसके तहत हर स्त्री ,युवती या लड़की के साथ एक सम्मानजनक व्यवहार अपेक्षित समझा जाता था ?..और अगर लड़कियों ,महिलाओं को लेकर यही रवैया रहा, तो कहाँ पहुंचेगा पूरा समाज आने वाले समय में ?...भीतर ही भीतर हांफने सा लगता है वह . जैसे रनिंग ट्रैक पर दौड़ते समय किसी ने खतरनाक प्रश्नों के श्वान पीछे छोड़ दिए हों !
टेबल पर चाय आ गयी है .नाइक अपने मातहत शिंदे को चाय पीने के लिए आवाज़ देता है .दोनों आमने-सामने बैठ कर चाय पीने लगते हैं . नाइक की पेशानी पर पड़ी लकीरों में ऐंठन होने लगी है .वह चाय का एक छोटा घूँट भरते हुए शिंदे को गौर से देखता है , “ तुम्हें क्या लगता है ?..क्यों हुआ होगा खुशबू का क़त्ल ?”
शिंदे मानो इस सवाल के लिए तैयार बैठा हो ,” सर,अपनी जांच तो यही कह रही है लड़की खूबसूरत थी..बड़ी हो रही थी ...मोहल्ले के ही नहीं , बल्कि आस-पास के इलाकों के भी कई मनचलों की उस पर निगाह थी . कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना था कि लड़की को भी अपनी सुन्दरता का एहसास था ,इसलिए उसके कई ‘यार’ थे !..जो लड़की के लिए आपस में भी झगड़े किया करते थे ...हो सकता है ,यह मर्डर इसी आपसी टकराहट का नतीजा हो !” बेहद तार्किक ढंग से शिंदे ने अपना पक्ष रखा और चाय का अपना गिलास उठा लिया .
नाइक कुछ देर तक भावशून्यता के साथ शिंदे को घूरता रहा . फिर चाय का गिलास धीरे से मेज़ पर रखा उसने , “ मतलब ये कि यदि कोई लड़की बदचलन भी हो तो अपने गुरुर को बनाये रखने के लिए लड़की की हत्या कर दी जानी चाहिए ? ..अपने दुश्मन का क़त्ल क्यों नहीं करते ये लोग ?..क्या सिर्फ इसलिए कि लड़की पर हाथ डालना आसान है?..अरे भई, लड़की तो हत्यारे की भी चाहत रही होगी न ?”
एक व्यंग्य भरी बेहद बारीक़ उदास सी मुस्कान शिंदे के चेहरे पर उभरी , “..काहे की चाहत सर ?..मवाली छोकरे हैं ,किसी तरह छीन-झपट के खा-पी लेना ...और मौज-मस्ती के लिए मुहल्लों-टोलों की असुरक्षित बच्चियों के शिकार की तलाश में रहना !...यही इस तरह के छोकरों के जीने का मकसद रहता है आजकल !..बहुत दूर की नहीं सोचते वे !...अपनी ज़िन्दगी से दरअसल ऊब चुके छोकरे हैं ये सर !...ये क्या समझें चाहत-वाहत क्या होती है ?”
“ और इसकी क्या गारंटी कि लड़की बदचलन थी ?” नाइक ने एकदम से पूछा .
“ गारंटी तो कुछ भी नहीं है सर !.किसी-किसी ने दबी ज़ुबां से ऐसा कहने की भी जुर्रत की .. बस्स..” वाक्य अधूरा सा छोड़ते हुए शिंदे चाय पीने लगा .
“ ..अगर लड़की बदचलन थी ,तो गिरोह बना कर उसे हासिल करने की होड़ करने वाले लड़के क्या थे ?” चिढ़ सा गया गया नाइक, “ बड़ी अजीब सोच है लोगों की !..लड़के लड़कियों का शिकार करने तक की अपनी हरकतों के बावजूद ऐसे नहीं समझे जाते कि उनके चरित्र पर कोई टीका-टिप्पणियाँ करने की सोचे !..लड़कों से तो अक्सर ऐसी छोटी-मोटी गलतियां हो जाती हैं ,ये कह कर बड़े-बड़े नेता भी ऐसे अपराधी लुच्चों के चरित्र का प्रमाण-पत्र बेदाग़ कर देते हैं !.. और लड़कियां बेचारी कभी दो-चार लड़कों से हंस कर बातें भर कर लें तो सीधा चरित्रहीन हो जाती हैं ?..तुम पुलिस वाले भी फिर उसी पटरी पर अपना दिमाग दौड़ाने लगते हो !” विरक्त हो उठा नाइक का स्वर .
“ मैं उसे बदचलन नहीं कह रहा सर !..मैंने ये कहा कि कुछ राय ऐसी भी सामने आई .!” शिंदे ने झेपते हुए अपनी सफ़ाई दी फिर हलके से मुस्कुराया , “ मुझे पता है सर ,आप आम पुलिस वालों की तरह से हर मामले को नहीं लेते !..आपकी चाय ठंढी हो रही है सर!”
अपनी खीझ से बाहर आकर नाइक ने फिर चाय उठाई ,” शिंदे ,मसला ये नहीं है कि लड़की का चरित्र क्या था ?..फिर तो देह-व्यापार में फँसी किसी भी स्त्री या बच्ची को जीने का कोई हक ही नहीं है ?..कैसा नज़रिया है ये ?...अरे ,सबकी आँखों के सामने एक किशोर वय की लड़की का इतना क्रूर क़त्ल !..डेड बॉडी बता रही...लड़की ने स्ट्रगल किया !..पर कोई बचाने न तो तब आगे आया और न ही अब उन हत्यारों के बारे में कुछ भी बताने को आगे आ रहा !..देश में कोई कानून है कि नहीं ? ..किसी की जान लेने का हक़ यहाँ किसी को नहीं है शिंदे !” आवेश की लहरें गर्म भाप की तरह उठने लगीं हैं नाइक के चेहरे से .
शिंदे गौर से उस आवेश को पढ़ने की कोशिश में लगा है ,” मैं जानता हूँ सर .और आय एम् लकी कि आपके साथ काम करने का मुझे मौक़ा मिला !..सर वोंट फील अदरवाइज़ ,बहुत दिनों के बाद अपने किसी सीनियर में ये आग देख रहा हूँ मैं !..वरना ऐसी वारदातों को तो आजकल धीरे से ठंढे बस्ते में ही डाल दिया जाता है !..खास कर तब जब ऐसे अपराधी किसी ख़ास जमात के हों या फिर उन्हें कोई पॉलिटिकल संरक्षण प्राप्त हो तो !..आपकी तरह तो कोई सोचना भी नहीं चाहता !..मैं सही कह रहा हूँ सर !..मेरी नौकरी के भी पंद्रह साल हो गए ! “ अपनी चाय ख़त्म की शिंदे ने .
“ ..तो इस मामले में कोई पॉलिटिकल एंगल भी है क्या ?...मुझे तो नहीं लगता ..और अगर निकले भी तो हमारा काम क्या है ?..हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाना ,ताकि इस तरह के अपराधी बेख़ौफ़ दिन-दहाड़े ऐसी मासूम ज़िंदगियों को इतनी क्रूरता से मौत के घाट उतारते रहें ?..नहीं-नहीं शिंदे . कम-स-कम मुझसे तो ये नहीं होगा !..अपना फंडा बहुत साफ़ है . अगर सिस्टम में आप अपना काम सही ढंग से नहीं करोगे तो आगे आपको भी कहीं कोई न्याय या सुव्यवस्था की उम्मीद नहीं करनी चाहिए !..ऐसे नहीं चल सकता कोई देश !..नो !.. क्राइम इज़ क्राइम एंड अ क्रिमिनल इज़ अ क्रिमिनल !...चाहे जो भी हो ,हमें जल्द से जल्द मुजरिमों को अरेस्ट कर लोगों में क़ानून-व्यवस्था के प्रति भरोसा दिलाना होगा !..” नाइक उद्विग्नता में अपनी जगह से उठ कर चहल-कदमी करने लगता है .
शिंदे के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ता है , “ यस सर !..सही कह रहे हैं आप ?.. ऐसे मामलों में लोग पुलिस से त्वरित कार्रवाई की उम्मीद तो पूरी रखते हैं ,लेकिन सबूत और गवाह के मामले में शायद ही कोई आगे आता है !..अब देखिये ,इसी केस में अब तक कहाँ कोई आगे आया ?..सिवाय इसके कुछ नहीं पता चल सका कि हत्यारों की उम्र भी बीस-बाईस साल से ज़्यादा नहीं थी . लोगों का बस अंदाज़ा है कि वे लड़की के आशिक़ों में से रहे होंगे !.. क्योंकि इससे पहले उन्हें इस इलाक़े में कभी देखा भी नहीं गया था !.”
“ यही तो ट्रेजेडी है !..पुलिस पर इल्ज़ाम लगाते तो किसी को देर नहीं लगती ! लेकिन पुलिस की मदद कोई नहीं करता . अब देखना कल सारे अखबार रंगे होंगे ! “ नाइक के स्वर की विरक्ति में अब चिढ़ उभर आई थी .
“ मगर न्यूज़ चैनेल वाले तो शाम होते-होते ही शुरू हो जायेंगे सर ! “ शिंदे ने तुर्रा जोड़ा .
“ अब चाहे जो हो , हमें तो अपना काम करना ही है शिंदे !..लड़की की माँ का कहना है कि खुशबू ने कुछ लड़कों की छेड़खानी की वजह से स्कूल जाना छोड़ा था . ज़रा पता करो कि वह कौन सा स्कूल है ?..और उसके रास्ते में अमूमन छेड़खानी करने वाले लड़के कौन हैं . दो-चार को उठाओगे तो अपने आप कुछ सुराग उगलेंगे वो !..हो सकता है खुशबू के साथ छेड़खानी करने वालों को या तो वे जानते हों या फिर वे खुद हों !” नाइक ने बहुत देर के बाद अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट निकाल कर एक सिगरेट सुलगाई थी .
शिंदे ने आँखों ही आँखों में आदेश को बतौर चुनौती स्वीकार करते हुए अपने कमरे का रुख किया था. नाइक वापस अपनी कुर्सी पर चिंतन–मनन की मुद्रा में जम गया था .
...शाम होते-होते सचमुच समाचार चैनलों पर खुशबू की जघन्य हत्या सुर्खियाँ बन चुकी थी .पुलिस स्टेशन की घंटी बार-बार बजने लगी थी .पर नाइक अभी किसी से बातें करना नहीं चाहता था . उसके पास कोई ऐसा ठोस जवाब भी नहीं था . फिलहाल क्या बताता वह ? इसलिए उसने कह रखा था कि स्थानीय पुलिस अपराधियों का सुराग मिलते ही मीडिया को खुद इसके बारे में जानकारी देगी . फिर भी कोशिश करने वालों की कमी नहीं थी . सो, ऐसी तमाम कॉल्स उठाने की ज़िम्मेदारी फ़िलहाल शिंदे के हवाले कर दी गयी थी .ज़ाहिर है कोई ठोस जवाब न मिल पाने की सूरत में मीडिया तमाम क़िस्म की अटकलें लगाने के लिए आज़ाद था .
..सुबह तक प्रिंट और दृश्य दोनों मीडिया में खुशबू की हत्या के बहाने शहर,राज्य और देश की बिगड़ती क़ानून –व्यवस्था को खूब आड़े हाथों लिया गया था .लड़कियों ,महिलाओं की सुरक्षा फिर से सवालों के कटघरे में खड़ी कर दी गयी थी .इस हत्या-काण्ड को दिल्ली के जघन्य निर्भया हत्या-काण्ड से जोड़ दिया गया था..कि समाज में मासूम बच्चियां कब तक ऐसे वहशी दरिंदों की वहशत का शिकार होती रहेंगी?..पुलिस या क़ानून का होना क्या इन अपराधियों के लिए कोई मायने रखता है ?..या कि पुलिस की तरफ से इन सबको खुली छूट मिली हुई है ?आदि-आदि .
..इस तरह की विवेचनाओं से सुबह होते-होते तक पट गया था हर तरह का मीडिया !. ..ज़ाहिर है सबका निशाना पुलिस ही थी. सारी गाज यहीं गिरनी थी . नाइक ने घर लौट कर इसीलिए टी.वी.तक ऑन नहीं किया . मगर सुबह को आदतन ताज़ा अख़बार देखते ही नज़रें सुर्ख़ियों से टकरा गयीं , “सोलह वर्षीया बच्ची खुशबू की दिन-दहाड़े हुई लोमहर्षक हत्या ने पोलिस की भूमिका पर उठाये सवाल !”..पिछले कुछ महीनों में ऐसी अनेक वारदातों में पुलिस खाली हाथ !”आदि शीर्षकों ने नाइक के मुंह में चाय की घूँट का स्वाद कड़वा कर दिया !..उसने चाय से भरा आधा कप बगल की तिपाई पर रख दिया और सोचने लगा.
पत्नी संध्या ने देखा तो पास में अपनी चाय की प्याली हाथ में पकडे वहीँ बैठ गयी , “ क्या बात है ?..चाय पी नहीं रहे आप ?..कल की घटना से परेशान हैं ?” पत्नी समझती है नाइक को .उसकी नज़रों में वह केवल एक पुलिस ऑफिसर नहीं है.एक ज़िम्मेदार पति और पिता भी है .
नाइक कुछ पल देखता रहता है अपनी पत्नी को, “ ..क्या आज-कल के लड़के इतने बेरहम हो सकते हैं संध्या कि एक पंद्रह-सोलह साल की बच्ची की इतनी बुरी तरह से हत्या करें ? ..क्या दिमाग है इन लोगों का ?..वो भी दिन-दहाड़े पब्लिक प्लेस में करने की हिमाक़त ?..मेरी तो कई बार समझ में नहीं आता कि कैसे परिवार में परवरिश है इनकी ?..ऐसा खतरनाक क़दम उठाने से पहले कुछ सोचते भी नहीं हैं क्या ये ?” नाइक जैसे खुद से सवाल पूछ रहा हो .
“ परिवार बच कहाँ रहे हैं प्रशांत ?..परिवार को तो जान-बूझ कर नष्ट किया जा रहा है !..परिवार ही नहीं रहे तो रिश्ते कहाँ रहेंगे ?..रिश्ते नहीं रहेंगे तो आदमी या तो औरत है या मर्द ?..जब एक-दूसरे को केवल औरत-मर्द के चश्मे से देखा जायेगा तो इस तरह के अपराध सामने आयेंगे ही. संपन्न और पढ़े-लिखे तबके में इसका स्वरुप अलग दिखेगा, जबकि अशिक्षित और हाशिये पर जीते लोगों के बीच बेहद डरावने हिंसक रूप में सामने आएगा !..ये वही है . इससे निबटना केवल पुलिस के बस का भी नहीं है ,जो कि मान लिया जाता है !..कितने ऐसे केस की तहक़ीकात करोगे आप ?..बमुश्किल महीने –दो महीने की मेहनत के बाद आपने अगर मुजरिमों को पकड़ भी लिया , तो कोर्ट में जाकर क्या होगा,ये तो आप भी नहीं जानते !..इस बीच फिर कोई नया कांड नहीं होगा ,इसकी क्या गारंटी है ?..होगा ही . क्योंकि इन अपराधों के कारणों को ख़त्म करने की तो कोई कोशिश इस पूरे समाज में कहीं नहीं हो रही . मूल्यों को लेकर समाज लगातार गिरता जा रहा है !..केवल मनी ओरिएंटेड लाइफ से और क्या उम्मीद रखते हो प्रशांत ?.. आपको उन विषयों की चिंता नहीं करनी है ..जिन्हें करना है ,वह उनके लिए छोड़ो !...आप सिर्फ केस तक एकाग्र रहो !..इसका खामियाजा क्या हमलोग नहीं उठा रहे ?..किसे हमारी फ़िक्र है ?किसी को नहीं .पर मैं तुम्हें अपने कर्त्तव्य से पीछे हटने को नहीं कह रही ! बाय द वे अपनी चाय पीओ !..ठंढी हो रही ..” उसकी उद्विग्नता को शांत करती है संध्या .
नाइक मुग्ध हो पत्नी को देखता है .वह समाज शास्त्र की छात्रा रही है .इन विषयों का उसे भी खासा ज्ञान है ..और उसकी शिकायत के दर्द को वह भी खूब समझता है .पर अभी वह उस दिशा में बातचीत को ले जाना नहीं चाहता, “ .. तुम ठीक ही कह रही हो !..अक्सर ऐसी घटनाएं केवल पुलिसिया कार्रवाई तक ही देखी–समझी जाती हैं ,जबकि इसकी जड़ें तो समाज में हैं !..और समाज कैसा है कि सामने हुई हत्या के मुजरिमों के बारे में खुल कर बोलने तक से कतराता है. गोया पुलिस कोई अन्तर्यामी हो ,सब ढूंढ़ कर निकाल ही लेगी !” वह वापस चाय का कप उठा लेता है. मगर दिमाग तहक़ीकात के उलझे तारों को ही सुलझाने में फिर उलझने लगता है .
..संध्या अन्दर चली गयी है . नाइक बालकनी में आकर खडा हो जाता है. ..सामने शहर का एक औसत रिहाइशी इलाक़ा है .इस शहर में अभी ऊँची-ऊँची गगनचुम्बी इमारतों के बनने का सिलसिला शुरू नहीं हुआ है . हाँ ,कम मंज़िलों वाले अपार्टमेंट्स बनने लगे हैं .बाक़ी ज़्यादातर निजी मकान और बंगलानुमा रिहाइशें हैं . इसे कमो-बेश महंगे इलाके में ही शुमार किया जाता है .जबसे उसका इस शहर में तबादला हुआ है , अब तक सरकार की ओर से उसे रेसिडेंस मुहैय्या नहीं कराया जा सका है . नतीजा ,उसे भी किराए के इस अपार्टमेन्ट में पनाह लेनी पड़ी है .
..यह सच है कि वह एक पुलिस ऑफिसर है .पर उसकी सुरक्षा की भी यहाँ क्या गारंटी है ?..यह शहर जिले का हेड क्वाटर बस कहने भर को है !..वरना इसे अराजकता का केंद्र कहना ज्यादा मुनासिब होगा !..अब धीरे-धीरे शहर की अंदरूनी खींच-तान , घात- प्रतिघात की कई पृष्ठभूमि उसके पल्ले भी पड़ने लगी है . ऊपर से शांत दिखता यह छोटा सा शहर बेहद घटिया राजनितिक दांव-पेंच का भयानक अड्डा है .छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए कौन किसका दुश्मन बन जाए ,कोई नहीं जानता .वैसे देश की चुनावी राजनीति ने लगभग पूरे देश का ही ये हाल बना के रखा हुआ है!
इस शहर और जिले के सरकारी संसाधनों पर भी काबिज होने और यहाँ के वोट-बैंक के ज़रिये सियासी सीढ़ियाँ चढ़ने की होड़ में पूरा माहौल नरक हो चुका है ! किसी भी कांड में किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी हुई नहीं कि छुड़ाने वालों की पूरी जमात आ जाती है ! और अगर उनसे कुछ न बन पड़ा तो आरोपी की पैरवी के लिए कोई न कोई नेता ज़रूर आ धमकेगा !.. किसी को क़ानून और उसके राज की गरिमा से कोई सरोकार नहीं है. राजनीति के नाम पर खुले-आम अपराधियों के गिरोह चल रहे हैं इस सो कॉल्ड लोकतंत्र में !..ऐसे में उसके जैसे समर्पित पुलिसकर्मी के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभा लेना कोई आसान काम नहीं है !..उसकी ज़िन्दगी पर भी खतरे कभी भी मंडरा सकते हैं !..ऐसे में एक मासूम बच्ची की क्रूर हत्या के पीछे के सच और मुजरिमों को ढूंढ लेना इतना भी सरल नहीं इस शहर में . कुछ नहीं पता ,किस वारदात के तार किस हैरान करने वाले तथ्य से जुड़े हों !..पर मामले की तह तक तो उसे पहुंचना ही पड़ेगा ...उसकी नज़रों के आगे एकदम से खुशबू की बेबस ,फटी आँखें मानो सजीव हो जाती हैं !.. बालकनी से ठीक सामने दिखती दूध की एक डेयरी है.
..सुबह का वक़्त है .स्कूल जाती छोटी- बड़ी बच्चियां डेयरी के बाजू वाले मोड़ पर रोज़ की तरह इकठ्ठा हैं .उनकी स्कूल-बसें यहीं आकर रूकती हैं .छोटी बच्चियों को बस में चढ़ाने के लिए उनकी माँएं भी अच्छी तायदाद में जमा हैं .बच्चियां उत्साह में हैं . उनके उत्साह की ताज़गी नाइक के मन में उतरने लगती है ..साथ ही उभर आती हैं स्मृतियाँ !
...संध्या कई बार समीक्षा को स्कूल बस पकड़वाने की ज़िम्मेदारी उसे ही दे दिया करती थी ..वह भी सुबह –सुबह !..देर रात ड्यूटी से लौटा वह किसी तरह नींद पूरी करने के चक्कर में करवटें बदल रहा होता .पर संध्या उसे जगा देती .वह झुंझला भी जाता , “ अरे यार ,मुझे उठते ही पुलिस स्टेशन भागना है .थोड़ी देर सोने दे माँ !”
संध्या के अपने तर्क थे , “ कैसे बाप हो !..अपनी इकलौती बेटी को कभी स्कूल बस तक छोड़ने नहीं जा सकते ?..शाम को भी मैं ही लाती हूँ !..खुद रात को इतनी देर से लौटते हो कि बच्ची सो जाती है !...तो बेटी को पता कैसे चलेगा कि उसकी पढ़ाई-लिखी में बाप का भी कोई योगदान है !..कल को अगर उसने यही सवाल बड़ी होकर पूछ लिया तो फिर दुखी मत होना !”
वह हथियार डाल देता , “ अच्छा बाबा .ठीक है !..मैं जा रहा हूँ उसे छोड़ने !..अब अपना वही पुराना टेप बजाना बंद करो !..” कहता हुआ वह मुंह पर पानी के छींटे मारता ,पैरों में चप्पल डालता और नाईट ड्रेस में ही समीक्षा को लेकर निकल जाता .
संध्या उसकी इस चिड़चिड़ाहट पर मंद-मंद मुस्काती दोनों बाप-बेटी को एक साथ जाते बड़ी हसरत से देखती रहती. खास कर नन्हीं समीक्षा का नाइक की उंगली पकड़ कर चलना उसे बहुत अच्छा लगता !..बाद में वह नाइक से बताती भी .
अलबत्ता नाइक उसे बता नहीं पाता कि नींद से उठते समय उसे भले ही जो खीझ होती हो ,पर एक बार समीक्षा के उसकी उंगलियाँ पकड़ने के बाद जैसे उसकी मनोदशा ही बदल जाती है ! पिता की उंगली पकड़ कर चलती नन्हीं समीक्षा का उसके प्रति मासूम भरोसा और उसके चेहरे पर उभरती आश्वस्ति नाइक की खीझ को पलक मारते ही पिघला देती . वह सचमुच अचानक अपनी छोटी सी बिटिया का पिता बन जाता !..पूरे संरक्षण और उसकी सुरक्षा एवं भविष्य को लेकर व्याकुल चिंता से ग्रस्त .तब उसे समझ में आने लगता कि संध्या उससे यही चाहती है !..वह केवल एक समर्पित कर्तव्यनिष्ठ पुलिस ऑफिसर ही नहीं ,एक अच्छा पिता भी साबित हो . अच्छा पति बनने के लिए संध्या ने कभी उस पर दबाव नहीं डाला था .. इसके चलते उसकी निगाहों में पत्नी की बहुत ऊँची जगह थी .और शायद संध्या ने बेटी की उंगली पकड़ कर उसका आत्मविश्वास बढाने के बहाने पिता-पुत्री के रिश्ते के बारीक धागे न बुने होते ,तो शायद आज वह स्कूल जाती बच्चियों को बस स्टॉप तक छोड़ने आयीं उनकी माँओं के उत्साह को भी ठीक से समझ नहीं पाता ! ..उसका ध्यान अचानक अपनी उँगलियों पर चला गया ..कुछ पलों तक वह उँगलियों में नन्हीं समीक्षा के स्पर्श को तलाशता रहा ...उसके भीतर कहीं कुछ दरकने लगा था !..समीक्षा अब बड़ी हो चुकी है !.. पर कितने साल हो गये ,वह सिलसिला ही थम गया . पर उसकी वजह ?...बेचैन होकर नाइक बालकनी से हट कर कमरे के अन्दर आ गया है .
..सामने बिस्तर पर सुबह का अखबार अब भी पड़ा हुआ है ...पहले पृष्ठ पर ही है मृत खुशबू की दिल दहला देने वाली तस्वीर !..वह गौर से तस्वीर देखने लगता है ..वही आँखें बार-बार चुनौती दे रही हैं !...वह पुलिस स्टेशन जल्दी जाने के लिए तैयार होने लगता है . संध्या रसोई में उसके लिए नाश्ता तैयार करने लगी है .
“..मैंने पता किया सर ! ..खुशबू को स्कूल जाते समय छेड़ने वाले मुख्य दो लड़कों की जानकारी मिली है अब तक !..” पुलिस स्टेशन पहुँचते ही शिंदे ने अपनी तहक़ीकात की फर्स्ट हैण्ड रिपोर्ट उसके सामने रखी .
अच्छा लगा नाइक को. त्योरियों पर बल पड़े , “ कौन हैं वो लड़के ?”
“..पास के मोहल्ले के ही हैं . एक रॉकी नाम का है , जो ठेकेदारी के छोटे-मोटे काम करता है और समदर्शी पार्टी के पूर्व विधायक मुन्ना चौधरी के समर्थकों में से है . दूसरा उसका दोस्त बबलू है ,जो हमेशा उसी के साथ रहता है !.. और उसकी तमाम कारगुज़ारियों में शामिल भी रहा करता है .थोड़ी-बहुत कमाई करने के कारण ग़रीब घरों की लड़कियों को पैसों के बल पर फांसने का काम करते रहे हैं ये ! ..मौज –मस्ती के बाद दिल भर जाए तो फिर और किसी को जाल में फंसाने में लग जाते हैं दोनों ! पुलिस-प्रशासन का इन्हें कोई खास खौफ़ भी नहीं हैं .बेशर्म बंदे हैं. रॉकी की लम्बे समय से खुशबू पर नज़र थी .”
“ ..मतलब यह कि खुशबू की हत्या इन दोनों ने की है ?”
“..की तो नहीं सर , करवाई हो सकती है !..इन दोनों को तो लोग-बाग़ पह-
चानते हैं सर !.. ये दिन-दहाड़े ऐसा नहीं कर सकते ! “ शिंदे ने पूरे इत्मीनान से कहा .
“ ..क्यों नहीं कर सकते ? ..जब कातिल का नाम लेने का कोई साहस ही न करे , तो कुछ भी हो सकता है ! दिन क्या और रात क्या ?...ये भी तो मुमकिन है कि इनके खिलाफ़ चश्मदीद गवाह बनने की हिमाक़त का रिस्क कोई लेना ही नहीं चाहता हो ?” नाइक ने जान-बूझ कर अँधेरे में फिर पत्थर मारा .
मुस्कुराया शिंदे , “ आपका विवेचन सही है सर . पर ये पेशेवर लुच्चे आशिक हैं ...हत्यारे नहीं ! इन्हें यह डर तो होगा ही कि कहीं किसी ने इनका नाम ले लिया तो ?”
“ मतलब कि लड़की की माँ के बयान और तहकीकात के आधार पर अगर इन दोनों को गिरफ्तार भी कर लें ,तो फिलहाल अपने हाथ कुछ नहीं आएगा !” नाइक ने टेबल पर पड़ा सिगरेट का पैकेट हाथ में उठा लिया था . दिमाग विश्लेषण में तेज़ गति से भाग रहा था, “मत-लब यह तय है कि हत्या बाहरी तत्वों ने या सुपारी लिये लोगों ने की है !”
“ हत्या का अंदाज़ बेहद पेशेवराना है सर !” शिंदे ने अपना तर्क और पुष्ट किया .
नाइक ने धीरे से सिगरेट सुलगाई और पैकेट शिंदे की ओर बढ़ा दिया , “ यू आर राईट शिंदे !..मतलब ये कि इन दोनों पर हाथ न डाल कर असली मुजरिमों को तलाशा जाये !..वरना उन्हें हम अलर्ट कर देंगे !...और वे कहीं लम्बे समय के लिए फरार भी हो सकते हैं !”
“ एक्जैक्टली सर !..वे तो वैसे भी अभी कुछ बताने से रहे !..साफ़ मुकर जायेंगे !..टार्चर करेंगे तो राजनीतिक दबाव आने या शोर-गुल का खतरा बढ़ जाएगा ! “
नाइक ने प्रशंसा भरी निगाहों से शिंदे को देखा , “ स्मार्ट शिंदे !..क्या पहले तुम यहाँ के केस हैंडल नहीं करते थे ?”
झेंप गया शिंदे , “ सर ,सच तो यह है कि हम जैसे छोटे अफसरों को आपकी तरह कोई कॉन्फिडेंस दे तब न ?...और दे भी तो कैसे ?..जब नीयत ही साफ़ न हो ?” सिगरेट का पैकेट तो उसने हाथ में ले लिया था , जबकि सिगरेट निकाली नहीं उसने .
“ ..पर इसमें एक प्वायंट है ,जो हम मिस कर रहे हैं .अगर हम कोई ट्रैप बनायेंगे ही नहीं ,तो हत्यारों तक पहुंचेंगे कैसे ?..या वो कैसे आकर फंसेंगे ? “ नाइक ने सिगरेट का धुंआ उगलते हुए अपनी कशमकश ज़ाहिर की ., “ अच्छा ,एक ट्रैप बनाते हैं ..पहले अपने एक-दो सूत्रों को आगाह करो ....इन दोनों लड़कों के जो भी सेलफोन नंबर्स हैं ,उनका पता लगाओ और उन्हें निगरानी पर डलवा दो !..अगर हत्यारे इनके कहने पर आये होंगे तो उनसे इनकी बातें होती रही होंगीं..और आगे नहीं होंगीं ,ऐसा भी गारंटी के साथ नहीं कहा जा सकता !..इसके बाद कल शाम प्रेस को एक रिलीज़ के ज़रिये ब्रीफ़ भेज दो कि पुलिस को खुशबू मर्डर केस में महत्त्वपूर्ण सुराग मिल गए हैं .संभव है बहुत जल्द हत्यारे पकड़ लिए जायेंगे ! तब तक के लिए कोई नयी ब्रीफिंग नहीं होगी !”सिगरेट का धुआं पुलिस स्टेशन की तनाव भरी हवा में घुलने लगता है .
शिंदे अपनी उँगलियों में फँसी सिगरेट को गोल-गोल घुमाता ट्रैप को समझने की कोशिश करता हुआ मुस्कुराता है , “ ये भी ठीक है सर !..जब कोई सामने से कुछ बताने को तैयार ही नहीं तो कुछ तो पासा फेंकना पड़ेगा !”
“ एग्जैक्ट्ली !..अब सही पकड़ा तुमने !..इन दोनों लड़कों के बारे में भी पहले पास-पड़ोस ने कुछ नहीं बताया था ,सिवाय बेचारी खुशबू की लाचार माँ के !.. उसी ने कहा था कि कुछ बदमाश स्कूल जाते हुए खुशबू को छेड़ा करते थे ,इसीलिए उसने स्कूल जाना बंद कर दिया था! वरना जल्दी ये भी कोई नहीं बताता !..जबकि जानते-देखते काफी लोग रहे होंगे!” नाइक मामले में पैठता जा रहा था .
“ बिलकुल सर !..तभी तो जब हमने स्कूल के इलाके में खबरी लगाए तो दोनों के नाम निकल कर बाहर आये !...राईट सर , मैं ऑपरेशन ट्रैप शुरू कर देता हूँ . “ शिंदे एकदम से दायित्व-बोध से भर उठा .
“ अरे ,सिगरेट तो पी लो !”
“ मैं पी लूँगा सर !..ज़रा सारी चीज़ें लाइन- अप कर लूं . कई लोगों को काम पर लगाना पड़ेगा !” उठ खड़ा हुआ शिंदे और नाइक से इजाज़त लेकर अपनी सीट की तरफ भागा . बगल वाले कमरे में .
नाइक अपने लैप-टॉप पर एक खबरिया चैनल लगा कर कुर्सी पर पीछे की तरफ टिक कर सिगरेट फूंकने लगता है , पेशानी पर मंथन की लकीरें बनने-बिगड़ने लगती हैं .
..कई दिन बीत चुके हैं .दोनों लड़कों के फोन निगरानी पर चल रहे हैं . पर कोई हरकत दिखाई नहीं दे रही .. ट्रैप के मुताबिक प्रेस को ब्रीफ़ किया जा चुका है !..मीडिया में लगातार उसकी ख़बरें भी आ रही हैं ..पर शहर के कुछ मानव अधिकार की कथित लड़ाई लड़ते संगठनों को पुलिस की कार्रवाई पर कोई ख़ास भरोसा नहीं है !.. जाने कितनी ऐसी पिछली वारदातों में अब तक रही पुलिस की निष्क्रिय भूमिका को देखते हुए किसी आम नागरिक को भरोसा हो भी तो कैसे ?. ..लिहाज़ा प्रतिरोध के स्वर बुलंद हो गये हैं .. आये दिन लोग मानवता के नारों की तख्तियां लिये सडकों पर मार्च निकाल रहे हैं . पुलिस की तफ्तीश में कोई इजाफ़ा दिख नहीं रहा !..अक्सर कैमरा लेकर मीडिया खुशबू की माँ का इंटरव्यू लेने पहुँच जाता है ...नतीजा , कई राजनीतिक पार्टियों के स्थानीय नेताओं में खुशबू की हत्या पर दुःख प्रकट करने और उसकी अधबूढ़ी माँ के प्रति सहानुभूति जताने की होड़ सी मची हुई है ...कोई पैसों से मदद भी देकर तस्वीरें खिंचवा रहा है ..दो महीने बाद राज्य में विधान सभा चुनाव होने हैं . शहर में उसे लेकर भी काफी सरगर्मी मची हुई है . ऊपर से ये लोमहर्षक हत्या !...कौन इसे भुनाना न चाहेगा !..सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक भाई यशपाल तीन दिन पहले नाइक से मिलने पुलिस स्टेशन पहुँच गए .
“ अरे भई इंस्पेक्टर साहब , आप स्थिति की नज़ाक़त को समझ नहीं रहे हैं क्या ?...सामने चुनाव है और शहर में क़ानून –व्यवस्था का यही हाल रहा तो पब्लिक फिर हमें काहे के लिए वोट देगी ?”बौखलाए हुए थे वह .
नाइक शालीन ही रहा , “सर , जब शहर में पहले से यह सिलसिला चलता आ रहा है ,तो भला अचानक तो रुक कैसे जाएगा !..लोगों में यहाँ क़ानून का खौफ ही नहीं है !”
“..तो आप किस मर्ज़ की दवा हैं ?..आपका बड़ा नाम सुना था हमने नाइक सा’ब!..और आप जब इस तरह की बातें करेंगे ,तो बाक़ी लोग क्या करेंगें ?” सारा आदर्श भाई यशपाल के स्वर और आंखों में उमड़ आया था.
“ ..ये मर्ज़ केवल पुलिस के दायरे की चिकित्सा का नहीं है सर !..होता तो ,हत्या के चंद घंटों के अन्दर मुजरिम को कोर्ट के हवाले कर देता !..इसके लिए अपना पोलिटिकल सिस्टम कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार है. समझना मुश्किल नहीं कि बिना किसी संरक्षण के अपराधियों में दिन –दहाड़े ऐसी रोंगटे खड़ी करने वाली वारदात करने की हिमाक़त आती कहाँ से है ? लेकिन सियासत इसके इलाज की न तो कोई ज़िम्मेदारी लेती है न खुद में कोई सुधार करने को तैयार होती है !..तो अकेली पुलिस , जिसे भ्रष्ट बनाया ही पोलिटिकल सिस्टम ने है ,अगर वह थोड़ी देर के लिए ठीक हो भी जाये, तो भी क़ानून व्यवस्था तब तक नहीं सुधरेगी ,जब तक राजनीति की गन्दगी साफ़ नहीं होती !” नाइक बेहद संजीदा था .
“ मतलब अपनी नाकामी को आप राजनीति की जो अवस्था है ,उसकी आड़ में छुपा रहे हैं ?”कुछ अजीब तरीके से हँसे भाई यशपाल .अगल-बगल खड़े अपने चमचों को सहमति मिलाने की अदा से देखा ,” मुझे ये बताइये इस केस में आप क्या कर रहे हैं ? ..कौन है जो राजनीतिक रूप से आपको डरा रहा है ?” पेशानी पर बल पड़ गए भाई यशपाल के.
“ ..अभी तो बात वहां तक पहुंची नहीं है सर !..पर पहुचेगी नहीं इसकी कोई गारंटी है क्या इस शहर में ?” सवाल बड़ी लापरवाही से उछाला गया था ,पर जाकर सही निशाने पर लगा.
तैश में आ गए भाई यशपाल , “ अगर ऐसा हुआ तो , सौ टका मैं आपके साथ हूँ !...आप बेखौफ़ कार्रवाई कीजिये. आप पर कोई आंच नहीं आने दूंगा !..मेरा वादा है. वैसे एक अंदेशा यह भी है कि ऐसी वारदातें शहर में जान –बूझ कर करवाई भी जा रही हैं , ताकि अभी चुनाव में हमारी किरकिरी हो !.”
चौंक गया नाइक, “ ..आपको लगता है कि एक पंद्रह –सोलह साल की बच्ची की हत्या केवल आपकी पार्टी की साख गिराने के लिए की गयी होगी ? कौन कर सकता है यह ?”
“ ..भाई ऐसा है कि इस क्षेत्र में कई पार्टियाँ हमारे विरोध में हैं .जिसे जब जहां खंजर चलाने का मौक़ा मिलता है , चला देता है !..हत्या बच्ची की हो या किसी और की ,सवाल तो हम पर ही उठेंगे न ?और जब सवाल उठेंगे तो हम तो आपके ही पास आयेंगे न ?..तो बस धर दबोचिये मुजरिम को ,आपकी भी साख का मामला है और हमें भी चुनाव में जनता को मुंह दिखाना है !..चलता हूँ . ज़रा ध्यान दीजिये !..बहुत फजीहत हो रही .दिल्ली से भी फोन आ रहे .!” हाथ जोड़ कर खड़े हो गए थे भाई यशपाल .
..उनके जाने के बहुत देर बाद तक सोचता रह गया नाइक .. मासूम खुशबू की आँखें फिर उसके सामने उभर आयीं !..और फिर ख़याल आ गया अपनी बेटी का ..उसकी अपनी बेटी समीक्षा भी अब चौदह वर्षों की हो गयी है ..उसने उसे दूसरे शहर में बोर्डिंग स्कूल में डाला हुआ है .बीच-बीच में जब भी उससे मिलने दोनों पति-पत्नी जाते हैं तो वह दो-दो घंटे उनसे बात तक नहीं करती !..बहुत मनाना पड़ता है उसे .मिन्नतें करनी पड़ती हैं . उसे लगता है कि जान-बूझ कर उसे दूर कर दिया गया है !..आज के ज़माने में माता –पिता व्यस्त रहने पर परवरिश के जंजाल से बचने के लिए ऐसा करते सुने जाते हैं अक्सर .समीक्षा के दिमाग में घर कर गयी है ये बात . जबकि सच्चाई ये है कि बेटी को पूरा वक़्त देने के लिए संध्या ने अपनी अच्छी-खासी लेक्चरशिप छोड़ दी . पर ज़िन्दगी में एक मकाम ऐसा भी आया ,जब पूरे होशो-हवास में समीक्षा को बोर्डिंग में रख कर पढ़ाने का फैसला लेना और खुद से दूर करना पड़ा .
..तबसे लेकर अभी तक दोनों पति-पत्नी भारी आत्मग्लानि में अपना समय काट रहे हैं . हालांकि नाइक का समय तो व्यस्तता में गुज़र भी जाता है .पर संध्या बेचारी सारा वक़्त सिर्फ़ और सिर्फ़ समीक्षा के बारे में सोचते-सोचते अब रुग्ण रहने लगी है . बेटी के बोर्डिंग जाने के बाद नौकरी के कई प्रस्ताव आये ,पर उसने सबको ठुकरा दिया . नाइक को अब हमेशा संध्या की फ़िक्र लगी रहती है .कई बार उसके अपसेट मूड को भी संभालना पड़ता है .पर वह करे तो क्या करे ?...उसने समीक्षा को बोर्डिंग में डालने का निर्णय कोई मौज-मस्ती के लिए तो लिया नही था ! .. ..उन दिनों वह ए.टी.एस. अर्थात आतंकवादी निरोधक दस्ते में तैनात था . उसके पास कुछ लोकल स्लीपर सेल को पकड़ने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी . काम की कोई टाइमिंग नहीं थी और ख़तरे बहुत ज़्यादा थे . इन आतंकी गिरोहों का सम्बन्ध अंडरवर्ल्ड से भी जुड़ा था . उसने इस सिलसिले में कई गिरफ्तारियां भी की थीं . वैसी गिरफ्तारियां ,जो बेहद संगीन थीं .पर अपने काम के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नाइक उन पुलिस अधिकारियों में से था , जिसकी मिसाल पूरे महकमे में दी जाती थी . ड्यूटी के दौरान अपनी जान को जोखिम में डाल कर भी अपराध और अपराधी पर नकेल कसने से बाज़ नहीं आता ... एक छोटा ही सही ,पर जांबाज़ ऑफिसर था वह . कई मामले सुलझाए थे उसने .
लेकिन एक दिन एक गुमनाम नंबर से आई एक कॉल ने उसके होश उड़ा दिए थे, “ ...तेरी बेटी संत जोसफ में पढ़ती है न ?..ज्यादा होशियारी मत दिखा ..निर्भया बना देंगे उसे !” फोन कट गया था . और फिर वह नंबर भी फ़र्ज़ी आई.डी. वाला निकला . पर उस पर आई धमकी ने तब उसे थर्रा कर रख दिया था .उन दिनों चारों तरफ निर्भया काण्ड की अनुगूंज थी .निर्भय के साथ हुए जघन्य दुष्कर्म और फिर उसकी मौत की दर्दनाक वारदात से सिहरा हुआ था देश ! ..अपनी बेटी का नाम उस हादसे से जोड़ने की कल्पना मात्र से हिल गया था वह !..और फिर एक लम्बा मंथन चला था .
..आखिर भरोसा क्या है मुजरिमों का ?..जो लोग मुल्क , समाज से गद्दारी करने में कोई संकोच नहीं करते ,वे किसी मासूम बच्ची की ज़िन्दगी से खिलवाड़ करने में भला कितना हिचकिचाएंगे ?.. फिर तो वही मिसाल होगी , करे कोई ,भरे कोई !..पिता पुलिस अधिकारी है .उसका काम अपराधियों , समाज – विरोधी तत्वों को क़ानून के तहत पकड़ कर उनकी सज़ा योग्य चार्ज़-शीट अदालत को सौंपना है . क़ानून –व्यवस्था बरक़रार रखना है . ..पर अपराधियों को ये नागवार है . वे अधिकारी को दुश्मन मान प्रतिशोध उसके बेक़सूर परिजनों से लेने की सोच लें तो ?
..बस तभी उसने फैसला ले लिया था कि बिटिया समीक्षा को महानगर की भीड़-भाड़ से अलग दूर कहीं बोर्डिंग में दाखिल करा देगा !..और इसकी कहीं भनक भी नहीं लगने देगा !..वरना जब तक बेटी के घर पहुँच जाने की खबर फोन पर न मिल जाती , उसके सीने में कुछ अंटका सा रहता !..पर ये फैसला लेना जितना झटके में हुआ था ,इसे अमल में लाने में ख़ासा वक़्त लगा . संध्या और समीक्षा दोनों को यह ख्याल पसंद नहीं आया था . उसने उन्हें बताया भी नहीं था कि ऐसा करने के पीछे की वजह क्या है ?..वह घर में ख्वामखाह दहशत पैदा करना नहीं चाहता था !..वरन संध्या उसे लेकर हमेशा और भी डरी रहने लगती !..समीक्षा तब छोटी थी . इसलिए दोनों के न चाहते हुए भी बोर्डिंग में समीक्षा पहुंचा दी गयी थी . लेकिन तब से लेकर आज तक घर का सारा माहौल ही बदल गया है .. न तो संध्या अब पहले वाली संध्या रही ..न ही समीक्षा !. हालाँकि तबसे अब तक दो-तीन शहर बदल गए ! ..समय भी काफी गुज़र गया !..पर किया क्या जाए ?
..सेलफोन की घंटी अचानक बजने लगती है . एकदम से चौंक कर वर्तमान में आता है नाइक . आजकल रह-रह कर कुछ ज्यादा ही सोचने लगा है वह संध्या और समीक्षा के बारे में ...कहीं खुशबू की मौत ने उसे ....? उसने गौर से देखा , शिंदे का फोन था .
उसने कॉल रिसीव की , “ येस शिंदे !..क्या डेव्लप्मेंट ?
“ सर , एक ब्रेक थ्रू मिला है . खुशबू की एक सहेली है पिंकी !..खुशबू को शायद आशंका थी कि उसके साथ कोई भी अनहोनी हो सकती है !..इसीलिए उसने एक सुसाइडल नोट लिखा था , जो कि उसकी किसी किताब के पन्नों में रखा देख कर पिंकी ने चुरा लिया था !..यह अलग बात है कि खुशबू को आत्महत्या की ज़रूरत फिर से महसूस हो , इससे पहले ही ...!..फिलहाल पिंकी ने हिम्मत करके वह नोट हमलोगों के हवाले कर दिया है !..आपका पढ़ना ज़रूरी है सर ! ..आय एम् ऐट पुलिस स्टेशन !” शिंदे की आवाज़ में व्यग्र उत्साह छलकने लगा था .
...इसके बाद कितनी तेज़ी से नाइक थाना पहुंचा , इस बाबत वह खुद ही खुद पर आश्चर्य कर बैठा !..सामने शिंदे बैठा था और मेज के इस पार अपनी कुर्सी पर बैठे नाइक की हाथों में खुशबू का खुला नोट था !..सुसाइडल !
“...हम अपनी ज़िन्दगी से तंग आ गए हैं. हम जो भी करना चाहते हैं , वह कोई मुझे करने नहीं देता .हमारा स्कूल में बहुत दिल लगता है , पर रॉकी और बबलू के डर से अब हमने स्कूल जाना छोड़ दिया . माँ और भाई को संभालने के लिए हम जहां सिलाई का काम करते थे, वहां भी ये दोनों गुंडे आ जाते थे . वह काम भी हमको छोड़ना पड़ा..किसी के कहने पर हमने रॉकी के नेता जी से जाकर शिकायत की , तो उन्होंने अपने ऑफिस में हमको यह कह कर काम दे दिया कि अब तुम्हें कोई तंग नहीं करेगा .हमको लगा , शायद सब ठीक हो जाएगा . रॉकी और बबलू भी अब दिखाई नहीं देते थे . पर उस दिन नेता जी ने सांझ को शराब के नशे में ऑफिस में हमको अकेला पाकर ...हम किसी तरह भाग निकले ..पर हमको अब बाहर निकलने की हिम्मत नहीं है ...और घर में बैठ कर हम बोझ नहीं बन सकते .. हम तो पढ़-लिख कर , काम कर पापा की कमी पूरा करना चाहते थे ..पर लगता है अब हमें कोई कुछ नहीं करने देगा ! ..सोचती हूँ , गले में फांसी लगा लूं !...पर माँ और भाई का क्या होगा ?...अगर कभी मैं मर जाऊं , तो भी हमको संतोष नहीं होगा !...समाज बहुत बुरा है ...गरीब की कोई मदद नहीं करता ..पुलिस भी नहीं ..रॉकी का नेता बोलता है ...पुलिस के पास गयी तो भी कुछ नहीं होगा ..पुलिस भी डरती है उससे ..हम बस पढ़-लिख कर घर का सहारा बनना चाहते थे ..पर हमें समाज ने पढने नहीं दिया ..”
ख़त अधूरा ही है , पर उसमें एक किशोर बालिका की मजबूरी की बेहद दर्दनाक और डरावनी दुनिया क़ैद है !..पढ़ते हुए नाइक को अचानक लगा कि खुशबू का सवाल उसकी अपनी बेटी समीक्षा का सवाल बन गया है !...क्या यह सच नहीं कि पुलिस सचमुच डरती है ऐसे तत्वों से ?..कि अपनी नौकरी और खाल बचाने के लिए रॉकी के नेता मुन्ना चौधरी जैसे हैवान सफ़ेदपोशों को समाज और देश की भलाई का ठेका दे दिया गया है ?..
ख़त को मोड़ कर अपनी फाइल में रखते हुए नाइक एक्शन की योजना बना चुका होता है , “ शिंदे !..केस बहुत हद तक साफ़ दिख रहा है !..हत्यारे बाहर के छोकरे थे , मुन्ना चौधरी के इशारे पर आये थे ..खुशबू घर से बाहर निकलती नहीं थी , वे उसकी फील्डिंग में लगे रहे होंगे ..जिस दिन ग़लती से छोटे-मोटे किसी काम के लिए खुशबू बाहर निकली , उन्होंने उसका काम तमाम कर दिया !..ज़ाहिर है खुशबू जैसी स्वाभिमानी बच्ची से मुन्ना चौधरी को अपनी बुरी हरकत के कारण ख़तरा पैदा हो गया था !..क्या रही होगी वह हरकत ?”
“.. ये ख़त पढ़ने के बाद तो कोई भी समझ सकता है सर ..!” शिंदे ने सहमति में सर हिलाया .
“.. इसलिए फिलहाल उन दो हत्यारों को ढूँढ़ निकालना बेहद ज़रूरी है.. मुन्ना चौधरी को सज़ा दिलाने के लिए केवल ये अधूरा ख़त काफी नहीं है शिंदे !..इसकी राइटिंग की भी, खुशबू की अन्य कापियां ढूंढ़ कर एक्सपर्ट से तस्दीक़ करो !..रॉकी और बबलू को अरेस्ट कर पूछ-ताछ के लिए लॉक-अप में रख दो ! प्रेस को ब्रीफ़ कर दो , उनके खिलाफ़ ठोस सबूत अपने पास हैं !..मुन्ना चौधरी के फोन निगरानी पर डाल दो !..ये भी पता करो कि खुशबू की हत्या वाले दिन और उसके आगे-पीछे मुन्ना चौधरी जिन लोगों के संपर्क में था, उनकी आइडेंटिटी क्या है ? ?और हाँ , उस लड़की पिंकी से मिलना चाहूँगा मैं . पर उसकी आइडेंटिटी बिलकुल गोपनीय रहे !..कोई आंच नहीं आनी चाहिए उस बच्ची पर !” एक सांस में इतने निर्देश दे डालता है नाइक .
हैरान शिंदे पलकें झपकाता है , “ लेकिन सर जब रॉकी और बबलू इसमें शामिल नहीं तो फिर उनकी ..”
“.. उनकी गिरफ्तारी हमें असली हत्यारों तक पहुँचने में मदद करेगी ! ..माइंड इट !..खुशबू को पढ़ाई छुड़ाने के ज़िम्मेदार तो हैं ही ये लोग ? इन्हेँ गिरफ़्तार तो करो !” नाइक आत्मविश्वास और आक्रोश से भरा हुआ है .
“ ओके सर !..” शिंदे कमरे से निकल जाता है .
...रॉकी और बबलू की गिरफ्तारी के साथ ही शहर में हलचल बढ़ जाती है . मीडिया सक्रिय हो उठता है . ये गिरफ्तारी सुर्खियाँ बन जाती है ..और चर्चा भी कि शायद पुलिस ने खुशबू मर्डर केस में मह्त्वपूर्ण सुराग पा लिया है !.. चौबीस घंटे भी नहीं बीते कि मुन्ना चौधरी के यहाँ से भी कॉल आ ही जाती है.
“ ..अरे भाई , अपने लड़के हैं !..इन्हें जानता हूँ मैं . जोश में थोड़ी-बहुत नादानियां कर सकते हैं, मैं भी मानता हूँ ,लेकिन मर्डर वगैरह नहीं कर सकते ये ,मुझे यकीन है! ..आपने ख्वामख्वाह उठा लिया उनको !” मुन्ना चौधरी की आवाज़ में चेतावनी की हल्की धमक है .
नाइक के लिए अपेक्षित थी यह कॉल , “ ..ख्वामख्वाह नहीं , पुख्ता सबूत हैं इनके खिलाफ नेता जी !..पुलिस को अपना काम करने दीजिये ..मर्डर कौन कर सकता , वह भी जल्द ही सामने आ जायेगा !..वैसे आपको तो उलटे सहयोग करना चाहिए .शहर की क़ानून-व्यवस्था का सवाल है.”
“ आपने गलत बच्चों को उठाया , ये बताना भी तो मदद ही है ?..शहर में नए हो आप !..किसी के बहकावे में कोई कार्रवाई करने से बचना आपके लिए अच्छा रहेगा !..बाकी आप पुलिस ऑफिसर हैं ,समझदार होंगे ही ?..मेरी पार्टी के बच्चे बिना कसूर लॉक-अप में रहें तो कुछ अपना भी फ़र्ज़ बनता है कि नहीं ?..समझ रहे हैं ना आप ?..उनके बारे में कुछ और जानना हो तो मैं मिल कर बता सकता हूँ आपको !..बस इसलिए कि आप जैसे क़ाबिल ऑफिसर के हाथ से कोई अन्याय ..”
“ ..नहीं होगा !..चिंता ना करें !...लड़के बेशक आपकी पार्टी के हैं , पर सब कुछ आपको बता कर ही तो नहीं करते ना ?” नाइक ने बात को बीच से ही लपक लिया , “ जैसे आप भी सब कुछ अपनी पार्टी के लोगों को बता कर तो नहीं ही करते होंगे ना ?” नाइक ने निशाने पर तीर छोड़ दिया .
उधर एक पल के लिए चुप्पी छा गयी .शायद कहे का मर्म समझने की कोशिश की जा रही हो. फिर जैसे निशाना ना समझने की बेहयाई या खुद को निर्विकार दिखाने का स्वांग , “ पर ये लड़के तो मौक़ा-ए-वारदात पे थे ही नहीं सर !..सभी जानते हैं .फिर भी आप इन्हें.. ?” मुन्ना चौधरी की आवाज़ में आश्चर्य के बहाने आरोप मढ़ने की साज़िश जन्म ले चुकी थी .
“ ..नहीं थे , तो छूट भी जायेंगे !...और जो थे , वे पकड़ लिए जायेंगे !..आप इत्मीनान रखें .बहुत जल्द दूध का दूध और पानी का पानी होगा !” नाइक के स्वर का एक-एक क़तरा तेज़ाब सा लगा मुन्ना चौधरी को .
“ ..चलिए !..देखते हैं !” फोन कट गया था मुन्ना चौधरी का .
तभी शिंदे ने प्रवेश किया , “ सर , मुन्ना चौधरी के दो सेलफोन के सारे ट्रैक रिकॉर्ड मिल गए हैं . खुशबू की हत्या वाले दिन और उसके आगे-पीछे भी एक नंबर है , जिस पर लगातार संपर्क किया गया है . मगर फिलहाल वह नंबर स्विच ऑफ है . नंबर किसी बंटी के नाम पर रजिस्टर्ड है , जिसका पता जाली है .”
नाइक गौर से शिंदे को सुन कर कुछ पल उसे देखता रहा , “..पता जाली है तो क्या हुआ ? ..नंबर तो असली है ?..कभी न कभी हरकत में तो आएगा ही !..नज़र रखो ..ये बंदा गिरफ्तार हुआ और मुन्ना चौधरी का खेल ख़त्म !”
शिंदे आँखों –आँखों में ही नाइक से सहमत होता हुआ फौरी एक्शन की ज़रूरत को समझते हुए तेज़ी से उठ खड़ा हुआ , “ राईट सर !”
..सप्ताह ख़त्म होते-होते अपेक्षित परिणाम सामने आ गया . बन्दे ने फ़ोन पर हरकत की और बेहद पोशीदे ढंग से पुलिस द्वारा उठा लिया गया . मार पड़ी तो जुर्म भी कबूल लिया . नाइक जानता था कि असली बवाल तो अब होने वाली गिरफ्तारी के साथ शुरू होने वाला था !..पर उसकी पेशानी पर पड़े बल ढीले पड़ गये . अगली सुबह चाय के साथ सुबह का अख़बार बड़े चाव से उसे पढ़ता देख संध्या थोड़ी हैरान हुई , पर उसे अपने पति का काफी दिनों बाद अपेक्षाकृत तनाव रहित चेहरा अच्छा लगा .
“..कई दिनों से तुमने कुछ बताया नहीं कि खुशबू-केस में कोई प्रगति हुई कि नहीं ?” नाइक की ताज़ा मनःस्थिति को समझने की गरज़ से उसने चलते-चलते इन दिनों का सबसे मौजूं सवाल हवा में उछाल दिया था..और पास में ही अपनी चाय लेकर सोफे पर बैठ गयी थी .
नाइक ने सर उठाया और कुछ पलों तक निर्निमेष पत्नी की आँखों में देखते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी , “ संध्या ,इस अपराध –बोध के साथ मैं और नहीं जी सकता कि हम दोनों यहाँ इतनी सहजता के साथ सुबह की चाय पीयें , सुबह का अखबार पढ़ते हुए एक- दूसरे का साथ महसूस कर सकें और हमारी मासूम सी बच्ची हमारी ज़िन्दगी की शर्तों की सज़ा कहीं तन्हा रह कर भुगते !..मैं उसे अब और बोर्डिंग में नहीं रख सकता !..इसी सप्ताह मैं उसे वहां से यहाँ लाने की तैयारी शुरू करने वाला हूँ !” कहते-कहते उसकी आँखों के कोर पर नमी का फाहा आकर ठहर गया .
संध्या तो जैसे कुछ देर के लिए संज्ञा- शून्य हो गयी ..!..और फिर भावनाओं का ऐसा अनियंत्रित ज्वार उठा कि बिना किसी अगले किन्तु-परन्तु के, पूरे आवेग के साथ वह नाइक से लिपट गयी !..नाइक बेआवाज़ उसे अपनी बांहों में लिये देर तक उसकी पीठ थपथपाता रहा . फिर उसे अहिस्ता से खुद से अलग कर अपनी उँगलियों से उसके लगातार बह रहे आंसू पोछे और ठुड्ढी पकड़ उसका चेहरा ऊपर उठाया , “ हाँ संध्या , जब अपनी बच्ची को ही हम सुरक्षा नहीं दे सकते , तो खुशबू जैसी बेसहारा बच्चियां ,जो अपने जीवन में इतना जोखिम उठा सकती हैं ,उनकी हिफाज़त हम क्या खाक़ कर पायेंगे ?.. फिर क्या हक है हमें पुलिस की नौकरी करने का ?..कैसे हम जवाब दे सकते खुशबू की मृत आँखों में भी क़ैद उसके साथ हुए घोर अन्याय से जुड़े तमाम सवालों के ?...नहीं संध्या , इन खतरों से पलायन इनका जवाब नहीं है ! इनसे लड़ना ही एकमात्र विकल्प है !...खुशबू-केस ने यही समझाया मुझे !”
संध्या की नम आँखों में पति के लिए सहसा ढेर सारा गर्व और प्यार उमड़ आता है .वह फिर उससे लिपट जाती है .
..पुलिस-स्टेशन में बैठा नाइक अगले एक्शन की रूप –रेखा बनाते-बनाते ड्रावर से फिर निकाल कर खुशबू का ख़त पढने लगता है ... “ समाज बहुत बुरा है ..गरीब की मदद कोई नहीं करता ...पुलिस भी नहीं ...रॉकी का नेता बोलता है ..पुलिस के पास गयी तो भी कुछ नहीं होगा !..पुलिस भी डरती है उससे ...हम बस पढ़-लिख कर घर का सहारा बनना चाहते थे ..पर हमें समाज ने पढने नहीं दिया !”
..पढ़ते-पढ़ते गहरे क्षोभ और आवेश से कांपने लगती हैं नाइक की उंगलियां !...ख़त पर उभर आई हैं खुशबू की फटी-फटी गुजारिश करती असहाय आँखें ..जिनमें न जाने ऐसी कितनी मजबूर बच्चियों की आँखों का दर्द दिखने लगता है नाइक को !..धीरे-धीरे उसकी आँखों में भी पानी उतर आता है ...खुशबू का चेहरा धुल जाता है ...ओर उसकी जगह उग आता चेहरा मुन्ना चौधरी का !..नाइक की उंगलियाँ सख्ती से भिंच उठी हैं !
सलिल सुधाकर
पहचान: पत्रकार, साहित्यकार—कथाकार और अभिनेता
जन्म: 26 मई, आरा, बिहार।
शिक्षा: विज्ञान से स्नातक एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा
आठवें दशक के उत्तरार्ध से सक्रिय लेखन! लेखन का आरंभ भले ही कविताओं से हुआ, पर जल्द ही कथा—साहित्य की ओर झुकाव बढ़ा, लिहाजा अपने अनुभव—वैविध्य और जीवंत कथा—शिल्प के कारण हिंदी कथा—साहित्य का एक महत्वपूर्ण और चर्चित नाम! अब तक पचास से अधिक तज—तर्रार एवं गहरा प्रभाव छोड़ने वाली कहानियाँ हंस, सारिका, रविवार, कथा देश, वागर्थ, नया ज्ञानोदय आदि से लेकर देश की सभी प्रमुख पत्रिकाओं/पत्रों में निरंतर प्रकाशित चचिर्त। कई राष्ट्रीय पत्र—पत्रिकाओं में पत्रकारिता का लंबा अनुभव।... हिस्से में कई पुरस्कार! कथा देश अखिल भारतीय कथा प्रतियोगिता में कथा 'सपन' को तृतीय पुरस्कार! अप्रतिम, लखनऊ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय शैलेश मटियानी कथा प्रतियोगिता में कहानी 'तुम कहां चले गए थे भैया?' को प्रथम पुरस्कार! पहला उपन्यास 'तपते कैनवास पर चलते हुए' महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा जैनेंद्र कुमार पुरस्कार से सम्मानित। अब तक कहानियों के चार संग्रह। कथा लेखन के अलावा कविता के क्षेत्र में भी खासा दखल। बीच—बीच में कवितायें भी प्रकाशित। दो कथा संग्रह और दूसरा उपन्यास शिघ्र प्रकाश्य। आदिवासी नाटक कथा महुआ पाड़ा को वर्ष 2018—19 के लिए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का विष्णु दास भावे स्वर्ण पुुरस्कार।
रंगमंच, टीवी एवं फिल्मों के समर्थ अभिनेता। दर्जनों धारावाहिकों और फीचर फिल्मों में अभिनय और लेखन जारी।
संपर्क: 9930343864
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