एंटीबॉडी कीमोथेरेपी इंजेक्शन यानी एनहर्तु
वैज्ञानिकों ने स्तन कैंसर के लिए एक दवा बनाई है जो मरीजों की जीने की अवधि बढ़ा रही है. इस दवा का असर जिन मरीजों पर हो रहा है, उन्हें नई श्रेणी में रखा जाएगा. पहली बार वैज्ञानिकोंको एक ऐसी दवा बनाने में कामयाबी मिली है, जो स्तन कैंसर की वजह बनने वाले प्रोटीन को निशाना बनाती है. यह दवा ट्यूमर के खिलाफ काम करती प्रतीत हुई है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह दवा स्तन कैंसर का इलाज नहीं है लेकिन कैंसर थेरेपी की प्रक्रिया में यह दवा इलाज की नई संभावनाएं खोल सकती है.
अबर तक स्तन कैंसर को दो श्रेणियों में बांटा जाता रहा है. एक है HER2-positive, जिसमें कैंसर कोशिकाओं में प्रोटीन सामान्य से ज्यादा होता है. दूसरी श्रेणी को HER2-negative कहा जाता है. रविवार को डॉक्टरों ने कहा अब एक नई श्रेणी HER2-low बनाई जाएगी जो कि स्तन कैंसर के इलाज में मार्गदर्शक होगी.
डॉक्टरों का मानना है कि HER2-negative श्रेणी के वे मरीज जिन्हें स्तन कैंसर के प्राथमिक से बाद के चरणों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है, संभव है कि वे HER2-low श्रेणी के मरीज हों और इस दवा के योग्य हों.
यह दवा असल में एक एनहर्तु है, यानी एक एंटीबॉडी कीमोथेरेपी इंजेक्शन जिसे आईवी के जरिए दिया जाता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कैंसर कोशिकाओं में मौजूद HER2 प्रोटीन कोशिकाओं को खोजकर उन्हें ब्लॉक कर देती है. इसके लिए यह कैंसर कोशिकाओं के भीतर एक ताकतवर रसायन छोड़ती है, जो कैंसर को खत्म करता है. यह नई तरह की दवाओं की श्रेणी में आती है जिन्हें एंटीबॉडी-ड्रग कहा जाता है.
इस दवा को मान्यता तो पहले ही मिल चुकी थी लेकिन अप्रैल में अमेरिका की फूड ऐंड ड्रग अथॉरिटी ने इसे नई श्रेणी के मरीजों के महत्वपूर्ण खोज का भी दर्जा दिया. नया अध्ययन कहता है कि इस दवा के कारण मरीजों की कैंसर के बिना जीने की अवधि लंबी हुई है और उनके कैंसर की प्रगति की रफ्तार धीमी हुई जिससे उनके जीने की संभावना सामान्य कीमोथेरेपी लेने वाले मरीजों की तुलना में बढ़ी.
अध्ययन में HER2-low स्तन कैंसर की श्रेणी वाले 500 मरीजों में कीमोथेरेपी की तुलना एनहर्तु से की गई. इन मरीजों में कैंसर फैल चुका था या फिर उस स्टेज पर पहुंच गया था, जहां उसे सर्जरी से ठीक नहीं किया जा सकता था. दवा लेने वाले मरीजों में कैंसर का प्रसार लगभग 10 महीने तक थमा रहा जबकि सामान्य इलाज कराने वाले मरीजों में यह साढ़े पांच महीने ही रुका. दवा ने जीने की अवधि को भी औसतन छह महीने बढ़ा दिया.
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लैंगोन हेल्थ सेंटर में स्तन कैंसर के मरीजों की देखभाल करने वाले विभाग की निदेशिका डॉ. सिल्विया एडम्स ने बताया कि यह खोज इलाज को नई दिशा दे सकती है. उन्होंने कहा, "यह अभ्यास बदलने वाला अध्ययन है. यह ऐसे मरीजों की जरूरत पूरी करती है जिन्हें मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर है.”
अब वैज्ञानिकों का काम नई श्रेणी HER2 को सही रूप से परिभाषित करना है ताकि सही मरीजों को यह इलाज मिल सके. विशेषज्ञों ने कहा कि इन मरीजों की करीब से निगरानी की जाएगी.
इस दवा का खर्च लगभग 14 हजार डॉलर यानी दस लाख रुपये महीना से भी ज्यादा होता है और इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं. इस दवा का एक साइडइफेक्ट फेफड़ों पर देखा गया. अध्ययन के दौरान तीन मरीजों की फेफड़ों के रोग से मौत हो गई. डॉक्टरों को सुनिश्चित करना होगा कि मरीज सांस की दिक्कत होने पर फौरन सूचित करें ताकि दवा को बंद किया जा सके और मरीजों को स्टेरॉयड दिए जा सकें.
मरीजों के लिए भी नई है श्रेणी
इस अध्ययन के नतीजे रविवार को शिकागो में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी की सालाना बैठक में पेश किए गए. यह अध्ययन न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपा है. इस अध्ययन के लिए खर्च टोक्यो स्थित दाईची सांक्यो और ब्रिटेन स्थिति एस्ट्राजेनेका ने दिया था. इन दोनों कंपनियों ने मिलकर ही इस दवा को विकसित किया है.
विशेषज्ञों के मुताबिक मरीजों को यह दवा तब तक लेनी है जब तक कि उनके लिए इसके परिणाम असहनीय ना हो जाएं. अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता डॉ. शानू मोदी हैं जो न्यूयॉर्क के मेमॉरियल सलोन केटरिंग कैंसर सेंटर में काम करती हैं. मोदी बताती हैं कि बहुत से लोगों के लिए कैंसर की यह नई श्रेणी होगी. उन्होंने कहा, "बहुत से लोगों ने, जिनमें मरीज भी शामिल हैं HER2-low स्तन कैंसर के बारे में नहीं सुना होगा. अब हमारे पास एक ऐसी दवा है जो खास इस श्रेणी के लिए है और HER2 के कम स्तर को निशाना बना सकती है. यह दवा असल में HER2-low स्तन कैंसर को श्रेणीबद्ध करने में मददगार है. पहली बार इन मरीजों को श्रेणीबद्ध किया जा सकेगा.
बढ़ता कैंसर
राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार इस समय भारत में कैंसर के लगभग 14 लाख मामले हैं. पिछले चार सालों में इन मामलों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2016 में देश में अनुमानित 12.6 लाख मामले थे. कैंसर रजिस्ट्री के मुताबिक अगले पांच साल में कैंसर के मामलों में 12 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. 2025 तक देश में 15.7 लाख मामले होने का अनुमान है.
पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाएं कैंसर से पीड़ित हैं. 2020 में 6.8 लाख पुरुषों के मुकाबले 7.1 लाख महिलाओं के कैंसर से पीड़ित होने का अनुमान है. 2025 में पुरुषों में कैंसर के 7.6 लाख मामले और महिलाओं में 8.1 लाख मामले होने की आशंका है.सभी उम्र के कैंसर पीड़ितों की तुलना में 14 साल तक के बच्चों में कैंसर का अनुपात देश के अलग अलग इलाकों में 0.7 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत तक है. ये अनुपात उत्तर भारत में सबसे ज्यादा दिल्ली में है (लड़कों में 4.7 प्रतिशत और लड़कियों में 2.6 प्रतिशत), दक्षिण में हैदराबाद में, पश्चिम में लड़कों में औरंगाबाद और लड़कियों में बर्षि ग्रामीण.कैंसर के सभी मामलों में तंबाकू से होने वाले कैंसरों की संख्या सबसे अधिक (27 प्रतिशत) है. 2020 में कैंसर के 3,77,830 मामलों के पीछे तंबाकू के कारण होने का अनुमान है. 2025 तक इस संख्या के बढ़ कर 4,27,273 हो जाने की आशंका है.हर 1,00,000 लोगों की आबादी पर पुरुषों में कैंसर के सबसे ज्यादा मामले मिजोरम के आइजॉल जिले में हैं (269.4) और सबसे कम महाराष्ट्र के उस्मानाबाद और बीड जिलों में हैं (39.5). महिलाओं में आबादी के अनुसार सबसे ज्यादा मामले अरुणाचल प्रदेश के पापुमपारे जिले में हैं (219.8) और सबसे कम महाराष्ट्र के उस्मानाबाद और बीड जिलों में हैं (49.4).