
मुश्किल में भारत बना मददगार
पहले एक नजर भारत के दक्षिणी पड़ोसी देश श्रीलंका की खास पहचान पर डालें,जो इस प्रकार है—
श्रीलंका छोटा मगर अद्वितीय कुदरती खूबसूरती से भरा हुआ है. इसके आकार की वजह से इसे कोई आंसू की बूंद कहता है, तो कोई ‘हिंद महासागर का मोती’ कहकर बुलात है.
— श्रीलंका भी भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तरह ब्रिटेन का गुलाम था. उसे 1948 में आजादी मिली. यह देश आपनी आजादी का जश्न हर साल 4 फरवरी को मनाता है.
— इस देश की खास पहचान चाय का उत्पादन है, जो दुनियाभर में मशहूर है. यह उसका सबसे बड़ा निर्यातक भी है. दुनिया के कुल चाय निर्यातकों में उसका चौथा नंबर है.
— श्रीलंका में ही दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष है, जो इंसान द्वारा बोया गया था. अनुराधापुर के महामवेना गार्डन्स में अंजीर के इस पेड़ के बारे में मान्यता है कि इसे उसी बोधि वृक्ष की कलम से बोया गया था, जिसके नीचे बैठकर महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई. इसे 236 ईसा पूर्व में रोपा माना जाता है.
— श्रीलांका एक और खास पहचान विश्व स्वास्थय संगठन ने दी है. दक्षिण एशिया में करोड़ों जानें लेने वाला मलेरिया पर श्रीलंका ने 2016 में पूरी तरह मुक्ति पा ली थी. इसके चलते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे मलेरिया मुक्त देश घोषित किया था.
— श्रीलंका के दामन पर लगा धाब्बा भी है. वह है ढाई सालों तक चलने वाला गृहयुद्ध. इस की शुरूआत 1983 में हुई थी, जो लगभग 25 सालों तक चलती रही. 2009 में इसके खत्म होने से पहले देश में लगभग 80 हजार लोगों की जान इस युद्ध के कारण गई. लिट्टे को दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठनों में गिना जाता था.
श्रीलंका इन दिनों सियासी सग गुजर रहा है. राष्ट्रपति गोटाबाया देश छोड़ने के बाद इस्तीफा दे चुके हैं.
उन्होंने अपना इस्तीफा संसद के स्पीकर को ईमेल के जरिए भेजा था. इस्तीफे की खबर के बाद कोलंबो में प्रदर्शनकारी जश्न मनाने लगे.
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका से अपमानित होकर भाग जाने के बाद राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने मालदीव से सिंगापुर के लिए उड़ान भरी थी. सिंगापुर सरकार ने कहा कि उन्हें "निजी यात्रा" पर "प्रवेश की अनुमति" दी थी. बाद में उन्होंने अपना इस्तीफा श्रीलंका की संसद के स्पीकर को भेज दिया था. राजपक्षे पहले मालदीव गए और उसके एक दिन बाद वहां से सिंगापुर के लिए रवाना हो गए थे.
प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के जिम्मे ही देश के राष्ट्रपति की भी जिम्मेदारी है. वो स्थिति को संभालने की कोशिशों में लगे हुए हैं.
श्रीलंका में ये सब रातों-रात हुआ है, ऐसा नहीं हैं. साल 2019 में जब राजपक्षे देश के राष्ट्रपति बने तो उनकी नीतियों पर सवाल उठने लगे. इसके बाद जब कोविड-19 महामारी का आगाज हुआ तो हालात और बिगड़ गए. टूरिज्म पर आधारित अर्थव्यवस्था चौपट होने की तरफ बढ़ने लगी और धीर-धीरे सबकुछ खत्म हो गया. जनता रोटी के लिए तरसने लगी और मजबूर होकर सड़कों पर उतर आई.
देश में आपातकाल की स्थिति है और कर्फ्यू लगा दिया गया है. श्रीलंका की आबादी 22 मिलियन है और फिलहाल राजनीतिक उठापटक ने हालात मुश्किल कर दिए हैं.
श्रीलंका में संकट बहुत ही गहरा है. कर्ज से लदा ये देश इस कदर संकट में है कि ये खाने, ईधन और वाईयों के लिए भी पैसे तक नहीं दे पा रहा है. मदद के लिए श्रीलंका पूरी तरह से भारत, चीन और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) पर निर्भर है. मई में पीएम का पद संभालने वाले विक्रमसिंघे ने कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था फर्श पर आने वाली है. विक्रमसिंघे का बयान क्या आया देश की जनता के सामने दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़े गए. ईधन और कुकिंग गैस के लिए लोगों को घंटों लाइन में लगे रहना पड़ता था. सरकार पर देखते ही देखते 51 बिलियन डॉलर की देनदारी हो गई. वो कर्ज पर बने ब्याज को भी अदा करने में लाचार हो गई.
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से टूरिज्म पर निर्भर थी. ये वो इंजन है जो देश को कई दशकों तक तरक्की के रास्ते पर रखे हुए था, लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने इस पर पूरी तरह से ब्रेक लगा दिया. देश की मुद्रा 80 फीसदी तक लुढ़क गई और आयात महंगा हो गया. इसकी वजह से महंगाई भी बढ़ गई. देश के वित्ता मंत्रालय ने कहा कि श्रीलंका के पास 25 मिलियन डॉलर का ही विदेशी रिजर्व बचा है और उसे 6 बिलियन डॉलर की जरूरत है, ताकि अगले छह माह तक देश को चलाया जा सके. इसकी वजह से देश कंगाली की कगार पर पहुंच गया. इसका नतीजा हुआ कि ईधन, दूध, दवाईयों और यहां तक टॉयलेट पेपर तक खरीदना भी मुश्किल हो गया.
भारत मददगार बना
विशेषज्ञों की मानें तो पुरानी सरकारों ने अर्थव्यवस्थाओं को बहुत ही खराब तरीके से संभाला और इसकी वजह से देश कमजोर हो गया. साल 2019 में जब गोटाबाया राजपक्षे की सरकार आई तो करों में बहुत ज्यादा कटौती की गई. इसके कुछ ही समय बाद महामारी आ गई और श्रीलंका का सारा रेवेन्यू खत्म हो गया. महंगाई की दर 54.6 फीसदी से बढ़कर पिछले माह 70 फीसदी तक पहुंच गई थी और ये आंकड़ा सेंट्रल बैंक की तरफ से मुहैया कराया गया था. काफी समय से विपक्ष के नेता सरकार से अपील कर रहे थे कि उन्हें कुछ करना होगा, लेकिन इसे पूरी तरह से अनसुना कर दिया गया.
अप्रैल 2021 में राष्ट्रपति ने केमिकल फर्टिलाइजर्स के आयात को भी बैन कर दिया, जिसकी वजह से चावल की खेती और चौपट हो गई. श्रीलंका को इस समय भारत और चीन से मदद मिल रही है. भारत की तरफ से बताया गया है कि उसने श्रीलंका को 3.5 बिलियन डॉलर की मदद मुहैया कराई गई है. फिलहाल आईएमएफ के साथ विक्रमसिंघे बेलआउट पैकेज पर बात कर रहे हैं. कोलंबो टाइम्स न्यूजपेपर की तरफ से बताया गया है कि आईएमएफ ही देश की आखिरी बची उम्मीद है.
श्रीलंकाई सांसदों ने राजपक्षे के शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए 20 जुलाई को एक नए राष्ट्रपति का चुनाव करने पर सहमति व्यक्त की है, जो 2024 में समाप्त हो रहा है. नया राष्ट्रपति एक नए प्रधानमंत्री को नियुक्त करने में सक्षम होगा, लेकिन उसे संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना होगा.
जो कोई भी गोटाबाया की राजनीतिक विरासत को संभालेगा, उसे श्रीलंका की खराब अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की हिमालयी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. कोरोना महामारी के बाद से ही देश भोजन, ईंधन और दवा की कमी से जूझ रहा है.