
भारत—चीन सीमा विवाद
शाहिद ए चैधरी
चीन ने एक नया भूमि सीमा कानून गठित किया है, जो वह अगले वर्ष एक जनवरी से लागू करेगा। भारत के साथ जो चीन की 3,488 किमी लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) है, उसके पास चीन ‘दोहरे उपयोग’ के गांवों का निर्माण कर रहा है। पिछले साल से जो सीमा विवाद चल रहा है, उसे सुलझाने के लिए भारत व चीन के उच्चस्तरीय सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता के 13 चक्र हो चुके हैं, लेकिन बीजिंग द्वारा हर बार गोलपोस्ट बदलने के कारण अब तक कोई खास नतीजा नहीं निकल पाया है। ये तीन अलग-अलग बातें हैं, लेकिन आपस में जुड़ी हुई हैं और नई दिल्ली व बीजिंग के संबंधों को प्रभावित कर रही हैं। इसलिए यह समझना आवश्यक हो जाता है कि आखिर चीन की इन चालों का उद्देश्य क्या है? वह इनसे हासिल क्या करना चाहता है? और चीन की इन नापाक चालों को बेअसर करने के लिए भारत के पास विकल्प, योजना व तैयारी क्या हैं?
भूमि सीमा क्षेत्रों की सुरक्षा व उपयोग के लिए, यह कहते हुए कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की ‘प्रभुसत्ता व क्षेत्रीय अखंडता पवित्र व अनुल्लंघनीय है, चीन ने जो नया भूमि सीमा कानून गठित किया है, उससे सीमा सुरक्षा प्रबंधन में तो आवश्यक रूप से कोई परिवर्तन सम्भावित नहीं है, लेकिन इससे सीमा प्रबंधन के संदर्भ में चीन का बढ़ता आत्मविश्वास प्रतिविम्बित होता है, जिससे बीजिंग का जो भारत से सीमा विवाद है उस पर गहरा असर पड़ सकता है। इस कानून के सिलसिले में कहा गया है कि क्षेत्रीय अखंडता व भूमि सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए राज्य न सिर्फ उचित कदम उठायेगा बल्कि इन्हें कमजोर करने के किसी भी प्रयास को रोकेगा।
ध्यान रहे कि किसी भी प्रकार के ‘आक्रमण, अतिक्रमण, घुसपैठ, उकसावे’ से सीमा की रक्षा करने की जिम्मेदारी चीन की सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) व मिलिट्री पुलिस (पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स) की है। नये कानून में कहा गया है कि अगर युद्ध या पास के किसी अन्य सशस्त्र टकराव से सीमा सुरक्षा को खतरा होता है तो चीन अपनी सीमा बंद कर सकता है। हालांकि चीन ने इस बात पर बल दिया गया है कि पड़ोसी देशों (पढ़ें भारत) के साथ जो लम्बे समय से सीमा मुद्दे व विवाद लंबित हैं, उनका समता, आपसी विश्वास व दोस्ताना बातचीत से उचित समाधान निकाला जायेगा, लेकिन जिस तरह से उसने भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ की और उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता के चक्रों में बाधाएं उत्पन्न कीं, उससे उसकी कथनी व करनी का अंतर स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। चीन के लिए दोस्ताना बातचीत का अर्थ है कि उसकी बेतुकी शर्तों व इच्छाओं को बिना आपत्ति के आदेश मानकर स्वीकार कर लिया जाये।
गौरतलब है कि चीन एक तरफ ‘वार्ता के जरिये विवाद हल’ करने की बात कर रहा है और दूसरी तरफ उसने अपनी सैन्य एक्सरसाइज तेज कर दी है और अपने रिजर्व सैनिकों को सक्रिय मोड में रखा हुआ है। साथ ही वह एलएसी के पास ‘दोहरे-उपयोग’ के गांवों और सैन्य शेल्टर्स का निर्माण कर रहा है। इस पृष्ठभूमि में नये कानून का यह पहलू महत्वपूर्ण है कि सीमावर्ती शहरों के निर्माण, उनके कामकाज को बेहतर करने और उनकी क्षमता को मजबूत करने के लिए राज्य अपना सहयोग प्रदान करेगा। राज्य इनकी सुरक्षा और आर्थिक व सामाजिक विकास की भी जिम्मेदारी लेगा। जाहिर है चीन की इन हरकतों के कारण भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं और वह बॉर्डर प्रोटोकॉल को अपडेट करने के बारे में विचार कर रहा है। साथ ही सीमा पर किसी भी आपातस्थिति का सामना करने के लिए पूर्ण ऑपरेशनल तैयारी सुनिश्चित की है। साथ ही भारत कमजोर सिलीगुड़ी गलियारे या चिकन नेक पर मंडराते खतरे को कम करने के लिए भी प्रयासरत है।
यहां यह बताना आवश्यक है कि भारत और चीन के बीच जो एलएसी है उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) की है, जिसकी नई बटालियनों को मंजूरी दिया जाना अपने अंतिम चरणों में है। इन बटालियनों को पूर्ण लॉजिस्टिकल सपोर्ट और मॉडर्न गैजेट्स उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार समर्पित है ताकि यह अपना काम प्रभावी अंदाज में कर सकें, जिसका अर्थ है कि चीन के आशंकित नापाक मंसूबों पर पानी फेर जाए। मालूम हो कि पूर्वी लद्दाख में चीन से भारत का टकराव व गतिरोध पिछले 17 माह से चल रहा है। इसके समाधान के लिए दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता के 13 चक्र हो चुके हैं, जिनमें बहुत मामूली सफलता ही मिली क्योंकि चिंताओं व संवेदनशीलताओं पर बीजिंग के एकतरफा नजरिए से समस्याओं का समाधान निरंतर जटिल व कठिन होता जा रहा है। शायद यही कारण है कि नई दिल्ली अब चीन के साथ जो वर्तमान में सीमा समझौते हैं, जिनमें अक्टूबर 2013 का बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीडीसीए) भी शामिल है, उनकी पुनः समीक्षा करने पर विचार कर रही है।
हालांकि भारत अपनी तरफ से यही कोशिश करता है कि ‘द्विपक्षीय समझौतों व प्रोटोकॉल्स का सम्मान करे’ और ‘किसी भी प्रकार की आक्रामकता प्रदर्शित न करे’, जैसा कि ईस्टर्न आर्मी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट-जनरल मनोज पांडे ने कहा, लेकिन चीन जिस प्रकार की चालाकियों व साजिशों पर उतारू है, उसका एकमात्र इलाज यही है कि भारत मुस्तैद और हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहे। पूर्वी लद्दाख के अतिरिक्त मुख्य चिंता का विषय सिलीगुड़ी गलियारा है। यह भूमि की पतली सी पट्टी है, इसलिए इसे चिकन नेक भी कहते हैं। इसका महत्व इस लिहाज से है कि यह उत्तरपूर्व को शेष भारत से जोड़ता है। सिलीगुड़ी गलियारे के निकट चीन जम्फेरी रिज की तरफ चीनी वाहनों के चलने लायक सड़क का निर्माण करना चाह रहा था, जिसे भारतीय सुरक्षा के लिहाज से रोकना आवश्यक था, इसलिए सिक्किम-भूटान-तिब्बत त्रिकोणीय जंक्शन के निकट डोकलम में 2017 में भारत व चीन के बीच 73-दिन तक फेस-ऑफ रहा।
इसका चिंताजनक परिणाम यह रहा कि चीन ने अब उत्तरी डोकलम में सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया है और अपनी फौज की स्थायी तैनाती की है। चीन डोकलम को नियंत्रित करने पर बल दे रहा है, इसलिए उसने कुछ दिन पहले भूटान के साथ द्विपक्षीय सीमा समझौता किया है। इस सबके साथ ही चीन अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी कर रहा कि इस साल पीएलए की एक्सरसाइज बड़े पैमाने व अधिक समय तक हुई हैं, एलएसी पर चीनी पेट्रोलिंग बढ़ गई है, और चीन ने अपने सीमा सुरक्षा बलों की संख्या भी बढ़ा दी है। ऐसा प्रतीत होता है कि चीन सैन्य ताकत दिखाकर अपनी बेतुकी शर्तें मनवाना चाहता है। लेकिन लेफ्टिनेंट-जनरल पांडे का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर व लड़ाकू क्षमताओं में भारत किसी भी सूरत में चीन से कम नहीं है यानी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने की ताकत रखता है, इसलिए उसके किसी दबाव में नहीं आयेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)